छत्‍तीसगढ़ी कहानी: सोहाई -चन्‍द्रहास साहू

छत्‍तीसगढ़ी कहानी: सोहाई

– चन्‍द्रहास साहू

छत्‍तीसगढ़ी कहानी: सोहाई -चन्‍द्रहास साहू
छत्‍तीसगढ़ी कहानी: सोहाई -चन्‍द्रहास साहू

छत्‍तीसगढ़ी कहानी: सोहाई

बिहनिया ले उठगे आज ओहा। काबर नइ उठही ? आज दुसरइया दिन आवय। जम्मो जीव जिनावर भक्तिभाव मा बुड़े रहिथे। पहिली दिन जोरा-जारी, हियाव-नियाव, स्वागत-सत्कार मा निकल जाथे। बच्छर मा एक बेरा आथे कुवार नवराति हा।.. अऊ संग मा आथे सौहत देबी हा…। जोत-जेवारा, डांग- डोरी धजा -पताका .. ।

रिकम-रिकम के बरन । बईगा- गुनिया, चेला-चंगुरी, डीही-डोंगर, देवी-देवता के। दरसन-परसन, सेवा-सटका करे बर। ओला तो आने गांव जाना हावय आज। अपन कला देखाय बर , आदिवासी लोक नृत्य देखाये बर। ओखर दल बेरा परब मा नाचके, झुमके जम्मो दुख पीरा अऊ जिनगी के थकासी ला बिसरा लेथे अपन गांव मा। फेर आने गांव के नेवता मा कला देखाये बर घला चल देथे।

जम्मो लोकनृत्य मा भगवान आराध्य, इष्टदेव के महिमा, ओखर जस अऊ ओला उछाह करे के गोठ रहिथे । चाहे करमा, सरहुल, गौरानृत्य, मांदरी, डंडा, रहस, पंथी, गेड़ी, राउत नृत्य होवय। लोकनृत्य घला भक्ति के माध्यम आय । शहर के ओन्हा ओढ़ईया कस्बा अऊ बड़का शहर मा ये गांव महुआटोला के नांव के सोर अब्बड़ हावय ।

मन मंजूर अऊ गोड़ मिरगा के होगे हे आज ओखर । भिनसरहा भईसा मुंधियार रिहिस तभो ले कतका बुता कर डारिस। गाय बछरू के जतन पानी । गोबर-कचरा, बरतन-बासा .. जम्मो बुता । बम्बर बारके परछी ला करिया मा, अऊ लाल घेरू माटी मा कोठ ला खुटिया डारिस । उपका डारिस काली के बाचे खोचे ला ..। माटी के घर खपरा वाला अऊ छानी के टिप मा बइठे सोनचिरई ..। सिरतोन कुम्हार हा अभिन लान के मड़हा देय हावय अइसे लागत हावय। बढ़ई अभिन घर ला बनाये होही। सरई अऊ बीजा लकड़ी के काड़-कगड़ी, खिड़की-कपाट, खइरपा तक हा सुघ्घर उज्जर नवां -नवां दिखत हावय । सुरुज नरायेन सोनहा अंजोर बगरावत हे ..। सीत बरसे ले सुघ्घर लागत हे। ससन भर देखिस अपन घर ला मुचकावत । सुरहीन गाय के गोबर ले लिपाये अंगना ला, खीरा कुंदरू के झूलत बारी ला। धोवाये बरतन के मइलाहा पानी ला आरमपपई म रिकोइस। कोवर-कोवर आमा पाना के ममहासी ला सूंघीस । कुम्हड़ा नार ला कोठा के छानी मा चड़ाइस। नहा के छाती बांधे – बांधे दरपन के आगू मा ठाड़े होइस तब सिरतोन उही लजागे अपन बरन ला देख के। सावर गोरी झक्क दमकत सिकल । खीरा बीजा कस दांत । उल्हा-उल्हा कोवर सरई पत्ता कस होठ-गुलाबी । डोमी कस सुघ्घर बाल अऊ कजरारी आँखी हा …।

जादा तारीफ झन कर फुलगजरा अपने आप के । ओहा फुसफुसाइस । चेथी मा चपत मारिस अऊ महुआ झरे कस खनखनावत हासे लागिस।

अब जान डारे होहु रूपषोडसी मोटियारी ला । महानदी के निरमल पानी ला कछोरा भिरके तौरे हे। परसा फूल के आगी मा तन ला सेके हे । झरत महुआ ला ओली मा झोंके हे । सरई-सइगोना, बर-पीपर के कोरा मा डंडा पचरेंगा खेलइया ये नोनी आय – फुलगजरा । रुप षोडसी मोटियारी फुलगजरा । चातर राज, बस्तर राज अऊ उड़िया राज जिला धमतरी, जिला कांकेर कोंडागांव अऊ जिला नवरंगपुर के लोक परब अऊ संस्कृति के मिंझरा सियार आय ये गांव – महुआटोला हा। जगन्नाथ भगवान ला पांव परके गजामूंग खा लेथे । पचहत्तर दिन के दसेरा मनावत सल्फी लांदा ला चुहक लेथे। तब गौ लछमी ला गोबरधन खुन्दा के, सोहाई पहिराके, खिचरी खवाथे । नगरी सिहावा के कर्णेश्वर मड़ई मा डांग-डोरी ला गिदबिद-गिदबिद नचा घला लेथे। अऊ भाखा ग्यान …उड़िया छत्तीसगढ़ी, हिन्दी, हल्बी, भतरी सब गोठिया लेथे अपन पीरा ला बताये बर।जइसन भेष तइसन भाखा ।

” तुई तो तियार होऊन गेली से रे फुलगजरा ? पूजा पाठ करतोर काजे शीतला दाई बले जावतोर आसे (तेहा तियार होगेस का फुलगजरा ? शीतलामाता मा पूजा करे बर घला जाये के हे ।”)
” हव री होऊन गेली । (हव , बस हो गेव।)”
हिरौदी, मानकुंवर, सुकारो, सुकधनिया, दुलारी आयतिन , रमौतीन, नीलम, रेखा अऊ मधु जम्मो कोई आगे दोरदिर ले। जहुरिया मन के गोठ ला सुनके किहिस। माड़ी ले लाल लुगरा, फुग्गा पोलखा, रूपियामाला, सुता ,नागमोरी करधन, अइठी, बाहा भर चुरी , माथ मा कौड़ी के मथौड़ी, मोरपंखी खोपा …गजब सुघ्घर बरन। संगी मन देखते रहिगे।

दुलारी इतरावत किहिस
“आजी तो तुई हुंचो जीव च नेऊन जहुआस कसन आले! ” (तेहा तो मार डारबे आज !)
“को चो ? ” (कोन ला ?)
” हुनि ” (उही)।
“को हुनि ”(कोन उही)।
“अऊर को मोके चलासित, गहिरा लेका के ।” (अऊ कोन , मोला चलाथस । गहिरा टुरा ला कहत हँव।)
फुलगजरा अब लजागे । बातिक बाता नइ कर सकिस।
हा… हा …खी.. खी.. के आरो आइस। शीतला दाई के अंगना घला गमकत हावय अब।

फुलगजरा अपन टोली के मुखिया डांसर आवय। गहिरा टुरा बलराम हा मांदर बजाथे तब सब मात जाथे । आज टेक्टर मा जोरा के मांदरी नृत्य देखाये ला जावत हे गरियाबंद।

” सेठ पिला के फोन आये रिहिस। रायपुर बलात हावय। एलबम मा बुता दुहु कहिथे । जतका पइसा कबे ओतका दुहु कहत रिहिस। मेहा तो जाहू मोला हीरोइन बनना हे। तहु चल फुलगजरा ।”
मानकुंवर किहिस मुचकावत।

“ओ चतुरा मन के बुध मा झन आ बहिनी । न घर के रहिबे, न घाट के । सेठ-साहूकार आदिवासी, छत्तीसगढ़िया के भला करे हे…. ? हुसियार फुलगजरा समझाइस। ओखर आँखी अगियावत रिहिस।

आज बलराम हा दुकान ले बिसाके लाये मोरपांख ला ओरियावत रिहिस। बबा ढेरा मा परसा डोरी ला आटत हावय। अऊ बाबू हा, सोहाई के छोटकुन बंडल बनात हावय। “बलराम तेहा का करत हस ? प्रैक्टिकल कापी देना तोर ?”

बलराम देखते रहिगे फुलगजरा ला ।
“बइहा देखते रहिबे कि कुछ बताबे।”

“सोहाई बनाथन फुलगजरा ! (सोहाई पशुधन के नरी मा बांधे जाथे जौन हा मोर पांख, परसा के डोरी ,छोटकुन रिकम-रिकम के कपड़ा ला सुघ्घर सजाके बनाथे । येहा मनमोहनी हार आय।) ये परसा के जड़ ला लान के कुचरथन। छालटी निकाल के एक-एक रेशा ला हेर के ढेरा मा आटथन। ये सादा डोरी ला हर्रा अऊ चिखला माटी मा चिभोर के करिया करथन। सादा करिया डोरी मोरपांख अऊ नान नान कुटका चिकमिकी ओन्हा बांधके बना लेथन सोहाई।”

बलराम बताइस फुलगजरा मुचकावत रिहिस ।
“हा सुघ्घर बनाये हव रिकम-रिकम के।”

“हव ! येहा दुहर सोहाई आय । झक्क सादा । येला देबी-देवता, गोर्रैया, ठाकुर देव अऊ नन्दी महराज मा, डीही-डोंगर अऊ दुधारू गाय में बांधथे। पचेड़ी सोहाई आय पचरंगा । गाय भईस मा बाँधथन। ये करेलिया सोहाई पांच लर के। ये गोल्लर अऊ बड़का गर वाला गौलछमी मा बँधाथे। मंजुरहा सोहाई मा जोरदरहा मोरपंखी डारके बनाथन दुधारू गाय बर। सुघ्घर मंजुरपंखी के चांदा ला देखत रिहिस फुलगजरा हा। गोल सादा सोहाई येला गईठा कहिथे येला बईला भईसा बछरू ला बाँधथे ।”

बलराम के ददा देखाये लागिस ओरी पारी ।

“अभी ले बनाबो बेटी ! तब देवारी बर पुर सकबो ओ ! गांव भर के गौलछमी बर।”
“येला सोहाई काबर कहिथे बबा ? ”

फुलगजरा किहिस
“सोहाई माने शोभा बढ़ानेवाला । पशुधन के शोभा मुकुट पहिरे राजा कस बाढ़ जाथे। पसीना ओगरा के हमर किसानी कारज मा पंदोली देवइया गौलछमी अऊ प्रकृति ला मान देथन। सोहाई के मंजूर पांख भगवान किशन अऊ सादा डोरी ला राधारानी घला कहिथे।”
बलराम बतावत रिहिस ।

फुलगजरा देखत रिहिस ओखर सांवर बरन ,फडकत भुजा, चाकर छाती, नरी मा करिया रेशम ला …।

“मोरो घर के शोभा बढ़ाबे का मोर जिनगी मा आके ? सोहाई कस सतरंगी कर देबे का ? मोर रानी ..! मोर सोहाई…।”
बलराम के आँखी गोठियाये लागिस । फुलगजरा घला हुंकारु दिस पलक झपक के। सब बिसरागे रिहिस जात धरम, रीति रिवाज, चाल चलागन , गांव समाज ला । चन्दा-सुरुज, नरवा -डोड़गा , ताल-तरिया, सरई, महुआ रुख तक भेद नइ करिस। तब मया मा का के भेद….?

मोर राजा.. मोर बलराम !
मोर रानी .. मोर सोहाई..!
आँखी गोठियावत रिहिस । मुक्का भाखा, मूक सम्प्रेषण फेर सब गोठिया डारिस दुनो कोई प्रेक्टिकल कापी के बहाना। दुनो बारवी किलास मा हावय।

चिरई-चिरगुन नानकुन रहिथे घर के शोभा बढ़ाथे । अऊ उड़ियाये लागथे तब डर समा जाथे । कोनो शिकारी झपट्टा झन मारे अइसे । फुलगजरा के दाई ददा ला संसो होये लागिस। मया तो गोरसी के आगी आय उप्पर ले बुताये कस अऊ तरी तरी धधकत रहिथे। मया तो स्प्रिंग घला आय जतका दबाबे ओतकी उछलथे। ….अऊ कोनो उछलथे तब दुरिहा के शिकारी कइसे फांसथे, फंसइया ला आरो नइ होवय। येहां जंगलिहा गांव गवई आय जतका सुघ्घर हावय ओतकी भयानक घला। मीठ चार तेंदू के रुखवा मा कोन कोलिहा बईठे हावय..? महुआ मा कोन परेत हावय…? आमा अमली के बौर मा कोन राच्छत लुकाये हे ..? मूसली सतावर सर्पगंधा मा कोन सांप लपेटाये हे..? कोंन गली ले रायफल पिस्तौल लेके निकलही ..? कोन पैडग़री मा टिफिन बम होही .? कोन सड़क उखड़ जाही..? कोन रेलवाही छिही बिही हो जाही….? कोनो नइ जाने।

फुलगजरा अऊ बलराम पढ़ई मा हुशियार रिहिस । अऊ गोठ बात मा सब मोहा जाही..। फेर आज तो उही मन मोहागे हावय । जल जंगल जमीन आदिवासी के हित गोठियइया मीठ लबरा मन मा। अधरतिया के वर्दी पहिन के मइलाहा सोच के दल मा वहु मिंझर गेहे। लाल सलाम के झंडा बुलंद करत हावय।

मुरलीवाला किसन कन्हैया की ….जय !
राऊत भाई मन जयकारा बोलाइस।
अरा ररा रे…….
घर घर दीया जलाओ संगी, आगे देवारी तिहार रे।
मोर संहाड़ा देव बर राखे हव, नरियर फुलगजरा हार रे।।
डुम डुम ड डंग ड डंग ड डंग ……।
दफड़ा बाजा तान मारिस

राउत भाई मन दोहा पारिस अऊ बजनिया मन लहस-लहस के बाजा बजाइस। टिमकी मोहरी सिंगबाजा दफड़ा गुदुम झांझ मंजीरा झुमका ।

सुघ्घर सवांगा राउत मन के । माड़ी ले पीयर धोती, लाल छिटही सलूखा , मोरपंखी के कमर बाजूबंद , मुड़ी मा खुमरी, खुमरी मा खोसाये चंदैनी गोंदा । बंगला पान के लाली ले मुहू रंगे। अब्बड़ सुघ्घर बरन हावय गहिरा टोली के। ठोमहा भर तेल पियाईया तेन्दुसार के चिकचिकावत लउठी अऊ आनी बानी के रेशम सुत चिकमिकी मा सजाये लउठी ला उप्पर उठा उठा के नाचत हावय। गांव के गौटिया पारा जावत हावय सोहाई बांधे बर। पहिली गौटिया बेड़ा-बड़का मंझला, नान्हे गौटिया घर के गौलछमी ला सोहाई बाँधही ।

अरे हा… ,
नेवरिया घर घला बाँधही सोहाई ला। नेवरिया-नवा नवा आये हे ये गांव मा। चार पांच बच्छर होवत हे फेर अतका धाक हावय गांव मा …कि अब ये गांव मा नेरवा गड़े सियान दाऊ के घला कुछु नइ चले । कोन जन का मोहनी मंतर जानथे ते …. लइका सियान जम्मो मोहा जाथे । जवनहा मन तो अपन दाई ददा के पांव भलुक नइ परे अऊ ओखर आगू मा डंडा सरन हो जाथे। अइसे हावय नेवरिया हा। अड़गड़ा पल्ली बड़गड़ा … टार अइन्ते तइन्ते हो जाही ।बिचित्तर नाव हे। महु ल लेये ला नइ आवय ओखर नाव ला। ओखरे सेती नेवरिया कहिथो सोझहा।

राउत नाचा अऊ गौरी गौरा के बाजा बजनिया के पइसा नेवरिया कोती ले रहिथे। गांव समाज वाला मन ऐखरे सेती तो मिलाय हावय अपन गांव समाज मा। अऊ सोहाई …। पइसा वाला के पांव कोन नइ परे..?

देवारी के दिन दाऊ बेड़ा मा । जेठाऊनी के दिन बीच पारा के किसान मन घर अऊ पुन्नी के दिन आबादी पारा के नान्हे किसान मजदूर के गौलछमी मा सोहाई बाँधथे। अभी सोहाई बांधे के पाछू काछन निकलही जल्दी करो गहिरा भाई मन । गांव के सियान मन किहिस।

डुम डुम ड डंग ड डंग ड डंग ……डंग। दफड़ा बाजा ताल दिस।
अरा ररा रे…….
जय महामाई रतनपुर के, अखरा के गुरु बैताल।
चौसठ जोगनी पुरखा के, बइहा मा होबे सहाय।।

बड़े दाऊ घर गिस सोहाई बांधे बर सुमिरन करत राउत टोली हा। गांववाला मन उछाह मा रिहिस अऊ गौलछमी.. वहू मन अब्बड़ गमकत हावय।

अरा ररा रे…….
मन मैला तन उजला , बगुले जैसा भेष हो।
इन सब ले कागा भला, भीतर बाहर एक हो।।

गहिरा मन दोहा पारिस नाचत कूदत । अऊ गांव के निकलती मसान घाट जाए के रस्दा, जंगल ले लगे झुंझकुरहा खेत मा बसे नेवरिया घर कोती रेगे लागिस।

चार आँखी सब ला देखत रिहिस । जंगल मा हुआ-हुआ करइया आज गांव आये हे। करिया बरन ला हेर के उज्जर बरन धर के। राउत मन तो जइसे कौआ अऊ बगुला बर नही ..ऐखरे बर दोहा पारिस। आज दुनो एक दुसर के हाथ ला धरके मसकत रिहिस।आदिवासी के हित के गोठ करइया मन, जल जंगल जमीन बर न्याय के गोठ करइया मीठलबरा मन के कथनी अऊ करनी ला जान डारे रिहिस। सड़क पुल पुलिया बिजली स्कूल कालेज बर बाधा बनइया ला जान डारिस।….असल गोठ ला जान डारिस।

हमर संगठन हा पातर होवत हावय । अपन संगी संगवारी मन ला दल में जोर। पुलिस प्रशासन हमर कुनबा ला नाश करत हावय। घर लहुटे अभियान लोन वर्राटू हा कनिहा ला मुरकेट डारे हावय। लोगन मन घला अब नइ डर्रावय। नाच गान दल ले प्रमोशन होगे तुहर । परीक्षा के घड़ी आवय । अब गांववाला मन के बीच एसो के देवारी मा अइसे फटाका फोड़ कि रायपुर भोपाल दिल्ली अऊ देश के कोना कोना तक आरो जाना चाही। इही तुहर परीक्षा आवय । इही तुहर टास्क आवय।

अइसना तो केहे रिहिस ओखर आंका हा। ओखरे सेती अइसे बम धरे हावय लुका के, कि काछन देखइया , गोबर्धन खुन्दवइया गांव भर दहल जाही। हाहाकार मच जाही। ये चार आँखी बलराम अऊ फुलगजरा के आय।

सिरिफ बलराम अऊ फुलगजरा भर नइ आये हे आज । ओखर संग आये हे सोमारू, आयतु, मड़का, श्रीनिवास, वेंकटेश, कुमारलू देवारी मनाये बर। लाखो करोड़ो इनाम हे ऐखर मन उप्पर प्रशासन डाहर ले। नेवरिया आय न नेवता देये हे, देवारी के कांदा कोचई खाये बर। देवारीच देखे बर नइ आये हे ऐमन। बम के धमाका सुने बर घला आये हावय। राउत मन नाचत हे फेर उछाह सब के सिकल मा हावय। बुढ़वा-जवान, लइका-पिचका, जीव-जिनावर सब मगन हावय। सब गमकत हावय। फटाका बर बिटोवत लइका। मंद महुआ पीके भकवाय कका, खोड़खोड़ी खेलइया टुरा मन, ठेठरी खुरमी बनावत दीदी मन । हाथा देवइया राउताईन मन ,पान खा के इतरावत नाती बबा…..।

सब मर जाही … ? सिरतोन सब मर जाही…? सब जुच्छा हो जाही …? सब सुन हो जाही… ? सब मरे ले आदिवासी ला अधिकार अऊ न्याय मिल जाही..? ये गांव के सिधवा मन के का कसूर …? फूल कस लइका काही नइ जाने…ओखर का होही….?

फुलगजरा अऊ बलराम ला ओखर नान्हेंपन सुरता आगे । जम्मो कोई नत्ता गोत्ता लरा जरा लागत हावय कका काकी दाई महतारी दीदी बहिनी …। …गुने लागिस । ….जी कांप गे। रुआ ठाड़े होगे।

बाजा बाजत रिहिस। राउत मन नेवरिया घर तीर अमरगे।

“फोड़ो रे फटाका मोर बैरी बड़का दाऊ के कान फूटना चाहिये। बीच बस्ती ला घला जानबा होना चाही नेवरिया घर के सोहाई बँधागे अइसे।”
नेवरिया आय। अपन अंगना मा राउत मन ला नचवाये लागिस। सौ सौ के गड्डी ल फेकिस अऊ कोठार के कुंदरा कोती चल दिस । सोमारू आयतु मड़का श्री….. जम्मो के उहिन्चे डेरा रिहिस। बलराम अऊ फुलगजरा घला गिस टिफिन ला धरके । दुनो के हाथ मा रिहिस टिफिन, अऊ टिफिन मा रिहिस देवारी के कलेवा कांदा कोचई बरा सोहारी सलगा बरा ठेठरी खुरमी ……।
राउत मन बिधुन होके नाचत हे अऊ दोहा घला पारत हावय ।

अरा ररा रे…….
सोहाई बनायेव अचरी पचरी, गांठ दियो हर्रेइया।
जउन सोहाई ला छाटही, ओला लपेट लागे गोर्रैइया ।।

बलराम आय दोहा परइया। वहू तो आय गहिरा टुरा । सुकधनिया (सूपा मा धान दीया अऊ सोहाई मड़ाये रहिथे ।)मा माड़े धान मा गोबर के लोई ला लोटाइस अऊ कोठी मा सुघ्घर छपाये हाथा के बीच मा थोपिस। सोहाई ला निकाल के करिया गाय ला सोहाई बाँधत पारिस दोहा।
फट फट फट फट …..धड़ाम…। नेवरिया के दुवारी मा फटाका फूटत रिहिस फेर…. सब कोई देखे लागिस कुंदरा कोती ला। जतका फटाका फूटत रिहिस ओखर ले लाख गुना जादा आरो ले कोठार के कुंदरा मा फुटिस …फटाका… बमफटाका। चीख चित्कार करलई के आरो आइस सोमारू आयतु श्री …….सब्बो कोई के ।
ये बड़का फटाका सही जगह मा फूटे हावय आज । फुलगजरा मुचकावत रिहिस। ओखर सिकल मा गरब रिहिस कर्तव्य के परीक्षा मा पास होये के। चाक्कर छाती मा गुमान रिहिस बलराम ला गांव लहुटे के।

दुनो के नजर अटकगे करिया गाय मा। कतका सुघ्घर लागत हावय …चपर-चपर दूध पियत बछरू …। पीठ ला चटर-चटर चाटत गाय …अऊ गाय के गर मा बंधाये सुघ्घर दिखत सोहाई….। सोहाई मा साजे चाक्कर मोर पंखी…अऊ मोर पंखी मा सतरंगी ….चांदा । अऊ चांदा मा दुनो के …..गमकत सोहाई कस सपना। अऊ सपना मा….।


-चन्द्रहास साहू (द्वारा श्री राजेश चौरसिया)
आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी
जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़
मो. क्र. 8120578897

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