छत्तीसगढ़ी व्याकरण : लिंग- डाॅ विनोद कुमार वर्मा

छत्तीसगढ़ी व्याकरण : लिंग

– डाॅ विनोद कुमार वर्मा

छत्तीसगढ़ी व्याकरण : लिंग- डाॅ विनोद कुमार वर्मा
छत्तीसगढ़ी व्याकरण : लिंग- डाॅ विनोद कुमार वर्मा

लिंग के परिभाषा-

‘संज्ञा के जेन रूप ले पुरूष या स्त्री जाति के बोध होथे, ओला लिंग कहिथें।’

छत्तीसगढ़ी म लिंग के भेद

छत्तीसगढ़ी म लिंग के तीन भेद माने गे हे-

1) पुल्लिंग-

जेन संज्ञा शब्द ले पुरूष जाति के बोध होथे, ओला पुल्लिंग कहिथें।
जइसे- बाबू, डोकरा, बछवा, बइला आदि।

2) स्त्रीलिंग-

जेन संज्ञा शब्द ले स्त्री जाति के बोध होथे, ओला स्त्रीलिंग कहिथें।
जइसे- नोनी, डोकरी, बछिया, पंड़िया आदि।

3) उभयलिंग-

जेन संज्ञा शब्द ले दुनों जाति ( स्त्री अउ पुरूष ) के बोध होथे। ओला उभयलिंग कहिथें।
जइसे- संगी( सखी या साथी ), गिंया ( मित्र ),जँहूरिया ( हमउम्र लड़का/लड़की या फेर स्त्री/पुरूष ), लइका( लड़का या लड़की ), लगवार( उपपति या उपपत्नी),जाँवर ( समवयस्क स्त्री या पुरूष )

छत्तीसगढ़ी म पुल्लिंग शब्द-

1) पुरूष मन के नाम

कमल, राम,दुकालू, सुकालू आदि

2) प्राणी मन के नाम-

घोड़ा, बघवा, कोलिहा, बकरा आदि

3) समूहवाची नाम-

टोला, पारा, मुहल्ला
(अपवाद- टोली, भीड़ स्त्रीलिंग)

4) पहाड़ मन के नाम

कबरा, दलहा, सिहावा
(अपवाद- पहाड़ी के नाम स्त्रीलिंग-सीताबेंगरा)

5) वृक्ष मन के नाम

आमा, मुनगा, लीम, पीपर

6) तरल पदार्थ मन के नाम-

दही, मही, तेल, शरबत

7) देश, प्रदेश, समुद्र के नाम-

भारत, पाकिस्तान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, अरब सागर, हिंद महासागर

8) महीना अउ दिन के नाम-

चइत, बइसाख, जेठ, जनवरी, फरवरी, सोमवार, मंगलवार

9) अनाज के नाम-

गेहूँ, धान, चना
(अपवाद- मूंग, अरहर, मसूर, उड़द स्त्रीलिंग)

10) धातु मन के नाम-

सोना, लोहा, ताँबा, काँसा
(अपवाद- चांदी स्त्रीलिंग)

छत्तीसगढ़ी म स्त्रीलिंग शब्द

1) स्त्री मन के नाम-

राधा, सुखमती, रामवती

2) नदिया के नाम-

अरपा, पैरी, महानदी, मनियारी
(अपवाद- शिवनाथ, ब्रह्मपुत्र पुल्लिंग)

3) कुछ निर्जीव वस्तु मन के नाम-

सेकमी, कुरिया, तेलई, तरकी

4) प्राणी मन के नाम-

गाय, बछिया, कुकरी

छत्तीसगढ़ी म पुल्लिंग संज्ञा शब्द ला स्त्रीलिंग बनाय के कुछ सामान्य नियम हे-

1) पुल्लिंग संज्ञा शब्द के अन्त म ‘ वा‘ के स्थान म ‘ इया‘ जोड़े ले शब्द स्त्रीलिंग बन जाथे। जइसे-

 बुढ़वा               बुढ़िया
 बछवा               बछिया
 पँड़वा               पँड़िया
 टुरवा                 टुरिया

2) पुल्लिंग संज्ञा के अन्त म ‘ ‘ के मात्रा ला हटा के ‘ ‘ के मात्रा जोड़े ले अनेक संज्ञा शब्द स्त्रीलिंग बन जाथे। जइसे-

 टूरा                   टूरी
 बेंदरा                बेंदरी
डोकरा              डोकरी
 कुटहा              कुटही
 लबरा              लबरी
 दुल्हा               दुल्ही
 ललचहा          ललचही
 लपरहा           लपरही
 रेचका             रेचकी
 टेड़गा             टेड़गी
 कबरा            कबरी
 कुकरा           कुकरी
 हरहा             हरही
 बड़ा              बड़ी
 मंगला           मंगली
 बोकरा          बोकरी

3) पुल्लिंग संज्ञा शब्द के अन्त म ‘ ‘ या ‘ ईया‘ होही तब ओला हटा के ‘ निन‘ करे म शब्द स्त्रीलिंग बन जाथे। जइसे-

धोबी -धोबनिन
ओड़िया -ओड़निन
गौंटिया -गौंटनिन
पहटिया- पहटनिन
पहाटिया -पहाटनिन

4) नामधारी या जातिवाचक या अन्यसूचक नाम म ‘ आइन ‘ लगा के पुल्लिंग ला स्त्रीलिंग बनाय जाथे।जइसे-

गुरु -गुरवाइन
(रु~रव)
पंडित- पंडिताइन
चौबे -चौबाइन
(बे~ब)
साहेब -साहेबाइन
लाला -ललाइन
(लाला~लला)
ठाकुर- ठकुराइन
(ठा~ठ)
मिसिर -मिसराइन
(सि~स)

5) कुछ संज्ञा के पुल्लिंग अउ स्त्रीलिंग के शब्द स्वतंत्र होथें। जइसे-

मौसा- मौसी
बाबू- नोनी
ददा -दाई
ससुर- सास
जेठ- जेठानी
राजा -रानी
भांटो- दीदी
देवर- देरानी/देवरानी
साहेब -मेम
पठुरा/पठरू -पठिया
(बकरी का बच्चा) (बकरी की बच्ची)

6) कुछ अन्य संज्ञा मन के पुल्लिंग अउ स्त्रीलिंग रूप-

हाथी- हथनिन
नाती- नतनिन
पटवारी- पटवरनिन
बघवा/बाघ -बघनिन
लोहार -लोहारिन
देवार -देवारिन
किसान -किसानिन
बेटा- बिटिया
लोटा -लुटिया
दुलरवा -दुलौरिन
भैया- भौजी
एर्रा बिलाव- एर्री बिलाव
एर्रा मुसुवा- एर्री मुसुवा
एंड्रा कुरारी- माई कुरारी
(नर बगुला) (मादा बगुला)
एंड्रा भालू -एंड्री भालू/
माई भालू
एंड्रा तितर- एंड्री तितर

7) ‘ इनी‘ अउ ‘ नी‘ प्रत्यय जोड़ के घलो कुछ संज्ञा ला पुल्लिंग ले स्त्रीलिंग बनाय जाथे।जइसे-

कमल -कमलिनी (इनी प्रत्यय)
मोर -मोरनी (नी प्रत्यय)
चोर -चोरनी (नी प्रत्यय)

8) कुछ शब्द मन के प्रयोग उभयलिंग के रूप म दुनों बर होथे।जइसे-

गिंया, गरुआ, चिरई, लइका, मनखे, जाँवर-जोड़ी

9) अर्थ के आधार म एके समान होय के बावजूद स्त्रीलिंग अउ पुल्लिंग के संज्ञा शब्द अलग-अलग होथे।

जइसे-

कवि -कवयित्री
नेता -नेत्री
साधु -साध्वी
लेखक -लेखिका
महान -महती

शुद्ध अउ अशुद्ध वाक्य-

1) आपके महान कृपा होही।(अशुद्ध)
आपके महती कृपा होही।(शुद्ध)

2) कुसुम एक बड़ी लेखक बनही।(अशुद्ध)
कुसुम एक बड़ी लेखिका बनही।(शुद्ध)

3) शकुन्तला बने कवि आय।(अशुद्ध)
शकुन्तला बने कवित्री आय।(अशुद्ध)
शकुन्तला बने कवयित्री आय।(शुद्ध)

4) सुमन म बड़े नेता बने के गुन हे।(अशुद्ध)
सुमन म बड़े नेत्री बने के गुन हे।(शुद्ध)

5) कमला साधु के रूप म देवी हे।(अशुद्ध)
कमला साध्वी के रूप म देवी हे।(शुद्ध)

छत्‍तीसगढ़ी लिंग के लोकव्‍यवहार के रूप-

लोकव्यवहार के आघू व्याकरण ला घलाव रूके ला परथे अउ कभू-कभू रद्दा घलाव बदले ला परथे।

1) *English* ला हिन्दी भाषा म *अंगरेज़ी* के रूप म लिखे जात रहिस। लोकव्यवहार म सबले पहिली *नुक्ता* ला छोड़िन अउ *अंगरेजी* लिखे लगिन। ओहू म दिक्कत होइस त *अंग्रेजी* लिखे लगिन। अब एही ह सर्वत्र मान्य हे। व्याकरण सम्मत *अंगरेज़ी* शब्द हे फेर लेखन म लोकव्यवहार के शब्द *अंग्रेजी* घलो मान्य हे।

2) भारत हमारी मातृभूमि है। (सही)
भारत हमारा मातृभूमि है।(गलत)
भारत हमर मातृभूमि हे।(छत्तीसगढ़ी : सही)

उपर के उदाहरण म *हिन्दी* भाषा म देश के नाम (भारत) बर *स्त्रीलिंग* के प्रयोग होय हे; जनमान्यता के अनुसार एहा सही हे।

अब एक अउ उदाहरण ला देखव अउ गुनव-

भारत प्रगति के पथ पर बढ़ रहा है। (सही)

भारत प्रगति के पथ पर बढ़ रही है।(गलत)

भारत प्रगति के रद्दा म आघू बढ़त हे।(छत्तीसगढ़ी : सही)

 ऊपर के उदाहरण म *हिन्दी* भाषा म देश के नाम (भारत) बर *पुल्लिंग*  के प्रयोग होय हे।

वइसे हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी व्याकरण म देश/प्रदेश के नाम ला पुल्लिंग माने गे हे।

3) अब हिन्दी के कुछ संधि मन ला देखव अउ गुनव-

आम+चूर = अमचूर (आमचूर-गलत)

हाथ+कड़ी = हथकड़ी (हाथकड़ी-गलत)

कान+कटा = कनकटा (कानकटा-गलत)

 उपर के तीनों उदाहरण म संधि के नियम स्पस्ट नि हे। वास्तव म देखव तो *आमचूर* के स्थान म *अमचूर* बोलना सरल हे। वइसने *कानकटा* के स्थान म *कनकटा* अउ *हाथकड़ी* के स्थान म *हथकड़ी* बोलना सरल हे। आमजन बोलचाल म सरल शब्द ' *अमचूर, कनकटा, हथकड़ी '* मन के प्रयोग करथे; एकरे सेती ओ शब्द मन के योग ला विशेष संधि के रूप म मान्य करे गे हे।

4) हमन जावत हन।
हमन जात हन।(व विलुप्त )
हमन जाथन।( त+ह=थ )

आमजन के बोलचाल म ' *जावत हन* ' ले ' *जात हन*' फेर ' *जाथन*' म शब्द ह अपभ्रंस होके सरलीकृत हो गे। अब एही ला व्याकरण सम्मत माने जाही।
 शब्द के जोड़ ले नवा-नवा शब्द बनथे। *उपसर्ग, प्रत्यय,* *सन्धि* अउ *समास* ला शब्द रचना के विधि माने गे हे। एक तरह ले देखे जाय त आमजन के बोलचाल म बहुप्रचलित शब्द मन ला सिलहो के ही तदानुसार नवा-नवा शब्द गढ़े के नियम मन ला बनाये गे हे- समे-समे मा ओला परिवर्तित अउ परिवर्धित घलो करे गे हे।

डाॅ विनोद कुमार वर्मा
कहानीकार, समीक्षक, संपादक

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