बेजाकब्‍जा के मार (छत्‍तीसगढ़ी कविता संग्रह)-रमेश चौहान

बेजाकब्‍जा के मार (छत्‍तीसगढ़ी कविता संग्रह)

-रमेश चौहान

बेजाकब्‍जा के मार (छत्‍तीसगढ़ी कविता संग्रह)-रमेश चौहान
बेजाकब्‍जा के मार (छत्‍तीसगढ़ी कविता संग्रह)-रमेश चौहान

बेजाकब्‍जा के मार (छत्‍तीसगढ़ी कविता संग्रह)

1. हमू ल हरहिंछा जान देबे

मैं सुधरहूं त तैं सुधरबे ।
तै सुधरबे त वो ।
जीवन खो-खो खेल हे
एक-दूसर ल खो ।।

सेप्टिक बनाए बने करे,
पानी, गली काबर बोहाय ।
अपन घर के हगे-मूते म
हमला काबर रेंगाय ।।

गली पाछू के ल सेठस नहीं,
आघू बसे हस त शेर होगेस ।
खोर-गली ल चगलत हवस,
अपन होके घला गेर होगेस ।

अपन दुवारी के खोर-गली
कांटा रूंधे कस छेके हस ।
गाड़ा रवन रहिस हे बाबू,
काली के दिन ल देखे हस ।।

मनखे होबे कहूं तै ह संगी,
हमू ल मनखे मान लेबे ।
अपन दुवारी के खोर-गली म,
हमू ल हरहिंछा जान देबे ।।

2. ददरिया- मोरे गाँव मा, देखय कोन गाँव ला

दुवारी मा चौरा, चौरा म घर
चातर होगे साकुर, अब धंधा के मर । मोरे गाँव मा
मोरे गाँव मा, देखय कोन गाँव ला । मोरे गाँव मा

गली ला छेके, मन भर के
लइका खेले नई सकयं, अब बने तन के । मोरे गाँव मा
मोरे गाँव मा, देखय कोन गाँव ला । मोरे गाँव मा

खेत तीर परिया, परिया तीर खेत
खेत खेते हवय, परिया ला तो देख । मोरे गाँव मा
मोरे गाँव मा, देखय कोन गाँव ला । मोरे गाँव मा

नदिया के पीरा, सुनय अब कोन
नदिया के पैरी, काबर होगे मोन । मोरे गाँव मा
मोरे गाँव मा, देखय कोन गाँव ला । मोरे गाँव मा

बस्ती मा तरिया, तरिया मा बस्ती
लइका तउरय कहाँ, अब अपने मस्ती । मोरे गाँव मा
मोरे गाँव मा, देखय कोन गाँव ला । मोरे गाँव मा

गाय बर चरिया, चरिया बर गाय
कोठा होगे सुन्ना, बछरू नई नरियाय । मोरे गाँव मा
मोरे गाँव मा, देखय कोन गाँव ला । मोरे गाँव मा

3. बसदेवा गीत- देखव कतका जनता रोठ

सुनव सुनव गा संगी मोर । जेला देखव तेने चोर
नेता अउ जनता के गोठ । काला कहि हे दूनों पोठ

नेता रहिथे केवल चार । जनता होथे लाख हजार
खेत बेच के लड़े चुनाव । पइसा बांटे गॉंवों गॉंव

ओखर पइसा झोकय कोन । जनता बइठे काबर मोन
दारू बोकरा कोने खाय । काला फोकेट ह बड़ भाय

देवइया भर कइसे चोर । झोकइया के मंसा टोर
देही तेन ह लेही काल । झोकइया के जीजंजाल

नेता जनता के हे जाय । ओखर गोठ कोन सिरजाय
जब जनता म आही सुधार । मिटजाही सब भ्रष्‍टाचार

नेता के छोड़व अब गोठ । देखव कतका जनता रोठ
जनतामन के करथन बात । ऊँखर मन मा का जज्‍बात

बीता-बीता ठउर सकेल । गली-खोर मा घर ला मेल
खेत तीर के परिया जोत । नदिया-नरवा सब ल रपोट

फोकट के पाये बर जेन । झूठ लबारी मारय तेन
सरकारी चाउर झोकाय । दू के सोलह ओ ह बनाय

नाम गरीबी रेखा देख । बड़हर मन के नाम सरेख
सबले ऊँपर ओखर नाम । होथे पहिली ऊँखर काम

आघू रहिथे बड़हर चार । पाछू बइठे हे हकदार
मरगे नैतिकता के बात । जइसे होगे दिन मा रात

काखर-काखर गोठ बतॉंव । काखर-काखर गारी खॉव
दिखय न ओला अपने काम । लेथे ओ हर दूसर के नाम

केवल कागज के दरकार । बने आदमी हे झकमार
अपने साबुत ऑंखी फोर । करय नौकरी कतको चोर

जेखर लइका हावय चार । दू लइका ला जिंदा मार
करय नौकरी बेच इमान । पइसा होगे अब भगवान

सबझन अइसन नइ हे यार । फेर हवय इंखर भरमार
लोभ मोह अउ लालच छोड़ । दइइमान ले नाता जोड़

जनता मा जब होही सुधार । नेता खुदे सुधर जाही यार
जनता ले नेता के टेस । जनता सुधरय, सुधरय देश

4. सरगे लगही गाँव हा तभे

छोड़! गली-खोर छोड़ दे ।
टोर! लोभ-मोह टोर दे ।।
फोर! पाप-घड़ा फोर ले ।
जोर! धरम-करम जोर ले ।।

चाकर होवय गाँव के गली ।
सब हरहिंछा रेंग चली ।।
खोर गली ला छोड़ दौ सबे ।
सरगे लगही गाँव हा तभे ।।

5. सुनय कहां भगवान

नदिया छेके नरवा छेके, छेके हस गउठान ।
पानी पानी अब चिहरत हस, सुनय कहां भगवान ।।

डहर गली अउ परिया छेके, छेके सड़क कछार ।
कुँवा बावली तरिया पाटे, पाटे नरवा पार ।।
ऊँचा-ऊँचा महल बना के, मारत हवस शान ।
पानी पानी अब चिहरत हस, सुनय कहां भगवान ।।

रूखवा काटे जंगल काटे, काटे हवस पहाड़ ।
अपन सुवारथ सब काम करे, धरती करे कबाड़ ।।
बारी-बखरी धनहा बेचे, खोले हवस दुकान ।
पानी पानी अब चिहरत हस, सुनय कहां भगवान ।।

गिट्टी पथरा अँगना रोपे, रोपे हस टाइल्स ।
धरती के पानी ला रोके, मारत हस स्टाइल्स ।।
बोर खने हस बड़का-बड़का, पाबो कहिके मान ।
पानी पानी अब चिहरत हस, सुनय कहां भगवान ।।

6. चोरी होगे खोर गली हा-

बबा पहर मा खोर गली हा, लागय कोला बारी ।
ददा पहर मा बइला गाड़ी, आवय हमर दुवारी, ।

नवा जमाना के काम नवा, नवा नवा घर कुरिया ।
नवा-नवा फेषन के आये, जुन्ना होगे फरिया ।।

सब पैठा रेंगान टूटगे, टूटगे हे ओरवाती ।
तभो गली के काबर अब तो, छोटे लागय छाती ।।

घर ओही हे पारा ओही, खोर गली ओही हे ।
गुदा-गुदा दिखय नही अब तो, बाचे बस गोही हे ।

मोर पहर के बात अलग हे, फटफटी न आवय ।
चोरी होगे खोर गली हा, पता न कोनो पावय ।।

7. छोड़व छोड़व गौटिया, बेजाकब्जा धाक

छोड़व छोड़व गौटिया, बेजाकब्जा धाक।
गली खोर बन कोलकी, बस्ती राखे ढाक ।।

काली के गाड़ी रवन, पयडगरी हे आज ।
कते करे ले आय अब, घर डेहरी सुराज ।।
गाड़ी मोटर फटफटी, राखय कोने ताक । छोड़व छोड़व गौटिया

चरिया परिया गांव के, नदिया नरवा झार ।
रोवत कहरत घात हे, बेजाकब्जा टार ।।
कोन बचावय आज गा, तोर गांव के नाक । छोड़व छोड़व गौटिया

चवरा राखे डेहरी, सोचे ना नुकसान ।
का तोरे ये मान हे, का तोरे ये शान ।।
चक्कर दू आंगूर के, करे गांव ला खाक । छोड़व छोड़व गौटिया,

8.गली गली हर गांव मा, बेजा कब्जा घात

गली गली हर गांव मा,
बेजा कब्जा घात ।

गली गली छेकाय अब, रद्दा रेंगव देख ।
कतका मनखे हे तपे, गांव गली ला छेक ।।
मनखेपन के मान मा, कतका करे अघात ।। गली गली हर गांव मा….

जे सरकारी जमीन लगय, मान बाप के माल ।
लाठी जेखर हाथ मा, ऊधम करे धमाल ।।
मुटुर मुटुर सब देखथे, कइसन हवे जमात ।। गली गली हर गांव मा….

तरिया नरवा छेक के, दे हें ओला पाट ।
कहां हवे पानी भला, कहां हवे गा घाट ।।
बरजे मा माने नही, करत हवे उत्पात ।। गली गली हर गांव मा….

कोन खार परिया बचे, कहां बचे गउठान ।
छूटय ना ये बंधना, पारे हवे गठान ।
गउ ला माता जे कहे, कइसे गे हे मात ।। गली गली हर गांव मा….

बिता बिता ठउर बर, ले लेथे गा जान ।
अपन भला तो हे अपन, पर के अपने मान ।।
लगय देख ये हाल ला, अम्मावस के रात ।। गली गली हर गांव मा….

लोकतंत्र के राज मा, मनखे के ये रोग ।
करे आजाद देश ला, चढ़ाये हवें भोग ।।
वोट बैंक के फेर मा, नेता करे न बात ।। गली गली हर गांव मा….

9. करे ओ बेजाकब्जा

बेजाकब्जा हे करे, घेरे सबो चरिया ।
करे बेहाल गांव ला, छेके सबो परिया ।।
छेके सबो परिया, गली रद्दा ला छेके ।
खुदे करे हे घाव, कहां पीरा ला देखे ।।
जुन्ना घर ला बेच, सड़क मा बोथें रकजा ।
करथे गरब गुमान, करे ओ बेजाकब्जा ।।

जुन्ना पारा गांव के, धंधाय हवय आज ।
बेजाकब्जा के हवय, खोर गली मा राज ।।
खोर गली मा राज, गांव के दुश्मन मन के ।
अपन गुजारा देख, गली छेके हे तन के ।।
कहत हवे ग ‘रमेश‘, बात ला थोकिन गुन्ना ।
चातर कर दे खोर, नीक लगही गा जुन्ना ।।

10. गली गली छेकाय अब, रद्दा रेंगव देख

गली गली छेकाय अब, रद्दा रेंगव देख ।
चाकर दिखय गली कहू, ओला तैले छेक ।।

बनवा लव चैरा बने, बाजू पथरा गाड़ ।
अऊ पानी निकल दव, गली म जावय माड़ ।।

रद्दा छेके तै बने, दूसर बर चिल्लाय ।
अपन आघू म शेर तै, पाछू म मिमीआय ।।

गली अब कोलकी बने, बने न आवत जात ।
मतलब कोनो ला कहां, मतलबीया जमात ।।

-रमेश चौहान

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