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छत्‍तीसगढ़ी लोककथा: लीलागर -अंजली शर्मा

छत्‍तीसगढ़ी लोककथा: लीलागर -अंजली शर्मा

छत्‍तीसगढ़ीलोककथा लीलागर

-अंजली शर्मा

“एक झन निःसंतान दंपति रहंय। गाँव के मुखिया रहे, अन्न-धन, जमीन-जायदाद के कछु कमी नइ रहे। फेर, विधाता हर हरेक के भाग म जम्मों जीनिस नइ लिखे रहय, कछु-न-कछु कमी कर देहे रथे। वइसने कमी ओकरो जीनगी म रथे। धन-दौलत भरे रथे फेर बाल-बच्चा बर तरसत रथें। कतको पूजा-पाठ, ब्रत-उपवास, प्रार्थना करथें भगवान के। ओकर गोसाईन हर शंकर भगवान के रोज पूजा करय दूध-जल चढ़ा के रोज एक ठन बेटा के आशीष माँगय। आखिर म कई बछर बाद भगवान महादेव ओकर प्रार्थना ल सुनथे अउ ओकर ऊपर कृपा करथे। भगवान के कृपा ले ओकर एक ठन सुग्घर रुप म बेटा होथे। नाम रखथें ‘अगरदास’। बेटा ल देख-देख के ओमन के खुशी के ठिकाना नइ रहय। जइसने-जइसने वो बाढ़त जात रहे ओकर सुघरई हर देखते बनत रहय। माँ-बाप ओकर चोनहा देख सब भूला गय रहें। चोनहा देखत कब दिन हर कइसे निकलगे कुछ पता नइ चलीस बेटा बाढ़िस त जगह-जगह ले सगा-पहुना के शोर-पता आय लागीस। एक ठन सुग्घर कन्या ल देख के ओकर बिहाव तय होगे। कन्या के नाव रहे ‘लीला’।
बिहाव बढ़िया ढंग ले निपट गे बहु घर आगे, बहु के रुप-रंग ल देख के अगर के महतारी गद् गद् हो जात रहे मने-मन फूले नइ समावत रहे। कब ले ये दिन ल देखे बर तरसत रहीस हे जब ले बेटा जनमें रहे ओकर बिहाव के सपना देखत रहीस। बिहाव निपटीस सब पहुना मन चल दीन त अगर के महतारी सोंचथे- महादेव के किरपा ले बेटा ले पाय रहें ओकरे किरपा ले आज बहु मिले हे। बर-बिहाव सुग्घर निपट गीस त बेटा-बहु ल शंकर भगवान के पूजा-दर्शन करवा देंव। महादेव ल मनाय रहें, मोर बेटा बने बाढ़-पोढ़ जाय, बने-बने ओकर बर-बिहा हो जाय त बेटा-बहू दूनों ल ओकर शरण म ले के आहूँ। ये बात ल सुरता करके, बेटा-बहु दूनो ल तियार करथे, परात म पूजा-पाठ के सामान ल धरथे अऊ बेटा-बहु ल ले के भगवान शंकर मेर जाथे ओकर जलहरी के अभिषेक-पूजा करवाथे। पूजा करके बेटा-बहु दूनो ल महादेव म ढोंकरे बर कथे, दूनों ढोंकरथें तंह ले महतारी हर महादेव करा ओमन बर आशीष माँगथे। महादेव तुंहर आशीर्वाद ले बेटा पाय रहें आज तुंहरे आशीर्वाद ले सुग्घर बहु मिलीस हे, दूनों ल तुंहर शरण म ले के आय हँव, किरपा करके ये मन ल अपन म शरण म ले लेवा, आज ले येमन तुंहर सेती यें। महतारी हर बेटा-बहु बर आशीर्वाद माँगथे ओतके बेरा वहाँ से एक ठन जलधारा प्रस्फुटित होथे अउ बेटा-बहु दूनों ल अपन लपेटा म ले लेथे। महतारी सन्न रह जाथे। बेटा-बहु दूनों धार संग बोहावत रथें, महतारी आवाज लगाथे लीला-अगर, लीला-अगर। लीला-अगर बोहावत रहें, महतारी हर जलधारा के किनारे-किनारे बदहवास दंउड़त रहय, मोर लीला-अगर बोहागे-मोर लीला-अगर बोहागे। देखते-देखते लीला-अगर वो जल-धारा म समा जाथें। अब तक जल-धारा नदी के रुप ले ले रथे। महतारी हर अपन सुध-बुध खो के सब झन ल ओ नदी ल बतावय मोर लीला-अगर बोहा गे। मोर लीला-अगर बोहावत हे। सब ल लगे ओहर नदी के बारे म कहत हे सब कहें हाँ ‘लीलागर बोहावत हे’ ।

( लीलागर के विस्तार क्षेत्र पहिली बिलासपुर जिला रहीस। अब जिला मन के बँटवारा हो गय हे त लीलागर कोरबा के पूर्वी पहाड़ से निकल के बिलासपुर जिला अउ जाँजगीर-चाँपा जिला के सीमा ल छुवत शिवनाथ नदी म समा जाथे। लंबाई 135 किलोमीटर अउ प्रवाह क्षेत्र 2.333 वर्ग किलोमीटर ) ।”

*अंजली शर्मा *
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
7470989029.

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