Chhatisgarhi-ganesh-chalisa छत्‍तीसगढ़ी गणेश चालीसा

छत्‍तीसगढ़ी गणेश चालीसा

छत्‍तीसगढ़ी गणेश चालीसा (chhatisgarhi-ganesh-chalisa)
श्रीशमी गणेश, नवागढ़ (छत्‍तीसगढ़) chhatisgarhi-ganesh-chalisa

chhatisgarhi-ganesh-chalisa

छत्‍तीसगढ़ी गणेश चालीसा

दोहा

सबले पहिले होय ना, गणपति पूजा तोर ।
परथ हवं मैं पांव गा, विनती सुन ले मोर ।।

जय गणपति गणराज जय, जय गौरी के लाल ।
बाधा मेटनहार तैं, हे प्रभु दीनदयाल ।।

चौपाई

हे गौरा-गौरी के लाला । हे प्रभू तैं दीन दयाला
सबले पहिली तोला सुमरँव । तोरे गुण ला गा के झुमरँव

तही बुद्धि के देवइया प्रभु । तही विघन के मेटइया प्रभु
तोरे महिमा दुनिया गावय । तोरे जस ला वेद सुनावय

देह रूप गुणगान बखानय । तोर पॉंव मा मुड़ी नवावय
चार हाथ तो तोर सुहावय । हाथी जइसे मुड़ हा भावय

मुड़े सूंड़ मा लड्डू खाथस । लइका मन ला खूबे भाथस
सूपा जइसे कान हलावस । सबला तैं हा अपन बनावस

चाकर माथा चंदन सोहय । एक दांत हा मन ला मोहय
मुड़ी मुकुट के साज सजे हे । हीरा-मोती घात मजे हे

भारी-भरकम पेट जनाथे । हाथ जोड़ सब देव मनाथे
तोर जनम के कथा अचंभा ।अपन देह ले गढ़ जगदम्‍बा

सुघर रूप अउ देके चोला । अपन शक्ति सब देवय तोला
कहय दुवारी पहरा देबे । कोनो आवय डंडा देबे

गौरी तोरे हे महतारी । करत रहे जेखर रखवारी
देवन आवय तोला जांचे । तोरे ले एको ना बाचे

तोर संग सब हारत जावय । आखिर मा शिव शंकर आवय
होवन लागे घोर लड़ाई । करय सबो झन तोर बड़ाई

लइका मोरे ये ना जानय । तोरे बर त्रिसूल ल तानय
तोर मुड़ी जब काटय शंकर । मॉं के जोगे क्रोध भयंकर

देख क्रोध सब धरधर कांपे । शिव शंकर के नामे जापे
उलट-पुलट सब सृष्टि करीहँव । कहय कालिका मुंड पहिरहँव

गौरी गुस्‍सा शंकर जानय । तोला अपने लइका मानय
हाथी मुड़ी जोड़ जीयावय । मात-पिता दूनो अपनावय

नाम गजानन तोर धरावँय । पहिली पूजा देव बनावँय
मात-पिता ला सृष्टि बताये । प्रदिक्षण तैं सात लगाये

सरग ददा अउ धरती दाई ।तुहँर गोठ सबके मनभाई
तोर नाम ले मुहरुत करथन । जीत खुशी ला ओली भरथन

बने-बने सब कारज होथे । जम्‍मो बाधा मुड़धर रोथे
जइसन लम्बा सूंड़ ह तोरे । लम्बा कर दव सोच ल मोर

जइसन भारी पेट ह तोरे । गहरा कर दव बुद्धि ल मोरे
गौरी दुलार भाथे तोला । ओइसने दव दुलार मोला

गुरतुर लड्डू भाये तोला । गुरतुर भाखा दे दव मोला
हे लंबोदर किरपा करदव । मोरे कुबुद्धि झट्टे हरदव

मनखे ला मनखे मैं मानँव । जगत जीव ला एके जानँव
नाश करव प्रभु मोर कुमति के । भाल भरव प्रभु बुद्धि सुमति ले

अपने पुरखा अउ माटी के । नदिया-नरवा अउ घाटी के
धुर्रा-चिखला मुड़ मा चुपरँव। देश-राज के मान म झुमरँव

नारद-शारद जस बगरावय । मूरख ‘रमेश’ का कहि गावय
हे रिद्धी सिद्धी के दाता । अब दुख मेटव भाग्य विधाता

दोहा

chhatisgarhi-ganesh-chalisa

शरण परत गणराज के, मिटय सकल दुख क्‍लेश ।
सुख देवय पीरा हरय, गणपति मोर गणेश ।।

जय जय गणराज प्रभु, रखव आस विश्‍वास ।
विनती करय ‘रमेश’ हा, कर लौ अपने दास ।।

-रमेश चौहान

Loading

One thought on “Chhatisgarhi-ganesh-chalisa छत्‍तीसगढ़ी गणेश चालीसा

  1. बहुत सुंदर स्वर अउ शब्द चयन हर हार्दिक बधाई

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *