छत्तीसगढि़या कबि कलाकार
-धर्मेंन्द्र निर्मल
छत्तीसगढि़या कबि कलाकार
पानी हॅ जिनगी के साक्षात स्वरूप ये। जीवन जगत बर अमृत ये। पानी हँ सुग्घर धार के रूप धरे बरोबर जघा म चुपचाप बहत चले जाथे। जिहाँ उतार-चढ़ाव, उबड़-खाबड़ होथे पानी कलबलाय लगथे। कलकलाय लगथे। माने पानी अपन दुःख पीरा, अनभो अनुमान अउ उछाह उमंग ल कलकल-कलकल के ध्वनि ले व्यक्त करथे। पानी के ये कलकल- कलकल ध्वनि हँ ओकर अविचल जीवटता, सात्विक अविरलता अऊ अनवरत प्रवाहमयता के उत्कट आकांक्षा ल प्रदर्सित करथे। ओइसने मनखे तको अपन सुख-दुख ल, अंतस के हाव भाव ल गा-गुनगुना के व्यक्त करथे। वोहँ अपन एकांत म जिनगी के पीरा अऊ उमंग ल गुनगुनाथे जेला मानव समाज संगीत कहिथे।
धान के कटोरा हमर छत्तीसगढ़ हँ गीत अऊ संगीत के अथाह-अपार सागर म उबुक-चुबुक हे। इहाँ कोनो किसम के खानी नइहे बल्कि छत्तीसगढ़ ल कहूँ कला संस्कृति अउ गीत संगीत के अगम दाहरा कहे जाही त कोनो किसम के अतिशयोक्ति नइ होही। कला अऊ संस्कृति हँ छत्तीसगढ़ के नस नस म लहू बनके दउँड़त हे। येह एकर संस्कार बन गे हे। जेन आज छत्तीसगढ़ के लोकगाथा अऊ लोकगीत बनके जन-जन म बगरे हे। सुआ, करमा, ददरिया, चंदैनी, पंडवानी, भरथरी ये सब गीत संगीत के विभिन्न रूप हरे।
ये हँ अभी के बात नोहय। कला अउ संस्कृति के धार हँ आदम जुग ले धरती म प्रवाहित होवत चले आवत हे। तभे आजो घलो दुर्गम जंगल भीतरी ले आदिवासी गीत-संगीत सुने बर मिल जथे। संगीत हँ मनखे के मन ल झूमे बर मजबूर कर देथे।
संगीत हँ मन के अतल गहराई म उतर जथे। ओला भींजो भींगो डारथे। अपन रंग म चोरो बोरो कर डारथे। तभे तो मनखे संगीत ल सुनते ही झूमे लगथे। ओकरे सेती संगीत ल साधना माने गे हे। एक समे तानसेन हँ बादर ल बरसे बर मजबूर कर दे रिहिसे। ए हँ संगीत ल साधना अउ साधक के शक्ति के रूप म प्रमाणित करथे। माने साधक, शक्ति अउ साधना के त्रिवेणी स्वरूप ही संगीत हरे।
साधना मँ शक्ति समाहित रहिथे। उही शक्ति के असर के कारण मनखे का देवता घलो झूमे लगथे। कहिथे भगवान भाव के भूखे होथे। सुरमयी संगीत म शक्ति अउ साधना के इही भाव हँ अंतर्निहित होथे।
भाव हँ जइसे देखावा तड़क भड़क ले दूर रहिथे। ओइसने संगीत ल घलो देखावा अऊ तड़क-भड़क हँ फूटे आँखी नइ सुहावय। फेर आजकल देखे बर मिलथे के संगीत के नाम म देखावा, तड़क-भड़क अऊ फूहड़ता के प्रदर्सन जादा होय लगे हे। एक समे रिहिसे जब संगीत हँ कान के रस्ता मन म उतर के तन ल झूमा देवय। अब ओइसन बात नइ रहिगे। अब संगीत के नाम म फुहड़ता बिके लगे हे। अब अइसे होगे हे कि संगीत चालू होईस अऊ अड़म-गड़म नाच कूद। संगीत बंद होइस, के भूला जा। जबकि संगीत के सार्थकता उही म हे जेला सुनके मन झूमय नाचय तन भर नहीं। असल संगीत तनमन दूनों म रच बस जाथे। अमिट छाप छोड़ जाथे। जेन हॅ बेरा कुबेरा अकेला दुकेल्ला में अंतस ले फूट परथे। जेला हम दुख या सुख के बेरा गुनगुनाए लगथन।
संगीत के नाँव म अब हवस के प्रदर्सन होय लगे हे। माने आजकाल संगीत हँ हवस के पर्यायवाची होगे हवय।
पश्चिमी सभ्यता के फुहार, आधुनिकीकरण के बौछार अऊ गूगलबाबा के गुजगुजिया व्यवहार के चलते आज संगीत घलो अपन रद्दा ले भटक गे हे। एकर ऊपर कुसंस्कृति के प्रभाव परे लगे हे।
लोगन कहिथे के जमाना बदल गे हे। जमाना नइ बदले हे। सोंच बदल गे हे। हमला अपन सोंच ल बदले के जरूरत हवय। आजकाल संगीत के नाँव म सोर सुने बर मिलथे। जबकि संगीत म सोर बर थोरको जघा नइ होवय। अऊ जघा रहना भी नई चाही। सबके अपन अपन मरजाद होथे। अऊ मरजाद म रहिके कुछू चीज के मरजाद बांचथे। जइसे मरजाद मे रही के ही राम मर्यादा पुरूषोत्तम होईस।
छत्तीसगढ़ में अइसे-अइसे जोरदार अऊ असरदार गीत संगीत हे जे हँ मन म उतर जथे अऊ भींजो के चोरोबोरो कर डारथे। फेर देखे बर मिलथे के इन मन छत्तीसगढ़ के सीमा ल लांघ के अऊ दीगर प्रांत म सुने बर नइ मिलय ए हँ एक ठो गंभीर अऊ सोंचे के बूता हरे।
छत्तीसगढ़ म ही कई ठो दीगर प्रांत, बोली, भाखा के गीत हँ बेधड़क घुसर के इंहाँ ऊँहा सोर मचावत हे। रंगझांझर मचावत हे। इन ल सुनके हमर गीत संगीत गँवा गे हे अइसे लगथे। जबकि ओइसन बात नइ हे। एकर पाछू हमर मानसिकता, हमर कमजोरी हँ जुवाबदार हे। एकर मतलब हमी कमजोर हवन। हम कहूँ भी जावन त अपन भाखा ल बोले बर लजाथन। अपन प्रांत के गीत संगीत ल सुनेबर सकुचाथन, दूसर बोली भाखा के गीत ल सुन के भले झूम नाच लेवन। ओतका बेरा वो बेंदरा नाच म हमला लाज नइ लागय। एकर ले इही मतलब निकलथे के हम आजकल देखावा करे लगे हवन। देखावा उही मन करथे जेमन सही बात ल नइ जानय। नइ समझय। जइसे थोथा चना बाजे घना।
अइसे नइहे के इंहा कोनो किसिम के कमी हे। कमी थोरको नइहे बल्कि ये सब हमर कमजोरी हरे। कहूँ अइसन कमी कमजोरी होतिस त सास गारी देवय ननंद मुंहू लेवय गीत म बंबई के संगे संग पूरा भारत नइ झूमतिस। टूरा नइ जानय रे नई जानय सहीं गीत के होंठ ल कोनो होटल-बार नई चुमतिस।
आज कपड़ा फेंक के नंग धडंग नचइया के देखइया, सुनैया सबो होगे हे। उन्करे मान सम्मान तको होवत हे। बहकत समाज अउ बरगलैया राज म जम्मो प्रमाण पुरूस्कार इही फूहड़ अउ लंपटमन के ओली म जावत हे। फूल अउ पान के कोनो चिनहार नइ रहिगे हे। जउन जेने डारा ल अमर पावत हे उही ल बुरच बुरचके खाए परे हे। कर्नप्रिय संगीत तइहा के बात होए लगे हे। एकर जुमेदार हमर संस्कार हे। हम ओइसने संस्कार म पलत-जीयत हन अऊ भविस ल उही संस्कार देवत तको हवन।
पीछू एक ठन अऊ जबर कारण देखे बर मिलथे के हमार संस्कृति अऊ समाज के ठेकेदार मन खुदे नई चाहय के हमर संस्कृति, गीत, संगीत देसराज के सीमा ल लांघ के अपन परचम लहरावय। उन ल सिरिफ अऊ सिरिफ पइसा चाही। जेन प्लास्टिक के कैसेट जतका बिक जाय उही असली संगीत हरे। जेन केसेट ले हम जादा से जादा पइसा रपोट सकन उही असली संगीत हरे। संस्कृति अऊ गीत संगीत के ठेकेदार बने बइठे परदेसिया मन ल छत्तीसगढ़ से कोनो मतलब नइ हे। न ही उन ल इहाँ के संस्कृति अऊ संस्कार से मतलब हे। उन तो कमाए रपोटे बर ही इहाँ डेरा डारे हावय त काबर इहाँ के संस्कृति ल आगू बढ़ाही। ओकरे सेती उन छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया के नारा निकाले हे। जेन नारा म उन छत्तीसगढ़िया मन ल बाँध-छाँद के इहाँ के धन-दोगानी ल लूट सकय।
इहाँ के बयपारी मन छत्तीसगढ़ी गीत संगीत ल आगू बढ़ाही या एकर बिस्तार करही त बाहिर के कला पारखी मन इहां के कलाकार, गीत संगीत ल पूछे-परखे लग जाही। जब अइसन होही त इहाँ के कलाकार मन के पूछ परख बाहिर म बाढ़े लगही। अइसन स्थिति म इन बनिया बयपारी मन के गुलाम कोन कलाकार रहिही। बस इही सोंच हर इहां के गीत संगीत ल आगू नइ बढ़ावत हे। उन सिरिफ कमावत हे। दूहत हे।
छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया नारा हँ हमर बड़ई नोहय। बल्कि हमर मंघार म जबर ठोसरा हरे। जेला मारके उन मीठलबरा मन हमन ल चुप करा सकय अऊ जतेक हो सकय कमा -लूट सकय।
छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया के मतलब इहाँ के मनखे बढ़िया हे जेन दबे रहि सकथे। अपन हक बर नइ बोल सकय। इहाँ के माहौल बढ़िया हे जेमा बाहिर ले गैर कानूनी काम करके लुकाए-छिपे रहि सकथन। इहाँ प्राकृतिक सम्पदा भरपूर मात्रा म हे जेला बाहिर म बेंच के हम जादा ले जादा पइसा कमा सकथन, ए नारा के पीछू इंकर इही नीयतखोरी उजागर होथे।
ए नीयत ल अब हमला पहिचान के फरियाए बर परही। ए नारा के ठोसरा ल उलटा उंकरे मंघार म मारे बर परही। अपन हक मरजाद खातिर मुँह उचाके जुवाब देबर परही। हमला अब दब के नइ रहना हे। बल्कि आँखी ल उघार के चारो मुड़ा देखे परखे बर परही अऊ साबधान रहे बर परही। तभे हमर संस्कृति बांचही। हमर छत्तीसगढ़ बांचही। हमर भविष्य बांचही।
छत्तीसगढि़या कबि कलाकार
छत्तीसगढि़या कबि कलाकार सुक्खा दीया के बाती ।
बरसिस बादर चुहिस चार दिन मुँँह फारे ओरवाती।।
सीधवा मरगे ददा भाई म जेने जइसन पाइन जोतिन ।
काम सिरागे दुख बिसरागे नीचो निमउ कस छेछरा फेकिन।।
ये बीता भर पेट के खातिर उमर पहागे छोलत छाती।………….
पइसा सबले बड़े मदारी जस पा ले गा के चटुकारी ।
कतको झिन बंदूके म सटक गे कोनो सुरा सुंदरी के दुवारी।।
ओगरत झिरिया ल पाट डरिन रहिगे धरे कला के थाती।……………..
हरेक गाॅव म चार पाॅच झिन मिल जाही जी कबि कलाकार।
साधन संगी संगत नइहे दिन पहावथे घूमत खार।।
निकल परिस त चिन्हैया नइहे मॅंजइया मन होगे घाती।………………….
चुहत पसीना घाम पियास म गोबरहिन हे जतका सुग्घर ।
ओतका ओग्गर हीरवइन नइ होय पोते पावडर उपर पावडर।।
भइगे परदा म नकल उतारथे बिहिनिया सांझ पहाती।……………………….
-धर्मेन्द्र निर्मल
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मोर गॉंव के रंग-धर्मेन्द्र निर्मल
बहुत सुंदर भाई साहब, मजा आगे