छत्तीसगढ़ी बाल कविता
छत्तीसगढ़ी बाल कविता गतांक से आगे
घरघुँदिया भाग-3
-कन्हैया साहू ‘अमित’
![छत्तीसगढ़ी बाल कविता: घरघुँदिया-कन्हैया साहू 'अमित'](https://www.surta.in/wp-content/uploads/2021/05/gharghundiya.jpg)
छत्तीसगढ़ी बाल कविता: घरघुँदिया
45- हमर भाखा
अपने भाखा करलव गोठ।
हावय सुग्घर सबले पोठ।।
छत्तीसगढ़ी एखर नाँव।
बर पीपर कस जुड़हा छाँव।।
छोड़ बिदेशी बोली मोह।
अपने भाखा राखव चोह।।
लोककला संस्कृति उत्थान।
निज भाखा ले होथे जान।।
छत्तीसगढ़ी भाखा बोल।
आगू-पाछू एखर डोल।।
महतारी भाखा तैं मान।
एखर महिमा ‘अमित’ महान।।
46- हमर भारत देश
जग मा सबले सुग्घर, हावय भारत देश।
रिंगी-रिंगी बोली भाखा, रिंगी-चिंगी भेस।।
साधु संत के डेरा बस्ती, ज्ञानीमन के खान।
धन्य-धन्य ये धरती पबरित, कतका करँव बखान।।
मुकुट हिमालय कस साजे हे, गंगा जमुना धार।
पाँव पखारय सागर सगरो, छलकै मया अपार।।
जय जय जय हे जनगणमन के, रंगे सुमता रंग।
हिंदू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, रहँय इहाँ सब संग।।
फहर-फहर फहराय तिरंगा, इही असल पहिचान।
सबले बढ़के देश हमर हे, सिरतों एला जान।।
47- हमर छत्तीसगढ़
जय हो छत्तिसगढ़ महतारी, तोर परत हँव पँइयाँ।
जनम धरें हम तोरे कोरा, तहीं हमर हस मँइयाँ।।
हरियर-हरियर लुगरा पहिरे, धरथच बाली हँसिया।
रूप तोर हा सुग्घर सोहे, हावस तैं मनबसिया।।
फसल खुशी के उपजे सँउहे, धान गहूँ ओन्हारी।
अँचरा भरे कोयला लोहा, चूना पथरा भारी।।
जगा-जगा हे जंगल झाड़ी, नँदिया तरिया डबरी।
भाँठा भर्री कुआँ बावली, बहुते खेती बखरी।।
बड़ उपजाऊँ करिया बलुवा, माटी मुरुम मटासी।
सरग बरोबर ये भुँइयाँ हे, मानव मथुरा कासी।।
48- तिरंगा झंडा
देश हमर ये प्रान अधारा।
जनमभूमि ये प्रान पियारा।
तीन रंग के धजा तिरंगा।
फरफर फहरय जइसे गंगा।।
अंतस ले हम माथ नवाबो।
सदा तिरंगा के गुण गाबो।।
केसरिया हरियर अउ सादा।
देखत भुजबल फरके जादा।।
जी परान दे रक्षा करबो।
एखर खातिर हाँसत मरबो।।
49- पेड़ बचाबो
पेड़ लगाबो, पेड़ बचाबो।
बंजर धरती हम हरियाबो।।
देथे हम ला जुड़हा छँइयाँ।
मुच-मुच हाँसय सगरो भुँइयाँ।।
फर फुलुवा अउ गजब दवाई।
करथे रुखुवा सदा भलाई।।
पेड़ प्रदूषण दूर भगाथे।
परहित के ये अलख जगाथे।।
पेड़ लगाबो चारों कोती।
पेड़ असल मा हीरा-मोती।।
50- चिटरा
चिटरा अड़बड़ चतुरा चमकुल ।
हाथ आय मा नँगते मुसकुल।।
सरर-सरर चढ़थे रुखराई।
रंग-रूप बहुते सुघराई।।
बीजा फर तरकारी खाथे।
कड़क जिनिस ला मनभर भाथे।।
फुदुक-फुदुक फुदरे अँगना मा।
राम कृपा हे एखर सँग मा।।
पीठ परे हे करिया धारी।
महिनत चिटरा के चिन्हारी।।
51- फुरफुंदी
लइकन ला भाथे फुरफुंदी।
सादा लाली छिटही बुंदी।।
पकड़े बर लइका ललचाथे।
आगू-पाछू उरभट जाथे ।।
फूल-फूल मा झूमे रहिथें।
कान-कान मा का इन कहिथें।।
थीर-थार नइ थोकुन बइठे।
अपने-अपन अकतहा अँइठे।।
फरफर-फरफर फुर्र उड़ाये।
चिटिक देंह बड़ जीव लड़ाये।।
52- चाँटी
करिया भुरुवा लाली चाँटी।
राहय कभू न खाली चाँटी।।
जाँगर पेरँय बहुते जादा।
रथे तभे खुशहाली चाँटी।।
पँउरी छै ठन, रेंगय तुरतुर।
बहुते सुघर सुचाली चाँटी।।
मीठ जिनिस ला नँगते भावय।
करदय चटपट खाली चाँटी।।
देंह तीन मोती के जइसे।
नान्हें तन बलशाली चाँटी।।~~~~~~~~
53- बोइर
बोइर खावव गुरतुर अमसुर।
विटामीन ले रहिथे भरपुर।।
रथे गोलवा जी एखर फर।
कच्चा मा ये दिखथे हरियर।।
पाक जथे तब भुरुवा लाली।
लटलट लहसय रुखुवा डाली।।
भरे चिरौंजी भीतर गुठलू।
खाँय फोर के बबली बल्लू।।
कूटपीस के बनथे लाटा।
बड़ गुनकारी, नइ हे घाटा।।
54- परी रानी
कहाँ परी रानी के घर हे!
कहाँ थोरको वोला डर हे!!
तुरते बिगड़े बुता बनाथे।
देखत-देखत छप हो जाथे।।
करिया चुंदी करिया आँखी।
चाँदी जइसन चम-चम पाँखी।।
छड़ी धरे हे जादूवाला।
पहिरे मुकुट मणी गरमाला।।
रतिहाकुन सपना मा आथे।
दुनिया भर मा संग घुमाथे।।
55-चश्मा
आँखी जेखर हे कमजोर।
करथे चश्मा के वो सोर।।
दुरिहा के हा लकठा आय
छोटे हा बड़का हो जाय।।
नाक कान तक धाक जमाय।
कभू माथ तक पाँव लमाय।।
बनथे येहा प्लास्टिक काँच।
घाम ताव नइ आवय आँच।।
पहिरँय पॉवर के अनुसार।
होय नजर तब झक दमदार।।
56-कलम/पेन
आखर आखर कलम जोरथे।
सच्चाई के रंग घोरथे।।
भले नानकुन येहा दिखथे।
बिना डरे ये सत ला लिखथे।।
सूरुज कस बड़ तेज कलम हे।
चन्दा जइसन घलो नरम हे।।
अलख शांति के इही जगाथे।
अगिन क्रांति के कलम लगाथे।
देख ताक के कलम चलावव।
जिनगी सिरतों सफल बनावव।।
57- कापी
सादा-सादा उज्जर कापी।
लिख ले अपने मनभर कापी।।
कोरा पन्ना कोरा कागज।
चित्र बनाले सुग्घर कापी।।
चिट्ठी पत्री अरज नेवता।
समय मुताबिक खरखर कापी।।
गीत गजल अउ कविता रच ले।
कथा कंथली गुरतुर कापी।।
58- देवारी
सुआ गीत ले अँगना द्वार।
देवारी के आय तिहार।।
दीया बारन ओरी-ओर
अँधियारी मा होय अँजोर।।
छुरछुर छुर छुरछुरी जलान।
हाथ जोड़ लक्ष्मी ल नवान।।
खीर बताशा नरियर बाँट।
बैरी हितवा सब ला साँट।।
नवा अंगरक्खा, नव पकवान।
हिलमिल हमन तिहार मनान।।
59- होरी
फागुन महिना गावँय फाग।
मया पिरित के रंगे राग।।
लाली परसा फूले मेड़।
माते मँउहा सेमर पेड़।।
पिच-पिच पिचकारी ले रंग।
नाचँय गावँय अउ हुडदंग।।
मारँय फुग्गा भर-भर फेंक।
संगी मन ला जबरन छेंक।।
होरी के हे ये पहिचान।
सँघरे लइका संग सियान।।
60- हाना
अंधेर नगर चौपट राजा।
सस्ती भाजी, सस्ता खाजा।।
कनिहा कँस ले, अपन भरोसा।
खा ले डँट के तीन परोसा।।
अपन पुछी ला सब सँहराथे।
दोष दुसर के पोठ गिनाँथे!!
अपन मरे ले सरग दीखथे।
हपट परे तब रेंगे सिखथे।।
बाजा बाबू के जे बाजै।
तइ नोनी के नाचा साजे।।
करम फूटहा फटहा दोना।
खीर गँवागे चारों कोना।।
61- जनउला-1
1~
बिन बलाय मैं आथँव जाथँव।
फोकट म सुजी घलो लगाथँव।।
साफ सफाई जे नइ राहय।
वोला तुरते रोग धराथँव।।
2~
दिन मा जाने कहाँ लुकाथे ?
रतिहा बेरा नँगत लुहाथे।
चकमिक चकमिक चकमक अड़बड़,
झट बताव काय कहाथे?
3~
ना मैं अमली, ना मैं आमा,
सरी जगत के मैं हा मामा।
घटती-बढ़ती चलते रहिथे,
आसमान मा हावय धामा।।
4~
रोज बिहनिया लकर-धकर हे।
चलना मोला बस दिनभर हे।।
संझौती बुड़ती म बसेरा।
मोर छाँव आगी अलकर हे।।
5~
मोर रंग मा ये रंगे हे।
सबो जगा मा संगे हे।।
अँधियारी मा दिखय नहीं ये।
‘अमित’ अँजोरी ये टंगे हे।।
1- मच्छर 2- जोगनी 3- चंदा 4- सूरुज 5- छँइहाँ
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62- जनउला-2
1~
कारी गाय कलिन्दर खाय।
दुहते रहव दुहाते जाय।।
जुच्छा एखर तीर म आँय।
सिगसिग ले भरके घर जाँय।।
2~
करिया घोड़ा भागे जाय।
पाछू घोड़ा लाल कुदाय।।
ऊँच अगासे बहुते भाय।।
बोलव संगी एहर काय।
3~
परे मार ता रोवय तान।
धर देबे ता बंद जबान।।
रँधनी खोली म करय राज।
नाँव बतावव झटपट आज।।
4~
पाँच परेवा पाँचों संग।
महल भीतरी एक्के रंग।।
एक जगा जम्मों सकलाय।
नइ कोनो पहिचाने पाय।।
5~
बगर-बगर के भँइस चराय।
बाँधे पँडरू बड़ मोटाय।।
छानी परवा चढ़ते जाय।
कोंवर-कोंवर गजब सुहाय।।
1-कुआँ, 2-आगी के लपटा, 3-बरतन, 4-पान सुपारी, 5-मखना,
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63- उठव बिहनिया
उठव बिहनिया संगी मोर।
होवत हावय गजब अँजोर।।
देखव उगती सूरुज लाल।
तन-मन हा होथे खुशहाल।।
सब सियान के माथ नवाँव।
करव मुखारी, रगड़ नहाँव।।
मुसकावय अँगना कस फूल।
खच्चित जावव जी इसकूल।।
महिनत के फल पाहव मीठ।
बनव तुमन सब मनखे नीक।।
64- मिट्ठू
चोंच लाल अउ हरियर पाँखी।
जुगुर-जुगुर बस दिखथे आँखी।।
चुरपुर मिरचा बहुते खाथे।
चटर-चटर चटरू बन जाथे।।
उँच अगास ये फुर्र उड़ाये।
अपन अजादी येला भाये।।
खावय आमा जाम जोंधरा।
पीपर खोर्ड़ा टीप खोंधरा।।
लालच मा दाना चुग जाथे।
तभे पिंजरा बीच धँधाथे।।
65- मच्छर
रतिहा बेर कलेचुप आथे।
कान तीर मा गुनगुन गाथे।।
कोन सुते हे कोन ह जागत।
भिथिया बइठे रहिथे ताकत।।
आरो जब थोरिक नइ पावय।
आके तुरते सुजी लगावय।।
छिन-छिन बस खटिया के चक्कर।
मलेरिया के इही ह मच्छर।।
राखव घर मा साफ सफाई।
मच्छर के तब होय बिदाई।।
66- चिरई
चींव-चींव बड़ करथे चिरई।
उँच अगास फुर्र-फुर्र फिरई।।
मुँह मा भरके लावय चारा।
पिलवा बीच करय बँटवारा।।
इँखर खोंधरा रैन बसेरा।
झेलय पानी हवा गरेरा।।
फुदुक-फुदुक फुतका मा फुदकय।
देख कोंड़हा कनकी कुलकय।।
अँगना मा जब-जब ये आवय।
सबके मन ला नँगते भावय।।~~~~~~
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कन्हैया साहू ‘अमित’
शिक्षक-भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात ~ 9200252055