श्री चोवाराम ‘बादल के छत्‍तीसगढ़ी कहानी- ‘जुड़वाँ बेटी’

छत्‍तीसगढ़ी कहानी-जुड़वाँ बेटी

श्री चोवाराम ‘बादल के छत्‍तीसगढ़ी कहानी-जुड़वाँ बेटी
छत्‍तीसगढ़ी कहानी-जुड़वाँ बेटी

छत्‍तीसगढ़ी कहानी-जुड़वाँ बेटी

तीन चार दिन के चहलःपहल अउ उछाह के पाछू आज के रतिहा दिलीप के घर हा साँय साँय करत हे । बरतन-भाँड़ा अउ समान मन एक कोती जतर-खतर परे हें । इँकर बटोरा करइया घर मालकिन जसोदा ह सगा आये माईलोगिन मन संग कुरिया के भुइयाँ मा सुते सुख के नींद लेवत हे । पुरूष सगा मन घला जेला जिहाँ जगा मिलिच उहें अँगना परछी म, कोनो दरी ला बिछा के त कोनो बोरा ल दसा के त कोनो खोर्रा खटिया मा उंडे कुम्भकरन असन नाक बजावत नींद भाँजत हें । बीच बीच मा छोटेःछोटे लइका मन सपटे सुते हें । सँच बात ए कोनो बड़े काम होये के पाछू अबड़ थकासी लगथे अउ पट ले नींद पर जथे । आजेच्च ग्यारा बजे रात के तो बात ए घ ले जुडवाँ बेटी मन के बिदा होय हे । हिरदे मा उमड़त घुमड़त खुसी अउ आँखी ले फूल जइसे झरत आँसू ला अगास ले चन्दा हा जी भरके टकटकी लगाये देखे हे । रात के तिसरईया पहर बितईया हे, चारों खूँट शांति हे फेर दिलीप के आँखी म नींद नइये हे । ओला सुरता आवत हे जब जसोदा हा दू-दी पइत मरे लइका जने के पाछू असो आज फेर दू भाग होवइया हे ।

कातिक के महिना अइसे लागत रहिसे जइसे जाड़ मा ठुठरा के मार डरही । रात के एक बजे रहिस होही जब जसोदा हा पीरा म छटपटाये ल धरलीच । कमरा ला ओढ़ के अउ एक ठन नाचुक डंडा ला धरके गाँव के छेंव मा रहइया दाई ल बलाये बर निकले रहेंव ।

मैं हा जइसे डबरी तीर पहुचेवँ झुरमुट के तीर मा दू झन माई लोगिन कस खड़े दिखीन । देखते साठ काँपगे रहेंव फेर हिम्मत करके आमा के पेड के पिछू मा लुकाके उही कोती ल देखे ला धरलेंव चेत लगा के सुनेंव त अइसे लागिच जइसे नानकुन लइका रोवत हे अउ माईलोगिन मन सुसकत हें । थोकुन रूक के वो दूनों झन जल्दी बस्ती कोती जाये ल धरलीन बने झाँक के देखे मा वो मन चीन्हा गे । पता चलगे वो मन तो गाँव के बरबाद पियकड़ मनराखन के बाई अउ ओकर कुवांरी बेटी कुंती आयँ । मैं हा समझगेंवँ लोक लाज ला उर्रा के नजायेज पैदा होये बच्चा ला फेंक के वो दुखियारीन मन हिरदे ल पथरा करके जाथें । मोर हिरदे घिरना अउ गुस्सा म भरगे रहिसे । मोर मन होइच कि दउँड के जावँ अउ कोनो गली मा निसा मा धुत्त परे मनराखन ला चुंदियावत लाके देखाववँ । ओकर दारू पिये के आदत ह बाई अउ बेटी ल कइसे दाना दाना बर मोहताज के षिकार होके, अपन कलंक ला पोंछे बर अपराधिन बनगे ।

लोगन तो कहिथें-पुरूस के हिरदे ह लोहा पथसा कस होथे । ये बात हा सोला आना सँच नोंहय । तभे तो मैं हा देखते रहिगेंवँ । वो मन चुपचाप चलदीन । चाहतेवँ त रंगे हाँथ पकड़ के गाँव भर गोहार पार के वो मन ला फँसा देतेंव । फेर मोर हिरदे ले तो कुंती बर दया , मया अउ छिमा के तिरबेनी बोहाये ल धरलीच रहिसे ।

झटकुन झुरमुट के तीर मा आके देखेंव त एक झन एकाध घण्टा पहिली पैदा होये नोनी पिला लइका फरिया मा लपटाये परे कल्हर कल्हर के रोवत हे । मोला खिया आथे वो लइका ला उठा के दाई ला बिना बलाये घर लहुट गे रहेंव ।

लकर धकर घर हलुटेंव त भगवान किरिपा ले इँहों नानकुन बेंवर के रोये के अवाज सुनाईच । मैं हा अपन जसोदा ला आवाज देंव फेर जइसे कि मोला डर रहिसे, बिते साल जचकी के बेरा वो हा बेहोश होगे रहिसे आजों बेहोश होके खटिया मा परे रहिसे । अउ एक ठन फूल असन लइका हाँथ गोड़ डोला डोला के रोवत हे । झटकुन साज सम्भाल करके दूनों लइका ला तीर मा सुता के डॉक्टर बाबू ल बलाये बर पल्ला दउँडेवँ ।

डॉक्टर बाबू आके सूजी लगईच तहाँ ले भगवान के किरिपा ले सब ठीक होगे । जसोदा ल होस आगे । संघरा जुडवाँ बेटी के महतारी बने के खुसी मा जम्मों दुख पीरा ला भुलाके हाँस कि गोठियाये ल धरलीच रहिसे । वो बेचारी ला का पता द्वापर के यशोदा माता सहीं येमा के एक झन लइका के महतारी वो हा नोहय । सँच्चाई ह तो मोर अउ भगवान के छाती मा दबे रहिगे ।

खुसी के वो घड़ी आँखी मा झलकत हे जब मनमाड़े उच्छल मंगल के संग छट्ठी होये रहिसे ।

सुरता करके दिलीप के आँखी ले खुसी के आँसू बोहागे । लागथे सुरूज नरायेंन ह ओकर आँसू ल पोंछे बर कुकरा ला भेज के सब ला जगाये ल कहि दिच । बिहनिया होगे ।

-चोवाराम 'बादल'

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