मोर चार ठन छत्‍तीसगढ़ी कविता-खिबीराम साहू

मोर चार ठन छत्‍तीसगढ़ी कविता

-खिबीराम साहू

मोर चार ठन छत्‍तीसगढ़ी कविता-खिबीराम साहू
मोर चार ठन छत्‍तीसगढ़ी कविता-खिबीराम साहू

बिनती हे ! भोलेनाथ

सावन के हे ए महीना,
उमड़े हे घटा घनघोर ।
सबके बिगड़े बनइया,
बिनती ल सुनले मोर ।।
पानी चढ़ाए बर आवय कांवरिया,
झुमय – नाचय बनके बांवरिया ।
तिहार हरय भोले तोर….
बिनती ल सुनले मोर ।।१।।
दिन सोमवार सब तोला मनावय,
श्रद्धा के फूल बेल पाती चढ़ावय ।
मन होगे भाव विभोर….
बिनती ल सुनले मोर ।।२।।
सावन के पाँच सोमवार,
बोहावय गंगा के धार ।
भीड़ खड़े हे चारों ओर….
बिनती ल सुनले मोर ।।३।।
तीनों लोक के तै स्वामी,
तै हस परभु अंतरयामी ।
खड़े हाबव हाथ जोर….
बिनती ल सुनले मोर ।।४।।

छत्‍तीसगढि़या हरेली

झरगे बतर बियासी नांगर,
रांपा कुदारी धोवाय ।
रंधनी कुरिया म बइठे दाई,
गुरहा चिला बनाय ।।
गैती, कुदारी, रांपा, रपली,
एक जगा सकलाय ।
पूजा करे बर बइठे ददा,
देवता धामी मनाय ।।
बइला भइसा ल देख तो संगी,
कतका सुग्घर सजाय ।
दुख – पीरा ल दूर करे बर,
बगरंडा पान खवाय ।।
घरो घर जाके रऊता भइया,
नीम के डारा लगाय ।
लोहार भइया घलो दुवारी म,
खिला ल गाड़ियाय ।।
हरेली के हरियाली म संगी
खिबीराम मुसकाय ।
प्रतियोगिता म नरियर फेक,
गेड़ी दउड़ कराय ।।
छत्तीसगढ़ के पहिली तिहार,
सावन के हरेली ह आय ।
अतका सुघ्घर हमर संस्कृति,
जेन सबके मन ल भाय ।।

मोर गँवई गाँव

मैं छत्तीसगढ़िया बेटा आँव जी,
मैं अंग्रेजी म नइ गोठियाँव जी ।
सिमगा म मैं पढ़ेव – लिखेव…
बनसांकरा हरय मोर गाँव जी ।।
मैं छत्तीसगढ़िया….
गँवई – गाँव म मैं ह रहईया,
छत्तीसगढ़ी रचना सुनाँव जी ।
बीच गाँव म महामाई बिराजे…
मैं परत हँव ओखर पाँव जी ।।
मैं छत्तीसगढ़िया….
लाल – लाल परसा दिखत हे,
जुड़ – जुड़ हे जेकर छाँव जी ।
सब बोलत हे मिठ्ठू असन…
मैं तो बोलव काँव – काँव जी ।।
मैं छत्तीसगढ़िया….

मोर संगवारी

नानपन के तै मोर संगवारी ।
खेलन गली खोर अंगना दुवारी ।।
सुत उठ के पहुंचन बड़े चौरा,
अउ रोज खेलन बांटी – भौरा ।
मैं सुदामा तै हरच बनवारी,
जाति धरम के नइहे चिन्हारी ।।
नानपन के तै….

शर्मा गुरुजी ह सुनावै कहानी,
गजब मिठावै खाइ – खजानी ।
कतका सुघ्घर हमर दोस्ती यारी,
अभी घलो हे वो स्कूल सरकारी।।
नानपन के तै….

बड़ मजा आवय दिन इतवार,
खावन बोइर घुमन खेत खार ।
खीरा चोरावन रोज बियारा बारी,
दिन भर खोजय घर के महतारी।।
नानपन के तै….

पढ़े लिखे बर होगेन दुरिहा,
सुन्ना लागय अब घर कुरिया ।
सुरता तोर आये बड़ भारी,
अम्मा बाबू के तै आज्ञाकारी।।
नानपन के तै….

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