छत्तीसगढ़ी कहानी-
अपन डेरवठी
बड़े काकी हा आजेच भिनसरहा ले बहुते हासत कुलकत रिहिस। ओखर ओगर देहे म समय के जउन आड़ा तिरछा लकीर खिंचाय रिहिस, वोहर आज गोडे़ला चिरई असन फुदके लगिस। उछाह म ओखर गोड़ हा भुइंया म हाले-डुले लगे। बड़े काकी के अइसन उछाह के कारण हे, शहर ले आये ओखर बेटा के चपरासी ओहर ओला बलाय बर आये रिहिस-बेटा ह उनला बलाय हे। बर-बिहाव के नौ बछर बाद बेटा हा आज अपन दाई बर सुध लेहे। नौ बछर तक बड़े काकी हा संझा-बिहनिया बेटा के अगोरा अउ ओखर चिट्ठी-पतरी के बाट जोहत रिहिस।
अपन बेटा ले बिछुरे बड़े काकी हा गांव भर म चिनहारी होगे रिहिन, ते पाये के दिन भर अपने काम म कलेचुप भीडे़ रतिस-कभु चंउर-दाल ला छिनतीस-निमारतिस तो कभु माटी गोंटी के काम। मन होतिस तो संझा बेरा गोंदा छतनार बारी बखरी म पानी रितोतिस। गांव भर के जम्मो छोटकन लइका मन ओखर आगू म आके बइठे रहितिन। छोटे-छोटे लइका मन घलो खऊ खजाना पाके मंगन रहय। बड़े काकी ला शहर जाना हे अपन बेटा के पास, ये सुनके लइका मन बड़ उदसहा होगे। अब तक तो ओहर अपन आप ला ओखर बेटा समझय। ये घर म ओखर पूरा अधिकार रिहिन। बड़े काकी के फूल डोहरी म पानी डारे के काम ओखरे रहितिस।
शहर ले आये अउ मुड़ में गजरादार झुलपहा टोपी पहिरे चपरासी गांव भर म देखनउटी होगे। बड़े काकी उत्ता-धुर्रा शहर जाये के तइयारी करे लगिस। छानी म सूखाय उरिद-लाखड़ी के सुकसा भाजी, थोकिन होरा अउ रखिया के बरी मोटरी म बांध के बहू बर रख लेइस-काबर के गांव के अइसन चीज हा शहर बर नोहरहा होथे। बखरी म फरे दू ठन छोटे-छोटे तुमा अउ करेला, कुंदरू ला घलो तोड़ के रख लेइस। उहां जाके तुमा ला दही म बघार के रांध देही। मुन्ना ननपन म शंउख से खावत रिहिस। अब तो ओला रांध के खवाय के साध हा मन म रहिगे। ओहर जाते साठ रंधनी खोली म चूलहा समाल लेही। बहू ला लइका मन के बीच भात रांधे के फूरसत कहां मिलही। ओहर मुन्ना के पसंद के भात-साग रांधही। ननपन म जब ओहर इसकूल ले लहुंटतिस तो मुंहाठी ले भात मांगत आतिस। हाथ-पांव धोये बर कहे तो पालथी मार के भुंइया म बइठ जतिस।
अरे बड़े मौसी हा शहर जाये बर सधागेहे ? देख उहां जाके हम गरीब मन के सुरता राखहू-ये अवाज हा बड़े कक्का के रिहिस। बड़े काकी ये बात सुनके अकचकागे। धनसिंग हा गांव भर के बड़े कक्का ए, बड़े काकी हा ओखर भउजी लगे। आपस म कभू-कभार हांसी-दिल्लगी घलो हो जात रिहिस। नत्ता के आड़ म जिनगी के उदसहा रददा म हांसी-ठिठोली के दू-चार बात हो जात रिहिस।
नहीं देवर बाबू, ये कइसे हो सकत हे। अतेक जबर दुख के समय म तुमन गजब मोर मदद करे हव, ये बात हा कउनो भूले के। तुंहर सबके आसिरवाद से ही मुन्ना युगान्तर हा अतेक बड़ नउकरी म हे। हमर अउ तुंहर खुशी हा का अलग-अलग हो सकत हे; कहत बड़े काकी के आंखी म आंसू टपके लगिस। बारी-बखरी, खेत-खार काखर भरोसा छोड़त हव ?
’काबर, भरोसा हा जइसे अब तक देखत रिहिस। विही हा देखही। मंय हा सबर दिन बर थोरहे जात हंव। लहुट के मोला तुंहरे बीच म रहना हे। पुरखा के अतेक जमीन जायदाद, घर-दुवार ला कइसे छोड़ देहूं।
भरोसा हा बड़े काकी संग ओखर मइके ले आये रिहिस अउ सुख-दुख के जम्मो समय बड़े काकी के संग बीते हे। ओखरो उमर हा अब बूढ़ागे हे। फेर खेत के जम्मो कामला संभालत रिहिस। निंदई-कोड़ई, कटई-मिंजई अउ धान-पान मंडी म बेंचे भांजे के जम्मो बुता ओखरे रिहिस। मुन्ना युगान्तर बड़े बाढ़िस तंहाले पढ़े बर शहर चल दिस। फेर विहिंचे नउकरी अउ शादी होगे। बड़े काकी बिहाव म नइ गे रिहिस। बेटा हा घर आके बताइस-बर-बिहाव कछेरी म होगे दाई। बस ! तुमला आशिस देये बर चलना हे।
कछेरी म बिहाव होगे ये बात सुनके बड़े काकी ला नवा बात असन लगगे। कछेरी म तो मुकदमा लड़े जाथे, नारी-परानी ला तो कछेरी अदालत जाना बने नइ समझे। ये ता बड़ा मनसुभा हे। फेर ओखर होवइया बहू कछेरी अदालत कइसे जाही ? बहू हा बर-बिहाव करे बर-का उहां घलो पंडित महराज रइथे ? बड़े काकी ला कुछ समझ म आबे नइ करय, अपन नवा बहुरिया ला डोली ले अगर मगर अउ परछन म उतारे के आस हा मन म रहिगे। का-का सोचे रेहेंव ये जुन्ना घर हा बिजली झालर से जगमगा जही। ओखर बिहाव के बाद ये पहिली बिहाव होही। ये घर म तीन दिन तक सगा-सोदर रही-खूब धूमधाम से बर-बिहाव होही, बाजा-गाजा म नाचही-कुदही-कोन ला नेवते जाही। जम्मो बात मन म रहिगे। अतका होय के बाद बड़े काकी हा कछेरी जाये के हिम्मत नइ जुटा पाइस। अपन गर के डोर ला उतार के आशिस कहे बर बेटा ला एक हाथ म पकड़त बोलिस-
’मोर सदा आशिस ओखरे बर तो हे, बहू ला लेके गांव आबे, इहींचे बहू के आरती उतारहूं… ओखर पुरखा के घर हे। ओखर मरजाद के रखवारी तो विही ला करना हे।’
ये घटना के नौ बछर होगे-न तो बेटा लहुट के आइस न बहू। सुने हंव ओखर दूझन लइका घलो हे कहिके-अब कोनो शहर जातिस तो खोज खबर लातिस। धीरे-धीरे बड़े काकी हा घलो अपन परिस्थिति से समझौता कर लेइस-अउ गांव वाला मन घलो ओखर डहर धियान देना कम कर दिस। जब बेटा हा नइ पूछत हे तो उनला कोन पूछही ? बस भरोसा के भरोसा रहिगे। वोहर रोज बड़े बिहनियां अपन काम बूता करके चल देत रिहिस। आजेच एक ऊंहा सफेद कपड़ा पहिरे लाल रंग के लैस म चमचमातीदार पगड़ी मुड़ी म-ओ चपरासी ला देख जम्मो लोगन हा बड़े काकी के भाग ला सराहे।
गांव ले थोरिक दूरिहा तीन कोस खालहे उतरे म शहर खातिर मोटर मिल जात रिहिस। बड़े काकी के संग गांव के आधा बसती के मनखे मोटर टेसन तक हबरे रिहिस। पैडगरी रद्दा म धीरे-धीरे गोड़ मढ़ात बड़े काकी के चेहरा म पसीना चुचवाय लगगे फेर बेटा के घर जाये के उछाह हा ओखर तन के थकान ला कम कर दिस।
मोटर म बइठत ओखर आंखी म आंसू आगे। नजर भर ओहर वो पैडगरी रद्दा अउ गांव के लमती डोंगरी पहार ला देखत चश्मा डहर ले आंसू हा टप-टप गिरत रिहिस-करा असन ठंडा-ओखर ओग्गर देहें ला छूवे कस लगय अउ मन हा घलो जुड़ागे। मोटर कंडकटर हा चपरासी ला देखिस-ओखर संग बड़े काकी ला देखके बड़ अदब से हाथ जोड़के किहिस- चाय-पानी लांवव का काकीजी कहिके उनला मान देवत रिहिस। जम्मो लोगन मोटर के नीचे खड़े रिहिस-कंडकटर, डरावर दूनो झन ला हिदायत दिये गिस
’देख सम्हाल के ले जाहू-बड़े वकील साहेब के मां ए-रद्दा म कोनो तकलीफ झन होवय।’
’नहीं साहब-तकलीफ कइसे होही, ए मनवा पीछू सीट म बइठ जा-ये सबो सीट ला बड़े काकी बर छोड़ दे।’
मनवा बइठे अपन सीट ला छोड़के पीछू डहर के सीट म बइठगे। बड़े काकी ला अपन जोंड़ी के सुरता आगे-उहू हा अइसने मोटर म बइठे जात रिहिस होही। जब फौज के नउकरी म रिहिस बेटा ला घलो फौज म भेजना चाहत रिहिस-फेर सबो सोंचे हुए हा हो जय तो ईशवर के सत्ता म विशवास कोन करही ?
मोटर शहर पहुंचगे-रद्दा म तो बड़े काकी कांही खाबे नइ करिस। पानी के बोतल अपन संग लाये रिहिस। बस रददा भर पानी ला पियत रिहिस-अब पानी घलो खतम होगे-पर अब तो वोहर घर पहुंचगे। मोटर ले उतर के रिकशा म बइठ के जब ओहर बेटा के बंगला म पहंचिस तो उनला विसवास होबे नइ करय के इंहे रहत होही ओखर मुन्ना हा। भगवान काबर अतेक उदार हे-ओहर तो जउन दुख दिये रिहिस, ओखर बदला म बियाज सहित सुख दे दिस हे। मुन्ना के पिताजी के मउत के बाद वोहर कतेक तकलीफ म रहिके पढिस-लिखिस। फेर पढाई के मउका अतेक अच्छा मिलिस, येकर वोहा कउनो जनम म कलपना नइ कर सकय। छोटे से जुन्नेटहा संदूक अउ मोटरा ला चपरासी हा बड़ अदब से उतारिस अउ बड़े मुहाटी डहर आगू जावत रिहिन-तइसने एक नारी कंठ सुनाई दिस-
’देख-ये डहर ले नहीं-पीछू मुहाटी डहर ले आवव अउ मोटरा ला पीछू के परछी म रख दे।’
बड़े काकी अतके बात सुनके अकचकागे-का अइसन गरविला सुर हा बहू के रिहिस हे ? भूखन-लांघन बड़े काकी ये आवाज सुनके- थर-थर कांपे लगगे अउ चपरासी के पीछे-पीछू नाली ला नांहकत घर के पीछू मुहाटी ले भीतरी डहर गिस। उहां कतको छोटे-छोटे कुरिया बने हे-उही म एक ठन कुरिया म ओखर मोटरा अउ संदूक ला रख दिये गिस। बड़े काकी विही कुरिया म माड़हे बाजवट म बइठगे-शरीर थकान म चकना चूर हो गेहे। पियास म गला सुखात हे। ओखर आखिरी सहारा चपरासी घलो ओखर मोटरा रख के कहूं चले गे रिहिस। पानी खोजत बाहिर के अंगना म निकलिस तो एक डहर नल दिखे लगिस-ओहर ओखर तीर म गिस-पर नल म पानी नइ आवत रिहिस-हतास होके चारों कोती देखे लगिस-अतेक म विही अंगना म पड़े कचरा ला फेंकत एकझन नउकर हा आइस-ओखर हाथ म पानी के ट्रे रिहिस ओमा एक गिलास पानी अउ कुछ खाये के रिहिस। बड़े काकी के मन होइस के वो कम से कम ओखर जात तो पूछ ले, फेर पियास के मारे बियाकुल भला कइसे पूछ सकत हे। हां खाये के समान ला वापस कर दिस-न जाने वोहर कइसे बनाय होही। वोहर छुआ छूत जबर मानत रिहिस-हमेशा अपन हाथ के बने खाना खातिस-पानी ला हाथ म लेके ओहर पूछिस…
’तुंहर साहेब हा कतेक बेर आही ?
’वोहर संझा छैः बजे आही’
’अउ साहेब के बाइ हा ?
’वोहा अभी भात खावत हे। तहूं मन घलो कुछु खा लो।’
’नहीं… मोला भूख नइ लगत हे… लइका मन कहां हे ?’
’ओमन इसकूल गेहे माताजी।’
अउ उहू म परदा के पाछू येती जा वोती जा।
पानी पिये के बाद बड़े काकी थोकिन थिराय ला धरिस के-चलो बहू भात खाके आही। वोहर अपन संदूक म रखे ओखर मुंह देखनी म दे बर सोन के हार ला निकाले लगिस।
ये हार हा मुन्ना के पिताजी हा दिये रिहिस पहली तनखा के मिले म। कतेक सहेज के रखे हे ये सोन के हार ला मुन्ना के बहू ला दिये खातिर। हार छूवत उनला अपन जोड़ी के सुरता आगे जउन अपन हाथ ले ये गर के माला ला पहिराये रिहिस… ओहर फफक फफक के रोये लगिस अउ सोंचत-गुनत कुरिया म चुपचाप बइठगे… थकान के मारे आंखी मूंदाय ला धरत राहय तइसने विही बाजवट म सुतगे। सियाना शरीर थके रिहिस, फेर बहू देखे के उछाह मंगल म आंखी म नींद आबे नइ करय। वोहर कुछ देर अइसे सुते रिहिस… न जाने ओला कब नींद आगे। थोकिन सुते के बाद जब ओखर आंखी खुलिस तो संझा मुंधियार होगे रिहिस-कुरिया म अंधियारा छागे… थोकिन बाहिर डहर निकलिस तब तक नल म पानी आ गिस ओहर हाथ-मंुह धोइस-बड़े फजर वाला नउकर विही कुरिया के पीछू डहर ले हाथ म एक गिलास पानी अउ चाय लाइस। गरम गिलास ओहर अपन अछरा म पकड़िस… ओहर वोकर से पूछइया रिहिस तइसने मुन्ना हा आके पांव परिस। बड़े काकी बेटा ला देखके मगन होगे ओला देखते साठ ओखर जनम जनमांतर के पियास बुझागे ये नौ बछर म कतेक बदलगे ओखर मुन्ना हा। ओहर पहिली आरूग पतरेंगवा जब पच्चीस साल के रिहिस-अब तो फूंडा-फूंडा गाल अउ देहें पांव मोटागे हे। रौबदार ये अफसर का ओखर बेटा रिहिस…. ओहर अपन आंखी ला दूसर डहर हटा लिस… कहूं नजर झन लगे।
’रद्दा म कहूं तकलीफ तो नइ होइस दाई।’
’नहीं बेटा… तोर चपरासी के सेती बड़ा सुविधा होये हे। ’अउ कोनो परसानी तो नइहे ? खाना खाय रेहेव ? हां बेटा खाले रेहेंव। पर बहू अउ लइका मन कहां हे बेटा ? वोमन तो मोर से मिले बर घलो नइ आये हे। बेटा जरा असमंजस म होगे, तब बोलिस-बहू थोकिन कलब गेहे दाई। अउ लइका मन ट्यूसन पढ़े बर गेहे। पर तुमला लइका मन से का करना हे, तुंहर आल औलाद बेटा तो मंय हंव उंखर से का करना हे ? बेटा के बात बड़ अजूबा लगगे।
’बेटा मंय तुमला देये के समान निकाल लेथों, अउ तोरे संग चल देथों ओला देये बर…. वहू मन का कही के डोकरी दाई आइस तो हमर मन बर कुछु लेके नइ आइस, ये कहत भीतरी डहर जाये लगिस- बेटा एककन आगू जावत किहिस….
’नहीं दाई… तंय भीतरी डहर झन जा। मंय तोर से इही मेर मिले बर आ जाय करहूं… तोर अंदर जाये म कहूं उमा ला बुरा लग जाही। ओखर संगी सहेली मन आये हे, सब पढ़हे-लिखे अउ बड़े मन घर के आय। का कही वोमन तुमला देख… नहीं दाई तंय इही मेर रही जा।
बड़े काकी सोंच म पड़गे-का ये बात उंकर बेटा मुन्ना हा कहत हे। उनला घर के भीतरी डहर जाये के अधिकार नइहे- बस विही परछी म रहिके अपन दिन बिताना है। उनला कुछ समझ म आबे नइ करय। अब तक बेटा हा विही समय बंगला म कैद होके चलत रिहिस। ओहर बूढ़ती सुरूज के पांव पखार के…. हाथ गोड़ धोके पूजा करे बर बइठगे। पूजा करे के बाद उठके देखिस तो एकठन थारी म भात अउ रोटी ला ढांक के नउकर हा रख के चल देइस। उनला अपन गांव के गाय-गरू के सुरता आये लगगे… उंकर आगे म घलो अइसने रख दिये जात रिहिस। जब ओला भूख लगतिस तो थोरहे बहुत खा लेतिस। बड़े काकी संसो फिकर म बूढ़गे… मन माढ़य नहीं… पता नहीं मुन्ना हा भात खाय हे के नहीं… बहू तो कलब गे होही… मुन्ना ला कोन भात दिस होही… ओहर तो जब तक मुन्ना खावत रहिथे, ओखर तीर म बइठके पंखा झलात रहिथे। बेटा बर तुमा लाये रहेंव तउन हा सूखा गिस होही। ओहर भीतरी डहर जाये खातिर पांव बढ़ाथे, फेर बेटा के बात हा सुरता आ जाथे…. ओहर अपन लइका ला घलो देख नइ सकत हे, जउन ओखरे खून हे…. का लइका ला ये नइ बताये गे होही के ओखर डोकरी दाई आये हे कहिके…. का उनला ये बात नइ जनात होही के ओखर डोकरा बबा के कोनो घर रिहिस होही जिहां ले ओखर नेरूवा गडे़ हे… कइसे हे ये शहर जिहां घर आये अपन महतारी ला पराया समझत हें।
ओखर जम्मो आखर म एकठन थेभा रिहिस… उंकर अपन डेरवठी जउन गांव म रिहिस, उहां ओहर जउन चाहतिस ओइसने करतिस। उनला कखरो तिर थेभा मंागे नइ लगतिस। अपन डेरवठी के सुरता कर-कर के कंदरत हे। काबर के अपन डेरवठी अपने होथे जेमा जिनगी के सख छांव हे…. ओखर सास-ससुर अउ अपन धनी के मया अशीस ह। विही घर म उनखर बेटा-बहु हे… बूढ़त काल म जउन सुख दे विही तो असली बेटा-बहू हे… ये बात सोंचत-सोंचत ओखर आंखी म आंसू ढरके लगगे।
दूसर दिन बिहनिया ले अपन बेटा ला बलइस अउ अपन डेरवठी म जाये बर किहिस….
अरे, दाई तंय तो काली आये हस… इहां तोला का तकलीफ हे… अराम से रहि अउ खा पी बइठे रह…. नहीं बेटा… मोला अपन डेरवठी म पहुंचा दे माटी के चोला हे कब फट ले फूट जाही कोनो ठिकाना नइहे। उहां रहि जहूं तो अपन डेरवठी के माटी म मिल जाहूं।
बेटा हा थोरिक दिन रेहे बर किहिस फेर बड़े काकी ओखर बात मानबे नइ करिस। ओहर अब अइसन घर म नइ रहि सकय… उदुपहा उनला सुरता आगे छुटपन के सहेली रमली के… ओहर इही शहर म आये रिहिन…. हां इंहिचे आये हे।
’बेटा- तोला रमली मोसी के सुरता हे ?
’हां- उंखर इहां मोसा जी तो अभी न्यायालय आये रिहिस उंखर एकठन केस चलत हे…. मोरे दफतर म।
’तब बेटा मोला रमली के घर अमरादे….
-मुंहबोली बहिनी आय… उंखर तीर रहि जाहूं दू-चार दिन इहां तो जीव नइ खंधोत हे।
बेटा हा फेर अपन चपरासी संग रिकसा म बइठा के दाई ला रमली मोसी घर अमरा दिस।
रमली हा बड़े काकी ला देख के खुश होगे- आ दीदी आ मोला तो अपन आंखी बर थोरको विसवास नइ होवत रिहिस। तंय एकदम बदल गे हस। धूरिया ले चिनहावत नइ हस। अभी तोर उमर काहे तेमा डोकरी-ढाकरी सही दिखथस… बेटा हा अतेक बड़े अफसर हे अउ तोर ये गत हे…’रमली मोसी बोलते जात हे। बड़े काकी जइसे छाती म कोनो पखरा मढ़ा देहे…. रमली मौसी हा पाट के बहिनी सहिक हे…बड़ मया करे। सुघ्घर रांध गढ़के दूनो बहिनी हांस गोठियाके भात खाइन, अउ परछी के खटिया म बइठके सुख-सोहर के गोठ बात करिन। बड़े काकी ला शहर बने नइ लागिस। ओहर अपन गांव लहुट जाना चाहत रिहिस, रमली समझगे, फेर छुटपन के सहेली कइसे घर जाये बर दिही। बड़े काकी रोज घर जाये के नांव लेवय फेर रमली मोसी हा उनला घर जावन नइ दे। रमली मोसी के अपन एक इसकूल हे, वो चाहत रिहिन के बड़े काकी गांव जाये बर तइयार होगे। संग म रमली मौसी के इहां मौसा जी रिहिन ओहर गांव जाके बड़े काकी ला अमरा देही… ओहर रमली मोसी के इहां मौसा जी संग जाये खातिर तइयार होगे…बेटा ला खबर नइ देइस…. सोंचिस के ओहर जाये नइ देही। ये तरह ले ओहर कलेचुप गांव हबर जाही।
अब ओहर मोटर बइठही अउ जइसे-जइसे मोटर उप्पर पहाड़ी म चढ़ जाही, ओखर मन भूलियारत जाही। अपन घर-कुरिया, अपन डेरवठी अपने होथे। ओहर मोटर ठेसन म उतरही… संग म मौसा जी रिहिन। ओहर उंखर सनदूक ला हाथ म धरके पैडगरी रद्दा होत चले लगिस… गांव थोकिन दुरिहा ले दिखत रिहिस। उनला लगिस के दौड़ के अपन ये गांव ला भेंट लाग जतिस। अउ एककन आगू बढ़के-ओखर घर दूरिहा ले दिखत है। अब अहर अपन गांव तीर पहुंचगे। अपन घर ला एकटकी लगाके देखिस-जम्मो कमइया मन अपन काम बूता म लगे हे। ओखर घर-कुरिया के नामो निशान नइहे कखरो नवा घर बनत तइसे लागथे घर म मजदूर बनिहार लगे हे हो सकथे मुन्ना हा ओखर घर करिया ला बने बनात हाही। फेर घर के जम्मो बरतन भांड़ा कहां हे- आंखी भर भीड़-भाड़ ला देखिस तब बड़े कका हा बोलिस।
’भउजी-तंय अब मोर घर चल। ये घर-कुरिया, ये डेरवठी अउ जम्मो खेत-खार ला तुंहर मुन्ना हा बेंच दिये हे। जब तंय शहर गे रेहेस तब। कहत रिहिस के दाई हा अब मोर तीर रहि कहिके, ये पायके मोला घर-कुरिया अउ जमीन के जरूरत नइहे।
तुंहर जम्मो बरतन भांडा मोर घर म हे। “फेर बड़े काकी ला उहां कुछु दिखबे नइ करत रिहिस। आंखी अंधियार-अंधियार कान भैरी-पोथी होगे। नाक हा सांस लेये बर छटपटात हे। आंखी म आंसू के लरी बोहात हे आंखी भर अपन करम ला दोस देवत देखत हे गांव के जम्मो लोगन डहर अउ अपन घर के डेरवठी ला।
-डुमन लाल ध्रुव मुजगहन, धमतरी
येहूँ ल देख सकत हव- श्री चोवाराम ‘बादल के छत्तीसगढ़ी कहानी- ‘जुड़वाँ बेटी’