छत्‍तीसगढ़ी कहानी : सपना के मोल

छत्‍तीसगढ़ी कहानी : सपना के मोल

-तुलसी तिवारी

छत्‍तीसगढ़ी कहानी : सपना के मोल
छत्‍तीसगढ़ी कहानी : सपना के मोल

पढ़े लिखे बर केहे ले तेरहे बाइस रहिस जय, स्कूल जाय फेर गुरू जी मन ला पदोय बर, संगी जंउरिहा मन संग खेले- कूदे बर, के जेवन मिलथे तेखर लोभ म,। ए ती ले मार ओती ले गारी,दिन भर अपने सहि अर्रा मन संग नंदिया डहर तास चित्ती,खेलतिस, मछरी धरतिस, घर के सूरता आतिस त घर हबर जातिस, ऊहाँ जुगरी भउजी भात- साग चुरो के राखे च रइथे। खइस- पीस अउ फेर निकल गय फेरी दे बर। अइसे सहर म ओकर सहि टुरेलहा बन बर बूता के कमी नई हे, बनी भले चार पइसा कम अउ बूता कस के परथे , कहूँ कुछू मिल गय त कमा लिस नहीं त जय हरि,आठवी तक तो नावें लिखे भर सिखे पइस, हाँ फेर मन ह बज्जर हो गय, चौबीस घंटा आनी- बानी के गोठ सुनई म। जइसे बसंत के रीतु म सुक्खा- सुक्खा कांदी मन म घलो फूल आये ला धर लेथे ओइसने च जवानी आये ले परानी मन के देंव म बदलाव आथे। दूनो जुआर खाये ला नी पात रइही तेखरो मुँह – कान ह रिग-बिग ले अंजोर करे लागथे। जय के करिया रंग ह हीरा बरोबर चमचमाये लगिस। बने छे फुट असन बाढ़ गय, ऊपर वाले ओठ उप्पर करिया – करिया डाँड़ी जनाय लगिस,सूर हा डउका मन सहि भारी होय लागिस। सोहन भइया ह धर – बांध के ओपन परीक्षा के फारम भरवा दिस। पास का होतिस हजार रूपिया म लिखइया बनिहार मिल गय त दसमी पास होके मूँछा म ताव दे लगिस ।

’’ एति- ओती गिंजरे ले बने हे के कुछू काम म लग जा भाई, देख तोर दू- दी ठी भतीज मन ला , तोर भउजी के अकेल बनिहारी म पेट नई भरै ग ऽ। एक दिन सोहन ह अपन तिर म बइठार के समझइस।

जय आँखी ला भूइयाँ म गड़ियाये कलेचुप सुनत रहै। आगू के दू महीना असन भाई लं ओझियाबे नी करिस।

’’संढ़वा होत जात हे, बोजे बर तीन बटकी, अउ बूता कइबे त हला देथे घंटा।’’एक दिन बने कउआ गय रहिस जुगरी।

आगू के दू दाँत थोकिन बड़े होय के सेती वोह जुगरी भउजी ला कभू नी मनुअइस? फेर रंधई – गढ़ई, साफ- सफई,म जांगर चोरी नी करया। ,जब ले आये हे घर म सरोत्तर भात चूरत हे,पहिली तो दाई उपरहा बूता म अइसन थक जावै के रांधे के हिम्मते नई रहत रहत रिहिस,तिहाँ कहूँ ले खेल-कूद के आवय त भइयेच ह रांधय,जइसे बनयै तइसे।

बाबू रेलवही म चौकीदार रहैं, अब ओखरे पिलसिम पावत हे दाई ,तभो ले इमन बर पइसे च खंगे रइथे। आन बपरा मन आज कमावत हें त चार दिन बइठे हे। तभो चलते च तो हे उंखरों जिनगी? इहाँ तो भउजी के टिकली फुंदरी ले पइसा कहाँ बांहचही? बने सुघ्घर रइतिस त अउ छांन्ही म होरा भूंजतिस।’’ जतका बनिस ततका मने-मन बखानिस ओला।

खाये के मन नई रहिस फेर जैता ला भिड़ा दिस न भउजी, –’’ जा रे अपन कका ला बला लान खाय बर रिसाये हे, मय ह घूंचत हँ ऐ मेर ले। ’’ तिहा जैता ह बेंदरा सहि लटक गय ओकर कनिया म।
कका भूख लागत हे चल ना खाबोन गऽ!’’

’’ मयं ह का करवं त ? अपन दाई लं मांग के खा! बघवा होय हे, जउन मन म आवत हे तउन बकत हे, भइयेच ह बिगारे हे, दंतली ला, पूज देहै कोनो दिन!’’ भउजी ला ओ मेर ले टरे देख के ओ ह चना सहि फूटे लागिस। ओकर मन म जैता बर सुरू ले मया हे, कतको हे त अपन खून ये। आन घर के आय का जानही कोन ह काय हे?

मांय तोरे हेरे खांह कका, चल न दूनो झन खा लेबो, बने पताल के चटनी पीसे हे!’’ जैता ह जिब चटकारत रहै।
’’ मे नी खाँव ओकर रांधे ला ,मोला संडवा कहिसे।’’ जय रोनहू होवत रहै।’’

’’कका! तहूँ ओला मउका म भँइसी कई लेबे, आन के सेती अपन राजा बेटा ला भूख थोरहे मारबे? ओहर तो सोचतेच होही ऐमन झन खावैं त भात बांहच जाय कइके ।’’ जैता बड़ नटकबाज हे खवइच के मानिस।

ओ फर्रा रोसनी च रोसनी झूलय ओकर आँखी म, जँवरिहेच ये, स्कूल म संगे संग पढ़े रहिन, ओहर अब कालेज करत हे। जय के रद्दा आन कोति मुड़क गय हे, फेर रोसनी ओकर मया के कदर करत आत हे। कोनो न कोनो बहना म मुलाखात होई जाथे। पर्री बानी लक- लक पातर, लमछर टुरी, स्कूल के पोरोगराम म संभर- पखर के नाचै, तभे ले ओला ओह अपन सहि लागे लगे रहिस। अब सहि चेत नई रहिस तभो ले।

’’ ले अब तहूँ खा! बारी- बारी से खाबो न जी।’’ जैता के लइकुसही देख के जय ह रिस ला भुला के खाय ला धर लिस।

’’ करे बर परही कुछू न कुछू बूता, मोर रोसनी के सउक कइसे पूरा होही, भइया कब तक पुरोही?’’

सोहन ला जर अमराय लगिस,गोली दवई चलिस फेर दुबरावत चले गय मोठ- रोट भइया। जय ला तब चेत अइस जब सोहन चले फिरे बर असहाय हो के खटिया धर लिस। भउजी के रंग अउ करिया गय, दाँते- दाँत दिखै चेहरा उप्पर।

’’ भउजी भात हेर न ऽ…..ओ.ऽ.!’’ चिकरत ओह घर के मुहाटी म खुसरिस। देखत का हे के दाई फूँक- फूँक के आगी बारत हे। धुंगिया के मारे खोली म बने फरियावत नई रहै।

’’ अईऽ….. तैं काबर रांधत हस दाई ? तोर दुलउरिन बहुरिया कहाँ गय? ’’ ओह बम हो गय ।
’’ आ ना ग ऽ..! तोला खाय से मतलब हे नऽ….? चाहे कोनो रांधै, कोनो कमावै ।’’ दाई के सुर म को जनि काय चोखिल्ला असन रहिस, जय के हिदरय म छेद करत बाहिर निकल गय।

’’ मय ह तो खाय च के पूरता हाँव बने कहे, मोरे दू मूठा भात सबे झिन ला जियान लागथे,चल देंह कोनो लंग,बिन बताये चेताये , तूमन ला चैन पर जाही। रिस होगे जय ।

अंगना भर म रिग बिग जुन्हेइया उये रहै,जाड़ के सुरूआती दिन रहिस, न जादा गरमी न सरदी, मन म रोसनी कस बसे रहै रोसनी।
बक- झक करत रहै जय, के ओतके बखत जुगरी भउजी आ गय। एक दम लस्त – पस्त, धीरे बानी आ के आँट म बइठ गय।

’’ कहाँ ले बुल के आवत हस भउजी? तोर रहत ले दाई ह रांधत पसावत हे।, भइया के सेवा- टहल छोंड़ के गिंजरे ला धर लिए हस।’’
ओकर बानी ला सुन के सोहन ह आँखी खोल दिस।

’’ रिसात काबर हावव? बनी म गय रहें ,तूंहर भइया खटिया धर लिन, दाई के पिल्सिम म कहाँ ले दवई दरपन होही ? कहाँ ले चउर दार आही।जुगरी के बोली लड़ भड़ावत रहे , अब रोही के तब अइसे लागत रहै। जय के हाथ ह ढिल्ला पर गय जुगरी के भुजा उपर। ।
’’ अतेक हो गय ह त महूँला बताय रत, कहूँ मेर ठीहा धर लेतेव, जय ओकर बाँही ला ढील के भाई लंग जा के ठार हो गय। सोहन खटिया म परे- परे अकबकावत रहै फेर उठे के सामरथ रई ही त?

’’ भइया ! तंय कइसे होगे ग…? मंय ह कतेत कुभारज हँ, ठलहा गिंजरत हँ घर परवार ले बेचेत!’’ कहत- कहत जय अपन भाई के माथा उपर अपन माथा ला टेक के रोये लगिस।

’’ झन ऐहे कर न भाई!तंय ह संसो झन कर! भगवान! ह जम्मों दुख ला काटही,।’’ हँफर गय अतेक म सोहन, पेट ह फूलत आवत हे, पइसा रहै त बने दवई पानी होवै, गरीबहा ला कोन पूछत हे?

’’ भइया आज ले परवार के जुम्मेदारी मोर हे, भउजी ला मना कर देबे बनी- ओनी जाय ले।’’
ठउका देवारी अमराय रहै, पोतइया मन संग बूता म लग गय जय। नहीं- नहीं म 300 रोजी तो मिली जाय,
भउजी ओकर जंगई ला देख के डराय लगे रहिस।

खांधा बदले सहि होइस ओकर घर,आठो दिन सरोतर नी खइस सोहन भाई के कमई ला। बीमारी के संगेसंग अपनो दुनिया ले उठ गय। पानी- पातर दाई ह निपटाइस ओकर काम किरिया ला।

’’ मोर उप्पर तो महाभारत के दुख पर गय भगवान्, दू दी ठिन कुकुर बिलई सहि लइका मोटियारी पत्तो, ला कइसे समोखिहँव? ’’ बोम फार के रोवय सुकवारा।

तेरही म आय रहै रोसनी, अबड़ मयारुक गोठ गोठिया के ओकर दुख ला हरू करे के उद्दीम करिस,
दाई ह कटारत रहै टुरी के गोठ बात ला ।

’’ बने फबही मोर जय संग , मांग लेहूँ हाथ जोर के ओकर दाई ददा लंग।’’
’’ ये दुख म मयं ह तोर संग रहना चाहत हौं जय, एक कनि सेंदूर म मंय ह तोर मेर बिहाबव करे बर तियार हौं।’’ कई दिस रोसनी अपनी अंतस के गोठ ला।

’’ अपन दुख ला अपने सहे बर परथे रोसनी, मोर परवार ला आज मोर जरूरत हे। ए बखत अपन सुख के बात ला तो मंय ह सपना म भी नई सोचे सकवं ।’’

’’ त मंय ह तोला अगोरत रइहँ का ? तैं कोन मार हुसियारी करत हस? अपन भाग के ला सब झिन भोगे बर आथें, हमन अपन जिनगी ला काबर खराफ करबो? हाँ अभ्भी चे नी कहत हॅव, महीना खांड़ बीतन दे, तिहाँ अपन दाई ला पठो देबे हमर घर , मयं ह ओती जम्मों बूता ला बना के राखहूँ।’’ रोसनी के आँखी म मया के बदरा बरसे बर तियार रहै।

जय ला अपन मन बसाये, बरा सोंहारी, जोरन धर के अपन घर गै चलिस रोसनी।

’’ कका मोर बर चाकलेट ले दे नाऽ…!– खैता आ के ओकर कनिया म लटक गै रहै।
’’ आज तो अतेक अकन खौना घरे म चुरे हे, चाकलेट कालि खा लेबे न, बेटा!’’ जय ह अपन सोंच ले जागिस अउ लइका ला भुलवारे लागिस, अतके म जैता आके ओकर नरी म झूल गय।

’’ कका! कका मंय तोला छोड के कहूँ नी जांव, हमर ममादाई हमला लेगे बर कहत हे। अकबका गय जय, ’’अभी कइसे ले जाही? ओहू डहर डोकरी ह अकेल्ला हे, बनी च भूति के आसरा हे ओहू डहर। ’’जैता के रोवई ला देख के जय कुछू कहे नी सकत रहिस।

’’ चुपा र न बेटा! मंय ह तोला कहूँ नई जान दंव । कोन ये कहिसे चल तो बताबे! बगियाये असन जय मई लोगन बइठे रहिन तेन कोती चल दिस।

नवा उज्जर लुगरा,हाथ म चाँदी के एक- एक ठी चूरी पहिरे भउजी मूड़ी ला ओरमाये बइठे रहै।
जय के अंतस म पीरा के तूफान चले लगिस।

बाँह भर चूरी पहिरइया भउजी,खाली हाथ जम्मों झन के बीच म अइसे बइठे हे जना -मना कुछू अपराध कर डारे होवै ।
’’ ओदे कका! ममा दाई बइठे हे। एही ह तो कहत रहिस।’’ जैता अंगठी मं देखात रहै।

’’ ले जा बेटा तैं खेल! मैं तोर ममा दाई लंग गोठियावत हँ,ओह जैता ला कनिया ले उतार दिस।
’’ये काय सुनत हँ दाई, लइका मन ला लेगे बर कहत रहे हस का?’’

’’ त काय करिहँ बेटा? लइका मन ला मयं पोसिह, अउ जुगरी के बनक बनाये के उदीम करिहँ। अतेक बड़ उम्मर अकेल्ला कइसे पहाही बेटा?’’ ओ ह अंचरा म मुहूँ ला लुको के रोये लागिस।

’’ ये गोठ बर एही बेरा हे काय दाई? भाई के हाड़ा ला तो जुड़ान देते।’’ जय के हिरदय के दुख ओकर गोठ म उतर आय रहै।
’’ ले काय होइस ? दू- चार दिन बर लेग जाय, बहुरिया ला थोरिक बने लागही’।’’ सुकवारा दाई जम्मो बेवस्ता ला जानत- समझत रहै।
आज- काल पहुना कहाँ रइथें कोखरो घर, काम होइस तिहाँ झरिन सब झिन, लइकन के जाय ले घर ह भाँय- भाँय करे लागिस, काँख कूँख के दाई भात रांध दय,दाई बेटा खा के अपन- अपन मूड़ म हाथ धरे बइठे रहत रहिन। अइसने एक दिन संझा बेरा सुकवारा गोठियाय लगिस–तैं ह कइते त तोर बिहाव कर देतेव जय, दो रोसनी ओ दिन आये रहिस तेने ला मांगे बर सोचत हांवव। ’’

’’ अउ भउजी बर का सोचे हस दाई?अपन घर के परानी ला आन घर जान देबे? फेर हमर लइकन के का भविस होही? ’’ जय सोच म परे रहै।
’’ देख बेटा कोखरो करम ला कोनो नई बदल सकै, ओकर भाग म ओइसने लिखाय हे त कइसे करि हमन?हमू तो अपन हीरा सहि लइका गवाँ डारेन, मोर लइका नान पन ले जम्मों घर ला समोखे रहिस।’’सोहन के सूरता म सुकवारा के आँखी ले नीर बोहाय लागिस ।

’’ ओह कालेज करत हे,मंय ह न जियादा पढ़ेवँ न लिखेवँ, बनिहार ला काय देही बेटी? तयँ ह मांगे झन चल देबे! ’’जय ह सुकवारा ला नहिकार दिस ।

खटिया म सूतिस त एही गोठ-बात ओकर दिमाग म घुमरत रहय? ’’ रोसनी बर अटाटूट मया हे ओकर अंतस म, फेर लइको मन कम मयारुक नई हें?

रोसनी संग बिहाव करके पोस डारहूँ लइकन ला ? अपन मन ले पूछिस जय।

’’कहाँ लगाये हांव महूँ? मोर कंगला घर म दू दी ठिन लइका,पोसे बर आही रोसनी?ओइसनो नारी परानी मन अपन लइका के आगू आन के लइका ला मया नी कर सकयँ।’’

’’ त मोर रहत ले भाई के औलाद तिड़ी- बिडी हो जावै अउ मंय ह देखत रहवँ? जिहाँ जाही भउजी तिहाँ लइका धर के तो जावै नहीं,नवा जिनगी म जुन्ना के का जघा? कहूँ लेइओ गय त बनी- भूती करवाही, सुने ता हावंव कका बाप के किस्सा ।’’

’’ नहीं! नहीं अइसन नई होन दौं मय , एकर बर चाहे मोला अपन जिन्दग?ी ला होम देना परय।
’’ त ! का करवँ? का करवँ मयँ?बियाकुल हो गय रहै जय।

’’ परवार के जुम्मेदारी मयँ बोहे रहेंव भइया के आगू,मोला जीव पथरा करके भउजी ला चूरी पहिराना परही। हमार म चलथे घलो , अउ कई घर म होय- होय हे। ’’

’’ हत् रे पापी! महतारी बरोबर भउजई बर अइसना सोचना घलो पापा हे।’’
’’ पाप हे तभो लइकन के सेती,करे बर परही, बिन महतारी बाप के ओमन कइसे जीये पाहीं? ’’
’’ नहीं ! ओमन ला अइसन सजा नी भोगन दवँ मयँ, उनकर महतारी ला दूरिहा नी जान दौं, उनला महतारी बाप- दूनों के मया मिलही, मंय पोसहूँ अपन जैता – खैता ला।’’
’’ अउ रोसनी ला काय जोआब देहँ?’’
’’ हाथ जोर लेहँ, जउन दुख ला मयँ भोगिहँ ओही ला ओहू भोगही, फेर ओकर बर जोड़ी के का खंगती हे?’’
’’भई गय! कालेच,जाहँ ससुरार, अउ ये उजरे घर ला फेर बसा लेहँ।’’

-श्रीमती तुलसीदेवी तिवारी

लेखिका परिचय

जन्म -16. 3 1954-
शिक्षा – स्नातकोत्तर, हिन्दी साहित्य, समाजशास्त्र, बी.टी.आई. प्रशिक्षित,

साहित्य सृजन – 12 (बारह) कहानी संग्रह, 1 (एक) उपन्यास, 4 (चार)यात्रा संस्मरण, 11 (ग्यारह) बालोपयोगी पुस्तकें।
प्रकाश्य कृतियाँ – . . दुर्वादल : काव्य संग्रह,
अन्य रुचियाँ – स्वाध्याय, समाज सेवा, वृक्षारोपण, परिवार नियोजन, बालिका शिक्षा के लिए कार्य,साक्षरता हेतु सतत् प्रयत्नशील, प्रसार भारती से सतत् कहानी, कविता और आलेखों का प्रसारण।
सम्मान 1. छत्तीसगढ़ी राजभाषा सम्मान, 2. न्यू ऋतम्भरा कबीर सम्मान, 3. राज्यपाल शिक्षक सम्मान, 4. छत्तीसगढ़ रत्न-2013, 5. राष्ट्रपति पुरस्कार-2013.
6. हिन्दी भाषा भूषण की मानद उपाधी नाथद्वारा राजस्थान,
7. पत्रिका सम्मान,बिलासपुर पत्रिका समूह
8 लायन्स क्लब गोल्ड बिलासपुर द्वारा ’ लायंस गोल्ड शिक्षक सम्मान,
9,राजकिशोर नगर समन्वय समिति बिलासपुर द्वारा सम्मान पत्र,
10 रउताही नृत्यकला परिषद देवरहट बिलासपुर द्वारा सम्मान पत्र
11. कान्यकुब्ज ब्राह्मण समाज बिलासपुर द्वारा सम्मान
12.संदर्भ साहित्य समिति बिलासपुर द्वारा सम्मान,
13. महर्षि विद्यामंदिर बिलासपुर द्वारा सम्मान
14. श्रद्धा महिला मंडल एस.ई सी. एल, बिलासपुर द्वारा सम्मान
15. महादेवी वर्मा स्मृति सम्मान तारिका विचार मंच प्रयाग द्वारा
16. हिन्दी सेवी सम्मान-साहित्यांजलि प्रभा पत्रिका प्रयाग द्वारा
17.साहित्य मर्मज्ञ सम्मान राष्ट्रीय पत्रकार संघ प्रयाग द्वारा ।
18. तारिका विचार मंच द्वारा आयोजित उन्तासिवें राष्ट्रीयप्रतिभा सम्मान समारोह में साहित्य विभूति सम्मान

प्रमाण पत्र – शताधिक प्रमाण-पत्र, राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियो, सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों,सेवा कार्यों आदि के लिए।
राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में सतत् प्रकाशन।
सम्पर्क सूत्र :-बी/28 हर सिंगार राज किशोर नगर बिलासपुर छत्तीसगढ़ मां. 9907176361

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