छत्‍तीसगढ़ के तिज तिहार भाग-2: भोजली-रमेश चौहान

पाछू भाग -1 हरेली-राखी ले आघू

छत्‍तीसगढ़ के तिज-तिहार भाग-2: भोजली तिहार

-रमेश चौहान

छत्‍तीसगढ़ के तिज-तिहार भाग-2: भोजली तिहार
छत्‍तीसगढ़ के तिज-तिहार भाग-2: भोजली तिहार

भोजली तिहार-

भादों के महिना छत्‍तीसगढ़ बर तिज-तिहार बर सबले बड़ महिना होथे काबर के येही महिना म छत्‍तीसगढ़ के सबले बड़ तिहार -‘तिजा-पोरा’ आथे । अइसे भादों महिना म नगत अक तिहार-बार होथे । ए महिना म तिहार के शुरूवात महिना के शुरूच दिन होथे ए दिन भोजली बनाए जाथे । एखर पाछू खमरछठ, कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी, पोरा अउ तिजा तहा ले गणेशपक्ष के उत्‍साह रहिथे ।

भोजली तिहार पूरा छत्‍तीसगढ़ म मनाए जाथे । छत्‍तीसगढ़ के आने-आने अंचल म आने-आने रीति-रिवाज ले अउ आने-आने दिन मनाए जा सकत हे । फेर मोटा-मोटी ए तिहार एके रकम ले मनाए जाथे । ए तिहार भादो महिना म राखी के बिहानभाय अंधियारी एकम के दिन मनाए जाथे । ए दिन ल अइसे भोजली ठंडा करे के दिन होथे ऐखर शुरूवात ऐखर ले नौ पहिली हो जथे ।

भोजली के शुरूवात बाउक ले होथे-

भोजली के शुरूआत भोजली के बाउक ले होथे । भोजली के बाउक मने बुआई सावन अंजोरी पाख के आठे के दिन करे जाथे । भोजली के बाउक करे बर नवा चुरकी ले जाथे । कुम्‍हार घर आवा के राख लाए जाथे । ऐला खातू-माटी कहे जाथे । नवा चुरकी म माटी संग ए खातू-माटी डार के गहूं के बीजा बोए जाथे । ऐही काम ल भोजली बाउक कहे जाथे । जेन चुरकी म ऐला बोए जाथे ओला घर के साफ-सुथरा कुरिया म रखे जाथे अउ एखर नौ दिन ले पूजा करे जाथे ।

भोजली ल देवी के मान्‍यता-

भोजली ल देवी के रूप म माने जाथे । ऐही कारण हे के भोजली के पूजा पाठ करे जाथे, सेवा करे जाथे । भोजली बर हमर छत्‍तीसगढ़ म एक अलग प्रकार के लोकगीत होथे जेला भोजली गीत कहे जाथे । भोजली बोए ले लेके भोजली ठंड़ा होत तक ऐखर बर भोजली गीत हे । एखर एकठन नमूना ऐ प्रकार हे-

भोजली गीत-

रिमझिम रिमझिम
सावन के फुहारे ।
चंदन छिटा देवंव दाई
जम्मो अंग तुहारे ।।

तरिया भरे पानी
धनहा बाढ़े धाने ।
जल्दी जल्दी सिरजव दाई
राखव हमरे माने ।।

नान्हे नान्हे लइका
करत हन तोर सेवा ।
तोरे संग मा दाई
आय हे भोले देवा ।।

फूल चढ़े पान चढ़े
चढ़े नरियर भेला ।
गोहरावत हन दाई
मेटव हमर झमेला ।।

भोजली ठंड़ा-

घर म नौ दिन ले भोजली के सेवा करे के बाद राखी के बिहानभय भादो अंधियारी एकम के दिन भोजली ल ठंड़ा करे जाथे । ए दिन जेखर घर भोजली बोए रहिथें ऊँहा के नोनाी लइका मन भोजली के चुरकी ल मुड़ी म बोही के एक जगह इक्‍कठा होथे, ऊँला ले रामधुनी, भजन टोली संग शोभा यात्रा के रूप म गॉंव के ठंडा करे के जगह नदिया-तरिया तक जाथे । लाइनबार भोजली बोहें खड़े लइका अउ भोजली ल देख के मन नाचे लगथे । संग ढोलक झांझ-मजिरा अउ भजन सुने म निक लगथे, कोनो-कोनो जगह सामूहिक भोजली गीत सोना म सुहागा होथे ।

छत्‍तीसगढ के तिज तिहार-भोजली
छत्‍तीसगढ के तिज तिहार-भोजली

भोजली ठंड़ा म भोजली मेला –

भोजली ठंड़ा के दिन कई जगह भोजली मेला के आयोजन करे जाथे । गांव म लइका खिलौना, खाय-पीए के जइसे बहुत दुकान लगते हे । गांव भर के मन भोजली ठंडा देखे ले आथे । मनखे मन ल जियेबर खुशी के कोनो न कोनो बहाना चाही । ऐ खुशी ले हमर जिनगी के अवरदा बाढ़े कस लगथे । भोजली के जुलुस संग म नाचत-कूदत मनखे देखे के अपने सुख होथे । ए गॉंव के परम्‍परा गॉंव के प्राण कस होथे ।

भोजली बदना मितान बदना-

हमर छत्‍तीसगढ़ म संगा संबंधी कस हित-मित के घला महत्‍व होथे । मितान, मितानिन शब्‍द ह संगी-तहुरिया, हिन्‍दी शब्‍द के मित्र अउ अंग्रेजी शब्‍द फ्रेण्‍ड कस आय फेर ऐखर महत्‍व इंखर ले जादा होथे । मित्र कहिना अउ मितान कहिना दूनों म नगद के अंतर होथे । मितान बदना एक साक्ष्‍य के रूप म होथे जेखर एक रीति होथे । मितान बदे बर कोनो मंदिर-देवालय या भागवत-कथा के जगह एक दूसर ल नरियर भेट करके एक-दूसर ल जियत भर सुख-दुख म संग दे के कसम खाथें । अइसने महाप्रसाद अउ भोजली होथे । भोजली बदे बर जेन दूनों ल आपस म भोजली बदना हे, दूनों एक दूसर के कान मा भोजली डारा खोचथें अउ भोजली दाई ल साथी मान के एक दूसर ल हितु-मितु स्‍वीकार करथें । टूरा पिलामन ऐला भोजली मितान कहिथे त नोनी पिला मन भोजली मितानिन कहिथें ।

भोजली सामाजिक समरसता के तिहार-

भोजली तिहार हर प्रकार ले सामाजिक समरसता अउ सामाजिक एकीकरण के तिहार आय । भोजली गीत समाज के महिला मन मिल के गाथें, त भोजली ठंडा म राधुनी पार्टी, भजन पार्टी समाज के आने-आने तबका के मनखे मन मिल के सामूहिक प्रस्‍तुती देथें । सबले बड़े बात ए तिहार म जउन भोजली बदे जाथे ओ सामाजिक समरसता के जियत-जागत गवाही आय ।

-रमेश चौहान

आघू भाग- छत्‍तीसगढ़ के तिज-तिहार भाग-3: कमरछठ (खमरछठ) तिहार

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