सत्‍यधर बांधे ‘ईमान’ के 5 ठन नान्‍हे कहिनी (छत्‍तीसगढ़ी-लघुकथा)

छत्‍तीसगढ़ी-लघुकथा
छत्‍तीसगढ़ी-लघुकथा

1. छत्‍तीसगढ़ी-लघुकथा-‘अगोरा’

घोर गरीबी मा पले-बढ़े गणेश के ननपन ले ही इच्छा रिहिस की वो ह अपन देश के सेवा करय, एखरे सेती बारहवीं पास होते ही फौज मा भर्ती होगे रिहिस। आज गणेश ल छुट्टी मा आए बीस दिन बित गे हवय अउ तीन दिन बाद ड्यूटी मा पहुंचे बर काली बिहनिया ले गाड़ी चढना हे, तेखर सेती गणेश ह कपड़ा ल पेटी मा जोर-जंगार के जाए के तैयारी करत हे, तभे दाई ह कुरिया मा आके कहिथे ” बने होगे बेटा ए छुट्टी मा तोर बर बहु देख के तोर मंगनी ल कर डरेन, फेर अब छुट्टी मा आबे त बने दिन के छुट्टी लेके आबे ताकि तोर बिहाव ल बने से कर सकन, अउ तैं ह काहत रेहे एसो छान्ही ल घलो पक्की बनाना हे, त थोकिन जल्दी आ जबे, काबर की जो भी करना हे वो तुंही ल करना हे”। दाई के गोठ ल सुनके गणेश कहिथे ” हव दाई छान्ही ल तो पक्की बनाये ल पड़ही, बरसात मा बड़ पानी चुहथे”। दाई के जाए के बाद गणेश के मन ह अपन बनइया दुल्हीन के सुरता मा समागे। रेलगाड़ी मा बइठे-बइठे गणेश ह अवइया छुट्टी मा का-का करने हे तेला अउ अपन बिहाव ल सोच-सोच के बड़ मगन होवत राहय। ड्यूटी करे के कुछ महिना बाद गणेश ह छुट्टी के अर्जी लगा दिस, अभी छुट्टी के अर्जी लगाये ही रिहिस के गणेश के ड्यूटी गलवान घाटी मा होगे, जिहाँ चीन संग हमर तनातनी राहय। गलवान घाटी मा ड्यूटी लगे एक महिना ले जादा होगे राहय फेर घर मा काखरो संग एको बार बात नइ होय राहय।कुछ दिन बाद खबर आथे की चीन संग हाथापाई मा हमर बीस जवान शहीद होगे ओमा हमर गणेश घलो सामिल हे। आज टुटहा छान्ही ल पक्की होये के, मंगनी के मुंदरी ल हाथ के चुरी के अउ दाई के आँखी ल बेटा के अगोरा अथाह होगे।

2. छत्‍तीसगढ़ी-लघुकथा-‘तुतारी’

आज सामू के घर के आगू ले जेन भी गुजरय, एक नजर खड़ा होके देखय। सामू के अंगना मा एक जोड़ी नवा बइला बंधाए हे, गजब के सुग्घर दुनो बइला देखे के लायक राहय। घर के आगू मा मंगलू ला देखके सामू कहिथे “आना कका बइठले ग, मोर नवा बइला ला देख ले”। सामू के बुलावा मा मंगलू कहिथे “नहीं-नहीं, बइठंव नहीं, जावत हंव बड़ बुता हे, फेर बड़ सुग्घर बइला लाने हस, कतेक के हरय। सामू कहिथ ” लोन तो पचासे हजार के पास होय रिहिस हे कका, फेर पाँर हजार अउ पूरो के पचपन हजार मा लाने हंव”। लोन के गोठ ला सुन के मंगलू कहिथे,”तभे बइला के कान मा बीमा के बाली दिखत हे”।


आज बइला ला लाने तीन महीना होगे हवय, फेर एकठन बइला के पेट पहिली ले अउ जादा फूले दिखत हे। कइसे तो ये बइला ला झिल्ली खाएँ के लत लगगे राहय, कतको बार सामू देखय त झिल्ली ला छोड़ावय, फेर तीन महिना ढिल्ला बेरा मा कतेकन झिल्ली खाएँ होही तेला कोन जानय। सरकार कतनोन झिल्ली मा रोक लगाथे, फेर झिल्ली बंद कहाँ होथे। लगती असाढ़ मा किसानी शुरु होवइया राहय तइसने ये बइला झिल्ली खवई के मारे एक दिन अचानक मरगे।
अब अकड़ा बइला मा किसानी कइसे होही, ठउका किसानी के बेरा मा दूसर बइला कहाँ ले लानव, इही गुनत सामू बइठे राहय तभे मंगलू ह आके कहिथे “चिंता झन कर सामू मोर करा एकठन बछवा हवय तेमा अलवा – झलवा असो के किसानी ला कर लेबे, तहन बीमा के रुपया मिलही तब नवा बइला ले लेबे। अतका सुनके सामू ला बड़ हिम्मत मिलिस।

बइला संग बछवा ला फांद के अभी एक भा़ँवर ही रेंगे राहय की बछवा लस ले बइठ जाय, डंडा मा कतको मारय बछवा उठबे नइ करय, अउ जइसे ही बछवा ला ढिलय, बछवा उठके भाग जाय। सामू परेशान होके, नागर ढिल के घर आगे। बेरा ले पहिली सामू ला घर मा देखके मंगलू समझगे की बछवा कोढयई करत हे। मंगलू ह सामू ला एक ठन डंडा देवत हुए कहिथे “ए ले ये डंडा मा खीला लगाके बडे़जन तुतारी बनाय हंव, काली इही तुतारी मा कोचबे त देखबे बछवा कइसे तरतर-तरतर रेंगही।


मंगलू के तुतारी काम करगे, बछवा मा ही बतर बियासी नाहाक गे। आज बइला के बीमा के कागजात ला जमा करे चार महिना होगे राहय फेर कागजात ह आगू बढ़बे नइ करय। जब भी सामू पता करे बर जावय, काहीं ना काहीं बाहना करके साहब टरका देवय। आज सामू घर आवत-आवत सोचत हे “का बछवा असन सरकारी काम ला रेंगाय बर घलो कोनो किसम के तुतारी होथे।

3. छत्‍तीसगढ़ी-लघुकथा-‘ताकत’

सावन के अंधियारी रात लगभग आठ बजे के बेरा टिपिर-टिपिर पानी गिरत राहय, मोहन अपन बेटी सोमा संग मोटरसाइकिल मा शहर ले गाँव आवत हे।

आज बड़ दिन बाद सोमा ह अपन अंकसूची लाने बर अपन ददा मोहन संग मोटरसाइकिल मा कालेज आए रिहिस । कालेज ले अंकसूची ले के बाद काहीं कुछू समान के खरीदी करे बर दूनो बाप-बेटी शहर मा समागे। बड़ दिन बात शहर आए के कारण सोमा ला बहुत अकन जरूरत के समान खरीदना राहय। ये दुकान ले वो दुकान अउ छाट-छाट के समान लेवत ले कब बेरा ह सांझ ले मुंधियार होगे पता ही नइ चलिस।

शहर ले गाँव पच्चीस किलोमीटर दूरिहा राहय, शहर ले निकलते तहन सुनसान सड़क, ये सड़क मा कई ठन दुर्घटना घलो होगे राहय। गाड़ी चलात-चलात बेटी संग म हे कहिके मोहन ला घलो थोकिन डर लागे लागिस । अभी बिच रद्दा मा पहुंचे राहय तइसने अचानक मोटरसाइकिल ह भुक-भुक करके अचानक बंद होगे। मोटरसाइकिल के बंद होते ही मोहन के मन बड़ घबराय लागिस। सोमा कहिथे “का होगे पापा मोटरसाइकिल कइसे अचानक बंद होगे”। “कोन जनी बेटा का होगे ते, लगथे पलग मा पानी पड़गे” मोहन कहिथे। चारों कोती सुनसान सड़क, झिंगुरा के सिटी अउ खोचका-डबरा के मेचका के टर-टर के सिवाय कुछू नइ सुनात राहय, रोज-रोज पेपर मा छपे आनी-बानी के खबर ला सुरता करके मोहन अउ डरावय। ददा ला डरावत देख सोम कहिथे “डराये के कोनो बात नइ हे पापा, अतका दुरिहा ला तो रेंगत चल देबो, मोला संग मा हे कहिके आप झन डराव, मँय आपके कमजोरी नहीं आपके ताकत हरंव, अगर नारी मन सोच लेवय की ओ अबला नोहय सबला ये त कोनो ओकर कोती आँखी उठा के नइ देख सकय अउ मोर बदला मा कोनो मोर भाई रहितिस त आप डरातेव का?, महूँ तो दू साल ले हास्टल मा कराटा सिखे हंव। बेटी के अतका गोठ ला सुनके मोहन मा हिम्मत आगे। डिग्गी ले पलग पाना निकालके पलग ला पोंछ के मोटरसाइकिल ला चालू करिस त एके बार मा चालू होगे। आज के बाद से मोहन अपन बेटी ला अपन कमजोरी नहीं अपन ताकत मानय।

4. छत्‍तीसगढ़ी-लघुकथा-‘पुतरीन’

रामू ह पढे लिख अउ बने समझदार मनखे रिहिस ओखर एक झन बेटा अउ एक झन बेटी रिहिस, रामू दुनो झन ल बरोबर मया करय, कभो बेटा अउ बेटी म फरक नइ करिस। जइसन बेटा ल खवावय वइसने बेटी ल घलो खवावय, नवा कपड़ा लाने बर होवय त दुनो झन बर नवा कपड़ा लानय।


एक दिन ठट्ठा – ठट्ठा म रामू के बेटी ह कहिथे ” ददा तैं कोन ल जादा मया करथस मोला की भाई ल” रामू ह हाॅसत – हाॅसत कहिथे ‘तुम दुनो झन तो मोर करेजा के टुकडा हरव मयँ तुम दुनो झन ल बरोबर मया करथंव।

आज परोस के गाँव रामू ह मडाई मेला देखे बर गे रिहिस मेला म आनी-बानी परकार के खेलौना आए राहय, रामू के मन होइस की बेटा – बेटी बर एकक ठन खेलौना ले लेवंव। जम्मो खेलौना ल देखे के बाद रामू ह बेटा बर एक ठन कार अउ बेटी बर एक ठन पुतरीन बिसाके घर आगे। खेलौना ल देख के रामू के बेटी ह कहिथे ” ददा तैं तो हम दूनो झन ल बरोबर मया करथस न फेर भाई बर कार अउ मोर बर पुतरीन काबर लाने हस” । बेटी के गोठ ल सुन के रामू सन रहिगे, जाने-अनजाने म आखिर बेटा-बेटी म फरक हो ही गे।

5.छत्‍तीसगढ़ी-लघुकथा-‘गंगू अउ सामू’

गंगू अउ सामू दोनो भाई म एक-दूसर बर अबड़ मया राहय। देखइया मन काहय दोनो भाई ह राम लखन के जोड़ी हरय। गंगू सामू ल दू साल बड़े अउ कक्छा म एक कक्छा आगू राहय। दूनो भाई संँघरा स्कूल जावय अउ सँघरा खेलय-कूदय। गंगू उमर म बड़े होए के संग-संग स्वभाव म सीधा अउ पढाई लिखाई म घलो हुसियार राहय। सामू छोटे होए के संग-संग नटखट स्वभाव के राहय अउ बदमासी करे म घलो आगू राहय। दूनो भाई के पहनावा जस कुर्ता, पैंट, पनही म घलो एक – दू नम्बर के छोटे-बडे साईज लगय। जइसन पहनावा गंगू बर लेवय वइसने पहनाव सामू अपन बर लेवावय। गंगू बर दू जोड़ी कुर्ता पैंट लेवय त सामू घलो दू जोड़ी लेवावय, फेर बाढत लइका मन के कपड़ा, पनही ह हर बछर छोटे होवत जाथे। कइ बार तो नवा के नवा कपड़ा, चप्पल – पनही ल फेके बर पड़ जथे, तेखर सेती दाई-ददा मन के मन होथे कि बड़े बेटा के छोटे परे कपड़ा, पनही, स्वेटर ल छोटे भाई मन पहन लेतीस त नवा- नवा पहनावा ह बेकार नइ होतीस। फेर सामू ल अपन बड़े भाई गंगू के पहिने कपड़ा ल पहनना थोरको अच्छा नइ लागय। वइसे तो दाई – ददा ह गंगू बर थोकिन बड़े साईज के पहनावा लेवय। फेर स्कूल डरेस ल बड़े साईज के नइ ले सकय, काबर की स्कूल डरे म ढिल्ला – ढाल्ला कपड़ा अच्छा नइ दिखय। गर्मी छुट्टी के बाद जब स्कूल खुलय त गंगू के पाछू बछर के किताब ल सामू नवा के मिलत तक ल अपन मेर रख लेवय, अउ अंग्रेजी, गणित संग सबो बिसय के भरे काॅपी ल घलो रख लेवय। फेर गंगू के पाछू बछर के छोटे परे कपड़ा ल सामू ल पहिने पर दाई ह काहय त सामू ह घुसिया जवय अउ काहय ” छोटे भाई ल तो बड़े के छोड़े-छाडे़ ह मिलथे”। सामू के ये गोठ ह गंगू ल थोरको अच्छा नइ लागय, गंगू ह मन म गुनय कि मॅय भले पुराना ल पहन लेतेंव फेर मोर भाई ह नवा ल पहिनतीस। फेर उपराहा उपराहा खर्चा झन होवय कहिके गंगू कुछू नइ कह सकय।


असो गंगू के दसवा जन्मदिन आने वाला राहय, ददा ह सहर ले गंगू बर लाल रंग के बड़ मंहगा वाला कोट लाने राहय, कोट ल देख के सामू घलो वइसने कोट बर जिद करे ल धरलीस। दाई-ददा दूनो झन सामू ल समझावय ” बेटा तोरो जन्मदिन म अइसने वाला कोट ले देबो” फेर सामू मानबे नइ करय, कहय ” मोला फेर भाई के छोडे़ वाला कोट ल दे दुहूॅ, मोर हिस्सा म तो छोडे़ – छाडे़ हर ह आथे”। दाई – ददा ह तुरंत के तुरंत वइसने कोट कहाँ ले लानय। सामू के जिद म गंगू ह घलो वो कोट ल बिना पहिने अपन जन्मदिन ल मनालिस अउ मने – मन म का गुन के कोट ल टांग के रखदिस। कई बार तिहार-बार अउ मेला मड़ाई म वो कोट ल पहिने के मौका गंगू करा अइस फेर गंगू वो कोट ल नइ पहनिस। देखते-देखत सामू के घलो जन्मदिन आगे, गंगू अपन कोट ल लाके सामू ल दे के कहे ” ये ले भाई तोर जन्मदिन के भेंट, ये नवा के नवा हे एला एको दिन मॅय नइ पहिने हँव, छोटे भाई ल बड़े के छोड़े-छाडे़ नहीं बल्कि मया दुलार ह मिलथे। बड़े भाई के गोठ ल सुन के सामू के आँखी म आसू आगे।

-सत्‍यधर बांधे 'ईमान'


छत्‍तीसगढ़ी-लघुकथा के कहानीकार के परिचय

नामसत्‍यधर बांधे ‘ईमान’
पत्नीः-श्रीमती रेखा बान्धे
पिता :-श्री चैतराम बान्धे
माता :-श्रीमती फूलवा देवी बान्धे
जन्म :-15.06.1979
निवासः-गंजपारा, बाबा रामदेव वार्ड क्र.11
बेमेतरा, जिला – बेमेतरा (छ0ग0)
पिन :- 491335
जन्म स्थान :-ग्राम – बरौदा, पोस्ट – राखी
जिला- रायपुर (छ0ग0)
पिन :- 492015
शिक्षा :-स्नातक (विज्ञान), पीजीडीसीए, आईटीआई विद्युतकार
व्यवसाय :-कार्यालय सहायक (विद्युत विभाग)
सम्मानः-भारतीय दलित साहित्य अकादमी के द्वारा ’’प्राईड ऑफ छत्तीसगढ़’’ अवार्ड से 14.04.2019 को सम्मानित
लेखन में रुचि :-गजल, दोहा, चौपाई, घनाक्षरी छंद, गीत, कवित एवं लघुकथा
लेखन-मासिक पत्रिका ‘सतनाम संदेश’ में नियमित लेखन
प्रकाशन :-वेबसाइट सुरता,दैनिक समाचार पत्रों जैसे पत्रिका, दैनिक भास्कर, देशबन्धु , अमृत संदेश में दर्जन भर से अधिक छत्तीसगढ़ी कविताएं एवं लघुकथा प्रकाशित ।
सम्पर्क सूत्रः-मो.नं. 9713093813, मेल-bandhesd@gmail.com
कहानीकार के परिचय

येहू ल पढ़ सकत हव-सुरता-लक्ष्मण मस्तुरिया के मन के पीरा के

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5 thoughts on “सत्‍यधर बांधे ‘ईमान’ के 5 ठन नान्‍हे कहिनी (छत्‍तीसगढ़ी-लघुकथा)

    1. बढि़या प्रयास हे, छत्‍तीसगढ़ी साहित्‍य के विकास म ये छोटे-छोटे प्रयास बहुते काम के होही, बहुत-बहुत बधाई अउ शुभकामना

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