छत्‍तीसगढ़ी कहानी -आँखी के दिया- डुमन लाल ध्रुव

छत्‍तीसगढ़ी कहानी -आँखी के दिया

-डुमन लाल ध्रुव

छत्‍तीसगढ़ी कहानी -आँखी के दिया
छत्‍तीसगढ़ी कहानी -आँखी के दिया

आँखी के दिया

साइकिल के टिनिन-टिनिन घंटी अउ डाकिया बाबू के गोहार ला सुनके हिरौंदी हा थोकिन लपकत चंवरा ला नहकत बीच मुहाटी म खड़े डाकिया बाबू के तीर जाके चिट्ठी ले आइस। चिट्ठी देख के ओखर मन म खुशी हा समागे। चिट्ठी ओखरे नांव के रिहिस अउ चिट्ठी भेजइया रतन रिहिस। पहिलि नांव देखिस तो थोकिन गुदगुदाय असन लगिस अउ ओखर चेहरा म थोरिक लाली पड़गे।

ओला ओ दिन के सुरता आगे जउन दिन रतन हा चिटिक घड़ी भर खातिर हिरौंदी के इहां-आये रिहिस अउ मुहफट भउजी हा बिना कोई लागलपेट के कहि दे रिहिस के अब तुमन दूनो झन मंदिर म जाके बर बिहाव कर डालो बहुत होेगे तुंहर मया-पिरीत के नाटक हा।

भउजी के बात ला सुनके हिरौंदी के आंखी झुकगे रिहिस अउ चेहरा लाल होगे, रतन ला संभले म देरी नइ लागिस, बलिक ओहर ओखर जवाब उही मेर दे डारिस।

‘‘भउजी, पढ़ाई पूरा होय म सिरिफ दू साल अउ रहिगे हवय, ऐमा जबरदस्ती करे के का बात हे। हां, यदि हिरौंदी ला जलदी होही तब नई कहि सकंव।’’

चिट्ठी खातिर हिरौंदी कलेचुप अपन, कुरिया म आगे, कपाट ला भीतरी डहर ले बंद करके झटकुन चिट्ठी ला खोलिस, पर चिट्ठी ला पढ़ते-पढ़ते ओखर जम्मो उछाह म पानी परगे कोनो भूत-भविश के आशंका ले ओखर आंखी हा डबडबागे।

थोरिक देर म हिरौंदी अनमनही होगे, इही बीच मुहाटी म आइस तो ओहर झटकुन चिट्ठी ला मुड़सरिया के खालहे म लुका देइस, कपाट खोल के देखिस तो भउजी हा आगू म खड़े रहे।

‘‘काखर चिट्ठी ए ? ‘‘भउजी हा पूछिस। ‘चिट्ठी, नहीं तो……….काखर चिट्ठी ए‘‘ हिरौंदी हा अन चिनहारिन कस बोलिस।

‘‘अरे लबरी मुही ला छलत हस, येमा छिपाय के का बात हे ? खैर, मिही हा खोज ले थंव, ‘‘भउजी हा किहिस अउ चिट्ठी ला पढ़ के बड़ा सुघ्घर ढंग ले हिरौंदी ला खालहे ले उप्पर डहर देखत रिहिस।

‘‘इही पायके चिट्ठी ला जियो मरो, लुकात रेहेस अरे, अगुवानी कोनो करे पर अगुवानी के तइयारी ला तो जम्मो मिल के करना पड़ही।’’

हिरौंदी के चेहरा देखते-देखत गंभीर हो उठिस, भउजी कुछ ठीक-ठीक नइ समझ सकेंव, चिट्ठी म अइसन कोनो बात नइहे।

रतन हा लिखे रिहिस, ‘‘हिरौंदी, ये डहर मोला तोरेच, सुरता आवत हे, इही पायके रइपुर आये के पोरोग्राम बना डारेंव, तीन-चार दिन, तुंहर संग रहिके समे बिताना चाहत हंव, सोच थंव, तुंहर संग म घूमे-फिरे म बहुतेच आनंद आही, जब तक रइपुर म रहूं रात अपने होही अउ दिन घलो अपन होही।’’

ये हर पहली मरतबा रिहिस जब रतन अतेक दिन ले हिरौंदी के संग रेहे बर आवत हे, नइ तो घड़ी दू घड़ी ले जादा ओहर कभु रूकबे नइ करय।

भउजी हा सोंचिस, हिरौंदी इही पायके फिकर म डुबगे ओला अतेक बड़े खुशी के मउका मिलगे, अब तो चार दिन ले रतन हा ओखर आंखी के दिया बनके बरही।

हिरौंदी के कनिहा म चिट्ठी ला खोंचके भउजी चलेगे फेर जावत-जावत चिट्ठी डहर ओखर नजर हा गड़े रहय।

बात कुछ दुसर रिहिस, जेला सिरिफ हिरौंदी हा समझथे अभी पीछू बछर के बात आय, ठीक अइसने बरिेंद हा आ धमकिस, बिरेंद ला ओहर ओ उमर से मया करेबा लगिस जब मन बड़ा भावुक अउ संवेदनशील होवत रिहिस।

हिरौंदी अभी पूरा सोला साल के भी नइ होय हे के एक दिन हिरौंदी के ददा हा बिरेंद संग ओखर चिन्हारी करवाईस, तबले ओहर बिरेंद ला लेके जाने कतेक कुंवारी सपना सजोयबर लगिस। फेर अपने आप सगाई के बात घलो चलगे अउ महिना बितते बितत सगाई के रस्म् घलो पूरा होगे। बिरेंद के आना जाना रिहिस। वो दिन दूनो रात में सनीमा देख के लहुटे रिहिस। बिरेंद ला ऊपर वाला कुरिया म ठहराय गिस।

भउजी हा जलदी से खाना गरम करके दिस अउ बिरेंद के संग हिरौंदी के खाना ला घलो विही, कुरिया म पहुंचा दिस। दूनों एके संग खाना खाइस।

बिरेंद के बात के सिलसिला कुछ अइसे चलिस के खाना हा सिराबे नइ करय, कुरिया के दिया बूझना शुरू होगे फेर इंकर बात बंद होबे नइ करय। बिरेंद के संग पाके हिरौंदी के नींद उड़ागे फेर ओला अपन मरयादा के पूरा खियाल रिहिस। थोरिक देर म हिरौंदी हा अनुभव करे लगिस के बिरेंद के आवाज हा फरकत हे आंखी म अब जो मया नइ दिखत हे। हिरौंदी ला ये बात समझ म आबे नइ करिस ओहर बिरेंद से पूछिस के तोला का होगे हे?

‘‘येमा का बुराई हे ? आखिर कुछ महिना म तोर-मोर बिहाव होवइया हे। बिरेंद हा खिसिया के बोलिस। ‘‘नहीं, बिहाव के पहिली मंय तोला अइसन बात नइ करन देंव-जेखर से हमर मर्यादा भंग होय ये कहिके हिरौंदी कुरिया ले बाहिर निकलगे। बिरेंद वोला देखते रहिगे।

ठीक पन्द्रह दिन के बाद बिरेंद के चिट्ठी आइस के ओहर लिखे रिहिस के ‘‘बिहाव के बाद भी का पता के तंय आज के तरह रूढ़िवादी परवित्ति के बने रहिबे अउ झूठी मर्यादा के खातिर मोर अरमान के खून करिबे। अइसे म मया अब कइसे निभही ? मंय नइ-जानत रेहेंव के तोर जइसे पढ़े-लिखे लड़की घलो अतेक दकियानूसी विचार के हो सकथे। इही पाय के अब मंय सगाई तोड़ना बेहतर समझत हंव।

हिरौंदी चिट्ठी ला पढ़के चुपचाप अपन भउजी ला दे दिस। जइसे घर म जबर गाज गिरगे। ‘‘ये सब कइसे होगे, हिरौंदी ? ‘‘दाई हा आंखी म आंखी डाल के पूछिस।‘

बिरेंद के शब्द म आत्मविश्वास रिहिस। दाई से अउ कहते नइ बनिस। भीतरी-भीतर ओहर अपन आप से लड़त रहिगे। भउजी हा घलो हिरौंदी ला भांप लेइस।

अतीत के झरोखा ले जब हिरौंदी मुक्त होईस तब ओला ककरो आये के आभास होय लगिस ओहर खिड़की से झांक के देखिस तो आगू म रतन खड़े रहे अउ भउजी हा ओकर अटैची ल थामे रिहिस।

हिरौंदी ला लागिस के जइसे कोनों ओखर पांव म बेड़ी डाल दे हे। ओहर फिर अपन, कुरिया म लहुट आइस ‘‘हिरौंदी’’ के मन धकधकागे। ओहर नींद के बहाना करके सूनना चाहत रिहिस के भउजी हा जोर से चिल्लाइस, ‘‘उठ तोर मयारू रतन आगे हे।‘‘

हिरौंदी ला उठके जाना ही पड़िस रतन के आगू म फेर चेहरा के भाव हा नइ मिट सकिस। रतन ला हिरौंदी के मुचमुचई हा बड़ा अटपट लगत रिहिस।

‘‘भउजी, लगथे, येला मोर इन्तजार नइहे। ‘‘रतन बोलिस। ‘‘नहीं, नहीं अइसे कोई बात नइहे भउजी खिलखिलाके हंस पड़िस। थोकिन आलस हे, तोर संग घूम लेही तो ठीक हो जाही।

हिरौंदी अपन डहर ले कुछ नइ कहिस। ओखर आगू म बस बिरेंद के चेहरा झूलत रिहिस अउ चेहरा के स्वभाविकता हा धीर-धीरे अउ गहरात जात रिहिस। येकर सेती कई बार रतन ला अहसास जरूर होवत रिहिस।

‘‘मोर संग रेहे म डर लगथे का ? ‘‘रतन हा ओखर से पूछिस।

नहीं रतन अइसन बात नइ हे आज मोर आँखी के दिया बनके तुंहर अंजोर म मेहर अपन चेहरा ल देखत हंव अउ गुनत हंव तोर जिनगी के हियाव खातिर।

-डुमन लाल ध्रुव 
मुजगहन, धमतरी

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One thought on “छत्‍तीसगढ़ी कहानी -आँखी के दिया- डुमन लाल ध्रुव

  1. नारी सम्मान अस्मिता मर्यादा पर केन्द्रित प्रेरणादायक कहानी के लिये हार्दिक बधाई शुभकामनाएं

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