छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म कबीर-अजय अमृतांशु

छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म कबीर

-अजय अमृतांशु

छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म कबीर-अजय अमृतांशु
छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म कबीर-अजय अमृतांशु

छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म कबीर रचे-बसे हें

छत्तीसगढ़िया मन के नस नस म कबीर समाय हवय कइहँव त ये बात अतिशंयोक्ति नइ होही। छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म कबीर रचे-बसे हें । जेन छत्तीसगढ़ मा कबीरपंथ के लगभग 50 लाख अनुयायी हो उँहा कबीर के लोकप्रियता के अंदाजा आप अइसने लगा सकथव। कबीर के दोहा, साखी, सबद रमैनी, निर्गुण भजन, उलटबासी छत्तीसगढ़ म सैकड़ों बछर ले अनवरत प्रवाहित होत हवय। एक डहर कबीर भजन के हजारों ऑडियो, वीडियो उपलब्ध हवय उँहें दूसर डहर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जुग म यू ट्यूब म आप घर बइठे कबीर के अमृतवाणी के पान कर सकथव।

कबीर भजन के गायक लक्ष्‍मण मस्तुरिया-

छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया जी अपन जीवनकाल म कबीर उपर बहुत काम करिन। कबीर उपर उँकर कई आडियो /वीडियो आप मन ला मिल जाही। सही मायने म उन कबीर के बहुत बड़े फालोवर रहिन येकरे कारण उँकर वाणी भी कबीर के जइसे खरा रहय। उन जब भी बात करय बिना लाग लपेट के खरी खरा कहँय। उँकर एक प्रसिद्ध गीत जेन आज भी लोगन के मुँह ले निकल जाथे – हम तोरे संगवारी कबीरा हो …, येकर अलावा – माया तजि ना जाय…..,करम गति टारे नहीं टरे…., बीजक मत परवाना… आदि कई कबीर भजन के गायन मस्तुरिया जी करिन। हालांकि येकर मूल्यांकन आज पर्यन्त जतका होना रहिस नइ हो पाय हवय।

कबीर भजन छत्‍तीसगढ़ के लोकजीवन म रचे बसे हे-

छत्तीसगढ़ के गीतकार मन कबीर के महत्ता ल न केवल स्वीकार करिन बल्कि अँगीकार भी करिन। बेरा-बेरा मा अलग-अलग गीतकार मन अपन-अपन हिसाब से कबीर के साखी, दोहा अउ भजन ल अपन गीत मा उतारिन। कबीर के कई कालजयी भजन मूल रूप म मिलथे त कई छत्तीसगढ़ी म अनुदित भी । अइसने एक भजन देखव-

रहना नहीं देश बिराना हो रहना नहीं…
यह संसार कागज के पुड़िया
बून्द परे घुर जाना हे, रहना नहीं ……

ये भजन ल छत्तीसगढ़ मा आज पर्यन्त न जाने कतका गायक गाइन होही अउ आज भी गावत हे येकर गिनती संभव नइ हे।अइसन अनेकों भजन छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म रचे बसे हे। कभू भी मुँह से अनायास कोनो भी भजन प्रवाहित होय लगथे।

पंडवानी शैली म कबीर भजन-

पण्डवानी के नाम सुनते साठ हमर आँखी के आघू म पाँचो पाण्डव के कथा चलचित्र सरिक चले लागथे । पण्डवानी मा आप पाँच पाण्डव /महाभारत के ही कथा सुने होहू फेर अब विगत कम से कम 40 बछर ले पण्डवानी शैली म कबीर के जीवन दर्शन भी गाये जावत हे। येहू ला श्रोता मन ओतके आनन्दित होके सुनथे जतका उन महाभारत के कथा ल सुनथे। पण्डवानी शैली मा कबीर भजन के गायन म त्रिवेणी साहू काफी लोकप्रिय होइन। पहिली इंकर माँ गायन करत रहिन।

छत्‍तीसगढ़ के लोकगायन म कबीर-

खंझेरी तो नंदागे फेर पहिली खंझेरी मा कबीर के निर्गुण भजन के लॉजवाब भजन मन सुने ल मिलय। आकाशवाणी से कबीर निर्गुण भजन के प्रसारण भी होवय। लोगन अपन कामकाज निपटात रहय अउ दूसर डहर भजन चलत रहय।

छत्तीसगढ़ के लोकगायक मन कबीर के कई भजन ल ज्यों के त्यों गाइन त उँहे दूसर डहर भजन के छत्तीसगढ़ी /अपभ्रंश रूप घलो मिलथे। बावजूद ओकर लोकप्रियता म कोनो कमी नइ आइस।

झीनी झीनी रे झीनी बीनी चदरिया…
झीनी रे झीनी रे….
कि राम नाम रस भीनी चदरिया …..

छत्तीसगढ़ के लोक जीवन मा रचे बसे कुछ प्रसिद्ध कबीर भजन-

कबीर के हजारों दोहा में से सैंकड़ों दोहा इँहा के मनखे ल मुँहजुबानी याद रहिथे अउ जेन मनखे यदि ये कहि दिस के ये दोहा ल मैं नइ सुने हँव तो वो हँसी के पात्र भी बनथे। कबीरपंथी समाज म एक अनूठी परम्परा हवय – जब भी सामूहिक पंगत होथे त खाना पोरसे के बाद भोजन पोरसने वाला ह कबीर के दू-तीन ठिन साखी पढ़थे ओकर उपरांत ही खाये के शुरुआत करे जाथे। मतलब खाना से लेके सोये तक कबीर के साखी/भजन इँहा के लोक जीवन म आज भी देखे जा सकथे। छत्तीसगढ़ के लोक जीवन मा रचे बसे कुछ प्रसिद्ध भजन देखव –

कुछ लेना ना देना मगन रहना….
मोर हीरा गँवागे कचरा में ……..
तोर गठरी मा लागय चोर बटोहिया….
कैसा नाता रे फुला फुला फिरे जगत में..
कोन ठगवा नगरिया लूटल हो …..
मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे मैं तो तेरे……
मन लागा मेरो यार फकीरी में ….
पानी बीच मीन पियासी संतो….
संतो देखत जग बौराना ……

छत्‍तीसगढ़ी के पहिली कवि अउ कवित्री ले शुरू कबीर भजन-

अइसन अनेक भजन छत्तीसगढ़ के लोक जीवन म रचे बसे हवय। ये भजन ल आप कोनो भी मनखे करा पूछ लव न केवल बता दिही बल्कि व्याख्या घलो कर देही।

कबीर के शिष्य धनी धर्मदास जेला छत्तीसगढ़ी के पहिली कवि माने जाथे उँकर पद-
आज मोरे घर मा साहेब आइन हो…….

अउ आमीन माता जेला छत्तीसगढ़ी के पहिली कवयित्री माने जाथे उँकर पद-
उठो हो सुहागिन नारी झारि डारो अँगना…..

जइसन कर्णप्रिय भजन मन इँहा के नर-नारी मन ला कंठस्थ रहिथे। कोनो भी सुअवसर मा गाये बर तियार रहिथे ये सब लोकजीववन म कबीर के महत्ता ला बताथे।

छत्‍तीसगढ़ के लोक पर्व म कबीर भजन-

छत्तीसगढ़ के आम जनमानस म दोहा के लोकप्रियता के का कहना। हर अवसर मा हर प्रकार के कबीर के दोहा मनखे मन चल-फिरत बोल देथे। देवारी मा राउत मन के दोहा के काय कहना । होली मा फाग गीत के बेरा कबीर के दोहा कहे के बाते कुछ अलग रहिथे। कबीर के दोहा हा फाग गीत म चार चाँद लगाए के काम करथे।

रामायण के मंच मा घलो कबीर भजन प्रस्तुत करके बड़े-बड़े भजनहा मन मनखे के मन जीत लेथे, ये कबीर के लोकप्रियता के ही परिचायक हवय।

वरिष्ठ गीतकार सीताराम साहू “श्याम ” के कालजयी गीत –

बूझो बूझो गोरखनाथ अमरित बानी
बरसे कमरा फीजे ल पानी जी …..
ये कबीर के उलटबासी ऊपर आधारित हवय ।

नाचा म कबीर के संदेश –

नाचा छत्तीसगढ़ के पहिचान आय अउ नाचा म कबीर के संदेश नाचा म प्राण फूँके काम करथे।जोक्कड़ मन के द्वारा एक दूसर से नोक-झोंक करत हुए कबीर के दोहा/साखी के माध्यम ले संदेश देना नाचा के प्रमुख प्रस्तुत्ति होथे। जोक्कड़ मन धारदार व्यंग्य के साथ कबीर के दोहा भी कहिथे। कबीर के उलटबासी ल जोक्कड़ हा छत्तीसगढ़ी मा मजेदार अंदाज म प्रश्न करथे अउ जब दूसर जोक्कड़ वोकर उत्तर नइ जानय तब मजेदार अंदाज मा सही उत्तर बताथे। ये दौरान दर्शक मन आनन्दित होके देखथे अउ कबीर के कहे बात सीधा उँकर अंतस मा उतरथे –

माटी कहे मोला धीरे धीरे रौंदबे जी कुम्हरा….
एक दिन अवसर बीतही रे कुम्हरा…
जब मैं रौंदहँव तोला …
अरे बिरना बिरना रे चोला…

”साखी (दोहा) की परंपरा नाचा में खड़े साज से प्रारंभ होकर आज भी बैठक साज में विद्यमान है। ऐसा भी नहीं है कि साखी की यह परंपरा नाचा में ही है ।”- डॉ. पी.सी.लाल यादव।

सादा वस्त्र, सात्विक विचार, सात्विक भोजन अउ मृत्यु उपरांत कफ़न भी सादा, ये कबीर के ही देन आय जेन छत्तीसगढ़ मा सदियों से चले आत हे।

कबीर साहित्य के विशाल संग्रह

कुल मिला के कबीर के रचे साहित्य के धारा छत्तीसग़ढ़ के लोक जीवन मा अनेक रूप मा बोहावत हे। कहूँ उपदेश या प्रवचन के रूप मा त कोनो मेर भजन/साखी/दोहा के रूप म। कबीर के साहित्य छत्तीसग़ढ़ मा आसानी से उपलब्ध हवय। दामाखेड़ा के साथ-साथ अनेक कबीर आश्रम में कबीर साहित्य के विशाल संग्रह मिल जथे। समय-समय म अनेक विद्वान ये पावन धरा मा कबीर के विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए आवत रहिथे जिंकर वाणी के श्रवणपान यहाँ के लोगन करत रहिथे। सीधा सादा जीवन छत्तीसगढ़िया मनखे के पहिचान बन गे हे।

अजय अमृतांशु,भाटापारा

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