छत्तीसगढ़ी बाल कविता
छत्तीसगढ़ी बाल कविता
घरघुँदिया भाग-1
-कन्हैया साहू ‘अमित’
छत्तीसगढ़ी बाल कविता: घरघुँदिया
01- ईश प्रार्थना
हे प्रभु दे अइसन वरदान।
सबझन पावँय अक्षर ज्ञान।।
हाथ जोड़ हम करन प्रणाम।
आवँन सदा दुसर के काम।।
सुमता-गंगा हमन नहान।
मनखे-मनखे एक समान।।
छुआछूत के भागय रोग।
अंतस जागय सब बर सोग।।
बोली बोलन गुरतुर नीक।
काम करन झन कोनो खीक।।
02- जुरमिल के
जुरमिल के हम ला रहना हे।
सार गोठ ये अब कहना हे।
जातपात के रोड़ा टारव।
नँदिया कस आगू बढ़ना हे।।
भारत देश हमर महतारी।
छाती बैरी के छरना हे।।
नवा डगर अउ नवा जमाना।
नित इतिहास नवा गढ़ना हे।।
जाँच परख के पाँव उठावव।
भूत भरम काबर धरना हे।।
03- नशामुक्ति
नशा कभू झन करहू बाबू।
जिनगी हो जाथे बेकाबू।।
बीड़ी गाँजा माखुर गुटका।
नशा सबो हे यम के मुटका।।
दारू सबले घटिया होथे।
धन दोगानी जिनगी खोथे।।
नशा मान मरजादा लुटथे।
घर परिवार संग ले छुटथे।।
कान पकड़ के खावव किरिया।
नशापान ले राहव तिरिया।।
04- पढ़ई-लिखई
पढ़ई-लिखई जग उजियारी।
भागय जिनगी के अँधियारी।।
अपने हक बर लड़ना होही।
सहीं बात मा अँड़ना होही।।
काबर अँगठा छाप कहावन।
पढ़ लिख सबले खाँध मिलावन।।
कोन्हों के नइ होही शोषण।
सबके होही पालन पोषण।।
जिनगी ला हम बने सजावन।
पढ़े-लिखे बर काय लजावन।।
05- कोन काय करथे
सरहद के रक्षक मनमौजी।
जन-जन कहँय उही ला फौजी।।
सिलथे कपड़ा हमरे मरजी।
काहय जम्मो वोला दरजी।।
जौन बनाथे मीठ मिठाई।
उही कहाथे जी हलवाई।।
लकड़ी म करय जौने गढ़ई।
नाँव हवय जी ओखर बढ़ई।।
काम बगीचा के रखवाली।
नाँव हवय जी ओखर माली।।
जग बर जौन अन्न उपजाथे।
जय किसान वो हा कहलाथे।।
06- सोंचव थोरिक
कभू सड़क तीरन नइ खेलव।
गली-खोर झन कचरा मेलव।।
अपने अँगना द्वार म राहव।
बिक्कट मजा तुमन हा पाहव।।
झन चोराहू आमा बीही।
माली अब्बड़ गारी दीही।।
मारव झन तुम कभू लबारी।।
छोड़व पर के चुगली-चारी।।
नून डार के खावव बासी।
भागय तन के सरी उदासी।।
07- सुनव अवाज
खलबल-खलबल करथे पानी।
रझरिझ-रझरिझ बरखा रानी।।
बादर गरजय गड़गड़-गड़गड़।
लकड़ी जरथे चड़चड़-चड़चड़।।
बाजय घंटी टन टन-टन टन।
पुरवाही हा सन सन-सन सन।।
गरमी मा भुँइयाँ हा चटचट।
दाँत जाड़ मा कटकट-कटकट।।
धकधक-धकधक दिल के धड़कन।
खनखन-खनखन चूरी खनखन।।
08- रिश्ता नता
एक ददा अउ एक्के दाई।
वो कहाँय सग बहिनी भाई।।
घर भर मा सबले मनमौजी।
उही हमर हे भइया भौजी।।
खावव चीला छोड़व दोसा।
दुरिहा रहिथें मोसी मोसा।।
गजबे ग्यानी नँगते नामी।
परथें पाँव ल मामा-मामी।।
जिहाँ करँय लइका मनमानी।
उँहचे रहिथें नाना-नानी।।
मया पुरोवय रहन न बाँकी।
बहुत मयारुक काका-काकी।।
09- रोटी-पीठा
मिठहा बुन्दी मुर्रा लाडू।
नइ खावय जी तेन भकाडू।।
गुरतुर अरसा पपची गुजिया।
गुरहा चीला गुलगुल भजिया।।
तिखुर ठेठरी खा ले हलुवा।
नइ कुदाय तब तोला भलुवा।।
खीर सेवई पिड़िया खाजा।
पहिली खाही ओही राजा।।
कुसली कतरा बिरिया पकुवा।
गुगगुप खावँय नोनी बबुवा।।
10- रुखराई
नीलगिरी अउ लिमऊ लीम।
तुरते ताही बैद हकीम।।
डूमर गस्ती तेंदू चार।
कर्रा करही अउर खम्हार ।।
सरई साजा अउ सागोन।
लकड़ी एखर जइसे सोन।।
आमा अमली कदम अकोल।
रुखराई बहुते अनमोल।।
बोइर बँभरी बरगद बेल।
रुखुवा देथे दवई तेल।।
पीपर परसा अउ शहतूत।
रुख रखवारी करव सपूत।।
बाँस बहेरा छींद कनेर।
पेड़ लगा, झन करव अबेर।।
11- बरखा
जब जब सावन भादो आथे।
करिया-करिया बादर छाथे।।
कड़कड़ कड़कड़ बिजली चमके।
बरसय बादर जउँहर जमके।।
चूहय बहुते छानी परवा।
छू लम्बा तब माढ़े नरवा।।
सुरुर सुरुर चलथे पुरवाही।
गिरथे पानी हाहीमाही।।
संंग नँगरिहा नाँगर बइला।
खोर गली मा मातै चिखला।।
नरवा नँदिया डबरी तरिया।
हरसाथे सब भाँठा परिया।।
नाचय जब-जब बरखा रानी।
चारों मूँड़ा पानी-पानी।।
12- फुग्गावाला
फुग्गावाला हा आये हे।
लइका मन सब सकलाये हे।।
रिंगी-चिंगी फुग्गा फूले।
तीर तार मा जम्मों बूले।।
दू रुपिया मा दूठन आवय।
लुहुर-लुहुर सब लेके जावय।।
छिंटही पिंवरी सादा लाली।
नाचत कूदत पीटँय ताली।।
हब हब फुग्गा सबो सिरागे।
लइकामन के चुहल थिरागे।।
13- बेटी
जग मा गजब दुलौरिन बेटी।
बड़ सजोर कमईलिन बेटी।।
दया धरम चिन्हारी बेटी।
पुरखा के रखवारी बेटी।।
बिगड़े भाग बनाथे बेटी।
दू कुल मान बढ़ाथे बेटी।।
नइ हे अब तो अबला बेटी।
बाना बोहय सबला बेटी।।
सदा ‘अमित’ सुखदाई बेटी।
करथे काज भलाई बेटी।।
14- बिहनिया
होत बिहनिया कुकरा बासय।
बड़े फजर ले जम्मों जागय।।
खोर गली मा छिटका गोबर।
साफ सफाई सरग बरोबर।।
चींव चाँव चिरई नरियावव।
छानी ले धुँगिया उड़ियावय।।
चउँक पुराये सुघर मुँहाटी।
जावँय लउहे गोदी माटी।।
लाली सूरुज सबके हिस्सा।
इही गाँव गँवई के किस्सा।।
15- पतंग
फरफर-फरफर उड़य पतंग।
रिंगी-चिंगी कतको रंग।।
चिरईया कस ऊँच अगास।
देखइया मन मस्त मतंग।।
मंजा डोरी ले पहिचान।
ढील छोड़ दे, झन दे तान।।
जावय बादर ले ओ पार।
तभे जीत होही ये जान।।
ये पतंग कुछु सीख सिखाय।
बंधन ले जिनगी मुसकाय।।
जेखर बँधना जावय टूट।
फेर कभू ना वो टिक पाय।।
16- किताब
हे किताब असली सँगवारी।
देथे सिरतों सबो जानकारी।।
पढ़ले एला मन भर आगर।
भरे ज्ञान के टिपटिप सागर।।
दुनिया भरके बात बताथे।
मन के सरी भरम मेटाथे।।
हर सवाल के उत्तर मिलथे।
पढ़ के अंतस सुग्घर खिलथे।।
एला संगी जौन बनाथे।
पढ़े लिखे मा अव्वल आथे।।
17- साफ सफाई
बीमारी के एक दवाई।
तन अउ मन के साफ सफाई।।
इहाँ-उहाँ झन फेंकव कचरा।
फोकट झन बगरावव पचरा।।
तोप-ढाँक के राखव पानी ।
हँसी-खुशी बीतय जिनगानी।।
तन अउ मन के साफ सफाई।
हावय एमा हमर भलाई।।
18- घरघुँदिया
आवव अघनू अगम अघनिया।
खेलन फुतका मा घरघुँदिया।।
घर अँगना अउ कोलाबारी।
सुग्घर सबके पटही तारी।।
खेल खिलौना सगली-भथली।
नइ राहय कखरो मन उथली।।
पतरी परसा पीपर पाना।
डूमर गस्ती खई खजाना।।
मेलजोल के महल बनाबो।
जौन रिसाही, तुरत मनाबो।।
19- लाल रंग
गाजर अउ बंगाला लाली।
खाथे जौन रथे खुशहाली।।
सूरुज दहकत लाली गोला।
झक-झक दमकय बस्ती टोला।।
लाली रथे कलिन्दर चानी।
खतरा के हे लाल निशानी।
लहू सबो के होथे लाली।
चाहे चीनी या नेपाली।
सुक्खा मिरचा होथे लाली।
जीभ चुरपुराथे बड़ हाली।।
लाली टिकली चूरी फीता।
रंग लाल नइ राहय रीता।।
20- माटी
कतका सबके सहिथे माटी।
कुछु काँही कब कहिथे माटी।।
पानी मा घुर जाथे तुरते।
घाम संग मा लहिथे माटी।।
पुरवाही मा झट उड़ियाथे।
धरती ले मिल रहिथे माटी।।
हाड़ माँस के मनखे दिखथे।
लहू रकत बन बहिथे माटी।।
अनभल अलकर ‘अमित’ टारथे।
परहित जग भल चहिथे माटी।।
21- पानी
बादर ले जब आथे पानी।
सबके मन ला भाथे पानी।।
फोकटिया मा मिलथे येहा।
जग के जीव बचाथे पानी।।
लकलक गरमी के दिन मा ये।
मोल अपन समझाथे पानी।।
बूँद-बूँद अनमोल हवय जल।
सिरतों बात बताथे पानी।।
कटय नहीं पानी बिन जिनगी।
अमरित ‘अमित’ कहाथे पानी।।
22- बादर
गड़गड़-गड़गड़ करथे बादर।
धीर कहाँ तब धरथे बादर।।
करिया करिया ओन्हा ओढ़े।
झम-झम बिजली बरथे बादर।।
सरसर-सरसर पवन संग मा।
झरझर-झरझर झरथे बादर।।
गरमी ले हलकान परानी।
सबके दुख ला हरथे बादर।।
रुक्खा-झुक्खा चारों कोती।
हरियर हरियर करथे बादर।।
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कन्हैया साहू ‘अमित’
शिक्षक-भाटापारा छत्तीसगढ
गोठबात ~ 9200252055
अंतस ले आभार भैयाश्री। सादर पायलगी…..
हार्दिक अभिनंदन अमित भाई, ये सुघ्घर कविता संग्रह बर अंतस ले बधाई
बहुत बेहतरीन बेहतरीन रचना हे गुरुदेव
एमे से एक दो रचना ला मोर नोनी मेर गवाहूं
वाह
अतिसुग्घर रचना
सहँराय खातिर आप सबो के अंतस ले आभार।
बड़ सुग्घर लागिस अमित जी आपके कविता मन |गुलुकोस घोरे सही भाखा बानी में पगाय आपके कविता मन में हमर गंवई गॉव अउ छत्तीसगढ़ी संस्कृति के सुंदर चित्रण हे |
हार्दिक बधाई हे |