कविता ‘छत्तीसगढ़ के जय’-महेतरु मधुकर

छत्तीसगढ़ के जय
छत्तीसगढ़ के जय

छत्तीसगढ़ के जय

छत्तीसगढ़ के जय

ए मया के फुलवारी ल,
सुनतां ले सजाबो,
के जस जग म बगरय।
        जय छत्तीसगढ़ के जय,
        जय छत्तीसगढ़ के जय............

राज चलईया ले कर जोर बिनय हे, 
अइसे हित के कानहुन बनावय।
के हमर छत्तीसगढ़िया के छाती म,
देखव जी ए जांता झन दरावय।।
        सरेख करलव गरीब जनता के,
        ओहर बोट देके झन ठगावय.............

चलव संगी जुरमिल के जम्मो,
सुग्घर चात्तर डगर बनाबोन।
धान के कटोरा ए राज हमर,
बिकास के नदियां बोहाबोन।।
        सत रसता म सुख हे अड़बड़,
        मेहनत म नईहे डर अऊ भय....

जऊन दिन ए जनता सेवक मन,
करतब्य ल ईमानदारी ले निभाही।
सिरतोन गोठ ए ग संगवारी होआ,
ए भुईयां ह सरग कस बन जाही।।
        एखरे बर कहिथे सुजान मन,
        पईसा -दारु म झन बेचावय......

ए करही वो करही कहिके,
ए बहाना ल छोड़े ल परही।
लाना हे देस म चैन अमन त,
खुद जोखिम उठाए ल परही।।
        जबतक हितवा आघु नई आही,
        देस राज ह सुग्घर नई बनय......
 

-महेतरु मधुकर
पचपेड़ी, मस्तूरी, बिलासपुर

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