छत्तीसगढ़ी कविता :
देखत रहिबे दिल्ली म
-सुशील यादव
बिलई के भाग म छीका टुटही
देखत रहिबे दिल्ली म
झोला, बीच बजार म लुटही
देखत रईबे दिल्ली म
तोर करे अबिरथा जाही
छीना झपटी बोल के आही
दही के जम्मो हाड़ी फुटही
देखत रहिबे दिल्ली म
ऐसो साल आगू हे भारी
ददा कका मन खाही गारी
करिया बादर बने लहुटही
देखत रहिबे दिल्ली म
कान छेदैय्या घूमत हे
धरे हे सुजी सूजा
बात बात में कर दीही
जम के आरती पूजा
महंगाई ढेंकी बन कुटही
देखत रहिबे दिल्ली म
बने बने चाहो रहना
मास्क ल मानो तन गहना
लगे न पाए बीमारी छूतही
देखत रहिबे दिल्ली म
सुशील यादव दुर्ग