छत्तीसगढ़ी छन्द मा “गणतंत्र दिवस’
(गणतंत्र दिवस विशेष)
-अजय अमृतांशु
26 नवम्बर 1949 के संविधान सभा ह प्रस्ताव ल पारित करिस अउ 26 जनवरी 1950 के हमर देश के संविधान लागू होइस । तब ले आज पर्यन्त ये दिन ला हमन गणतंत्र दिवस के रुप म मनात आत हन। देश के जनता ल अधिकार मिलिस संगे संग कर्तव्य पालन के जिम्मेदारी घलो। परतंत्र भारत के निवासी मन आजाद होय के बाद खुला म साँस लिन। देश के हर वर्ग ला समुचित अधिकार देवाय खातिर डॉ भीमराव अंबेडकर जी नवा संविधान गढिन। दबे कुचले मनखे मन घलो सम्मान के साथ जी सकय येकर पूरा ख्याल राख के अथक परिश्रम के बाद संविधान बनाये गिस जेन दुनिया के सबले बड़का संविधान आय। जाहिर हे कि 26 जनवरी ल हर भारतवासी धूमधाम से मनाथे। प्रत्येक मनखे ला अभिव्यक्ति के अधिकार भारत के संविधान हा दे हवय। छत्तीसगढ़ के साहित्यकार मन गणतंत्र दिवस ला बेरा-बेरा मा परिभाषित करत रहे हवँय। छत्तीसगढ़ी साहित्य म छन्दकार मन घलो गणतंत्र दिवस उपर अपन अपन कलम चलाय हवय।
हमर पुरोधा साहित्यकार जनकवि कोदूराम “दलित” जी राम राज आय के कामना राउत दोहा म बड़ सुग्घर ढंग ले करे हवँय-
अमर होय गणतन्तर भैया, जन-जन होय निहाल रे
राम-राज आवै अउ जुग-जुग,जियै जवाहर लाल रे।।
फूलय-फरय स्वर्ग बन जावय,हिन्द देश ये प्यारा।
“गणतन्तर हो अमर” सदा हम, इहिच लगाईं नारा।।
छन्दविद अरुणकुमार निगम लोकतंत्र में संविधान के ताकत ला आल्हा छन्द में सुग्घर ढंग ले लिखथें-
संविधान जब लागू होइस, तब हम पाए हन अधिकार।
लोकतंत्र के परब हमर बर,सब ले बड़का आय तिहार।।
जन के,जन बर,जन के द्वारा, राज कहे जाथे गणतंत्र।
सबो नागरिक एक बराबर, लोकतंत्र के हावय मंत्र।।
छन्दकार रमेश चौहान गणतंत्र परब ल देवारी कस मनात एकता के संदेश दे के कामना करत त्रिभंगी छंद म लिखथें-
झंड़ा लहरावव, जनमन गावव, गणतंत्र परब, हे मान बने।
घर कुरिया झारव, दीया बारव, देवारी जस, मगन बने ।।
हिन्दू ईसाई, मुस्लिम भाई, जय हिन्द बोल, बोल बने ।
हे पावन माटी, अउ परिपाटी, जुरमिल देखा, जग ल बने ।।
संविधान के निर्माण म बहुत अकन पेंच रहिस। येला बनाय मा काफी परिश्रम लगिस। दुनिया भर के संविधान ल खंगाले गिस तब जा के भारत के संविधान बनिस। येकर बढ़िया वर्णन सरसी छंद म महेंद्र बघेल के कलम ले-
सबो नियम लिपिबद्ध करे बर, जुरमिल करिन उदीम।
फेर लिखे बर संविधान ला, आइन बाबा भीम।।
का अमीर अउ का गरीब के, गिन-गिन राखिन ध्यान।
दलित-दमित के मान रखे बर, संचित करिन विधान।।
भारत के खुशियाली खातिर, मिलके फूॅंकिन मंत्र।
जनता बर जनता के शासन, मिलिस एक गणतंत्र।।
200 बछर के अंगेजी हुकूमत ले छुटकारा पाये के बाद संविधान बने ले देश के जनता ला समान अधिकार अउ हक मिलिस तब जनता के उछाह स्वाभाविक हवय । युवा छन्दकार जीतेन्द्र वर्मा”खैरझिटिया”अपन दोहा छन्द मा संविधान के सुन्दर बखान करथें-
संविधान जे दिन बनिस, आइस नवा सुराज।
हक पाइन हें सब मनुष, पहिरिन सुख के ताज।।
का छोटे अउ का बड़े, पा गे सब अधिकार।
हवे राज गणतंत्र के, बहे खुशी के धार।।
डॉ भीमराव अंबेडकर के मेहनत ला छंदकार श्रीमती आशा देशमुख हरिगीतिका छंद के माध्यम ले रेखांकित करथें –
सबके धरम एके बरोबर ,एक जइसे मान हो।
अम्बेडकर जी हा कहिन हे, विश्व मा पहिचान हो।
अन्याय शोषण से बचे, जन बर रचिन सँविधान ला।
ऊँचा रहय झंडा हमर, गावंय सबो जन गान ला।
छन्दकार चोवा राम वर्मा ‘बादल’ लावणी छन्द में संविधान के महत्ता ला बतावत लिखथे-
सदी बीसवीं सन पचास मा,संविधान लागू होइस।
जेन गुलामी के कलंक ला,सबके माथा ले धोइस।।
जनता बर जनता के शासन,जेकर सुग्घर कहना हे।
सबो धर्म के आदर करके,भेदभाव बिन रहना हे।।
मनीराम साहू मितान दोहा छन्द के माध्यम ले सविधान ला जाने समझे के बात कहिथे,ताकि बखत परे म संविधान हमर रक्षा कवच बनय-
का कइथे प्रस्तावना, ध्येय हवय जी काय।
मिलके सब ज्ञानी गुनी, कइसे हवँय बनाय।
आखर आखर शब्द मन, कहे कतिक हें रोठ।
जानँन हम सँविधान ला, बने हवय जे पोठ।
संविधान के रक्षा करना हर भारतवासी के कर्तव्य हवय,ये बात ल अजय अमृतांशु आल्हा छन्द म लिखथें –
संविधान के रक्षा करबों,जुरमिल सब राहव तैयार।
किरिया खावव सब झन संगी,झन खोवय ककरो अधिकार।
छन्द के युवा हस्ताक्षर उमाकांत टैगोर सार छन्द में गणतंत्र के महत्ता ल बड़ सुग्घर ढंग ले बताथे :-
गणतंत्र बने जब ले भारत, सुमता हावय भारी।
अइसे हे कानून बनाये, काँपै अत्याचारी।।
पढ़े लिखे के रद्दा खुलगे, अउ किस्मत के ताला।
संविधान गणतंत्र बना के, बगराइस उजियाला।।
ये प्रकार से हम देखथन कि संविधान बने के बाद ले छत्तीसगढ़ के रचनाकार मन जागरूकता के परिचय देवत बेरा-बेरा मा आम जनता ला संविधान के मूल तत्त्व ले अवगत कराय के काम करत रहे हवँय। छन्दकार मन आम जनमानस ल जगाय के काम अपन छन्द के माध्यम ले करत रहे हवँय।
अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़ )
मो.9926160451