छत्तीसगढ़ी लोककथा: मुसवा-मुसवइन
-कन्हैया लाल बारले

छत्तीसगढ़ी लोककथा: मुसवा-मुसवइन
रतिहाकुन के बेरा आय। हा हा हा हा ही ही ही ही ही करत खटिया ले मोन्टू दनाक ले गिरगे । ही ही ही पे—- रोवत हे। चेमन कठल-कठल के हँसत हे। कका दाई मोंटू के रोवइ ल सुनके अउ चेंमन के हँसइ ला देखके खिसियावत किहिस “वाह रे कलजुगिहा भाई अपन छोटे भाई ल रोवत देख के तोला हंसी आवत हे। अपन छोटे भाई ल चुप करातिस ते ठठ्ठा दिल्लगी कस हाँसत हे।” कका दाई के कहना ल सुनके चेमन थोरकुन हंसी ला कम करिस अउ किहिस – “मोंटू अपन पारी आथे त कइसे मटका-मटका के बिजराथे अउ मोला गुस्सा देवाथे।”
कका दाई मोंटू के आँसू ला पोछत चुप करइस। चेमन अउ मोंटू ल समझावत किहिस – “आदमी के इही धरम आय कि सुख मा खुश होवय अउ दुख म दुखी होके दुख ल कम करें के उदिम करय। सतजुगिहा जमाना म आदमी ते आदमी आन जीव अउ दूसर जिनिस घलो सुख अउ दुख म बरोबर के भागी राहय।
सुनव एकठन कहानी सुनावत हंव । एक गांव म मुसवा मुसवाइन रिहिन । मुसवा मुसवाइन एक दूसर ला अड़बड़ मया करें। सुख दुख म एक दूसर के काम आवय। दुनों के नवा नवा बिहाव होय रिहिस । मुसवा मुसवइन के आठों पहर जम्मो सउंख ला पूरा करय। एक दिन मुसवइन, मुसवा ल किहिस- “सुनत हव जी! मे मइके जातेंव । मुसवा किहिस – “का होही चल देना । फेर जल्दी आ जाबे ।” मुसवइन किहिस-“खाली हाथ कइसे जाहुँ? रोटी पीठा रांधे ल परही ।”
मुसवा किहिस- “ते घर के मालकिन का करना हे तेला तिहिच ह जान ।”
मुसवाइन किहिस- घर में एको बूंद तेल नइ हे। बनिया दुकान ले तेल लान देतेव त सोहांरी रांध लेतेंव ।”
मुसवा बनिया के दुकान जाके एक ठेकवा तेल मांगिस फेर मुसवा ठेकवा ल धरके नइ लेगे रिहिस। बनिया बोलिस – “मुसवा भाई तेल ल कामें धरके ले जाबे ?”
मुसवा ल कुछ नइ सुझिस त किहिस- ” चल मोर कान में जतिक तेल हमाही ओतकी तेल घर ले जाहूं । “
बनिया मुसवा के कान ल देखके खुश होवत सोचिस चल नानकुन मुसवा के कान में कतित तेल हमाही ? मुसवा भोकवा हे। बनिया किहिस- ” चल कान ल तीर म टेका तेल ल ढारन दे ।”
मुसवा कान ल टेका दीस। बनिया मुसवा के कान में तेल ढारीस। कान के भरत ले बनिया थकगे। एक टीपा तेल मुसवा के कान में हमागे। बनिया अपन मुंह करें कलेचुप रहिस ।पइसा एक ठेकुवा के लिस। मुसवा घर आके तेल ल बाहिर ढारीस। मुसवइन मइके जाय के धुन में अड़बड़ खुश राहय। कूद कूद के सोंहारी रोटी रांधत राहय। फेर होनी ल कोन टार सकत हे। रोटी रांधत-रांधत मुसवइन तेलई म झपाके मरगे। तेलई मुसवइन के लहू म लाल – लाल होगे। मुसवा जब अपन जोड़ी मुसवइन के मरना ला देखिस त दुख में घोलंड-घोलंड के रोइस। मुसवइन के आखरी किरिया करम घरे म निपटाइस । चीता के राख ल नदी में बोहाय बर जब मुसवा नदी तिर गिस त नदी पूछिस – “का होगे भाई मुसवा? कोन ए दुनिया ला छोड़ के चल दिस ?”
मुसवा रो रो के नदी ल बताइस – “मोर मुसवाइन तेलई म झपाके मरगे। मोर घर दुवार सबो जरगे।” नदी किहिस-” ए तो अड़बड़ दुख के बात आय। मोर हिरदे म दुख नइ समावत हे। दुख म मोर पानी रकत कस लाल हो जाय।”
नदी के पानी रकत कस लाल होके बोहाय लगिस।
मझनिया बेरा म गांव के बरदी के गोल्लर भुकरत-चरत जब पानी पियास लगीस त पानी पिये के आस लेके नदी तिर गिस त देखथे कि नदी के पानी लहू कस लाल हे।
गोल्लर नदी ला पूछिस – ” कस रे नदी आन दिन तै फरिहर बोहावत रेहेस फेर आज लाल कइसे होगेस ? “
नदी किहिस – ” मुसवा मुसवइन के घर जरगे।
नदी नरवा रकत बोहागे।”
गोल्लर किहिस – ” ए तो अड़बड़ दुख के बात आय। मोर हिरदे म दुख नइ समावत हे।” दुख के सेती गोल्लर बुढ़वा होगे। गोल्लर धीरे-धीरे रेंगत थीराय खातिर पीपर रुख तिर आइस। पीपर म अड़बड़ हरियर-हरियर पाना राहय । छइया बने सुहावत राहय। पीपर रुख बुढ़वा गोल्लर ल देख के पूछिस – ” कस जी गोल्लर भइया काली तो तेहां जवान रहेस फेर आज एक दिन म बुढ़वा कइसे होगेस ? “
गोल्लर किहिस- ” मुसवा मुसवइन के घर जरगे ।
नदी नरवा रकत बोहागे।
मैं बुढ़वा गोल्लर होगेंव । “
पीपर किहिस- ” ए तो अड़बड़ दुख के गोठ आय। मोर डारा डारा, पाना-पाना दुख म थरथर कांपत हे। लागत हे दुख म ठुठवा हो जाहूं । देखते देखत पीपर रुख ठुठवा होगे ।
मरार घर के टेड़ा ले गगरी म पानी भर के पनिहारिन मन जब पीपर रूख तीर आइन तब एकझन पनिहारिन कथे – “कस रे पीपर काली तो तोर हरियर पाना ह लहलहावत रिहिस फेर आज कईसे ठुठवा होगेस ? “
पीपर किहिस- ” मुसवा मुसवइन के घर जरगे ।
नदी नरवा रकत बोहागे ।
गोल्लर बुढ़वा होगे ।
मे ठुठवा पीपर होगेंव । “
पीपर के गोठ ला सुनके पनिहारिन मन दुख म दुबर होगे। पनिहारिन मन पातर पनिहारिन होगे।
पेजिहारिन मन अपन नगरिहा मन बर बासी पहुंचाय बर जावत रिहिन त पनिहारिन मन ला पूछिन – ” तूमन तो पहिली बने रहेव फेर अब का होगे ? सबो झन पनिहारिन पातर पनिहारिन होगेव ।
पनिहारिन मन किहिन – ” मुसवा मुसवइन के घर जरगे ।
नदी नरवा रकत बोहागे।
गोल्लर बुढ़वा होगे ।
पीपर ठुठवा होगे ।
हमन पातर पनिहारिन होगेन ।
पेजिहारिन मन किहिन- “ए तो सिरतोन म दुख के बात आय । हमर मुड़ी दुख म अड़बड़ पीरावत हे । लागत हे दुख म हमर सबो चुंदी झर जाही । हमन चंदली हो जाबो । ” जम्मो पेजिहारिन मन चंदली होगे।
पेजिहारिन मन जब खेत पहुँचिन तब उंकर नगरिहा मन अकचकागे अउ पुछिन- “तुमन तो पहिली सुघ्घर रेहेव फेर चंदली कइसे होगेव ? “
पेजिहारिन मन बोलिन – ” मुसवा मुसवइन के घर जरगे ।
नदी नरवा रकर बोहागे ।
गोल्लर बुढ़वा होगे ।
पीपर ठुठवा होगे ।
पनिहारी मन पातर होगे । पेजिहारिन मन चंदली होगेन।
नगरिहा मन अपन पेजिहारिन मन के गोठ ल सुनके किहिन- “ए तो अघाते दुख के बात आय। लागत हे दुख म हमर कनिहा टेड़गा हो जाही। हमन कुबरा हो जाबो।”
सबो नगरिहा कुबरा होगे ।
दूसर दिन गांव के नाउ अपन ठाकुर मन के दाढ़ी, मेछा, चुंदी संवारे बर अपन कैची, छूरा, कंगी, दरपन ला धरके नगरिहा किसान मन घर गिस त का देखथे कि जम्मो नगरिहा मन कुबरा होगे हवे।
नाउ पूछिस – ” कइसे सबो नगरिहा मन कुबरा होगे हव जी ? “
नगरिहा मन किहिन – ” मुसवा मुसवइन के घर जरगे।
नदी नरवा रकत बोहागे।
गोल्लर बुढ़वा होगे ।
पीपर ठुठवा होगे ।
पनिहारिन मन पातर होगे ।
पेजिहारिन मन चंदली होगे।
नगरिहा मन कुबरा होगेन।
नाउ नगरिहा मन के गोठ ल सुनके कहिथे – “का अनहोनी होगे भाई! ए तो अड़बड़ दुख के बात आय। मेहा तो रेंग नइ सकहूं तइसे लागत हे । “
नाउ भुइयां म घोंडइया मारे के चालू कर दिस। घोंडत -घोंडत नउ राजा के घर चल दिस। रानी अपन झूलना म झूलत राहय। दासी मन चंवर डोलावत राहय। नाउ के घोंडई ला देखिस त रानी पूछिस – ” का होगे रे नाउ ? आज काबर भुंइया म घोंडत हस ?
नउ बताइस – ” मूसवा मूसवइन के घर जरगे ।
नदी नरवा रकत बोहागे ।
गोल्लर बुढ़वा होगे।
पीपर ठुठवा होगे।
पनिहारिन मन पातर होगे।
पेजिहारिन मन चंदली होगे।
नगरिहा मन कुबरा होगे ।
मेहा घोंडया नाउ होगेंव ।”
नाउ के गोठ ल सुनके दुख म रानी के हाथ गोड़ चिंगुरगे। रानी बइठांगुर होगे ।राजा जब अपन राज दरबार के बुता ल निपटाके महल में आइस त रानी के बइठाँगुर होय के कारण ल पूछिस । तब रानी बताइस – ” मूसवा मूसवइन के घर जरगे ।
नदी नरवा रकत बोहागे।
गोल्लर बुढ़वा होगे ।
पीपर ठुठवा होगे ।
पनिहारिन मन पातर होगे ।
पेजिहारिन मन चंदली होगे।
नगरिहा मन कुबरा होगे ।
घोंडइया नाउ होगे।
मेहा बइठांगुर होगेंव। “
रानी के गोठ ल सुनके राजा अपन दोनों हाथ में तरवा ला धरके थोरकुन गुने लागिस अउ हाथ म जबर ठेंगा ल धरके अपन राज भर के लोगन मन ला ठेंगाच- ठेंगा ठेंगियाय के उदिम करिस । ठेंगा के मार परे तब सब लोगन मन चिल्ला -चिल्ला के पूछिन – “का होगे राजा साहेब ? का होगे राजा साहेब ?”
राजा साहेब किहिस – ” मुसवा मुसवइन के घर जरगे, नदी नरवा रकत बोहागे ,बुढ़वा गोल्लर ,ठुठवा पीपर ,पातर पनिहारिन ,चंदली पेजिहारिन , कुबरा नगरिहा, घोंडइया नउ, बइठांगुर रानी ,त मेहा ठेंगपिट्टा राजा । जब तक सबोझन बने नइ हो जाही तब तक मेहां इही बुता करहूं ।अइसन मे राजकाज नइ चले। ठेंगा के मार परे ले सबो बने होइन।तब जम्मो झन राजा के जय बोलाइन।
कन्हैया लाल बारले
अध्यक्ष,मधुर साहित्य परिषद
इकाई डौन्डी लोहारा
जिला बालोद (छत्तीसगढ़ )