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छत्तीसगढ़ के जेवारा (जवारा) परब

छत्तीसगढ़ के जेवारा (जवारा) परब
छत्तीसगढ़ के जेवारा (जवारा) परब
छत्तीसगढ़ के जेवारा (जवारा) परब

छत्‍तीसगढ़: शक्ति अराधना के धाम-

हमर छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्‍य आय । आदिवासी मा शक्ति के अराधना के एक विशेष महत्व हे । येही पायके जम्‍मो छत्‍तीसगढ़ शक्ति अराधना के परब के परम्‍परा हे । छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल ले के मैदानी क्षेत्र तक आदि शक्ति के पूरा साल भर पूजा पाठ चलत रहिथे । दंतेवाड़ा के दंतेश्‍वरी, रतनपुर-रायपुर के महामाया, डोंगरगढ़ के बम्‍लेश्‍वरी अउ गाँव-गॉंव महामाई, शीतला, शक्ति, दुर्गा, काली, महाकाली आदि देवी के मंदिर हे । जिहॉं छत्‍तीसगढि़या मन अपन हर सुख-दुख म दाई के दुवारी जाथे । इहां के बर-विहाव म देवतेला के परम्‍परा येखर प्रमुख उदाहरण हे ।

आदि शक्ति अराधना के विशेष पर्व-

इहॉं आदि शक्ति अराधना के विशेष पर्व होथे, जेला नवरात के नाम से जाने जाथे । नवारात पर्व एक साल मा चार बार होथे । दू नवारात ला गुप्त नवरात अउ दून ठन ला प्रगट नवरात कहे जाथे । प्रगट नवरात ला हम सब झन जानथन । पहिली नवरात नवासाल के शुरूच दिन ले शुरू होथे चइत नवरात जेला वासंतीय नवरात के नाम ले घला जाने जाथे । दूसर नवरात होथे कुंवार महिना के अंजोरी पाख के एकम ले नौमी तक । दूनों नवरात मा देवी के अराधना करे जाथे । मंदिर देवालय मा अखण्ड़ जोत जलाये जाथे । दूनों नवरात मा पूजा पाठ अराधना के एके जइसे महत्व हे फेर लोकाचार लोकाव्यवहार मा दूनों मा कुछ आधारभूत अंतर हे । कुवार नवरात मा माँ दुर्गा के प्रतिमा बना के गाँव-गाँव उत्सव मनाये जाथे । ये काम चइत नवरात मा नई होवय । चइत नवरात म कुछ भक्त मन अपन घर मा माँ के अराधना करे बर अखण्ड़ जोत जलाथे जेखर साथ गेहूँ बोये जाथे ऐही ला जंवारा कहिथे ।

छत्तीसगढ़ के जेवारा (जवारा) परब-

चइत नवरात मा माँ के अराधना करे बर अखण्ड़ जोत जलाथे जेखर साथ गेहूँ बोये जाथे ऐही ला जवारा कहिथे । वास्तव मा गेहूँ के पौधा ला ही जवारा कहे जाथे, फेर पर्व मा श्रद्धा ले आदिशक्ति के वास येमा माने जाथे । येही ला जेवारा बोना कहे जाथे ।जब हम जेवारा के बात करथन त येखर सीधा मतलब घर मा बोये गे जेवारा ले होथे । मंदिर के जोत जेवारा अलग होथे अउ घर के अलग । येही हा दू प्रकार के होथेंं-

  1. पहिली सेत जंवारा
  2. दूसर मारन वाले जेवारा ।

दूनो जंवारा के बोये के, पूजा पाठके, सेवा करे के विधि सब एक होथे । अंतर केवल ऐखर विसर्जन के दिन के रीत मा होथे । सेत जंवारा मा केवल नारियल के भेट करत जंवारा विर्सजन करे जाथे जबकि मारन जंवारा मा बलि प्रथा के निर्वाहन करे जाथे ।

जंवारा चइत महिना के एकम ले लेके पुन्नी तक मनाये जाथे । सेत जंवारा के पर्व मंदिर के पर्व के साथ शुरू होथे अउ होही तिथि मा विसर्जित घला होथे यने कि एकम ले शुरू होके नवमी तक । जबकि मारन जंवारा एकम से लेके अष्टमी तक कोनो दिन शुरू होथे अउ शुरू होय के आठ दिन बाद विसर्जित होथे ।

जवारा पर्व के चार प्रमुख चरण होथे –

जंवारा परब के चार प्रमुख चरण या दिन विशेष या परब 1.बिरही 2. घट स्थापना या जोत जलाना 3.अष्टमी या अठवाही अउ 4. विर्सजन

1. बिरही-

सबले पहिली बिरही होथे । बिरही यने के गहूँ मा जरई जमाना (अंकुरण) आय । लेकिन येहू ला पूजा पाठ अउ श्रद्धा ले करे जाथे, शुरू दिन सूर्यास्त के बाद पूजा पाठ के बाद साफ गहूँ ला भींगो के रात भर छोड़ दे जाथे । वैज्ञानिक रूप ले रात भर भींगे गहूँ ह अंकुरत हो जाथे । गहूँ के जरई जमाये के परम्‍परा ल ही बिरही कहे जाथे ।

2.जोत (घट) स्‍थापना-

बिरही के बिहानभाय (दूसर दिन) बा्रम्हण पुरोहित के शोधे गे समय मा पूजा पाठ करके अखण्ड़ दीपक जलाये जाथे जउन हा विसर्जन तक पूरा नव दिन-रात जलथे । येही ला जोत कहे जाथे । ये जोत के साथ-साथ नवा-नवा चुरकी मा साफ बोये के लइक माटी डाल के बिरही (जरई आय गहूँ) ला सींच दे जाथे । जब गहूँ जाम जथे ता येला बिरवा कहे जाथे, जउन हा रोज रोज बाढ़त जाथे । ये बिरवा मा दाई के वास माने जाथे । येही बिरवा ला फूलवारी घला कहे जाथे ।

दाई के सेवा करना-

काबर के बिरवा ला दाई रूप माने जाथे ये पायके बिरवा जल्दी जल्दी बाढ़य, बढ़िया रहय ये सोच ले के रोज माँ के सेवा करे जाथे । माँ के सेवा करे के येमारा अर्थ बिरवा अउ जोती के देख-रेख करना अउ माँ ला खुश रखे बर माँ के बढ़ई करना, गुणगान करना होथे । माँ के गुणगान करत जउन गीत गाये जाथे होही ला जस गीत कहे जाथे । ये गीत के गवईया मन ला सेऊक कहे जाथे । सेऊक मन ढ़ोलक, मांदर, झांझ, मंजिरा के संग मा गीत गाथें, ये गीत के अपन अलगे लय होथे । जउन एतका मधुर होथे के तनःमन मा ये गीत हा भींज जथे, इहाॅं तक के कुछ भगत मन गीत के लय मा झूमें लगथें जेला, देवता चढ़ना कहे जाथे । ये गाना बजना लगातार नव दिन तक चलत रहिथे ।

अठवाही-

आठवां दिन ला अठवाही कहे जाथे, ये दिन माँ के पूजा पाठ के शांति अउ होय भूलचूक के माफी बर हूम-हवन करे जाथे । येही दिन जवारा पर्व के सबले बडृ दिन मानथें !येही दिन हितु-प्रीतू मन जेवारा के नेवता म ओखर घर जाके जंवारा (फूलवारी) मा नारियल के भेंट चढ़ाथे । सेउक मन अपन सेवा देथें ! अइसे तो रोजे जस गीत, सेवा गीत अउ जेवारा गीत होथे फेर आठे के दिन सेवा के अलगे बात होथे ये दिन घर म आन दिन ले जादा रौनक होथे ।

जवारा के विर्सजन-

आखिर नौवां दिन जोत अउ जंवारा के विर्सजन करे जाथे । विर्सजन गांव भर के लइका सियान अउ आये सगा-पहूना मन भाग लेथे । सेउक मन जसगीत गात चलथे । सेत मा सब झन नरियर के भेंट करत रहिथे । जादातर जवारा विसर्जन म कोनो न कोना ल देवता जढ़बे करथे । महिला ल जब देवता चढ़थे त ओखर बाल के बेनी ल खोल दे जाथे अउ अउ हो ह खुल्ला बाल ला आघू मुॅंह डहर लाके झूमे ल लगथे ! पुरूष मन ला देवता चढ़े म ओमन आथ ल लमा साट मांगथे त काशी या नरियरबूच के रस्सी ले ओखर हाथ ल या गोड ल मारे जाथे येही साट लेवब कहिथे ! कोनाःकोनोे बाना घला लेथे । बाना एक छोटे त्रिरसूल आकार के लोहा के नुकिला युक्ति होथे जेखर ले बाना लेवइया के जीभ ल छेदे जाथे ! ये सब दृश्य ल देख के आस्था के समुंदर के लहरा उठे लगथे । मारन मा जोत विर्सजन मा घर ले नदिया ले जाये के बेरा घर मा ही भेड़वा बोकरा के बली दे जाथे । बाकी रीत-रिवाज एके रहिथे ।

जसगीत-

जसगीत मा आदिशक्ति के गुणगान ही रहिथे कोनो पौराणिक कथा के आधार मा माँ के स्तुति करना हे । चूंकि माँ के रूप ला जंवारा मा, जोत मा निहीत मान लेथन ता ये जोत अउ जंवारा के स्तुति करना जस आय । जस मने दाई के यशगान करना आय । छत्तीसगढ़ मा गाये गे गीत के विधा ददरिया, करमा, भडौनी, सोहर, लोरिक चंदा, जस म कहू गिनती करे जाये के कोन गीत सालभर म सबले जादा गाये जाथे त सबले जाथा जस गीत ही पाये जाही ।

जेवारा परब के महत्व-

छत्तीसगढ़ म देवी-देवता ल पारिवारिक, कुल रीति-रिवाज ले मनइये मन ला देवतहा कहे जाथे । हर देवतहामन के अपन एक विशेष देवी-देवता होथे जादातर देवी ही होथे । देवतहामन हर तिहार-बार अउ सुख-दुख म अपन कुल देवी या कुल देवता के रीति-रिवाज ले पूजा-पाठ जरूर करथें । येही देवतहामन के एक बड़े भाग म जेवारा के प्रचलन हे । जवारा परब गरीब ले अमीर तक हर जात के मनखेमन मन मनाथें । हाँ अपन जाति अउ कुल के परम्परा अलग हो सकथे फेर मोटा-मोटी रीत एके रहिथे आदि शक्ति जगदम्बा ल दाई मान के ओखर चिन्हामान के जोत जलाये जाथे अउ जेवारा बोये जाथे । कोनो-कोनो परिवार म हर साल जेवारा बोये जाथे त कोनो-कोनो परिवार म हर दू साल या तीन साल या एक नियत समय के बाद जेवारा बोये के प्रचलन हे । कोनो-कोनो परिवार म पीढ़ी के पीढ़ी जेवारा बोये जाथे । पीढ़ी के मतलब परिवार म सबले पहिली जब बेटा के जनम होही त ओही साल जेवारा बोये जाही फेर ओखर पहिलावत बेटा के जनम म जेवारा बोये जाही ।

जवारा के परब ह एक खानदानी परम्परा अउ पारिवारिक रीति-रिवाज आय जेन ला मनखे श्रद्धा अउ विश्वास ले मनाथें । इन्खर मन के विश्वास होथे केे दाई उन्खर परिवार के हर प्रकार ले रक्षा करथे । दाई ऊपर अपार श्रद्धा रखथें । हर साल चइत नवरात म लगभग हर गाँव म जवारा परब देखे बर मिलथे । ये कई-कई पीढ़ी ले चले आत हे । ये परब ह हँसी-खुशी के परब आय जेमा आदि शक्ति के प्रति अपन आस्था प्रगट करे जाथे । अपन परिवार के राजी-खुशी के कामना करे जाथे ।

-रमेश चौहान

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