पुस्तक समीक्षा-छत्तीसगढ़ी का सम्पूर्ण व्याकरण
-रमेश चौहान
पुस्तक समीक्षा-छत्तीसगढ़ी का सम्पूर्ण व्याकरण
छत्तीसगढ़ी का सम्पूर्ण व्याकरण-एक परिचय
कृति का नाम | ‘‘छत्तीसगढ़ी का सम्पूर्ण व्याकरण’’ |
कृतिकार | लेखक द्वैय डाॅ. विनय कुमार पाठक एवं डाॅ. विनोद कुमार वर्मा |
प्रकाशक | वदान्या पब्लिकेशन, बिलासपुर |
प्रकाशन वर्ष | 2018 |
सामान्य मूल्य | रू. 495.00 |
विधा | गद्य |
शिल्प | आलेखात्मक, वर्णात्मक |
भाषा | हिन्दी |
समीक्षक | श्री रमेशकुमार सिंह चैहान, नवागढ़ |
छत्तीसगढ़ी का सम्पूर्ण व्याकरण के लेखक-
‘‘छत्तीसगढ़ी का सम्पूर्ण व्याकरण’’ कृति के लेखक डाॅ. विनय कुमार पाठक छत्तीसगढ़ ही नही अपितु राष्ट्रीयस्तर के एक ख्यातीलब्ध नाम है । आप हिन्दी एवं भाषा विज्ञान दो-दो विषय पर डाॅक्ट्रेट हैं, आप छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के अध्यक्ष भी रह चुके हैं । डाॅ. विनोद कुमार वर्मा एक ख्यातीनाम सम्पादक, समीक्षक एवं कहानीकार हैं । लेखक द्वैय की उपलब्धियाँ इतनी है कि इनके इस कृति की समीक्षा करने का साहस करना सहज नहीं है किन्तु छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास में अपने आहुति देने की उद्देश्य से इस कृति का साधारण एवं विशिष्ठ पाठकों के लिये इस कृति की उपयोगियता रेखांकित करने का प्रयास है ।
छत्तीसगढ़ी का सम्पूर्ण व्याकरण-कृति से परिचय-
‘‘छत्तीसगढ़ी का सम्पूर्ण व्याकरण’’ 400 पृष्ठीय एक विशाल ग्रंथ है, जो अपने नाम के अनुरूप छत्तीसगढ़ी भाषा के सम्पूर्ण व्याकरण को अपने आप में समेटी हुई है । संपूर्ण ग्रंथ आठ खण्ड़ों में विभाजित है ।
प्रथम खण्ड़-
प्रथम खण्ड़ में विश्व की भाषााओं का वर्गीकरण, भारोपीय भाषा परिवार की भाषाएं, लिपियों के विकासक्रम में ध्वनि मूलक ब्रह्मी लिपि और संस्कृत भाषा, देवनागरी लिपि एवं भारत की शास्त्रीय भाषाएँ, भारत में बोली जाने वाली चार प्रमुख भाषा परिवार और छत्तीसगढ़ी की उत्पत्ति का विकासक्रम, छत्तीसगढ़ की भाषिक स्थिति एवं छत्तीसगढ़ में लिपि का इतिहास, छत्तीसगढ़ी भाषा और देवनागरी लिपि और सामान्य जानकारी के सोपानों से छत्तीसगढ़ी की उत्पत्ति का विकासक्रम से वर्तमान मानकीकरण की स्थिति तक अंकुरण से पल्लवन तक आच्छादित है ।
छत्तीसगढ़ी का मानकीकरण का प्रयास-
वर्तमान में छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण के प्रयास सभी छत्तीसगढ़िया साहित्यकार कर रहे हैं । इन साहित्यकारों का दो वर्गो में विभाजन स्पष्ट रूप से दिखता है एक वर्ग का मानना है कि छत्तीसगढ़ी में देवनागरी लिपि के सभी वर्णो को स्वीकार नहीं किया जा सकता श, ष, ण, और संयुक्त व्यजनों के उपयोग के विरोध में हैं तो वही दूसरी ओर एक बड़ा वर्ग देवनागरी लिपि के संपूर्ण स्वर, व्यंजनों को छत्तीसगढ़ी में स्वीकार किये जाने पर बल दे रहे हैं । यह ग्रंथ भी तार्किक रूप से देवनागरी लिपि के संपूर्ण स्वर, व्यंजनों को छत्तीसगढ़ी में स्वीकार किये जाने का पक्षधर है । 22 जुलाई 2018 को छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण के लिये बिलासपुर में राज्यस्तरीय संगोष्ठी किया गया जिसमें भाषाविद् चितरंजन कर द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा के मानकीकरण के लिये देवनागरी लिपि (उसके 52 वर्णो सहित) की स्वीकार्यता बाबत् प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया । अस्तु छत्तीसगढ़ी में सभी स्वर, व्यंजन की स्वीकार्यता अधिक स्वीकार्य है ।
दूसरा खण्ड़-
दूसरे खण्ड़ में शब्द साधन, संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, वाच्य, अव्यव, क्रिया विशेषण, सम्बन्ध बोधक, समुच्चय बोधक, विस्मयादि बोधक, कारक काल लिंग, और वचन पर गहनता से विचार किया गया है । यह द्वितीय खण्ड़ व्याकरण का रीढ़ है, जिसके लेखक द्वैय ने उसी सबलता, व्यापकता, सूक्ष्मता से उद्धृत किया है साथ ही यहाँ भाषा शैली की संप्रेषण शक्ति तीव्र है क्योंकि भाषाा सहज एवं बोधगम्य है जो पाठक मानस तक पैठ बनाता है ।
तीसरा खण्ड़-
तीसरे खण्ड़ में शब्द रचना की विधियाँ, उपसर्ग, प्रत्यय, सन्धि, और समास पर विस्तार से विषय वस्तु को प्रतिपादित किया गया है । प्रत्येक अध्याय को भाषा विज्ञान के कसौटी में कसा गया है ।
चौथा खण्ड़-
चौथे खण्ड़ में रस, छंद और अलंकार की अवधारणाओं को विस्तारित किया गया है । परिभाषाएं, भेदाभेद, स्पष्टीकरण सहज रूप से प्रस्तुत किया गया है । रस, छंद अलंकार को छत्तीसगढ़ी रचनाओं के उदाहरणों से स्पष्ट किया गया है । एक विशेषा बात इस खण्ड़ में दृष्टव है कि रस छंद अलंकार के उदाहरण देने के लिये छत्तीसगढ़ी के वरिष्ठ एवं कनिष्ठ दोनों साहित्यकारों की रचनाओं को समान रूप से लिया गया है । हाँ कुछ रचनाकारों को अधिकाधिक उद्ध्ति किया गया है शायद रचनाओं की सुगम उलब्धता का अभाव अथवा समय का अभाव रहा होगा ।
पॉंचवां खण्ड़-
पाँचवें खण्ड़ में लोकसाहित्य और लोकोक्तियाँ, हाना (कहावतें), मुहावरा, जनउला (पहेलीयाँ) के अध्याय दिये गये हैं । किसी भाषा की समृद्धि उसके लोक साहित्य से होता है जिसमें लोकोक्तियों, मुहावरों और पहेलियों का अह्म स्थान होता है । इन तीनों ही आधार स्तंभों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करते हुये उदाहरणों से स्पष्ट करते हुये इनमें परस्पर में अंतर को भी बारिकी के साथ स्पष्ट किया गया है । छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियों की एक लंबी सूची यहां दी गई है, छत्तीसगढ़ हानों (मुहावारों) का एक पूरा संग्रह ही इसमें जोड़ा गया है जिसमें देवनागरी लिपि के वर्णो के क्रम में मुहावरे संग्रहित हैं । जनउला (पहेलियों) को विभिन्न वर्गो में विभाजित कर संग्रहित किया है । इस खण्ड़ को देख कर लगता है इस खण्ड़ में शोधात्मक, संग्रहात्मक सद्कार्य पूरे मनोवेग से किया गया है ।
छठवां खण्ड़-
छठवें खण्ड़ में छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास में सहायक तत्वों छत्तीसगढ़ राज भाषा आयोग, समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, आकशवाणी, साहित्यकारों को स्थान दिया गया है । छत्तीसगढ़ राज भाषा आयोग के गठन उद्देश्य और कार्यविधि को छत्तीसगढ़ी के विकास में महती स्थान दिया गया है । छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास में स्थानीय समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं आकशवाणी के योगदान को रेखांकित किया गया है । छत्तीसगढ़ी सिनेमा की भाषा विकास में भूमिका को प्रतिपादित किया गया है । सबसे अधिक महत्वपूर्ण छत्तीसगढ़ी भाषाा के साहित्यकारों की भूमिका भाषा विकास में हैं । क्योंकि भाषा का साहित्य सामाज से ग्राह्य है तो सामाज आरोपित भी अतः साहित्य का सामाज से सीधा संबंध है । इन साहित्यकारों को दो भागों महिला साहित्यकार एवं पुरूष साहित्यकार में विभाजित कर उनकी पूरी सूची प्रकाशित की गई है जिसमें साहित्यकारों के प्रकाशित कृतियों की सूची भी सम्मिलित है । वास्तव में यह कार्य भाषा के लिये प्राणप्रण से समर्पित लोगों का सम्मान करना है ।
सातवां खण्ड़-
सातवें खण्ड़ में छत्तीसगढ़ी भाषा के तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशज व संकर शब्द, विलोम शब्द, लोकव्यवहार में प्रयोग होने वाले महत्वपूर्ण शब्दावलीः हिन्दी-अंग्रेजी-छत्तीसगढ़ी, संख्याएँः छत्तीसगढ़ी-हिन्दी-संस्कृत-अंग्रेेेजी, छत्तीसगढ़ी शब्दकोष, प्रशासनिक शब्दकोषःहिन्दी-अंग्रेजी-छत्तीसगढ़ी का अध्याय सम्मिलित है । यह खण्ड़ छत्तीसगढ़ी भाषा-भाषियों के लिये जितना महत्वपूर्ण है उससे अधिक गैर छत्तीसगढ़ी भाषा-भाषियों के लिये उपयोगी है । इस खण्ड़ को देखकर लगता है कि इसे छत्तीसगढ़ी को अधिक व्यापक बनाने के लिये, छत्तीसगढ़ राज्य से बाहर छत्तीसगढ़ी को विस्तारित करने, छत्तीसगढ़ में रह रहे गैर छत्तीसगढ़ियों को छत्तीसगढ़ में समरसता के साथ रहने के लिये, प्रषासनिक अधिकारियों, कर्मचारियों को छत्तीसगढ़ी में काम करने की प्रेरणा देने के लिये ही किया गया है । छत्तीसगढ़ी शब्दों का एकाधिक भाषा में अर्थ निरूपित कर छत्तीसगढ़ी का व्यापीकरण करने हेतु यह मिल का पत्थर साबित होगा ।
आठवां खण्ड़-
आठवें खण्ड़ को एक परिषिष्ट के रूप में जोड़ा गया है जिसमें संदर्भ ग्रंथों की सूची एवं लेखक द्वैय का परिचय सम्मिलित है । संदर्भ ग्रंथों की सूची देखकर लगता है कि इस ‘छत्तीसगढी का सम्पूर्ण व्याकरण’ ग्रंथ को लिखने से पहले गहन अध्ययन किया गया है ।
सम्पूर्ण विषय वस्तु को लेकर लिखी गई यह पहली कृति है-
अभी तक छत्तीसगढ़ी भाषा के व्याकरण संबंधी कई किताबे प्रकाशित हो चुकी है किन्तु ये सभी किसी न किसी एक विषय पर आधारित रहीं हैं । सम्पूर्ण विषय वस्तु को लेकर लिखी गई यह पहली कृति है । निश्चित रूप से यह कृति भूतकाल के नींव पर वर्तमान को प्रवाहमान एवं भविष्य को वेगवान करने का एक सफल उद्यम है ।
ग्रन्थ की उपयोगिता-
- यह ग्रंथ छत्तीसगढ़ियों और गैर छत्तीसगढ़ियों दोनों के लिये समान रूप से उपयोगी है । इस ग्रंथ को एक साधारण से साधारण पाठक भी रूचि लेकर पढ़ सकता है । गैर भाषीय प्रशासनिक अधिकारी, कर्मचारी, व्यपारी आदि इस कृति के अध्ययन से लाभांवित हो सकते हैं ।
- छत्तीसगढ़ी के नवोदित साहित्यकारों के लिये यह ग्रंथ विशेष रूप से उपयोगी है, जिससे वे अपनी भाषा शैली को व्याकरण सम्मत रख सकें जिससे आने वाली पीढ़ी उनकी कृतियों का सम्मान कर सके ।
- यह कृति भाषा के शोधर्थियों के लिये एक अमूल्य स्रोत सिद्ध होगा । इस कृति में निश्चित रूप से व्याकरण की समग्रता है । यह व्याकरण के कठिनता को सहज बनाने में उपयोगी है तो अपने आप में शब्दकोष समेटे हुये छत्तीयगढ़ी भाषा सिखने-सीखाने में पूर्णतः सक्षम है ।