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छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत के रानी ददरिया-रमेश चौहान

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत के रानी ददरिया-रमेश चौहान

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत के रानी ददरिया

-रमेश चौहान

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत के रानी ददरिया-रमेश चौहान
छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत के रानी ददरिया-रमेश चौहान

छत्‍तीसगढ़ म जतके नदिया-नरवा, तरिया, पहाड़-पहाड़ी, जंगल के प्राकृतिक छटा ले भरे परे है ओतके के अपन लोकगीत ले घला अटे परे हे । भारतीय संस्‍कृति म 16 संस्‍कार के बात कहे जाथे जउन मनखे के जनम ले लेके मरण तक के होथे, येही संस्‍कृति ल लोकगीत मन एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी तक पहुँचाये के काम कर‍थें । छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत मनखे के जनम ले मरण तक देखे जा सकत हे । जनम होही त सोहरगीत गाये जाथे, लइका थोकिन बाढि़स तहँव लोरी सुनाये जाथे, अउ बाढि़स त खेत गीत फेर ददरिया, कर्मा म जवानी बाढ़थे तहॉं ले बिहाव गीत के भडौनी म मन भरथे । छत्‍तीसगढ़ म सालभर कोनो न कोन तिहार होथे अउ हर तिहार के अपन लोकगीत हवय भोजलीगीत, छेरछेरा गीत, फागगीत, जसगीत अउ कईठन । छत्‍तीसगढ़ म छत्‍तीस प्रकार के लोकगीत पाये जाथे । ए जम्‍मो लोकगीत म ददरिया ला सबो लोकगीत के रानी कहे जाथे ।

ददरिया आय का ?

ददरिया मूल रूप ले गोड़ आदिवासी मन के द्वारा गोडी बोली म गाये जाने वाला लोकगीत आय । ददरिया छत्‍तीसगढ़ के चारोकोती गाये जाथे । पहली येला काम-ुबुता करत-करत, महुआ बिनत, परसा पान सकेलत त निंदई-कोड़ई करत, धान जुवत-टोतर त मिंजत-कूटत ददरिया गाये जात रहिस । पहिली जाथा मात्रा म गाये जात रहिस फेर अब काम-बुता करे के बेरा येखर गवई ह कम होगे । ये गीत ल पहिली सामूहिक रूप ले बिना साज-बाज के गाये जात रहित फेर बेरा संग रेंगत-रेंगत येहूँ म बदलाव होगे अब ददरिया पूरा साज-बाज ले गाये जाथे अब ये श्रृंगार प्रधान गीत होगे हे ।

ददरिया के रूप-

ददरिया भाव के आधार म दू प्रकार के पाये जाथे ।

  1.  श्रम गीत के रूप मा- काम बुता करत करत मनोरंजन बर सामूहिक रूप ले गाये जात रहिस जेखर ले काम-बुता गरू झन लगय । समय पास होत रहय अउ काम-बुता घला होत रहय 
  2. श्रृंगार के रूप मा-काम बुता करत करत नायिका नायक मन प्रश्न अउ उत्तर के रूप मा ऐला गाये जाथे । एक झन शुरू करही तेखर उत्तर ला दूसर देवत जाथेय अउ क्रम हा चलत रहिथे ।

ददरिया के शैली-

ददरिया ल प्रश्‍नोत्‍तर शैली म गाये जाथे मतलब पहीली एक समूह ह कोनो प्रश्‍न करथे त दूसर समूह ह ओखर उत्‍तर देथे । ये प्रश्‍न उत्‍तर बुद्धिमत्‍ता या झगरा-लड़ई न होके हल्‍का-फुल्‍का नोक-झोक तकरार अउ हास्‍य व्‍यंग होथे । श्रृंगार ददरिया म नायक या नायिका अपन बात प्रश्‍न के रूप रखथे जेखर उत्‍तर दूसर ह अपन बात ल रखते । ये बानगी ल ये दे ये ददरिया म देखे जा सकत हे-

नायक : 
करे मुखारी करौंदा रुख के
एक बोली सुना दै आपन मुख के।

नायिका:
एक ठन आमा के दुई फाँकी
 मोर आँखीय आँखी झुलते तोर आँखी

ददरिया के कला पक्ष-

ददरिया गीत कला पक्ष ल दू ढंग ले देखे जाना चाही एक लिखे बर दूसर गाये बर । येखर ले हम ददरिया लिखे के तरिका अउ गाय के तरिका दूनों ल समझ सकी ।

ददरिया लिखे के कला पक्ष-

गीत-कविता लिखे के सबले जुन्‍ना विधा छंद आय । छंद बद्ध लिखे गे रचना ह सहज म गाये के लइक होथे । छंद म वर्ण के गिनती करे जाथे या कि मात्रा के । सबले जुन्‍ना छंद गायत्री छंद आय मोला लगथे ददरिया ह गायत्री छंद ले मिलता-जुलता हे । गायत्री छंद 6 वर्ण होथे ओइसने ददरिया म 3 शब्‍द या 3 शब्‍दांश होथे । येला ये उदाहरण ले समझे जा सकत हे-

1. 
हे बटकी/ मा /बासी
अउ/चुटकी मा /नून

मैं/गावत हंव /ददरिया
तैं /कान देके /सुन

2. मोला /जावन देना/ रे
 अलबेला /मोला /जावन देना

3. सास/ गारी /देवे
ननद /मुुॅुँह/ लेवे

ददरिया म दू-दू लाइन म तुकबंदी-

ददरिया म दू-दू लाइन तुकबंदी होथे । कभू-कभू ऊपर के लाइन के कोना अर्थ नई हे अइसे लगथे, फोकट के येला बस तुकबंदी करे बर रखे गे हा का ? फेर बने ध्‍यान लगाय म येखर गंभीर अर्थ निकलथे ।

एक ठन आमा के दुई फांकी ।
 मोर आंखीय आंखी झूलथे तोरे आंखी

ये मेरा 'एक ठन आमा  केे दुुई  फांकी' निरथक बरोबर लगत हे, फेरे बने ध्‍यान लगाये म येखर बड़ाका अर्थ हे । ये सृष्टि म हर एक जीव के दू भाग हे नर अउ मादा दूनों भाग एक दूसर के बिन अधूरा हे । 

ददरिया गाये के कला पक्ष-

ददरिया दादरा के परिवर्तित रूप आय । दादरा खुद एक शास्‍त्रीय संगीत के एक ताल आय जेमा 6 मात्रा होथे जेन 3-3 के दू बराबरा भाग म बँटे होथे । येला ये दादरा के ठेका म देखे जा सकत हे-

धा धी ना , धा ती, ना

दादरा के ठेका

अइसने ददरिया ह घला 3-3 शब्‍द ले गाये जाथे । हालाकि दादरा शास्‍त्रीय ताल फेर येमा दादरा लोकगीत महिलामन के द्वारा गाये जाथे । ददरिया के गायिकी ले ये गीत के गायन शैली ले समझे जा सकत हे-

ददरिया-बटकी म बासी अउ चुटकी म नू

हे बटकी में बासी, अउ चुटकी में नून
में गावतथव~ ददरिया
तें कान देके सुन वो~~~ चना के दार~~~

हे बागे बगीचा दिखे ला हरियर
बागे बगीचा दिखे ला हरियर
मोटरवाला नई दिखे, बदे हव नरियर, हाय चना के दार
हाय चना के दार राजा, चना के दार रानी
चना के दार गोंदली, तड़कत हे वो
टुरा हे परबुधिया, होटल में भजिया, झड़कत हे वो~

तरी फतोई~~~ ऊपर कुरता~~~~~~~~ हाय
तरी फतोई, ऊपर कुरता, हाय ऊपर कुरता~~
तरी फतोई, ऊपर कुरता, हाय ऊपर कुरता
रइ रइ के सताथे, तोरेच सुरता, होय चना के दार
हाय चना के दार राजा, चना के दार रानी
चना के दार गोंदली, तड़कत हे वो
टुरा हे परबुधिया, होटल में भजिया, झड़कत हे वो~

नवा सड़किया~~~ रेंगे ला मैंना~~~~~~~~ हाय
नवा सड़किया, रेंगे ला मैंना, हाय रेंगे ला मैंना~~
नवा सड़किया, रेंगे ला मैंना, हाय रेंगे ला मैंना
दु दिन के अवईया, लगाये महीना, होय चना के दार
हाय चना के दार राजा, चना के दार रानी
चना के दार गोंदली, तड़कत हे वो
टुरा हे परबुधिया, होटल में भजिया, झड़कत हे वो~

चांदी के मुंदरी~~~ चिनहारी करले वो~~~~~~~~ हाय
चांदी के मुंदरी, चिनहारी करले, हाय चिनहारी करले~~
चांदी के मुंदरी, चिनहारी करले, हाय चिनहारी करले
मैं रिथव नयापारा, चिनहारी करले, होय चना के दार
हाय चना के दार राजा,चना के दार रानी
चना के दार गोंदली, तड़कत हे वो
टुरा हे परबुधिया, होटल में भजिया, झड़कत हे वो~

कांदा रे कांदा~~~ केंवट कांदा हो~~~~~~~~ हाय
कांदा रे कांदा, केंवट कांदा, हाय केंवट कांदा~~
कांदा रे कांदा, केंवट कांदा, हाय केंवट कांदा
हे ददरिया गवईया के, नाम दादा, होय चना के दार
हाय चना के दार राजा, चना के दार रानी
चना के दार गोंदली, तड़कत हे वो
टुरा हे परबुधिया, होटल में भजिया, झड़कत हे वो~
टुरा हे परबुधिया, होटल में भजिया, झड़कत हे वो~
टुरा हे परबुधिया, होटल में भजिया, झड़कत हे वो~

गायक-शेख हुसैन

(गीत-छत्‍तीसगढ़ी गीत संगी से साभार)

ददरिया के गीतकार अउ गायक-

जइसे के पहली बताये गे हे ददरिया ल पहली बिना साज-बाज के कामकरत-करत गाये जात रहिस जउन वाचिक परम्‍परा म चलत रहिस ये बखत कोन गीत ल कोन लिखे अउ कोन गीत ल कोन गाये हे कही पाना कठिन हे । हॉं, जब ले ददरिया ल साज-बाज म गाये जात हे तब ले येखर गीतकार अउ गायक के बारे म कुछु कहे जा सकत हे । ददरिया गायकी म शेख हुसैन के अपन अलगे पहिचान हे जउन संत मसीह दास के लिखे ददरिया ‘खोपा पारे माटी मारे टूरी रंग रेली’, ‘गुलगुल भजिया खा ले’, गजब दिन भईगे राजा’ जइसे कईठन गीत ल अपन स्‍वर दे हें । ददरिया गायकी म केदार यादव, साधना यादव, लक्ष्‍मण मस्‍तुरिया के नाम आघू हे । लक्ष्‍मण मस्‍तुरिया एक गायक के संगे-संग एक गीतकार के रूप म घला ददरिया अपन जगह सुरक्षित रखें हें । ये कड़ी म ममता चंद्राकर, कुलेश्‍वर ताम्रकार जइसे कलाकार मन के घला नाम शामिल हे ।

ददरिया के भविष्‍य-

ददरिया कब ले गाये जात हे अउ कब तक गाये जाही कोनो नई बता सकँय । आदिवासी गोंड़ी बोली ले शुरू येखर यात्रा अब संगीत संग जुरमिल के नाचत हे । नवा लइका मन फोकसांग के ट्रेनिंग लेवत हें । नवा कालाकार मन हालाकि मूल रूप कुछ बदलाव करके गावत हें फेर गावत हें । ये पायके उम्‍मीद हे के ददरिया के अवईया दिन बने रहिही ।

-रमेश चौहान

4 responses to “छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत के रानी ददरिया-रमेश चौहान”

  1. डॉ. अशोक आकाश Avatar
    डॉ. अशोक आकाश
    1. Ramesh kumar Chauhan Avatar
  2. जीतेंन्द्र Avatar
    जीतेंन्द्र
    1. Ramesh kumar Chauhan Avatar

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