छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत Chhatisgari Lokgeet

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत Chhatisgari Lokgeet

-रमेश चौहान

Chhatisgari Lokgeet रमेश चौहान के छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत छत्‍तीसगढ़ी श्रृंगारिक रचनायें है इन गीतों की दो विशेषताएं हैं पहली सभी गीत मर्यादित भाषा में लिखी गई है और दूसरी अधिकांश रचनाओं के बोल छंदबद्ध हैं । यहां इन गीतों के बोल (Lyrics) और audio video दिए गए हैं ।

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत  Chhatisgari Lokgeet
छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत Chhatisgari Lokgeet

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत Chhatisgari-lokgeet-‘सरग ले बड़ सुंदर भुईंया, मोर छत्‍तीसगढ़ के कोरा’

पारम्‍परिक लोकगीत Focksong-

सरग ले बड़ सुंदर भुईंया, मोर छत्तीसगढ़ के कोरा ।
दुनिया भर ऐला कहिथे भैइयाए धान के कटोरा ।।

मैं कहिथंव ये मोर महतारी ऐ
बड़ मयारू बड़ दुलौरिन
मोर बिपत के संगवारी ऐ
सहूंहे दाई कस पालय पोसय
जेखर मैं तो सरवन कस छोरा

संझा बिहनिया माथा नवांव ऐही देवी देवता मोरे
दानी हे बर दानी हे,दाई के अचरा के छोरे ।।

मोर छत्तीसगढ़ी भाखा बोली
मन के बोली हिरदय के भाखा
हर बात म हॅँसी ठिठोली
बड़ गुरतुर बड़ मिठास
घुरे जइसे सक्कर के बोरा

कोइला अऊ हीरा ला, दाई ढाके हे अपन अचरा
बनकठ्ठी दवई अड़बड़, ऐखर गोदी कांदी कचरा

अन्नपूर्णा के मूरत ये हा
धन धान्य बरसावय
श्रमवीर के माता जे हा
लइकामन ल सिरजावय फिरे ओ तो कछोरा

सरग ले बड़ सुंदर भुईंया, मोर छत्तीसगढ़ के कोरा ।
दुनिया भर ऐला कहिथे, भैइया धान के कटोरा ।।

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत Chhatisgari-lokgeet-‘अपने अचरा छोर मा, बांध मया के डोर’

दोहागीत Doha geet-

नायक
अपने अचरा छोर मा, बांध मया के डोर।
लहर लहर जब ये करय, धड़कन जागय मोर ।।

नायिका
तोर मया के झूलना, झूलॅंव अंगना खोर ।
सपना आंखी हे बसे, देबे झन तैं टोर ।।

नायक
फूल असन हॉसी हवय, कोयल बानी गोठ ।
चंदा बानी मुॅह हवय, मया हवे बड़ पोठ ।।
दरस परय बर तोर मैं, तांकव बने चकोर । अपने अचरा छोर मा…

नायिका
तोर देह के छांव कस, रेंगॅंव संगे संग ।
छाय मया के जब घटा, दूनों एके रंग ।।
मोरे तन मन मा चढ़े, रंग मया के तोर ।। सपना आंखी हे बसे…

नायक
तोर मोर सपना हवय, जस नदिया अउ कोर ।
छोर बिना नदिया कहां, नदिया बिन ना छोर ।।

नायिका
लहर लहर अचरा करय, तोर बांह के छोर ।
तोर मया ला पाय के, होगे मोरे भोर ।।

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत Chhatisgari-lokgeet-‘मैं पगला तैं पगली होगे’

सार छंद Sar chhand-

नायक-
मैं पगला तैं पगली होगे, बोले ना कुछु बैना ।
ठाढ़े ठाढ़े देखत रहिगे, गोठ करे जब नैना ।

नायिका-
मैं पगली तैं पगला होगे, बोले ना कुछु बैना ।
ठाढ़े ठाढ़े देखत रहिगे, गोठ करे जब नैना ।

नायक-
तोरे हॉसी फासी होगे, जीना मरना एके ।
तोला छोड़े रेगंव जब जब, हॉसी रद्दा छेके ।
तोर बिना जोही अब मोला, आवय नही कुछु चैना ।
मैं पगला तैं पगली होगे…….

नायिका-
धक धक जियरा मोरे करथे, देखे बर गा तोला ।
तोर बिना अब का राखे हे, का मन अउ का चोला ।
सांस सांस मा बसे हवस तैं, मिलय कहां अब चैना ।
मैं पगली तैं पगला होगे….

नायक-
मैं पाठा के मछरी जइसे, खोजत रहिथव पानी ।
जी मा जी तब आही जब तैं, होबे घर के रानी ।
डोला साजे तोला लाहू, सुन ले ओ फुलकैना ।
मैं पगला तैं पगली होगे…….

नायिका-
सुवा पिंजरा के जइसे मैं हर, खोलत रहिथंव पांखी ।
दाना पानी छोड़े बइठे, पानी ढारंव आंखी ।
आही मोरे राजकुवर हा, काटे बर ये रैना ।
मैं पगली तैं पगला होगे….

नायक-
मैं पगला तैं पगली होगे, बोले ना कुछु बैना ।
ठाढ़े ठाढ़े देखत रहिगे, गोठ करे जब नैना ।

नायिका-
मैं पगली तैं पगला होगे, बोले ना कुछु बैना ।
ठाढ़े ठाढ़े देखत रहिगे, गोठ करे जब नैना ।

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत Chhatisgari-lokgeet- ‘कुँवा मार मा मोर मयारू’

सार छंद Sar chhand-

नायिका-
कुँवा पार मा मोर मयारू, देखे रहेंव तोला, कुँवापार मा
कुॅवा पार मा मोर मयारू, देखे रहेंव तोला, कुँवा पार मा

नायक-
कुँवा पार मा मोर करेजा, देखे रहेंव तोला, कुँवापार मा
कुँवा पार मा मोर करेजा, देखे रहेंव तोला, कुँवा पार मा

नायिका-
सुरता आवत हावे संगी, बीते हमर कहानी ।
संग सहेली रहिन न कोनो, भरत रहंव मैं पानी ।।
कोन डहर ले कब के आयो, खड़े रहे तैं भोला, कुँवा पार मा
कुॅवा पार मा मोर मयारू, देखे रहेंव तोला, कुँवा पार मा

नायक-
सुरता के कोठी के छबना, देखत हँव मैं खोले ।
देख देख काली के बाते, मन हा मोरे डोले ।।
तोरे मोरे आंखी कइसे,
तोरे मोरे आंखी कइसे, चढ़े एक हिंडोला, कुँवा पार मा
कुॅवा पार मा मोर करेजा, देखे रहेंव तोला, कुँवा पार मा

नायिका-
भरत भरत पानी हँउला मा, देखेंव तोर काया ।
देखत देखत कइसे संगी, जागे तोरे माया ।।
आँखी मोरे खुल्ला रहिगे, ……
आँखी मोरे खुल्ला रहिगे, होश रहय ना मोला, कुँवा पार मा
कुँवा पार मा मोर मयारू, देखे रहेंव तोला, कुॅवा पार मा

नायक-
उतर सरग ले एक परी हा, भरत रहिस हे पानी ।
पाके आमा जइसे जेमा, छलकत रहिस जवानी ।।
मारू बने ओं ताकत रहिगे,
मारू बने ओ ताकत रहिगे, मोला करके ढोला, कुँवा पार मा
कुॅवा पार मा मोर करेजा, देखे रहेंव तोला, कुँवा पार मा

नायिका-
कुँवा पार मा मोर मयारू, देखे रहेंव तोला, कुँवापार मा
कुॅवा पार मा मोर मयारू, देखे रहेंव तोला, कुँवा पार मा

नायक-
कुँवा पार मा मोर करेजा, देखे रहेंव तोला, कुँवापार मा
कुँवा पार मा मोर करेजा, देखे रहेंव तोला, कुँवा पार मा

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत Chhatisgari-lokgeet- ‘गोदवाय हँव गोदना, गोरी तोरे नाम के’

उल्‍लाला छंद Ullala Chhand-

नायक –
गोदवाय हँव गोदना, गोरी तोरे नाम के ।
फूल बुटा बनवाय हँव गोरी तोरे नाम के ।।

नायिका-
टूरा बहिया भूतहा, नई हवस कुछु काम के ।
खोर गिंजरा सेखिया, नई हवस कुछु काम के ।।

नायक-
तैं डारे हस मोहनी, मुखड़ा ला देखाय के ।
होगे तैं दिल जोगनी, दिल म, मया जगाय के ।
तोर मया ला पाय बर,, घूट पियें बदनाम के ।
गोदवाय हँंव गोदना, गोरी तोरे नाम के ।

नायिका-
रूप रंग ला तैं अपन, दरपन धर के देख ले ।
आधा चुन्दी ठेकला, गाल दिखे हे पेच ले ।
कोने तोला भाय हे, फूल कहे गुलफाम के ।
टूरा बहिया भूतहा, नई हवस कुछु काम के ।

नायक-
तोरे मुॅह ला देख के, चंदा लुकाय लाज मा ।
मुचःमुच हाँसी तोर ओ, बगरे हे सब साज मा ।
तैं मोरे दिल मा बसे, जइसे राधा श्याम के ।
गोदवाय हंव गोदना, गोरी तोरे नाम के ।

नायिका-
काबर तैं घूमत हवस, पढ़ई लिखई छोड़ के ।
आथस काबर ये गली, अइसन नाता जोर के ।
धरे मया के भूत हे, तोला मोरे नाम के ।
टूरा बहिया भूतहा, नई हवस कुछु काम के ।

नायक –
गोदवाय हँव गोदना, गोरी तोरे नाम के ।
फूल बुटा बनवाय हँव गोरी तोरे नाम के ।।

नायिका-
टूरा बहिया भूतहा, नई हवस कुछु काम के ।
खोर गिंजरा सेखिया, नई हवस कुछु काम के ।।

छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत Chhatisgari-lokgeet-‘बादर कस चुन्दी बगराये, चमकत रेंगय टूरी’

सार छंद Sar chhand-

टाँठःटाँठ जिन्स पेंट पहिरे, अउ हल हल ले चूरी ।
बादर कस चुन्दी बगराये, चमकत रेंगय टूरी ।।

पुन्नी के चंदा कस मुहरन, गली गली देखाये ।
अपन देह के रूआब गोरी, डहर डहर बगराये ।

काजर आंजे आँखी कारी, टूरा मन बर छूरी ।
बादर कस चुन्दी बगराये, चमकत रेंगय टूरी ।।

तन के चुनरी पाछू टांगे, बेग हाथ लटकाये ।
गली गली हरहिंछा घूमे, कनिहा ला मटकाये ।

धरे जवानी बरखा आगे, छम छम नाचे मयूरी ।
बादर कस चुन्दी बगराये, चमकत रेंगय टूरी ।।

टाँठःटाँठ जिन्स पेंट पहिरे, अउ हल हल ले चूरी ।
बादर कस चुन्दी बगराये, चमकत रेंगय टूरी ।।

गीतकार-रमेश चौहान


इसे भी देख सकते हैं’ रमेश चौहान के छत्‍तीसगढ़ी भजन गीत

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