छत्‍तीसगढ़ी कहानी : लाला के देवारी-धर्मेन्‍द्र निर्मल

छत्‍तीसगढ़ी कहानी : लाला के देवारी

-धर्मेन्‍द्र निर्मल

छत्‍तीसगढ़ी कहानी

छत्‍तीसगढ़ी कहानी : लाला के देवारी
छत्‍तीसगढ़ी कहानी : लाला के देवारी

मोटर हॅ दमदमावत आके सड़क के पाई म खड़ा होगे। चकरा सेठ अपन दूकान म बइठे देखत हे। खचाखच भरे सवारी हे। उतरे बर अपन अपन ले कोलो कोलो करे लेवत हे। चैमास म पानी के बरसत ले सड़क तीर के झोरी जैसे उबुक चुबुक होवत खलबल खलबल करत बोहाथे  अउ बरसा थमिस ताहेन भईगे सुक्खा के सुक्खा तइसे मोटर  ठकठक ले खलिया गे। सुक्खा नरवा खल बहुराई। आए केे बेरा जम्मो हासत गोठियावत आइस। मोटर ले उतर के तैं कोन त मैं कोन। जम्मो सवारी बाजार म समागे। मोटर के सवारी मन ल उतरत देखके बजार पसरा लमाए ठेला वाला अऊ दुकानदार सबो जोसियागे। कोनो फटाफट माखुर ल मार दबाके त कोनो पीयत बीड़ी ल फेंक के नरेटी भर भर के चिल्लाय लगिन। झुनझुना अउ पोंगरी वाले मन बजा बजा के लइका मन ल मोहाय म लगगे। दुकानदार मन दूकान के आगू म निकलके कहत हे –

आ भाई, का लेबे ? का देवंव दीदी बड़ सस्ता हे वो। ले ले।

चकरा सेठ जस के तस फसकराय अपन दूकान म बइठे हे। अइसन – वइसन धंधा नई करय चकरा सेठ हॅ। घर बइठे बारा घाट के पानी पिये हे। गिराहिक के नारी ल टमर डारथे।

वो मोटर ले उतर के अकर जकर ल देखत हे। कती जाना चाही ? मन के बात गड़रिया जानय कहिथे। चकरा सेठ के नजर ओकर हाव भाव म हे। उदुप ले ओकर नजर चकरा सेठ ऊपर परिस। चकरा सेठ बड़ पिंयार से हांसत हाथ के इसारा म बलाइस। मया के भूखाय अऊ मया के मराय मनखे के एके गत होथे। वोह दूकान म घुसरे बर कनुवावत रिहिस हे।

 भारी भीड़ हे गा – सेठ कहिस।  

काला कहिबे तिहरहा ताय सब। ओह हांथ ल लमावत कहिस।

 सेठ ला पांव राखे बर ठउर मिलगे। का पूछथस ताहने। बइठन दे ते पीसन दे। सुर धरके मुड़ ला हलावत सेठ कहिस –

 हौ भई, पूरा मोटर खाली होगे गा। ओला हां म हां मिलावत देखके सेठ तुरते फेर पासा फेंकिस – आ बइठ। पानी पियावंव। सींका के टुटती बिलाई के झपटती होगे। ओकरो मन कोंवरागें।
 जम्मो खपरी के सवारी आय- लकड़ी के बेंत लगे कपड़ा के झारा म फट फट कपड़ा मन के धूर्रा ल झर्रावत कहिस ।

वा ….! जम्मो हमरे गांव के ए …………. अऊ देखबे जाए के बेरा इहां ले भरा के जाही उहां फेर खाली, कहां गए कहूॅ नही का लाए कुछु नहीं – वोह हा हांथ लमा लमा के थूक छिंटकारत एके सांस म सबों बात ल झर्रा डारिस।
चकरा सेठ ल चकराए बर जघा मिलगे – अरे तोर धोबी खपरी के तो सोर उड़े हे भाई, दुरूग ले बइठ चाहे रइपुर ले खपरी कहे ते फट्टे टिकिस कटा जथे। सेठ धीर लगाके गेर बदलिस। अपन बड़े बड़े आंखी ल नटेरत आगू कहिस- मारका टेषन होगे हे गा तुंहर गांव ह।

तै जादा बजार उजार नई आवस का ?
वोह कहिस – मै गांवे म नई राहंव न।
 अच्छा – अच्छा- अच्छा। तभे तो सोंचत रेहेंव जादा दिखस नहीं कहिके।
सेठ के गोठ खतम नई होय पाय रहिस हे वोह चार आंगुर आगू ले लमादिस – मैं नागपुर म रहिथौं, गजब दिन होगे। भइगे तिहार बार म आथॅंव जाथॅव।

सेठ के मुड़ ल हुंकारू संग डोलावत देख एकर मुंह उले के उले रहिगे, टेटका कस मुंड़ ल हलावत कहिस – हमी भरमन दुई के दुआ रोजी मजूरी करथन उहाॅ। लोग लइका मन गांवे म रहिथे दाई ददा तीर। जगहा मिलते साठ सेठ हॅ मछरी बर मुंह मारत कोकड़ा कस फेर टप ले जमाइस – तुंहर इहां सियनहा के का नाम हे……… देख भुलावत हौं मुॅहेच उपर हे ……………वोकर मुंह ल देखत जुवाब के अगोरा म देखौटी माथा म अंगरी ल टुक टुक मारे लगिस। वोह तो मोहागे रहय सेठ ल थोरको अगोरे बर नइ लागिस बाॅचा माने सुआ कस फट्ट ले अपन सियनहा के नाव ल बताइस –
अलेनी।

हाॅ हाॅ !! ठउॅका कहे, सेठ अब मुड़हेरी सांप कस वोला लपेटा म ले डारिस – मै तोर चेहरा मुॅहरन ल देख के जान डारे रहेंव ओकरेच लइका आवस कहिके।
वोह अब रतियाके बइठगे। सेठ अब टाप गेर म आगे –
तोर का नाव हे। वोह अपन नांव लाला बताइस। अब सेठ के मनसूभा अंटियावत खड़ा होगे। दूनो हंथेरी ल, रगरत पूछिस –
ले का देखावंव लाला !
पहिली लइका मन बर के सियान मन बर ?

पाके पपीता के लाल लाल गुदा कस मसूरा ल उघार के हांसत लाला कहिस – लइके मन बर पहिली देखा न भई, उंकरेच मन के तो तिहार हे।

सेठ अब गोठ म जादा मन नई लगावत हे। एके भाखा कहिस – हौ। लाला पारी पारी देख परख के अपन परवार के जम्मो मनखे बर कपड़ा लत्ता ले डारिस। कपड़ा देखाय के बेरा सेठ कीमत ल नई बतावय। लाला एक दू घांव पूछिस। त सेठ कहि दय – ले न ते काबर फिकर करथस, तोर ले जादा थोरे ले लेहूं गा। घर के लइका होके तहॅंू कइसे गोठियाथस लाला। लाला के मुॅंह बंधागे। वोला अकबकासी लगगे। अइसे तो वोह कपड़ा के रंग ढंग ल देख कीमत के आकब मने मन कर डारे रहय।

भइगे सेठ अब अतके ले जाना हे – लाला कहिस।
सेठ अनसुना करके अच्छा असन चुकचुक ले चमकदार लाल के कमीज कपड़ा ल फरिहावत कहिस – वा सब झन नवा कपड़ा पहिरही अऊ तै जुन्ने ल पहिरबे गा ? बारा महीना म एक पइत आए बर, जीयत रहिथे तेकर तिहार कहिथे।

लाला कहिस – नहीं नहीं मैं पाछू लेहूॅ। अभी तो नवा नवा सिलवाय हंव महीना भर नई होय हे।
अपन आगू म रखाय कपड़ा ल सेठ कोति सरकाइस – ले बता, कतेक के होइस।
अब कापी कलम उठालिस। जोड़ घटा के बताइस – एक्कइस सौ तीन रूपिया।  
लाला धरमसंकट म परगे। कुल एक्कइस सौ रूपिया तो खुदे धरके आए रहिस हे। दू हजार कपड़ा – लत्ता अउ सौ रूपया मोटर गाड़ी, साग, भाजी, बजरहा खरचा के हिसाब के।
सियनहा के कपड़ा ल, अलगिया दिस – एला राहन दे, आन दिन ले जाहूं।
सेठ जान डारिस लेवना ह ससलत हे, सकेल के एकथई करे बर परही। बेचाय माल ह वापस नइ्र होवय, एह चकरा सेठ के गुप्त, भीतरौंधा अउ अनकहा, अनछपा सरत आवय।
कतेक असन कम परत हे ? – सेठ तिखारिस।

सबो के सबो ल फोर फरिहा के बता देखा दिस। लाला के पीठ ल सहिलावत सेठ भूलवारिस –
बस ! अतके बात। अइसन लजाए सकुचाए वाले काम झन करे कर भई, मोला अच्छा नई लागत हे, कहूं भागे जावत हस गा ? – काहत कपड़ा ल झिल्ली के झोला म भरके लाला ल बरपेली धरावत कहिस – ले धर ! अभी दूये हजार ल दे दे, बाकी ल पाछू दे देबे बस !

सौ रूपट्टी के करजा हं लाला के आखा बाखा ल हुदरत कोचकत रात भर खटिया तीर खडे रहिगेे। वोह अलथी कलथी मार मार के रात ल आंखी म पहाइस। होवत बिहनिया पहिली गाड़ी म फेर खम्हरिया पहुंचगे। चकरा सेठ के बांछा खिलगे।
बलाइस -आ लाला आ।

लाला ल जब उरमाल के अंटी ले पइसा निकालत देखिस, सेठ घर म चाहा बर हुत कराइस।
लाला मना करिस – अहां अहां, मेहा चाहा वाहा नइ पियंव।
सेठ कहिस – तोर बर कमीज देखावंव।

लाला टोकिस – कमीज उमीज ल रहान दे ददा, ए तोर बांचत पइसा अउ तोर हिसाब किताब ल नक्की कर, मोला करजा बोहई नई पोसावय, भारी बियापथे। न उधो के लेना न माधों के देना बने लागथे मोला, अइसे काहत एक सौ दस रूपिया सेठ के हाथ म धरा दिस। बनिया बेटा जब हिसाब करे बर बइठथे त ओकर आंखी म रिष्ता नता, सगा संबंधी नई दिखय सिरिफ पइसा नजर आथे।
अऊ गांव घर म सब बने बने लाला – हिसाब के बाॅचे सात रूपिया ल लहुटावत सेठ पूछिस।
लाला जुवाब दिस – सब बढ़िया हे सेठ ! अपन अपन करम किस्मत के हिसाब से सबो कमावत खावत हे।

सेठ के दिमाग ले दिमागी छिनी हथौड़ी निकलगे ।
तुंहर गांव म तुहीं भर मन ला देखथंव लाला ईमानदार।

लाला के छाती ह बीता भर ले फूलके डेढ़ हाथ होगे। लाला ला आज जना मना कुछु उपलक्ष म मानद उपाधि मिलगे। ले दे के उपाधि ल संभारत अहम के हांसी ल मुसकान म बदल लिस। मुॅह ले एक भाखा नइ उलिस। सेठ नराज झिन हो जय। जे मन के बंधुवा हो जथे ओला तन के बंधुआ होवत देरी नइ लागय। बाहिर जाके इही तो सिखिस हे छत्तिसगढ़िया मन। हुसियार मनखे मंघार ल नई मारके मगज ल मारथे। मगज मारे मनखे घुरवा के कचरा बरोबर होथे। तब तक सेठ लाला के मुंह ल पढ़ डरिस अउ हाथ ल हलावत कहिस –

बाकी नइहे, सब के सब बइमान हे। लाला दूनो हाथ ल झर्रावत कहिथे – तुमन जानहू सेठ लेन देन के गोठ बात ल।
सेठ कहिथे – तुंहर गांव वाले मन अइसे हे लाला ! खाये बर चूना माखूर के डबिया ल दे देबे त खाथे कम ओटियाथे जादा।

अच्छा अच्छा कहिके मूड़ ल हला दिस लाला हॅ। अपन जनमें खेले खाय धरती के ऊपर लाला के मन म घिन समागे। आज लाला के नजर ले गांव वाले मन गिरे बिछले परत हे।
अई हाय ! गजब दिन म दिखेस परलोखिया नइतो ।

लाला झकनका के देखथे – बाजार पसरा म रमौतिन काकी भाजी बेंचत बइठे बलावत हे। लाला जब तीर  म गइस त रमौतिन पाॅव परत पूछिस – सब बने बने बाबू ।

लाला कहिस -हहो ! का करबे काकी पेट पाले बर रोजी रोटी खातिर कुछू उदीम करबे तभे तो बनथे।
 रमौतिन हूॅकारू भरिस। खपरी गाॅव तीर करमू गाॅव हे जिहाॅ के रहइया रमौतिन मरारिन । रमौतिन बड़े फजर मुड़ म डलिया बोहे भाजी तरकारी बेचे बर खपरी पहुॅच जावय । वो समे भाजी बंेचत तीर तखार के सबो गाॅव म मॅुहाचाही नता जोर डरे रहय। ओकरे भर के बात नइहे गाॅव म तीर तखार के जम्मो मनखे एक दूसर ले अइसेनेहे नता ल मानत जूरे रहिथे। अइसने सब हिल मिल के जिनगी पहाथे। मन मिले मनखे जिहाॅ मिलथे उहाॅ कतको बंड़े दुख के बेरा घलो बिलम जाथे। गोठ बात म घंटा भर कइसे कतेक बेर कती ले बुलक गे पतेच नइ चलिस। एमन गोठ बात म भूलाएच हे। ओतके बेरा दूनो के कान म भकरस ले भाखा सुनइस  –
बजार होगे लाला !

देखथे चकरा सेठ बड़े जनिक नारा वाले झोला ल हलावत खड़े हे। रमौतिन हड़बडा गे। काला खावव त काला बचाॅवव वाले किस्सा हो गे। चकरा सेठ के नजर हरियर हरियर पाला अउ चैंलइ म हे । रमौतिन मने मन गारी दिस – ए भड़ुवा कीचक कहाॅ ले आगे। चाल म कीरा परे हे। हाथ ले पइसा छूटय नही सेठ कहावत हे रोगहा हॅ।

सेठ मुसकियावत बइठत पूछिस – का भाव हे भाजी ………? रमौतिन बीचे म फट्ट ले बात ल काटत कहिस-

बेचागे हे ! जम्मो भाजी बेचागे हे। लेन गा तहॅू हॅ मोल भाव ल करके भाजी ल खुल्ला मड़ा दे हवस, बजरहा मन ल भोरहा हो जाथे काहत रमौतिन हड़बड़ हड़बड़़ करत भाजी के जूरी ल सकेलत लाला के झोला म भरे लगिस । लाला ना नुकुर करे बर धरते रहिस हे के रमौतिन मिलखिया दिस। लाला कुछू समझतिस तेकर पहिली सेठ कहिथे – लाला हॅ सबो भाजी ल थोरे लेही खाएच के पूरति ल तो लेही कइसे लाला ?

 अब लाला के मॅुह न लीलत बनय न उलगत तइसे होगे। रमौतिन कउवा के कहिस – पाॅच रूपिया के दूए जूरी हे ले बर हे ते ले।

वाहा  सब जगा चार चार जूरी देवत हे तेन हॅ -काहत सेठ हॅ चार जूरी भाजी ल झोला म डार लिस।
लाला मने मन मुसकाइस । रमौतिन काकी के सुभाव ह अब ले जस के तस हे। सोचे लागिस नान  नान राहन त अइसनेच कहय अउ एकात मूठा भाजी ल झर्रावत बगराती सूपा म डार देवय। एती नइ पूरावय पोसावय कहिते राहय, अउ ओति सूपा ल भर डारय रमौतिन काकी हॅ। तभे तो गाॅव भर कोनो रमौतिन मरारीन के छोड़ काकरो तीरन भाजी तरकारी  नइ लेवय । ओमेर के चार ठन गोॅव एकरे गॅंवई रिहिस हे । समे के ढरके ले गांव गाॅव म बजार लगे लगिस। गाॅव वाले मन खमहरिया के बजार करे लगिन । जब मन होइस मोटर म चढ़के भूर्र ले आ जाथे अउ फुर्र के लहॅुट जाथे। रमौतिन के गॅवई खियागे। गॅवई का खियातीस उमर के खलसे ले सबो खिया जथे। अब काकी बैठागॅुंर हो गे। दस बज्जी गाड़ी म आथे अउ संझौती बेच भॅंाज के पौनी पसारी बजार करत गाॅव लहुट जाथे।
जेन देवत हे तेकर जगहा जा के ले भई मोला नइ पोसावय मने नइ पोसावय – रमौतीन हटकार दिस ।

सेठ हॅ पाॅंचे रूपट्टी ल धरावत राहय। रमौतीन बगियाके कहिस – दस रूपिया होही ।

जेन लाला ल सेठ ह अभीन अभी सरीफी अउ ईमानदारी के तमगा पहिराए रहय उही आगू म बइठे हे। सेठ हॅ कुटुर मुटुर करत हाथ ल गुमेट के धरे पइसा ल फरियाइस अउ दू घाॅव अॅगरी म सरका टरका टमर मरोर के देख परख लिस तेकर पीछू दस के नोट ल निकालिस। पइसा ल देके सेठ हॅ – ‘ले अब एक ठन जूरी तो उपरहा देबे’ काहत एक जूरी पाला भाजी ल धरते रहिस हे ।
ओतके म रमौतीन टप ले सेठ के मुरूवा ल धरलिस – जब देख तब अइसनेच करथस। तोर पइसा कमई के पइसा ए हमार मिहनत फोकट के आए हे.. नही। ले तो मै तोला काहत हौं एक रूपिया उपरहा दे। तैं देबे का ?

ओतका ल देख लाला कहिस- सही बात ल तो काहत हे सेठ । बपुरी अतेक घाम पियास म तन के खून ल अउॅटावत चुरोवत बइठे हे । घर दुवार लोग लइका ल छोड़ के चार पइसा कमाय बर चार कोस ले रेंग के आय हे फोकट हो जाही का ? तुमन तो एकक ठन पइसा के हिसाब करथौ । लेन इन्कर मिहनत पसीना के हिसाब लगा ।

सेठ के ऑंखी चिपचापागे । भाजी हॅ हाथ ले छूटके गिर गे। ले भई काहत सेठ उठिस अउ कुला झर्रावत पूछी म बाहरी बाॅधके सुटुर सुटुर रेंगते बनिस।

सरीफी अउ ईमानदारी के मुकुट ल मुड़ म बाॅधे सान से लाला हॅ सेठ ल जावत देखत हे।
लाला हॅ अब काली ससन भर तिहार मनाही। वोह आज दानव ल मारके अजोधिया परवेस करइया हे। साॅझ होय बर जावत हे । गाॅव म सुरहुत्ती के दीया जगमगाय बर  धर लेहे । काली देवारी के तिहार हे।

लाला अउ रमौतिन मोटर चढ़े बर टेसन कुती जावत हे।

धर्मेन्द्र निर्मल
कुरूद भिलाईनगर जि. दुर्ग
9406096346

छत्‍तीसगढ़ी कहानी :- चार बेटा राम के कौड़ी के न काम के

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