छत्तीसगढ़ी भाषा अउ देवनागरी लिपि- डाॅ विनोद कुमार वर्मा

छत्तीसगढ़ी भाषा अउ देवनागरी लिपि

– डाॅ विनोद कुमार वर्मा

”छत्तीसगढ़ी भाषा अउ देवनागरी लिपि विषय लिखे गे ए आलेख एक ठहर छत्‍तीसगढ़ी भाषा के भविष्‍य ल तय करही त दूसर डहर छत्‍तीसगढ़ी भाषा के पढ़हइया, शोध विद्यार्थी अउ CGPSC परीक्षा देवइया लइका मन बर घला फायदा करही ।”

छत्तीसगढ़ी भाषा अउ देवनागरी लिपि- डाॅ विनोद कुमार वर्मा
छत्तीसगढ़ी भाषा अउ देवनागरी लिपि- डाॅ विनोद कुमार वर्मा

( 1 ) छत्‍तीसगढ़ी भाषा म देवनागरी लिपि के इतिहास

हिन्दी भाषा बर अंगीकृत नागरी लिपि के 52 वर्ण ला ही देवनागरी लिपि कहे जाथे। एमा स्वर- 11, व्यंजन- 39, अनुस्वार अउ विसर्ग शामिल हें। सन् 1885 म हीरालाल काव्योपाध्याय द्वारा लिखित ‘छत्तीसगढ़ी बोली का व्याकरण ‘ सन् 1890 म जार्ज ग्रियर्सन द्वारा अंग्रेजी अनुवाद कर प्रकाशित करे गइस; जेमा वर्तमान देवनागरी लिपि के 13 वर्ण शामिल नि रहिस।….. एखर बाद सन् 1921 म बालपुर के पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय द्वारा संपादित अउ संशोधित होय के बाद ‘ ए ग्रामर ऑफ दी छत्तीसगढ़ी डायलॅक्ट ऑफ ईस्टर्न, हिन्दी’ के नाम ले प्रकाशित होइस।….. एखर बाद एही संशोधित व्याकरण के अनुकरण करत भालचंद्र राव तेलंग (1966 ), डाॅ कांति कुमार (1969), शंकर शेष ( 1973 ), डाॅ नरेन्द्र देव वर्मा ( 1979 ) द्वारा छत्तीसगढ़ी व्याकरण के काम ला आघू बढ़ाय गइस। छत्तीसगढ़ राज बने के बाद सुप्रसिद्ध भाषाविद् डाॅ रमेश चंद्र महरोत्रा द्वारा सन् 2002 म ‘ छत्तीसगढ़ी लेखन का मानकीकरण ‘ नामक व्याकरण पुस्तक के लेखन करिन।…..देवनागरी लिपि के बहुप्रचलित आठ वर्ण- श् , ष् , ण् , व् , ज्ञ् , क्ष् , ड़ , ढ़ ला छत्तीसगढ़ी लेखन ले बहिष्कृत करे के कारण अंततोगत्वा छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य अपभ्रंस के शिकार हो गे। द्विगुण व्यंजन ड़ अउ ढ़ के प्रचलन तो छत्तीसगढ़ी बोलचाल अउ लेखन म आजादी के पहिलिच ले आ चुके हे। जैसे- पांड़े , एड़ी , मुड़ी , सिढ़िया, बढ़िया आदि। 22 जुलाई 2018 के दिन ह बहुत महत्वपूर्ण हे। एही दिन बिलासपुर म छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा अउ देवनागरी लिपि उपर राज्यस्तरीय संगोष्ठी के आयोजन करे गे रहिस। ए संगोष्ठी के संयोजक मैं स्वयं रहेंव। संगोष्ठी म डाॅ विनय कुमार पाठक, डाॅ चित्तरंजन कर, सरला शर्मा, शकुन्तला शर्मा, अरुण कुमार निगम, डाॅ शैल चंद्रा, डाॅ सोमनाथ यादव, डां विजय कुमार सिन्हा, डाॅ विनोद कुमार वर्मा , डाॅ बलदाऊ प्रसाद निर्मलकर आदि प्रबुद्ध भाषाविद्, कवि, लेखक मन ए विषय उपर अपन विचार रखिन।एही संगोष्ठी म छत्तीसगढ़ी भाषा बर देवनागरी लिपि के हिन्दी बर अंगीकृत 52 वर्ण के स्वीकार्यता बाबत् प्रस्ताव घलो पारित होइस। संगोष्ठी म आमंत्रित विशेषज्ञ वक्ता मन के अभिमत आदि के जानकारी विस्तृत रूप म आघू लिखहौं…….. ए संगोष्ठी म छत्तीसगढ़ी साहित्य बर काम करइया पाँच साहित्यकार मन ला वदान्या साहित्य सम्मान प्रदान किये गइस ओमे बुधराम यादव, चोवाराम बादल, कृष्ण कुमार भट्ट पथिक, वसन्ती वर्मा अउ सनत तिवारी

( 2 ) प्रांतीय संगोष्ठी के विमर्श

‘छत्तीसगढ़ी लेखन का मानकीकरण’ ( डाॅ रमेश चंद्र महरोत्रा : 2002 ) नामक पुस्तक म देवनागरी लिपि के छै वर्ण- श् , ष् , ण् , व् , ज्ञ् , क्ष् , के प्रयोग छत्तीसगढ़ी म वर्जित करे बाबत् निम्न तर्क दिये गे हे-

1) छत्तीसगढ़ी म ‘ श्’ अउ ‘ ष् ‘ दोनों के जरूरत नि हे काबर कि दोनों के उच्चारण ‘ स् ‘ ही किये जाथे, एखरे खातिर श् , ष् के स्थान म स् लिखे जाय। जैसे- शंकर, प्रकाश, संतोष ला संकर, प्रकास, संतोस लिखे जाय। व्यक्तिवाचक संज्ञा के परिवर्तन बर एफीडेविट दिए जा सकत हे।

2) लिखित व्यंजन ण् के स्थान म न् लिखा जाना चाहिए- एला छत्तीसगढ़ी के रूपांकन कहे जाही। जैसे- भूषण, प्राण ला भूसन, प्रान लिखे जाय।

3) व् के छुट्टी होना चाहिए अउ ओखर स्थान म ब् लिखना चाहिए। जैसे- गोविंद, विकास, विनय, वकील ला क्रमशः गोबिंद, बिकास, बिनय, बकील लिखे जाय।

4) ज्ञ् के स्थान म ग्य लिखे जाय। जैसे- ज्ञानूदास, प्रज्ञा के स्थान म ग्यानूदास, प्रग्या लिखे जाय।

5) क्ष् के स्थान म क्छ लिखे जाय। जैसे- लक्ष्मी, शिक्षा के स्थान म लक्छमी, सिक्छा लिखे जाय।

22 जुलाई 2018 के बिलासपुर म आयोजित प्रांतीय संगोष्ठी के विमर्श म आमंत्रित विषय विशेषज्ञ अउ वक्ता मन के चर्चा मुख्य रूप ले उपरोक्त पाँचों बिन्दु के उपर केन्द्रित रहिस।

लेखिका अउ समीक्षक सरला शर्मा के विचार –

1) संस्कृत, हिन्दी, छत्तीसगढ़ी तीनों भाषा के लिपि देवनागरी हे। ध्वनि आधारित होय के कारण उच्चारण घलो समान हे। तब प्रश्न हे कि लिपि समान हे त वर्णमाला म भेद काबर? तीनों भाषा म समान वर्णमाला होना चाहिए।

2) आम छत्तीसगढ़िया हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू आदि भाषा के कठिन शब्द मन के प्रयोग घलो आसानी ले करत हे त ओखर शब्द मन ला लेखन म यथारूप ही स्वीकार करे जाही। अपभ्रंस रूप म लिखना सही नि हो सके।

3) स अउ श के अंतर स्पस्ट अउ प्रत्यक्ष हे। शर्मा ला सरमा नि लिखे जा सके। अक्षर ला अकछर घलो नि लिखना चाही।
भाषायी संकट के युग म छत्तीसगढ़ी के अस्तित्व के रक्षा बर देवनागरी के कुछ वर्ण ला छोड़े के दुराग्रह त्यागना परही। देवनागरी लिपि हर ही वो कड़ी ए जेन हा संस्कृत, हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी ला जोड़ रखे हे।

( 3 )

छंदविद् अरुण कुमार निगम के अभिमत-

1) ‘ व ‘ ला ‘ ब’ से प्रतिस्थापित करे के अनुशंसा आश्चर्यजनक हे। व के उच्चारण तो असाक्षर व्यक्ति घलो कर लेथे। गाँव, छाँव, सावन, सेवा ला गाँब, छाँब, साबन, सेबा भला कोन कहथे?

2) व्यक्तिवाचक संज्ञा मन ला यथावत रखना चाही। श्रीनगर, लक्ष्मण, अरुणाचल प्रदेश, शंकर ला सिरीनगर, लछमन, अरुनाचल परदेस, संकर लिखना बिलकुल भी उचित नि कहे जा सके।

3) रामेश्वर ( राम, ईश्वर ) के अपन अर्थ हे; यदि रमेसर लिखबो त ओखर का अर्थ निकलही? प्रकाश ला परकास लिखे म का उपलब्धि हासिल हो जाही?

4) मानकीकरण बर हम-मन ला उदारवादी दृष्टिकोण अपनाना चाही।गलत उच्चारण ले बने अपभ्रंस शब्द अर्थहीन ही कहे जाही। यदि व्यक्तिवाचक, स्थानवाचक शब्द के उच्चारण देवनागरी के अनुसार करे जा सकत हे त फेर छत्तीसगढ़ी लेखन म देवनागरी के कुछ वर्ण ला विलोपित कइसे करे जा सकत हे?

5) आन भाषा के बहुप्रचलित शब्द मन ला अंग्रेजी अउ हिन्दी म यथारूप स्वीकार करे जाथ हे त छत्तीसगढ़ी म स्वीकार करे म का अड़चन हे? आज तो असाक्षर व्यक्ति घलो सिम, मोबाइल, चार्जर, कम्प्यूटर, बाइक, ब्रस, स्क्रू जइसन शब्द मन के सहजता ले प्रयोग करत हे त ए शब्द मन ला यथारूप ही स्वीकार करे जाही।

6) कुल मिला के देवनागरी लिपि के हिन्दी बर अंगीकृत सबो 52 वर्ण ला छत्तीसगढ़ी लेखन म शामिल किए जाही तभे हमर भाषा समय के साथ चल पाही।

( 4 )

डाॅ सोमनाथ यादव के अभिमत –

जेन शब्द मन के अपभ्रंस रूप प्रयोग होवत हे ओमा दू तरह के शब्द जादा हें- आधा वर्ण वाला शब्द अउ संयुक्त वर्ण वाला शब्द।

1) आधा वर्ण वाला शब्द जइसे: प्रदेश-परदेस, प्रीति-पीरीति, प्रेम-परेम, प्रकाश-परकास, कर्म-करम, धर्म- धरम आदि।
2) संयुक्त वर्ण वाला शब्द जइसे: भिक्षा-भिक्छा, कक्षा-कक्छा, ज्ञान-ग्यान, श्रवण-सरवन, श्री-सिरी, चरित्र-चरितर आदि।
अपभ्रंस रूप ला तभे स्वीकार करना चाही जब ओखर अर्थ वोइच्च हो जेखर बर प्रयोग करे गय हे।

3) जब छत्तीसगढ़ी लेखन अउ बोलचाल म अंग्रेजी के शब्द डाॅक्टर, मास्टर, हाॅफपेंट, रेल ला मूल रूप म स्वीकार करे गय हे तब हिन्दी के शब्द मन ला मूल रूप म स्वीकार करे म अतेक ना-नुकुर काबर?

कवयित्री शकुन्तला शर्मा के अभिमत –

छत्तीसगढ़ी बहुत तेजी ले लोकप्रिय होवत जात हे-तेकरे सेथी एला फैले बर बहुत बड़े जगह के जरूरत हे। देवनागरी लिपि के पूरा बावन वर्ण के प्रयोग हम मन ला छत्तीसगढ़ी म करना हे। शब्द के संबंध आकाश से हे-वर्ण के उच्चारण म शुद्धता रही तभे हमर भाषा धरती ले आकाश तक गूंजही- एही भाषा के विधिवत विधान हे। श, ष, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र सबो हमर वर्णमाला म रही तभे हम मन ला अक्षर के आशीर्वाद मिलही।

कहानीकार,समीक्षक,संपादक डाॅ विनोद कुमार वर्मा के अभिमत-

1) सुप्रसिद्ध भाषाविद् डाॅ रमेश चंद्र महरोत्रा के छत्तीसगढ़ी व्याकरण म उल्लेखित ‘ श्’, ‘ष्’ के छुट्टी बाबत्- आजादी से ले के आज तक एफीडेविट दे के नाम परिवर्तन नि करे हें ( शीला-सीला, शंकर-संकर, संतोष-संतोस, ज्ञानु-ग्यानु, साक्षी-साक्छी आदि) न ही आगे कोई संभावना हे। छत्तीसगढ़ी म या कोई भी आन भाषा म रूपांकन के अवधारणा बुद्धि-विलास के अलावा अउ कुछु नि होय। का भाषा के शब्द मन के निर्धारण व्याकरणाचार्या मन करथें या ओला बोलइया आमजन? – पंचर ( Puncture, छेद, चोभ), कूलर ( Cooler, शीतक), हीरो ( Hero, नायक), कोट ( Coat, झिंगोला), कैंसर ( Cancer, कर्कट रोग), पेन ( Pen, कलम ) आदि मन के निर्धारण छत्तीसगढ़ी भाषा म कोन करिस? व्याकरणाचार्या मन या आमजन? – निश्चित रूप म शब्द मन के स्वीकार्यता के निर्धारण आमजन ही करथें। रूपांकन या व्याकरण के बहाना ले के शब्द मन ला बाधित करना आत्मघाती हे-ओला आमजन कभू भी स्वीकार नि कर सके। भाषा अउ मंदिर के कपाट ला कभू भी बन्द नि करना चाही।एखर खुला रहना सुखकर अउ समृद्धकर होथे।

2) व्यक्तिवाचक संज्ञा म लिपि परिवर्तन करे ले कोर्ट-कचहरी , कार्यालय आदि सबो स्थान म काम करे मा बाधा आही। संतोष ( Santosh ) ला संतोस ( Santos), ज्ञानू ( Gaynu ) ला ग्यानू ( Gyanu ), लक्ष्मी ( Lakshmi ) ला लक्छमी ( Lakchhami ) परिवर्तित करे मा ओला न कोर्ट-कचहरी स्वीकार करही न ही स्कूल, राजस्व आदि के अभिलेख म स्वीकार करे जाही।

3) छत्तीसगढ़ी भाषा यदि देवनागरी के स्थान म अन्य लिपि म लिखे जातिस तब डाॅ रमेश चंद्र महरोत्रा के रूपांकन के सुझाव अमल मा लाये जा सकत रहिस। वर्तमान परिस्थिति म रूपांकन असंभव हे।

4) छत्तीसगढ़ के नवा पीढ़ी के लइका अउ युवा मन जेन शब्द मन के प्रयोग छत्तीसगढ़ी बोले म करत हें- ओही भाषा छत्तीसगढ़ी हे। शिक्षा के प्रसार अउ वैश्वीकरण के प्रतिफलन म आन भाषा के आगत नवा-नवा शब्द मन ला यथा-रूप स्वीकार करना ही परही। छत्तीसगढ़ी ला गरीबहा अउ निरक्षर मन के भाषा बना के ओखरे अनुकूल शब्द विन्यास के कोशिश आत्मघाती हे- अइसने प्रयास म छत्तीसगढ़ी कभू भी समृद्ध नि हो पाही।

5) भारत शासन ह हिन्दी भाषा बर देवनागरी लिपि अउ ओखर 52 वर्ण ला अंगीकृत करे हे जेखर उपयोग समस्त शासकीय अभिलेख म होवत हे।छत्तीसगढ़ शासन ह घलो छत्तीसगढ़ी भाषा बर देवनागरी लिपि ला अंगीकृत करे हे। छत्तीसगढ़ राजभाषा ( संशोधन ) अधिनियम 2007, धारा 2 के संशोधन-

( क) ‘ हिन्दी ‘ से अभिप्रेत है देवनागरी लिपि में हिन्दी।

( ख) ‘ छत्तीसगढ़ी ‘ से अभिप्रेत है देवनागरी लिपि में छत्तीसगढ़ी।

उपरोक्त संशोधन ले स्पस्ट हे कि छत्तीसगढ़ी म देवनागरी लिपि के समस्त वर्ण अंगीकृत किये जाही। छत्तीसगढ़ के राज्यपाल द्वारा ए अधिसूचना 11 जुलाई 2008 के जारी किए गइस।
अस्तु , यदि वर्तमान म देवनागरी लिपि के कुछ वर्ण ला छत्तीसगढ़ी भाषा ले बहिष्कृत करना होही त छत्तीसगढ़ शासन ला विधानसभा म संशोधन बर पुनः अधिनियम लाना परही!

( 5 )

कवयित्री डाॅ शैल चन्द्रा के अभिमत

1) कुछ लेखक/पत्रकार/मिडिया कर्मी मन व्यक्तिवाचक संज्ञा ला बिगाड़ के अपभ्रंस छत्तीसगढ़ी लिखत हें। जइसे: रायपुर-रईपुर, बिलासपुर-बेलासपुर, शीतल शर्मा- सीतल सरमा, त्रिलोचन-तिरलोचन, ये बिलकुल ही गलत हे। का ‘ प्राणीशास्त्र ‘ला ‘ परानीसास्तर ‘ लिखना या फेर बोलना उचित होही?

2) व के स्थान म ब उच्चारित करे म अर्थ के अनर्थ होवत हे-
वात-हवा
बात- बचन, गोठ
वन-जंगल
बन-बनना,बनगिस,बनगे

3) ण के स्थान म न उच्चारित करे म घलो अर्थ के अनर्थ होवत हे-
गणतंत्र- आम जनता बर बने संविधान
गनतंत्र-बंदूक के बल म बने नियम/संविधान
वर्ण ( किस्म/रंग ) अउ
वरण( चुनाव ) दुनों शब्द के अपभ्रंस रूप ‘ वरन ‘ या फेर ‘ बरन ‘ होवत हे!

4) श्रम ला सरम लिखे म अर्थ के अनर्थ होवत हे।

5) ज्ञेय -जानना, जेला जाने जाय
गेय -गाने के लायक या गाना योग्य
अब ज्ञेय ला गेय लिखना का उचित होही?

6) पुत्री ( कन्या सन्तान) ला पुतरी ( निर्जीव खिलौना/ गुड्डी-गुड़िया) लिखना या बोलना बिलकुल भी सही नि होय।

समय बदल गे हे। देश, समाज,परिवेश सब कुछ बदलत हे। परिवर्तन ला स्वीकार करना परही अउ देवनागरी के सबो 52 वर्ण ला छत्तीसगढ़ी लेखन म स्वीकार करना परही।

विमर्श के निकष

विमर्श के निकष पर छत्तीसगढ़ी ( 2018, पृ- 32) म डाॅ विनोद कुमार वर्मा लिखे हें…… सम्प्रति, छत्तीसगढ़ी भाषा को निरक्षर और गरीब तबके की ही भाषा बनाकर ठीक उसके अनुकूल शब्दों का विन्यास करने से वह कभी भी समृद्ध नहीं हो पायेगी।…… मैं लेखक के अभिमत ले पुरी तरह सहमत हौं। छत्तीसगढ़ी ला गरीबहा अउ निरक्षर मन के भाषा बनाये रखना घातक हे। छत्तीसगढ़ी ला 21वीं सदी के अनुकूल शिक्षित अउ सुसंस्कृत मन के भाषा के अनुरूप स्थापित करना परही।

( 6 )

डाॅ विजय कुमार सिन्हा के अभिमत-

प्रायः देखे गे हे कि नवा लेखक मन छत्तीसगढ़ी भाषा के शुद्धता के चक्कर म हिन्दी के शब्द मन ला बिगाड़ के लिखथें।अव्वल तो छत्तीसगढ़ी के अपभ्रंस लेखन ला कोनो पढ़ना नि चाहे; दूसर बात अइसन लेखन ले अर्थ के अनर्थ होवत हे। जइसे हिन्दी के वाक्य ‘ वह शाला जाता है ‘ के छत्तीसगढ़ी संस्करण ‘ वोहा साला जाथे ‘ लिखे म अर्थ के अनर्थ होवत हे। हिन्दी के आगत शब्द मन ला मूल रूप म ही लिखना सही होही- ओखर रूपांकन करे के उदिम छत्तीसगढ़ी ला रसातल म पहुँचात हे। देवनागरी लिपि के सबो 52 वर्ण ला छत्तीसगढ़ी लेखन म स्वीकार करना परही।
मोला सुरता आवत हे कि पद्मश्री पं. मुकुटधर पाण्डेय जी जब कालिदासकृत ‘ मेघदूत ‘ के छत्तीसगढ़ी रूपान्तरण करत रहिन तब उन ला ‘ स्त्री ‘ शब्द के रूपान्तण बर छत्तीसगढ़ी के उपयुक्त शब्द नि मिलत रहिस। पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र के सलाह के बाद ‘ स्त्री’ के स्थान म ‘ नारी'( हिन्दी ) शब्द के यथावत प्रयोग करिन। कुल मिला के छत्तीसगढ़ी लेखन म अंग्रेजी अउ आन भाषा के आगत शब्द मन ला मूल रूप म ही स्वीकार करना चाही- शब्द बिगाड़ के लिखना आत्मघाती हे।

डाॅ बलदाऊ प्रसाद निर्मलकर के अभिमत-

छत्तीसगढ़ी लेखन म देवनागरी लिपि के सबो वर्ण ला स्वीकार करे म छत्तीसगढ़ी साहित्य उन्नत होही अउ ओला पढ़े घलो जाही। हमर गाँव के घर-परिवार, पारा-मोहल्ला म बहुत अकन अइसन शब्द मन के प्रयोग बोलचाल म होथे जेमन आन भाषा ले नि आय हें बल्कि छत्तीसगढ़ी के मूल शब्द हें- ओमन के संरक्षण अउ छत्तीसगढ़ी लेखन म प्रयोग दुनों जरूरी हे।जइसे- अथान, असनांदे, आकाबीसा, कलेचुप, किरिया, कुन्दरा, मुंदरी, गियाँ, गर्रा-धुंका, गुरतुर, गोरस, छेवारी, जड़काला, झुठर्रा, टेंकहा, टेटकी, ठउका, ठकरस, बनिहार, खोंदरा, डोंगरी, तनियाना, तिड़ी-बिड़ी, धुंगिया, पंगत, लकर-धकर, परसों, नरसों , नखा, निच्चट, रमकेलिया, बरछा, बलकरहा, बावनबूटी, बुड़ती, भरका, भकमुड़वा, भलुक,भुलका, भिनसरहा, भुसड़ी, भोंमरा, मइलहा, मतौना, मयारू, मुखारी, मोटियारी, मुड़पीरा , येती-ओती, रंगझांझर, राहपट/रहपट, लइकोरही, लपर-लपर, लागमानी, लागा-बोड़ी, संघरा, संसो, हाड़ा-गोड़ा, हितवा, हबरना आदि। अइसने बहुत अकन छत्तीसगढ़ी के मौलिक शब्द मन के संरक्षण घलो जरूरी हे।

( 7 )

संपादक, समीक्षक, कवयित्री सुधा वर्मा के अभिमत –

छत्तीसगढ़ी लेखन म आन भाषा के आगत शब्द मन ला यथारूप ही लेना चाही। व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूपान्तरण करे म नाम बिगड़ जाही। कुल मिला के छत्तीसगढ़ी लेखन म हिन्दी बर अंगीकृत देवनागरी लिपि के वर्णमाला ला पूरी तरह मान लेना बेहतर विकल्प होही ।

कवि,समीक्षक डाॅ जगदीश कुलदीप के अभिमत-

छत्तीसगढ़ी भाषा देवनागरी लिपि म लिखे जाथे त ओखर सम्पूर्ण वर्णमाला ला अपनाना परही; काबर कि हमन हिन्दी भाषी क्षेत्र म रहिथन अउ बोलचाल के संग लेखन म देवनागरी लिपि के सबो वर्ण के प्रयोग करथन त छत्तीसगढ़ी लेखन म ओला बाधित करे ले का फायदा होही? छत्तीसगढ़ी लेखन म ण्, श्, ष्, क्ष्, त्र्, ज्ञ्, श्र् के स्थान म न्, स्, स्, क्छ्,तर्, ग्य् सर्, के प्रयोग करे के कोई ठोस आधार नि दिखत हे। छत्तीसगढ़ी भाषा म संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी के अनेक शब्द मन रच-बस गय हें; नवा लेखक अउ मिडिया कर्मी मन उचित मार्गदर्शन/जानकारी के अभाव म ओही तत्सम शब्द मन ला अपभ्रंशित कर छत्तीसगढ़ी भाषा म लेखन करत हें अउ छत्तीसगढ़ी भाषा के नाश करे म लगे हें। कम्पोटर, मुबाईल, छिनीमा जइसन अपभ्रंस शब्द के प्रयोग का सही माने जाही? भाषा के काम हे- बिना कोई भ्रम के भावाभिव्यक्ति। यदि अपभ्रंस लेखन के कारण भाव व्यक्त करे म अड़चन आवत हे तब फेर लकीर के फकीर बने रहना उचित नि होय।

कवि, समीक्षक नरेन्द्र कौशिक अमसेनवी के अभिमत-

अर्ध ‘ र ‘ के स्थान म पूर्ण ‘ र’ लिख के हमन प्रदेश ला परदेस बना लेथन। प्रभाव ( सामर्थ्य या शक्ति ) ला परभाव( दूसरे की भावना ) लिखे म अर्थ के अनर्थ होवत हे। कर्म अउ क्रम ला करम लिखे जा सकत हे का? अज्ञात ला अगियात (जलन),पात्र ला पातर( पतला ) लिखे म अर्थ के अनर्थ होवत हे। ‘ ॐ नमः शिवाय ‘ ला ‘ ॐ नमः सिवाय ‘ लिखबो त महादेव भगवान ये संसार ले ‘ सिवाय’ (बिना, बाहर,फालतू, अतिरिक्त ) कर दिहीं!

( 8 )

लेखक समीक्षक नरेन्द्र वर्मा के अभिमत

1) छत्तीसगढ़ी लेखन के आरंभिक दौर म देवनागरी के कुछ वर्ण ऋ, ङ, ञ, ण, श, ष, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र ला छोड़ना अउ व ला कहीं-कहीं ब लिखना उपयुक्त रहिस होही। आजादी के पहिली शिक्षा के प्रचार-प्रसार न्यून रहिस अउ जइसन उच्चारण करन वइसन लिखे के प्रचलन रहिस। सन् 2011 के जनगणना अनुसार छत्तीसगढ़ म साक्षरता 70 प्रतिशत ले जादा हे- अभी तो और भी बढ़ चुके हे। पढ़े-लिखे लोग जेनमन हिन्दी माध्यम ले पढ़ के निकले हें; देवनागरी के सबो वर्ण के न्यूनाधिक उपयोग करत हें। अइसन समय म सरल शब्द मन ला छत्तीसगढ़ीकरण करे के नाम ले अनावश्यक तोड़े-मोड़े के प्रयास करबो तब ओला पढ़े-लिखे म नवा पीढ़ी ला परेशानी होही। एक तो अइसन घलो छत्तीसगढ़ी के पठन अउ लेखन बहुत कम लोग मन करथें। अभी आवश्यकता ये बात के जादा हे कि हमन सरल अउ आमजन म प्रचलित शब्द मन के लेखन म प्रयोग कर के युवा मन ला छत्तीसगढ़ी पढ़े-लिखे बर प्रेरित करी। बदलाव के दौर म यदि हमन नि बदलबो तब विकास-क्रम म या तो छूट जइबो या फेर पिछड़ जइबो।

2) अंग्रेजी माध्यम ले पढ़-लिख के निकलइया लइका अउ युवा मन के बाते अलग हे ओमन ला तो हिन्दी पढ़े-लिखे म मुश्किल होवत हे भलेहि ओमन बोलचाल म हिन्दी के प्रयोग करत हें। अइसन क्रांतिक समय म छत्तीसगढ़ी पढ़ना-लिखना वह भी देवनागरी के ज्ञात वर्ण ला छोड़ के- शब्द मन ला अनावश्यक तोड़-मरोड़ के ओमन के सामने रखबो तब ओमन का करहीं ?- भगवान जाने! मोर समझ म छत्तीसगढ़ी भाषा के लेखन म देवनागरी के सबो 52 वर्ण ला अंगीकृत कर लेना चाही वरना छत्तीसगढ़ी भाषा के सर्वाधिक अहित कुछ वर्ण के बहिस्कार के कारण होवत हे- ओला रोकना मुश्किल हो जाही।

3) भाषा तो नदी के भाँति हे- जेखर धारा निरंतर बहते रहना चाही। बड़े नदी म जब पानी के अन्य श्रोत छोटे नदी-नाला मिलत जाथे तभे ओखर स्वरूप हा बढ़थे अउ बड़े नदी – महानदी के आकार लेथे। यदि हमन ओखर श्रोत ला बंद कर देबो ( आन भाषा के शब्द मन ला मूल रूप म ग्रहण नि करबो ) तब ओखर प्रवाह अवरूद्ध हो जाही। कोई भी भाषा दीर्घकाल तक तभे जीवित रह पाही जब ओखर शब्द भंडार विशाल होही- ये बात ला हमन ला समझना अउ मानना परही ।

3) व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूपान्तरण के आग्रह न केवल हास्यास्प्रद हे बल्कि आत्मघाती घलो हे।

( 9 )

सुप्रसिद्ध भाषाविद् डाॅ विनय कुमार पाठक के अभिमत-

संस्कृत, हिन्दी अउ ओखर प्रायः सबो प्रमुख लोकभाषा यथा- ब्रज, अवधी, भोजपुरी, छत्तीसगढ़ी के साथ कई भारतीय भाषा के लिपि देवनागरी हे अइसने सबो भाषाई क्षेत्र म ध्वनि आधारित वर्ण मन के उच्चारण प्रायः एक समान ही हे। प्रश्न ये हे कि यदि लिपि म समानता हे तब वर्णमाला म भेद काबर? बीसवीं सदी के पूर्वार्ध अउ आजादी के बाद तीन दशक तक छत्तीसगढ़ी के विद्वान मन व्याकरण के ये पक्ष ला जिस तरह नजरअंदाज करिन ओखर कारण छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रवाह के गति थम-से गइस; बल्कि ये कहना जादा सही होही कि छत्तीसगढ़ी भाषा दिशाहीनता के शिकार होगे। विद्वान साहित्यकार मन स्वयं तो छत्तीसगढ़ी म समृद्ध साहित्य के सम्यक सृजन करिन मगर छत्तीसगढ़ी भाषा के नेतृत्व नि करिन।यदि नेतृत्व करतिन त छत्तीसगढ़ी भाषा दिशाहीनता ले बच जातिस। ओमन एक सुरक्षा कवच पहिन ले रहिन अउ वोही व्याकरण के पाछू भागत रहिन जेहर एक सदी पहिली लिखे गय रहिस। एखर ले इतर स्वतंत्रता आंदोलन के उत्तरार्ध म हिन्दी अपन प्रतिष्ठा पाइस अउ अनेक मूर्धन्य साहित्यकार मन ओला दिशा देखाइन। जबकि एही समय छत्तीसगढ़ के विद्वान मन स्वांतः सुखाय साहित्य के रचना करत रहिन।

छत्तीसगढ़ राज बने के बाद छत्तीसगढ़ी लिखइया नवा लेखक अउ कवि मन घलो एखरे सेती दिशाहीनता के शिकार हो गिन अउ हिन्दी गद्य अउ पद्य के छत्तीसगढ़ी म मनमाने ढंग ले रूपान्तरण/रूपांकन करे लगिन। छिनीमा ( सिनेमा ), परकिरिति ( प्रकृति ), संसकिरिति ( संस्कृति ), डराइबर ( ड्रायवर ) , कम्पोटर ( कम्प्यूटर ) जइसन हजारों अपभ्रंस छत्तीसगढ़ी शब्द गढ़े गइस। जेन शब्द छत्तीसगढ़ी म बोले ही नि जात हे अइसन नवा-नवा शब्द गढ़े ले न लिखने वाला के भला होइस न ही छत्तीसगढ़ी भाषा के। मानक बनाय के फेर म छत्तीसगढ़ी भाषा ला विकृत बनाय के कोशिश ले बचना आज के सबले बड़े जरूरत हे। अब तो कुछ लेखक मन छत्तीसगढ़ी लेखन म व्यक्तिवाचक संज्ञा ला घलो धिकृत-विकृत करे म लगे हें।

आज से लगभग 137 साल पहिली लिखे छत्तीसगढ़ी व्याकरण ला यथावत स्वीकार करना का बुद्धिमानी हे? जेन समय ये व्याकरण ग्रंथ ला लिखे गे रहिस ओ समय छत्तीसगढ़ म शिक्षा नगण्य रहिस अउ सीताफल ला छीताफल, सास ला छाछ, रायपुर ला रइपुर, दुर्ग ला दुरूग बोलत रहिन। शिक्षा के प्रचार-प्रसार के बाद अब अइसन उच्चारण दोष सुदूर वन्यांचल म भले मिल जाही फेर छत्तीसगढ़ के अधिकांश व्यक्ति अइसन अपभ्रंस शब्द के प्रयोग नि करें। जब बोलचाल म अइसन विकृति नि हे त फेर प्राचीनता के नाम ले के अइसन शब्द मन ला ढोना का लाश ला कंधा म ढोना के समान नि माने जाही?

श् अउ ष् के स्थान म स् के प्रयोग करे म विसंगति के वृत निर्मित होवत हे। शंकर ला संकर या फेर शेष ला सेस लिख देहे म अर्थ-द्योतित नि होवत हे। गणेश ला गनेस अउ प्रसाद ला परसाद लिखे के परिपाटी कब तक चलत रही?

डाॅ भालचंद्र राव तैलंग, डाॅ शंकर शेष, डाॅ कांतिकुमार से लेके डाॅ नरेन्द्र देव वर्मा तक अनेक विद्वान मन छत्तीसगढ़ी के बदलते भाषिक कलेवर अउ तेवर ला नि पहिचान पाइन अउ लकीर के फकीर बने रहिन।

छत्तीसगढ़ी लेखन म देवनागरी के हिन्दी बर अंगीकृत सबो 52 वर्ण ला स्वीकार करना परही । एखर साथे-साथ जइसे हिन्दी म तत्सम अउ तद्भव दुनों शब्द रूप समानांतर रूप ले प्रचलन म हे वइसने छत्तीसगढ़ी म ‘ कल/काल/काली अउ आग/आगी’ समान रूप ले समादृत किया जाना चाही।

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भाषाविद् डाॅ चित्तरंजन कर के अभिमत-

लेखन अउ उच्चारण अलग-अलग व्यवस्था हे। हमन जइसन बोलथन वइसन लिखन नहीं अउ जइसन लिखथन वइसन बोलन नहीं। ये बात सही हे कि छत्तीसगढ़ी म ‘ ण ‘, ‘ श ‘, ‘ ष ‘ ध्वनि नि हे। ‘ ऐ, औ ‘ ला ‘ अइ, अउ ‘ के रूप म बोले जाथे; परन्तु संस्कृत या हिन्दी ले जउन व्यक्तिवाचक-नाम, पद-नाम, संस्था-नाम, देवता-नाम, श्लोक, कविता के उद्धरण ला हम लेबो त का अपन भाषा के अनुसार लिखबो-पढ़बो ? का ‘ प्रधानमंत्री’ ला ‘ परधानमंतरी, ‘ राष्ट्रपति’, ला ‘ रास्टरपति’, ‘ प्रशासन’ ला ‘ परसासन’ लिखबो- पढ़बो ? – निश्चित रूप म नहीं।

भाषा के मानकीकरण बर लिपि के रूप म देवनागरी ला अपनाना सुविधाजनक हे। देवनागरी म कतको विदेशी ध्वनि बर घलो वर्ण बनाय के उपाय हे। एखर ले विदेशी भाषा के अनुवाद म सुविधा होही। रह गे बात छत्तीसगढ़ी ला संवैधानिक दर्जा मिले के – त ये हर सरकार के मुद्दा हे। एखर बर बुद्धिजीवी अउ साहित्यकार मन उपाय तो करतेच्च हें अउ हमर काम ओखर ( छत्तीसगढ़ी के) व्यवहारिक प्रयोग के हे। अपन मन ले ये कुण्ठा या हीनभावना निकाल फेंकव कि छत्तीसगढ़ी बोले-लिखे म हमन छोटे हो जाबो या आन लोगन हम ला अशिक्षित कहीं। अपन संस्कृति ला बचाय बर भाषा के अलावा अउ कोई उपाय नि हे। माता के समान अपन मातृभाषा ले जो सुख मिलथे वो हा दूसर भाषा ले नि मिल सके। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र बहुत पहिली कहै हें-

निज भासा उन्नति अहै, सब उन्नति के मूल।
बिन निज भासा ग्यान के,मिटै न हिय को सूल।।

मानकीकरण बर संगोष्ठी

22 जुलाई 2018 के दिन छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण बर बिलासपुर म राज्यस्तरीय संगोष्ठी के आयोजन करे गइस। एखर संयोजक डाॅ विनोद कुमार वर्मा रहिन। संगोष्ठी म छत्तीसगढ़ी भाषा अउ देवनागरी लिपि उपर गहन विचार-विमर्श के बाद सुप्रसिद्ध भाषाविद् डाॅ चित्तरंजन कर द्वारा प्रस्तुत ‘ छत्तीसगढ़ी भाषा के मानकीकरण बर देवनागरी लिपि के 52 वर्ण के स्वीकार्यता बाबत् ‘ प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किये गइस।

प्रस्ताव ( छत्तीसगढ़ी म )

छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण बर छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग रायपुर द्वारा 22 जुलाई 2018 के बिलासपुर म आयोजित राज्य-स्तरीय संगोष्ठी म ये प्रस्ताव पारित किये जावत हे-

‘ छत्तीसगढ़ के राज्यपाल द्वारा 11 जुलाई 2018 के अधिसूचित राजभाषा ( संशोधन ) अधिनियम 2007 ( धारा 2 ) के संशोधन के अनुरूप छत्तीसगढ़ी भाषा के मानकीकरण बर देवनागरी लिपि ( ओखर 52 वर्ण मन ) ल यथा-रूप अंगीकृत किये जाही जेला केंद्र शासन ह हिन्दी भाषा बर अंगीकृत करे हे। ‘

हिन्दी भाषा के लिए अंगीकृत देवनागरी लिपि

हिन्दी वर्णमाला

स्वर- अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ए,ऐ,ओ,औ- (11)

अयोगवाह- अं, अः (02)

स्पर्श व्यंजन- ( 25 )

क वर्ग : क,ख,ग,घ,ङ
च वर्ग : च,छ,ज,झ,ञ
ट वर्ग : ट,ठ,ड,ढ,ण
त वर्ग : त,थ,द,ध,न
प वर्ग : प,फ,ब,भ,म

अन्तःस्थ व्यंजन : य, र, ल, व (04)

उष्म व्यंजन : श, ष, स, ह (04)

द्विगुण व्यंजन : ड़, ढ़ (02)

# संयुक्त व्यंजन : क्ष, त्र, ज्ञ, श्र (04)

कुल वर्ण – 52

  • डाॅ विनोद कुमार वर्मा
    MIG – 59,नेहरूनगर,
    बिलासपुर छ.ग.495001
    मो.- 98263-40331
    ईमेल- vinodverma8070@gmail.com

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One thought on “छत्तीसगढ़ी भाषा अउ देवनागरी लिपि- डाॅ विनोद कुमार वर्मा

  1. अब्बड़ सुग्घर सारगर्भित जानकारी बधाई भईया

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