छत्तीसगढ़ी कहानी:शब्दभेदी बाण
-चन्द्रहास साहू
छत्तीसगढ़ी कहानी : शब्दभेदेबाण नवा जमाना के पृष्ठभूमि म लिखे कहानी आय । ए कहानी म जिहां ननद-भौजी के तकरार हे ऊँहे भाई-बहिनी के मया हे । सबले बड़े बात दाहेज के बदलत स्वरूप के सुग्घर वर्णन हे । पहिली लइका मन दाई-ददा म दाइज मांगय अउ देवय अब नोनी खुदे अपन बर दाइज मांगते ।
“ददा ! मेहां गाँव के खेत अऊ घर ला बेचहू।”
अफसर बेटा शब्द के बाण चला दे रिहिस। लइका के गोठ सुनिस तब सियान ठाड़ सुखागे। लाहर-ताहर होगे। अब्बड़ कुछु गोठियाये के उदिम करिस फेर मुँहु ले बक्का नइ फुटिस। ससन भर देखिस बहु बेटा ला अऊ खोर कोती निकलगे।
अँजोर इही तो नाव हाबे सियान के। काया बिरबिट करिया जइसे लोहा के बने हाबे। घाम- पानी,दुख-पीरा जम्मो ला सहि लेथे। ……फेर लोहा कतको पोठ राहय जंग तो लग जाथे। संसो के दियार हा चुनत हाबे तरी-तरी। दुख गरीबी मजबूरी के अँधियारी मा तौरत-बूड़त हाबे अँजोर हा।
अँजोर,बड़का आय। पाँच बहिनी अऊ एक भाई। ददा रिहिस थोकिन बने रिहिस फेर चारो बहिनी के बिहाव मा जैजात झर गे। बाचीस ते परसाडोली के पाँच एकड़ अऊ माता देवाला के एक एकड़ के खेत हा। ददा घला छेना के आगी बरोबर खपगे नत्ता-गोत्ता के मान-गौन मा। ………अब, अँजोर के पारी हाबे। तेहाँ जम्मो कोई ले नान्हें हरस बिमला बहिनी जतका पढ़बे ओतका पढाहू-पढ़िस ससन भर बिमला हा। अब बिहाव करत हाबे। भलुक सुरसा के मुँहु कस अब्बड़ महँगाई बाढ़त हाबे फेर महाबीर ऊप्पर जतका भरोसा हाबे ओतकी भरोसा हाबे अँजोर ला अपन फड़कत बाँहा अऊ ओगरत पसीना ऊप्पर। सुरता कर-कर के हियाव करत हे अँजोर अऊ गोसाइन सीता हा।अदौरी बरी तक ला कमती नइ करत हाबे बिहाव के जोरा-जारी मा। ….फेर ? हड़िया के मुँहु ला तोप डारतिस अँजोर हा फेर बहिनी के मुँहु ला कइसे तोपे ?
“भइयां ! हमर जम्मो बहिनी के बिहाव करके ददा दाई हा सिरागे। अब तिही हाबस मोर ददा बरोबर – बड़े भाई। मेहां कुछु माँगहु तब देबे न ….?”
बहिनी बिमला के आँखी कइच्चा होगे। अँजोर घलो दंदरत हाबे।
“बता मोर दुलौरिन ! अपन मन के गोठ ला। सगा बनबे तभो तोर मान- गौन मा कमती नइ होवय बहिनी !…… मोर तो डेरउठी मा हाबस तब मोर जिम्मेदारी हरे तोर सपना पूरा करे के…। मेहां तोर साध ला पूरा करहुँ।”
अँजोर घला राजा दशरथ बरोबर वचन हार गे।
बिमला माइके मा हाबस तब तक अधिकार हाबे। सगा बन जाबे तब मांग के घला नइ खा सकस। बिमला के मइलाहा मन अऊ अंतस के बीख जुबान मा आये लागिस।
“इक्कीसवी सदी के मोबाइल कप्यूटर के जबाना मा पले बढ़े सबल नारी आव भइयां। जतका बेटा के अधिकार ओतकी बेटी के- समान अधिकार। सब ला पढ़े हावन। भइयां ! भलुक ए सी झन दे, टीवी के साइज ला नान्हे कर दे फेर ……… मोला, मोर बर सोन के रानी हार अऊ तोर दमाद बाबू बर फटफटी चाहिए।”
बिमला अपन होंठ के एक कोर ला चाबके किहिस। मुचकावत रिहिस रानी कैकयी कस, करू मुचकासी। रानी कैकयी के आगू मा लाचार रिहिस राजा दशरथ हा वइसने लाचार हाबे अँजोर हा।
“नोनी ! मेहां तीर ले घला नइ देखे हव ओ रानी हार ला फेर अतका जानथो फटफटी अऊ रानी हार के कीमत बर पहाड़ कस पइसा कुढोये ला परही। कहाँ ले आनहु अतका पइसा….?”
” ले ठीक हे भइयां !संगी-संगवारी,सास-ससुराल के मन गरीब घर के बेटी आय कहि मोला………। बाप नइ हे तेला तो जानतेच हाबे जम्मो कोई।”
बिमला किहिस अऊ अपन कुरिया मा खुसरगे, रोवत। अँजोर समझाये के उदिम करिस फेर कपाट नइ उघरिस। अँजोर घला घेक्खर आय- एक जबनिया।
” अपन नस के लहू ला बेचके पूरा करहुँ तोर साध ला।”
संदूक ले कुछु कागजात निकालिस अऊ झोला मा धरके रेंगे लागिस।
“काहाँ जावत हस मार तरमिर-तरमिर ?”
“उँहिन्चे….। सब ला बेच दुहुँ। खेत खार ..?”
“ताहन हमर एकलौता बेटा हा भीख माँगही …?”
अँजोर के गोसाइन सीता आय। बरजे लागिस।
“इही परीक्षा के घड़ी आय सीता ! मोर ऊप्पर भरोसा राख। आज तक तोर गोड़ मा कांटा गड़न नइ देये हँव तब आगू घला नइ देव। धनहा खेत ले जादा मोर चाक ऊप्पर भरोसा हाबे। मोर कलाकारी ऊप्पर भरोसा राख। ईमान से मोर लइका के पढ़ई- लिखई मा कोनो कमती नइ होवन देवव।”
सीता तो सिरतोन के सीता आय सुख अऊ दुख मा गोसाइया के पंदोली देवइया। दुनो कोई गिस शहर के सेठ दुकान मा अऊ बेच दिस परसा डोली के चार एकड़ खेत ला। बिसा डारिस फटफटी अऊ रानी हार ला।
सीता हा चमकत सोनहा रानी हार ला देखे कभु तब कभु सेठ के अँगना के मिट्ठी आमा मा गहादे अमरबेल ला।
बिहाव होगे धूमधाम ले अब।
जम्मो ला सुरता कर डारिस अँजोर हा।
चाक किंजरत हाबे गोल अऊ माटी के लोई माड़े हे बीच पाटा मा। कोंवर लोई माटी के जौन बनाबे तौन बन जाही – चुकी-चाकी,पोरा करसा कलोरी भगवान के मूर्ति। फेर अँजोर तो अभिन करसा-कलोरी बनावत हाबे। गाँव मा भागवत पुराण होवइया हे। कलश अऊ शोभा यात्रा निकलही। पंच कका ले एडवांस झोंक डारे हाबे। सीता घला पंदोली देथे।
परिया ले माटी खनके मुंधेरहा ले आनथे। सुखोथे कुचरथे फुतकी बना के चलनी मा छानथे। पथरा गोटी ला निमारके लोई बना के चाक मा मड़ाथे। लोई के फुनगी ला अँगठा मा मसक के हाथ मा थपट के फूलोथे। जब बन जाथे तब ओला पकोथे आगी आंच मा।
“थोकिन सुरता लेये कर संजय के बाबू ! अब तबियत पानी घला ऊँच नीच रहिथे।”
“का सुरताबे सीता ! भगवान के मूर्ति बनाये के हे ओ। भागवत ठउर मा रामजानकी दरबार के मूर्ति मड़ा के पूजा करही।बेरा मा जम्मो ला बनाये ला परही। आ तहुँ हा मोर संग बुता करे ला लाग।”
गोसाइन सीता के गोठ सुनके किहिस अँजोर हा। कोंवर माटी ला बेलके साँचा मा ढ़ाल के थपट-थपट के बनाये लागिस अँजोर हा। आसीस देवत प्रभु श्री राम लक्ष्मण माता जानकी अऊ माथ नवाके माड़ी मा बइठे लंगुरवा हनुमान जी के मूर्ति। जम्मो मूर्ति सौहत दिखत हे अब रंग रोगन अऊ सवांगा चढ़िस तब। नहा धोके आइस आरुग कपड़ा पहिनिस अऊ पूजा के थारी सजा के करिया सादा पालिस ला ब्रश लगाके भगवान के आँखी उघारे लागिस अँजोर हा अऊ गाँव के सियान मन जय बोलाइस,पूजा करिस।
सियावर राम चन्द्र की जय।।
आज सिरतोन मन अब्बड़ गमकत हाबे अँजोर के। पाछू दरी भागवत होइस तब पोथी पुराण ला बोहो के संकल्प लेये रिहिस अँजोर हा। लइका के नोकरी लग जाही ते रामदरबार के मूर्ति ला फोकट मा दुहुँ अइसे। आज देवत हाबे बना के। भलुक मूर्ति के दान करे ले नोकरी नइ लगे फेर लइका संजय हा घलो अब्बड़ मिहनत करे रिहिस। ददा के संग कुम्हारी बुता मा पंदोली देके पढ़े। टाइम मैनेजमेंट करके पढ़िस तभे तो मंत्रालय मा नोकरी लगिस। ….अऊ सरकारी नौकरी लगिस तब बेटी देवइया सगा के का दुकाल ….? शहरिया नेता हा तियार होगे अपन बेटी ला देये बर।
अँजोर ला अइसे लागिस कि जिनगी के जम्मो अँधियारी भगा गे जइसे। सिरतोन मातादेवाला खेत हा अभिन दू तीन बच्छर ले अब्बड़ धान उछरत हाबे। अऊ दू रुपिया किलो सरकारी चाउर….। गरीबी के अँधियारी मा जोगनी बरोबर अँजोर करत हे।
अँजोर हा चाक चला के दू पइसा कमा लेथे । अऊ अपन कला देखाके के घला नाचा गम्मत मांदरी नृत्य पंथी करमा सरहुल देखाके। दफड़ा मंजीरा बाँसरी मोहरी रुंजु तमुरा बांस गीत भजन गाके दू पइसा सकेल लेथे अँजोर हा। अँजोर हा तो कलाकार आय मुँहु फटकार के कभु नइ किहिस पइसा बर। वो तो लोगन के थपोली पाके उछाह मनाये फेर संस्था वाला ले भलुक पइसा मिल जाये तौन चाहा पानी के पुरती हो जावय। सिरतोन अँजोर के गरीबी दुरिहाये लागिस। अब्बड़ उछाह अऊ धूमधाम ले लइका संजय के बिहाव करिस।
बारात परघाये के बेरा तो अँजोर बइहागे नाचे बर। समधी भेट करिस अऊ माथ मा बरत दीया मड़ाके झूमर-झूमर के मटक-मटक के नाचीस। भुइयाँ मा घोण्डे लागिस फेर दीया नइ बुताइस। जस गड़वा बाजा ताल देवय तस अँजोर के कलाकारी दिखे। कप मा चाउर अऊ चाउर मा कपड़ा सीले के सूजी । सूजी के सूचकी अगास कोती कप ले बाहिर कोती निकले हे। अँजोर दफड़ा बाजा बजाके आँखी के पलक ले उठाये के उदिम करिस। फेर बाजा के ताल नइ बिगड़ीस। एक बेरा…… दू बेरा….. अऊ अब सिरतोन उठा डारिस। दुनो आँखी के पलक मा फँसे हे सूजी हा। देखइया जम्मो कोई थपोली मारिस। अँजोर अब्बड़ उछाह मा हाबे। बहुरिया ला परघा के लाने बर गिस तभो अब्बड़ नाचीस अँजोर हा।
“का सुरता करत हस मने मन अब्बड़ मुचकावत हस ।”
गोसाइन सीता आवय अँजोर ला मुचमुचावत देखके किहिस। अँजोर सुरता के तरिया ले निकलिस।अऊ अब भागवत ठउर मा चल दिस।
व्यास गद्दी मा बइठइया महाराज हा भलुक जम्मो कोई बर महाराज जी होही फेर गाँव के आधा जवनहा मन बर गुरुबबा आय। गाय बजाए नाचे कूदे जम्मो कलाकारी ला सीखोये हे अऊ अखाड़ा के करतब ला घला। सरलग पन्दरा सोला बच्छर ले गाँव मा आथे भागवत पढ़थे अऊ कला के अँजोर बगराथे। कुम्हार अँजोर घला सीखे हे।
आज राजा दशरथ अऊ श्रवण कुमार के कथा ला सुनाइस व्यास गद्दी मा बइठे महाराज जी गुरु बबा हा। कइसे शब्दभेदी बाण चला देथे राजा दशरथ हा बेटा श्रवण कुमार ऊप्पर…। दाई ददा के तड़पना….। देखइया, सुनइया के ऑंसू निकलगे। …..अऊ ये का ? दस ठन गिलास, गिलास मा घुँघरू ला डोरी ले बँधवइस मंच के चारो खूँट। अइसे तकनीक कि डोरी ला जइसे हलाथे वइसने घुँघरू ले आरो आतिस ।
“भक्त वत्सल श्रोता समाज हो ! शब्द भेदी बाण कला के जानकार राजा दशरथ अऊ राजा पृथ्वीराज चौहान ला रिहिस। शब्द माने आवाज- जिहाँ ले उत्पन्न होवत हे उँही ला लक्ष्य मानके, निशाना लगाके भेदना ही शब्द भेदी बाण कला आय। महुँ हा साधना करके सीखे हँव तौन ला देखावत हँव।”
महाराज जी किहिस। आँखी मा पट्टी बाँधिस अऊ धनुष बाण ला संघार करके सुमिरन करिस। मंच मा तीन बेरा परिक्रमा करिस। गाँव के सियान डोरी ला तीरे अऊ आरो आय गिलास मा बँधाये घुँघरू ले। निशाना लगाये लागिस आरो कोती- उत्ती बुड़ती रक्सहु भंडार। धनुष ले छुटे बाण छुई……ले करत जातिस
…..अऊ ठप्प…ठन्न….. के आरो के संग गिलास कट के गिर जावे। देखइया मन श्री रामचन्द्र की जय बोलावय। एक …दू… तीन….नौ ….दस ….। जम्मो निशाना भेद डारिस महाराज हा। दस बाण दस निशाना। जम्मो कोती जयकारा होये लागिस।
“अँजोर ! ले बेटा अब तेहाँ देखा अपन कला ला।”
गुरुजी किहिस अऊ भजन गाये लागिस। बाजा पेटी गुरतुर धुन निकालिस।
माथ मा लोटा, लोटा मा बरत दीया अऊ झूमर-झूमर के नाचे लागिस अँजोर हा। अब भुइयाँ के लोटा मा ठाड़े होगे। लोटा मा फुलकांछ के परात। परात के बारा मा ठाड़े होगे अब। मुड़ी मा कुंटल भर ले आगर गाड़ा चक्का ला बोहाइस अब संगी मन। गाड़ा चक्का मा जगर-बगर करत ओरी-ओरी दीया। भजन के बाजा गाजा बाजत हाबे अऊ अँजोर के मटकना सिरतोन नटराज के आसीस सौहत दिखत हाबे। तभे तो लोटा परात अऊ गाड़ा चक्का संग कोन नाच सकही…?
सीता तो अघागे अँजोर ला देख के।
“हाय दई ! कतक सुघ्घर नाचथे ओ बाबू हा !”
परोसी भौजी हा किहिस अऊ सीता लजा जाथे।
अखाड़ा दल वाला मन संग मुड़ी मा चाहा बनाके गुरुजी ला चाहा पियाथे। कोनो छाती मा पथरा ला फोड़थे अऊ कोनो गघरा भर पानी ला दांत मा चाब के उठावत हे….। कतका सुघ्घर साधक हाबे ये गाँव मा। जम्मो के मन गदके लागिस।
जम्मो कोई थपोली मार के अँजोर अऊ वोकर संगवारी मन ला मान दिस। अऊ गुरुजी आसीस दिस।
“बेटा ! तोर साधना मा थोकिन कमी हाबे रे। शब्द भेदी बाण चलाये बर सीखत तो हस फेर निशाना चूक जावत हे।….अऊ मिहनत कर बेटा।”
“हांव गुरूबबा !”
“भागवत कथा के अंतिम दिन गीता पाठ अमृत वर्षा के पाछू जम्मो श्रोता समाज के बीच मा कला के प्रदर्शन करबे तेहाँ। वो दिन तोर संग फगवा सालिक अऊ परदेसी घला शब्दभेदी बाण चलाके अपन कला देखाही। अपन मन ला एकाग्र करके अभ्यास कर। मोर आसीस हे लक्ष्य ला जरूर अमराबे।”
“जी गुरु बबा ! पैलगी।”
गुरुबबा के डंडासरन होके पांव परिस अँजोर हा अऊ अपन घर लहुटगे।
उदुप ले घर के मोहाटी चढ़त फेर सुरता आगे बेटा के गोठ हा।
ददा! मातादेवला खेत ला बेचहू। अब शहर मा रहिबोन जम्मो कोई। नवा फोरव्हीलर गाड़ी तो होगे हे लोन मा…. । अब, नवा बंगला घला हो जाही…। खेत ला बेचके बिसाबो नवा रायपुर के कॉलोनी मा बंगला। बेटा मुचकावत केहे रिहिस फेर ददा अँजोर के कलेजा कांप गे। बहिनी के बिहाव के बेरा महतारी कस परसा डोली बेचाइस अऊ अब मातादेवाला बर बानी लगा दे हे ।
“दुसर के लइका तो जुआँ चित्ती खेले बर खेत ला बेच देथे। मंद महुआ भांग पीये खाये बर जैजात ला बिगाड़ देथे । हमर संजय तो शहर मा बंगला बिसाये बर ……? गाँव के ला थोकिन बिगाड़ के शहर मा सिरजाही ते….. उछाह के गोठ आय न संजय के बाबू।”
सीता समझाये लागिस गोसाइया अँजोर ला। अऊ संजय….? ओ तो अब्बड़ सपना देखाये लागिस।
भलुक बहिनी के बिहाव के बेरा के पाछू किरिया खाये रिहिस नानचुन भुइयाँ के बिगाड़ नइ करो अइसे फेर ……? अब अँजोर तियार होगे खेत बेचे बर। मोल भाव होगे सेठ संग।
आज घलो बहु बेटा गाँव आये हे शहर ले। मन अब्बड़ गमकत हाबे कलाकार अँजोर के। अपन धनुष मा रंगबिरंगी फुन्द्रा बाँध डारिस। बाण ला सजा डारिस। दिनभर उपास रहिके दसो बेरा अभ्यास करिस। सीता कतको बेरा किहिस खाये बर फेर अँजोर तो ढीठ आवय।
“आज मोर साधना के परीक्षा आवय सीता ! मोला झन जोजिया खाये बर। आज मोर कला ला जम्मो गाँव वाला के आगू मा देखाहु अऊ प्रसाद के संग आसीस लुहुँ गुरुबबा ले।…… तब खाहु।”
अँजोर मुचकावत किहिस। सिरतोन आँखी मा पट्टी बाँधके आज जतका बेरा अभ्यास करिस वोतका बेरा लक्ष्य नइ चूकिस। गुरुबबा कस दस बाण अऊ दस लक्ष्य ला साध डारिस अँजोर हा। मुचकावत नवा धोती पहिरिस। कनिहा मा लाल गमछा बाँधिस। महाबीर के पूजा करिस अऊ धनुष बाण ला खाँध मा अरोइस । सुमरन करत घर ले बाहिर निकले लागिस फेर…….अब पनही ला खोजत हाबे। अँगना दुवार फुला पठेरा जम्मो ला खोजिस।….. नइ मिलिस। अब बहु बेटा के कुरिया के आगू के पठेरा मा खोजे लागिस।
बहुरिया के हाँसे के आरो आवत हे अऊ दुलरवा बेटा संजय के खिलखिलाये के।
“तोर कंजूस ददा ला खेत बेचे बर राजी करके बने करेस। आने बड़का साहब के गोसाइन मन बरोबर अब महुँ हा रानी हार पहिरके इतराहु। जम्मो संगी संगवारी लरा-जरा ला देखाहु। तोरो माथ उच्चा अऊ छाती चाकर हो जाही। ….मोला कतका सुघ्घर फबही….. ? कतका सुघ्घर दिखहूँ….?”
अँजोर के बहुरिया गमके लागिस अऊ बेटा संजय मुचकावत हे।
“सिरतोन गोदभराई के दिन रानीहार बिसा के दुहुँ तोला तब सास ससुर घला देखते रही जाही…..। कतका मान सम्मान बाढ़ जाही मोर…..? सास ससुर बर बेस्ट दमाद बाबू बन जाहू मेहाँ। मोर सोना ! मेहाँ तोला नौलखा रानीहार दुहुँ सधौरी के दिन अऊ तेहाँ मोला सुघ्घर लइका के गिफ्ट देबे बेरा मा। सिरतोन मजा आ जाही….हा…. हा….. हा…….।”
अम्मल वाली गोसाइन के पेट ला चूमे लागिस संजय हा। अब दुनो जुगजोड़ी खिलखिलावत हाँसे लागिस।
अँजोर कभु काखरो गोठ ला लुका के नइ सुने फेर आज सुन डारिस सौहत शब्द के बीख बाण ला । झिमझिमासी लागिस। लहू के संचार बाढ़गे। सांस उत्ता-धुर्रा चले लागिस। मुँहु चपियागे । धड़कन बाढ़गे। जइसे शब्द भेदी बाण मा करेजा छलनी होगे।
“बहुरिया तो पर के कोठा ले आये हे …..! बेटा….! तेहाँ अपन लहू होके मोला ठगत हस रे….। मोला खेत बेचवा के बहुरिया बर रानी हार बिसाये के योजना बनावत हस रे ….! लबरा.. । तेहाँ बोदरा निकलगेस रे…. मोर दाऊ…….! मोर बर मइलाहा भाव राखेस रे… ? ..लहू के संचार के संग शब्द के बीख नस-नस मा दउड़े लागिस। अइसे लागिस अँजोर ला जइसे ऋषि दुर्वासा बरोबर श्राप दे देव सर्वस्व नाश के ….? सिरतोन कुछु केहे के उदीम करत दुनो हाथ उठाइस अँजोर हा ।
“तोर लइका तुंहर दुनो के नाव के अँजोर करे रे अऊ श्रवण कुमार बरोबर जतन करे तुंहर दुनो के । मोर आसीस हाबे।”
अँजोर किहिस अब्बड़ मुश्किल ले। छाती मा पीरा उठिस एक उरेर के… अऊ गिरगे दुवारी मा।
कोनो ला आरो नइ होइस अँजोर गिरीस तेहाँ । बहु बेटा के कुरिया मा टीवी ले फ़िल्मी गाना बाजत हाबे अब। अऊ गाँव के भागवत पंडाल ले गीता पाठ के आरो। तुलसी वर्षा के बीच गंगा राम शिवारे के भजन सुनावत हे।
चोला माटी के हे राम , एकर का भरोसा चोला माटी के हे राम…….।।
द्रोणा जइसे गुरू चले गे…।
करन जइसे दानी संगी, करन जइसे दानी.. ।।
बाली जइसे बीर चले गे…।
रावन कस अभिमानी ….।
रावन कस अभिमानी संगी रावन कस अभिमानी ….।।
चोला माटी के हे राम
एकर का भरोसा, चोला माटी के हे राम…..।।
सीता के भाग मा फेर गोसाइया ले वियोग लिखा गे अँजोर के अँगना मा। अऊ शब्द भेदी बाण ….? कभु अबिरथा गेये हे का……?
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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया
आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी
जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़
पिन 493773
मो. क्र. 8120578897
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