सत्‍यधर बांधे ‘ईमान’ के दू-चाारठन छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग

दू-चाारठन छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग

-सत्‍यधर बांधे ‘ईमान’

सत्‍यधर बांधे 'ईमान' के दू-चाारठन छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग
सत्‍यधर बांधे ‘ईमान’ के दू-चाारठन छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग

दू-चाारठन छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग

आज के छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग के कड़ी म प्रस्‍तुत श्री सत्‍यधर बांधे के छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग अउ हास्‍य –

छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग -महूँ बनहूँ नेता

जगतू आज मेछा मा ताव देवत अपन घर के चौंरा मा बइठे राहय। गली डाहर ले मोला आवत देख के हड़बड़ा के उठिस, अउ मोला आवाज लगाय लगिस – भईया थोकिन आबे तो। जगतू के आवाज सुनके महूँ तिर मा आते हे पूछेंव – का होगे जगतू, काबर चिल्लावत हस जी? मोर गोठ ला सुन के जगतू कथे – कुछू नहीं भईया एक ठन सलाह लेना रिहिस, आप पढ़े-लिखे हव अउ रंग-रंग के कविता कहानी घलो लिखत रहिथव, त मोला बतातेव ये विधायक के चुनाव लड़े बर का योग्यता लगथे, अउ मनखे मा नेता बने बर का-का गुन होना चाही। महूँ सोचत रहेंव ये बार विधायक के चुनाव लड़तेंव। जगतू के गोठ ला सुन के मँय एकदम सकपकागेंव, मँय कहेंंव – भाई वइसे तो नेता बने बर कोनो योग्यता के जरुरत नइ हे, कहे के मतलब ए हे की जेकर मेर कोनो योग्यता नइ हे उही नेता ये। तभो ले नेता बने बर मनखे मा कुछ गुन होना जरुरी हे, जइसे की नेता ला पशु परेमी होना बहुत जरुरी हे, ताकि पशु के गुन ला सीख सकय, जइसे हाथी से सीख सकय की खाए के दांत अउ देखाए के दांत अलग-अलग होना चाही, कुकूर ले सीख सकय की कतना बेरा गुर्राना हे अउ कतना बेरा पुँछी हलाना हे, साँप से सीख सकय की जेन ह दुध पीयाही उही ला डसना हे, गोल्लर से सीख सकय की हरहा चरना अउ हुमेड़ना हे। अइसने आनी-बानी के जीव जन्तु से आनी-बानी के गुन सीखना हे। मोर गोठ ला सुन के जगतू माथा ला धरलिस अउ कहिथे- का भईया बड़े-बड़े पशु मन ला बताथस, मुसवा असन ले कुछू नइ सीख सकन का?। मँय कहेन सुन भाई जगतू, मुसवा असन ले नेता मन नइ सिखय, मुसवा ले सीखथे अधिकारी मन, दू काठा धान ला मुसवा ह फोलथे त अधिकारी मन दू सौ -चार सौ बोरा धान ला फोलथे, त तैं मुसवा ला छोड़ अउ बड़का – बड़का सोच। मोर गोठ ला सुन के जगतू के जोश जुड़ागे, ठाढे मेछा हा खालहे कोती आगे, अउ कहिथे – कुछू नहीं योग्यता वाला, योग्यता तो मोर मेर हवय भईया, बस ये पशु परेमी वाला योग्यता लाना हे, अब ये पारी नइ ता अगले पारी मँय जरुर नेता बन हूँ, साँप के मंतर ला जान लेहू़ँ, तभे साँप के बिला मा हाथ ला डार हूँ। अतना सुनते ही महूँ ह तथास्तु कहिके चलते बनेव।

छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग-मँहगाई

कोनो ह बने कहे हे ‘घुरुवा के घलो दिन बहुरथे’, आज हम एला पांच-परगट देखन घलो हन। कइसे जब हम पहिली साग-भाजी बिसाय बर हटरी जावत रहेन, त फार-फार सड़े-गले साग-भाजी के कचरा बस्सावत राहय, कोनो जगा अंडा भाजी, कोनो जगा मुरई भाजी त कोनो मेर पिचकुलहा पताल फेकाय राहय अउ अब नानकुन भाजी के पत्ता घलो नइ फेकावत हे, साग-भाजी के दुकान मा जाबे त अइसे लगथे जानोमानो कोनो सोना चाँदी के दुकान मा आगे हस का? पूरा के पूरा बाजार मानो बिहाव पंडाल बरोबर सजे हे, अउ सबो साग-भाजी मन एक-ल-सेक मेकअप करके बइठे हे। दगहा पताल असन ह घलो नहा-धोके के एकदम चमकत हे जेकर भाव सुन के बड़े-बड़े तिर मा नइ ओधत हे, कुड़हा-कुड़हा माढ़े राहय रमकेलिया तउन ह सोझ-सोझ सोरिया के रखाए हे, हिम्मत करके बिसाय बर निहर जबे त भाव सुन के उठ नइ सकच कनिहा उही मेर टेड़गा हो जथे। भाटा तो अइसन चमकत हे जानोमानो नखपालिस लगाके बइठे हे का, निहर के देखबे त बड़े-बड़े भोंगर्रा पड़े हे, तभो ले भाव सुनबे त माथा कोती ले पछिना चुचवाय ल धरलेथे। फूल गोभी ह तो दुल्हिन बरोबर दिखत हे, बिसाय के तो हिम्मत नइ हे नजर भर देखके मन ला जुड़ाले। खेखसी के भाव तो अइसन बाढ़े हे जानोमानो इही दुल्हिन के सहेली ए अउ आगू-आगू मा मटमटावत हे। मखना ह पगरईत बनके बइठे त तुमा ह रुसाए मोसी अस कोंटा मा बइठे हे। आलू बिचारा बरात मा नागिन डांस करके धुर्रा-माटी मा सनाये रहिथे तइसने सनाये हे, तभो ले कोनो ओला पचास रुपया से कम मा छू नइ सकच । बाजार ला अइसन सुग्घर देखके मन थोकिन प्रसन्न घलो होथे, चलव कुछू राहय हमर किसान भाई मन ला कभो तो मेहनत के उचित दाम मिलत हे, फेर थोकिन मा सबो भरम टूट घलो जथे, जब पता चलथे ये सबो साग-भाजी मन म एकठन ह घलो हमर स्थानीय किसान के नोहय, ये तो सबो बड़े-बड़े रुपया वाला मन के फारम हाउस ले आए हे। खैर अब कहूँ ले आए राहय, कतको भाव राहय जीये बर तो खाएं ला पड़ही, किलो-कात नहीं त एकाध पाव बिसाय ला पड़ही। जइसे बिहाव मा जाबे त टिकावन तो टिके ला पड़थे, वइसने बाजार मा खिसा तो खाली करे बर पड़थे, भले फेर झोला गरु होवय चाहे झन होवय। अब सबो के दिन धीरे-धीरे बहुरत हे फेर आम मनखे के दिन कब बहुरही ते।

छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग-सलमान खान के बिहाव

मुंबई के सलमान खान, सोहेल खान अउ अरबाज खान तीनों भाई ल कोन नइ जानय? ये तीनों बड़का फिलिम स्टार हरय। फेर आज सोहेल खान अउ अरबाज खान दूनो एकक कोंटा मा मुड़ी धरे बइठे राहय। सलमान खान ह दूनो भाई ल अइसे बइठे देख के पुछथे “का होगे जी तुमन दूनो झन काबर मुड़ी धरे बइठे हवव”। सलमान के गोठ ल सुनके सोहेल ह कहिथे “अरे हँमन तो हमर लइका मन के भविष्य ल लेके चिंतित हवन, आज जतका झन बड़े-बड़े फिलिम स्टार हे तेखर बेटा-बेटी मन फिलिम मा आगे अउ एक-ल-सेक फिलिम बनावत हे। हँमन दूनो भाई तुँहीं ल लेके फिलिम बनाथन, अब हमर लइका मन कोन ला लेके फिलिम बनाही”। अतका सुन के सलमान कहिथे “हँ समस्या तो गंभीर हे, चलव मँय तुंहर लइका मन के खातिर बिहाव कर लेथँव, फेर मँय एकदम गरीबहा परिवार मा बिहाव कर हूँ।” सलमान के हव कहिते ही गरीबहा परिवार के खोज पूरा भारत भर म शूरू होगे, खोजत – खोजत तीनो भाई एक दिन छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा मा पहुँच गे। एक घर पता चलिस, बिहाव लायक बेटी हवय अउ गरीबहा घलो हवय। बांस के फइरका ला हटाके झोपड़ी असन घर मा तीन भाई समावत हुए कहिथे ” कहाँ हस का कका”। अवाज ला सुनके समारु कुरिया ले बाहिर निकल के तीनों भाई ला देख के कहिथे “कोन अव ग, का काम बर आए हव। समारु के गोठ ला सुन के तीनों भाई सन रहि जथे, ए दुनिया मा कोनो अइसन मनखे घलो हवय, जे हँमन ला नइ जानय। अपन आप ला संभालत, सलमान खान कहिथे “कका मँय सलमान खान अँव, आपके बेटी के हाथ मांगे बर आए हँव, मँय उही हरँव जे कहिथे, एक बार कमिटमेंट कर दूँ तो मैं अपने आप की नहीं सुनता”। सलमान खान के गोठ ला सुन के समारु कहिथे “टार ददा, जे ह अपन आप के नइ सुनय, वो ह मोर बेटी के काय सुनही, अइसना मनखे ला मोर बेटी ला नइ देवंव” जय जोहार।

छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग- मोटापा

दाई-ददा के मया दुलार लइका मन बर आजकल अतना पलपलावत हे की लइकन मन गणेश भगवान असन लम्बोदर होवत जावत हे। अउ अच्छा बात ए हरय की लइका के संग-संग दाई-ददा मन घलो लम्बोदर होवत हे। खाली लम्बोदर बस होवत हे अइसनो नइ हे, लइका मन संडेवा कस ढंगढंग ले लम्बा घलो होवत हे। अउ होही काबर नहीं? युरिया – ग्रोमोर असन महँगा – मँहगा खातु डार के पैदा करे वाला चाऊँर-दार, साग-भाजी खँवावत हन। संगे-संग मैंदा ले बने वाला एक-ल-सेक खजानी चाकलेट घलो तो खँवाथन। सिरिफ खँवाए भर के बात नइ हे, सबो डाहर के खियाल घलो रखे ला पड़थे, लइका मन घाम मा खेल के करिया झन होवय कहिके घर ले बाहिर नइ जान देंवन, अउ-ते-अउ लइका के सुख के खातिर भाठा – मैदान ला घलो छेक-छेक के घर दुवार बना डरेन हन, ताकि लइका मन बाहिर मा खेले बर झन जा सकय बस सुते-सुते बइठे-बइठे मोबाईल मा गेम खेलय अउ टीबी देखय अउ सुख भोगय कहिके। अइसन सुख मा लइका मन लम्बोदर नइ होही, संडेवा कस नइ बाढ़ही त का फायदा? एक बेरा रिहिस जब घर के सबो सदस्य मन कुछू-न-कुछू बूता मा पिसावत राहय, बेटी मन बोरिंग एट-एट के हऊला-हऊला पानी लानय, झऊँहा-झऊँहा कोबर कचरा फेकय अउ बेटा मन गाय-गरुवा बर कांदी लानय, पैरा-भूसा देवय, लकड़ी-फाटा चीरय अइसन आनी-बानी के बड़ भारी भरकम बूता मा लदाय राहय। आज तो हम अतना बिकास करके सुख मा हवन की टोटी खोल तहन पानी, लाइटर बार तन आगी, न गाय न गरुवा न ही फिजुल के भारी-भरकम काम-बूता। अब तो घर के दू झन सदस्य भर रोजगार मा हे, तहन सब बेरोजगार होके झूलना मा झूलत हे, एक झन दाई हे जे ह घर भीतरी मा बुता करत हे एक झन ददा हे जे ह घर के बाहिर मा बूता करत हे। फेर अच्छा बात ए होइस की पहिली एक थारी खाँवन अउ काम-बूता मा ओला पचो घलो डरन, अब काम-बूता पहिली असन नइ हे तभो ले एक थारी ले उपराहा खाके पचो डरथन। अउ एकठन अच्छा बात तो ए होवत हे की पहिली बड़़का-बड़का नाव वाला बिमारी शुगर, बीपी, हाईपरटेंसन जे ह बड़े-बड़े पइसा वाले मनखे मन ला होवय, छोटे-मोटे मनखे मन तो बस ओखर नाव ला सुन के खुश हो जय, तउन हा आजकल आम साधारण मनखे मन ला घलो होय ला धरलिस। बाढ़े पेट तो वइसे भी खात-पीयत घर के निशानी रिहिस अब ओमा बड़े-बड़े बिमारी के थप्पा लगे ले नाव अउ बड़का होगे हे।

छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग- जय हो गोल्‍लर देवता

मोर हिसाब से अब तो गोल्लर ला राष्ट्रीय पशु बनाये के लिए सरकार ला कदम बढ़ाना चाही, काबर की धीरे-धीरे बघवा के संख्या कमतियावत हे अउ गोल्लर के संख्या बाढ़त जावत हे। गोल्लर के चाहनेवाला घलो अबड़ झन होगे हे। जेला देखबे उही गोल्लर बनना चाहत हे। गोल्लर कस किंचर-किंचर के खाना, न कुछू काम न कुछू बुता, पेट भरगे तहन कोनो जगह बइठ के पउगराना, बात-बात मा मारे बर कुदाना, कोनो चाहे कुछू बोलय अपन धुन मा मस्त रहना । मोर बात ल अगर नइ पतियावत होहू त कोनो भी सरकारी दफ्तर मा चल देवव अउ देखव, जे ह कुर्सी मा बइठे होही वो ह अघाए गोल्लर का पउगरावत, उंघावत दिखही, जे ह मोबाईल धरे होही ते ह बछरु गोल्लर अर्थात आगू चल के गोल्लर बनने वाला बछरु कस मेछरावत दिखही। जे सबले बड़े साहब होही तउन ह हरहा गोल्लर कस अभी दफ्तर नइ पहुंचे होही। अच्छा अगर कोनो सरकारी दफ्तर मा नइ जाना हे त कोनो नेता जी के घर कुछू काम धर के जलदेव अउ देखव कइसे माँछी हाकत गोल्लर कस मुड़ी ला हव मा हलाही भले कुछू काम होवय चाहे झन होवय। अगर कोनो नेता मेर घलो नइ जाना हे त अपन घरे मा झाक लेवव, मोबाईल मा गेम खेलत या टीबी देखत कोनो लईका ला काहीं बूता तियार के देखव, बिच रोड़ मा बइठे गोल्लर कतको हारन मारे मा नइ उठय तइसे लइका मन कतको बोल ले टस-ले-मस नइ होवय। दीदी मन चाही त घर मा अपन पति देव ला घलो अजमा सकत हे, जतका बेर पेपर धर के पढ़े बर बइठही कुछू बूता तियार देवय, तहन देख कइसे मरकंडहा गोल्लर कस फूसरही। वइसे तो गोल्लर एक निश्चित लिंग के होथे फेर मनखे मा ए नियम लागू नइ होवय। जेखर घर देखबे तेखर घर पति देव मन बछरु अउ पत्नी मन बघवा कस दिखते, फेर बघवा के बदला गोल्लर आने वाला हे त गोल्लर कस कह सकत हन। अउ ए लेख के बाद मोर का हाल होही मँहू नइ जानव काबर की मोरो घर मा गोल्लर हवय, जय हो गोल्लर देंवता।

-सत्‍यधर बांधे ‘ईमान’




येहू ल देख सकत हव-सत्‍यधर बांधे ‘ईमान’ के 5 ठन नान्‍हे कहिनी (छत्‍तीसगढ़ी-लघुकथा)



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