पाछू भाग –छत्तीसगढ़ के तिज तिहार भाग-4: आठे कन्हैया
छत्तीसगढ़ के तिज तिहार भाग-5: तीजा-पोरा
-रमेश चौहान
तीजा-पोरा
छत्तीसगढ़ म साल भर तिहार होथे
कोनो भी देश अउ राज्य के पहिचान ऊँहा के संस्कृति ले होथे । छत्तीसगढ़ राज्य अपन संस्कृति धरोहर के धनवान हे । छत्तीसगढ़ राज्य अपन राज्य बने के सालों-साल पहिली खेती-किसानी ले जाने जात रहिस ऐही पाए के ऐला ‘धान के कटोरा’ तक कहे जात रहिस । छत्तीसगढ़ अपने खेती किसान अउ तिज-तिहार दूनों बर प्रसिद्ध हे । दूनों बात साल भर चलत रहिथे चाहे खेती-किसानी के काम होवय के तिज-तिहार मनाए के बुता । हमर छत्तीसगढ़ म साल भर तिहार होथे ।
तीजा-पोरा तिहार-
तीजा-पोरा छत्तीसगढ़ के पहिचान के तिहार आय । ए तिहार छत्तीसगढ़ के लगभग जम्मो भू-भाग अउ जम्मो मनखे द्वारा मनाए जाथे । तीजा-पोर तिहार अउ ए तिहार म बनाए जाने वाले कलेवा ठेठरी, खुरमी मन पूरा देश म अपन पहिचान रखथे । ए तिहार म हर माॅ-बाप अपन विवाहित बेटी ल मइके जरूर लाथें । बेटी मन पूरा साल भर ए दिन ल अगोरत रहिथें के कब तीजा-पोरा आही अउ कब मइके जाहूं कहिके । ए तिहार बेटी-माई मन बर बड महत्व के तिहार आय एक प्रकार ले ए तिहार ह महिला प्रधान तिहार घला आए ।
तीजा-पोरा कब मनाए जाथे-
तीजा-पोरा तिहार कोनो एकठन तिहार नो हय । बल्कि ऐमा पोरा अउ तीजा दूठन तिहार हाेथे । भादो महिना के अम्मावस के पोरा मनाए जाथे अउ एखर तीन दिन बाद भादो अंजोरी पाख के तीज के दिन तीजा मनाए जाथे । तीजा के पहिली दिन करू-भात के घला अपन अलग महत्तव होथे । तीजा के बिहानभाय गणेश चतुर्थी होथे । ए ढंग ले ए तिहार हफ्ता भर पूर जथे ।
पोरा तिहार-
पोरा तिहार छत्तसीगढ़ के सबले प्रसिद्ध तिहार तीजा-पोरा के पहिली तिहार आए । ए तिहार न केवल खुशी मनाए के तिहार ए, बल्कि ए तिहार लइका मन ल भविष्य बर तइयार करे के घला तिहार आय । ए तिहार के माध्यम ले लइका मन ल जिहां अपन पुरखा मन के परम्परा अउ संस्कृति के ज्ञान होथे होही मेरा अपने जिनगी के भविष्य के दर्शन घला होथे ।
पोरा तिहार कब मनाए जाथे-
हमर भारतीय अउ छत्तीसगढि़या तिहार कोनो अंग्रेजी महिना के तारिख ले नई मनाए जाए बल्कि ए तिहार मन हिन्दी महिना के तिथि के अनुसार मनाए जाथे । पोरा तिहार भादो महिना के अम्मावस यने अमावस्या के मनाए जाथे ।
पोरा तिहार के नाम पोरा काबर-
कोनो तिहार के नामकरण के घला अपन महत्व होथे । पोरा तिहार ल ‘पोरा’ कहे के कारण ए तिहार म पूजा बर उपयोग म लाए जाने वाले पोरा आय । पोरा माटी के बने होथे जेला भटठी म पाकय गे रहिथे । पोरा लगभग 3 इंच ऊंचा अउ ढाई इंच व्यास के मरकी होथे ।
पोरा तिहार काबर मनाए जाथे-
अइसे कहइया मन तीजा-पोरा ल किसानी के तिहार कहिथें । भादो महिना सियारी खेती (खरीफ फसल) के बीच होथे । ऐही समय फसल मन म पुष्पन होथे पोरा ला फसल के गर्भाधान संस्कार के रूप म मनाए जाथे । गॉंव म गर्भाही तिहार के नाम से घला जाने जाथे । भादो महिना तक धान-पान के बोवाई, निंदाई-कोड़ाई हो जथे अउ धान म पोटरी आए लगथे मने धान के बाली निकले लगथे, येही गर्भाधान आए। किसान बर कुछ आराम के बेरा होथे, किसानी के मुख्य सहयोगी, साधन बइला बर घला अराम के बेरा होथे ऐही पाए के पोरा के दिन नांगर-बइला नई फांदे जाए बल्कि ए दिन बइला ल धो-मांज के सजा-धजा के तिहार माने जाथे । फेर मैं मानथव ए तिहार जिंनगी जिये के तिहार आय । ए तिहार के माध्यम ले लइका मन ल जिंनगी जिए के ललक पैदा कराए जाथे । चूँकि किसानी आज के छत्तीसगढ के प्रमुख साधन त पाछू जमाना एक मात्र जिए के साधन रहिस । ए तिहार म लइका मन खेती किसानी अउ घर-गृहस्थी कोती रूझान पैदा करे बर मनाए जाथे ।
- फसल के गर्भाधारण संस्कार के रूप म गर्भाही नाम से पोरा ल मनाए जाथे ।
- खरीफ फसल के निंदाई-कोड़ाई के काम ले फुरसत होके खुशी मनाए जाथे ।
- नोनी-बाबू मन ल दुनियादारी-गृहस्थी के प्रति रूझान पैदा करे बर ए तिहार ल मनाए जाथे ।
पोरा तिहार दुनियादारी ले जोड़े के तिहार-
पोरा तिहार लइका मन ल अपन संस्कृति ल जोड़े के अउ लइका मन ल दुनियादारी ले जोड़े के तिहार आय । ए तिहार म बाबू पिला मन बर माटी के बइला त नोनी मन माटी के जाता-पिसनही, दीया-चुकिया चूल्हा के खिलौना खरीदे जाथें अउ एखर पूजा करके लइका मन ल खेले बर दे जाथे । बाबू मन ल बइला दे के ए मतलब होथे के बइला किसानी के आधार आय अउ जिंनगी जिये बर लड़का मन ल काम करना जरूरी हे, पहिली केवल किसानी के बुता होत रहिस ए पाए के लड़का मन म नानपन ले किसानी कोती रूझान पैदा करे बर ए तिहार महुत बड़े भूमिका निभात आवत हे । ओही मेरा नोनी मन ल दे जाने वाले खिलौना ह उन्ला घर-गृहस्थी ल समझे के मौका देथे । नोनी मन सगली-भतली के खेल ह नानपन ले उन्खर मन म जिम्मेदारी के बीजा बो देथे ।
पोरा तिहार के पौराणिक मान्यता-
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब कृष्ण जन्म होइसे त कंस ओला मारे मर बहुत झन राक्षस-राक्षसीन मन ल नंदगांव भेजथे, जतका झन कृष्ण ल पारे ल जाथें, खुदे मर जाथे । ऐही क्रम म पोलासुर नाम के राक्षस के घला कथा आथे । पोलासुर भगवान कृष्ण ल मारे के बहुत अकन उदिम करथे, फेर ओ खुदे मर गे । ओखर मरे के खुशी म नंद गांव म खुशी मनाथें, येही खुशी आघू जाके एक तिहार के रूप म मनाए जाए लग गे जेन ज पोला या पोरा के नाम से जाने गेइस ।
पोरा तिहार कइसे मनाए जाथे-
पोरा तिहार के आठ दिन पहिली ले बेटी-माई मन ल मइके लाए के क्रम शुरू हो जथे । जादातर विवाहित बेटीमन पोरा बर अपन मइके म आ जाथें । पोरा के दिन माटी के पोरा, बइला, अउ जाता-पिसनही के पूजा करे जाथे । एखर भोग लगाए बर ठेठरी-खुरमी देहरउरी, सोहारी जइसे कलेवा बनाए जाथे । पोरा के दिन कोनो-कोनो जगह बइला दउड के आयोजन करे जाथे । सांझ कन पोरा पटके जाथे । गांव भर के जतका तिजहारिन बेटी-माई आए रहिथे जुरमिल के पोरा पटके ल जाथें । ऐखर बर पोरा म डेडरी-खुरमी भर लेथें अउ ओला धर के जुरमिल के गांव ले बाहिर मैदान म जाथें, ऊँहा सब एके संग पोरा ल पटकथें । ए बीच कुछ हल्का-फुलका हँसी-मजाक, ठठ्ठा-ठिठोली घला चलथे । कहूं-कहूं पोरा पटके के जगह म छोटे मेला के रूप म हाट-बजार घला लगथे ।
- पूजा-पाठ- पोरा, नांद-बइला, जाता के पूजा करना अउ ठेठरी-खुरीमी के भोग लगाना ।
- पोरा पटकना- शाम के समय गांव ले बाहिर गांव भर के महिला मन द्वारा पोरा पटके जाथे ।
तीजा -तिहार –
तीजा तिहार छत्तीसगढ़ बर सबले बड़का तिहार आय ए तिहार के संबंध म कहे जाथे के ‘जियत-मरत के तीजा’ तीजा के छोड़ कोनो आने तिहार के दिन कोखरो घर कहूं कोनो मर जथे त ओखर घर बर ओ तिहार टूट जथे, फेर तीजा के दिन कोखरो घ कहूं कोनो मर घला जही त तीजा तिहार नई टूटय, अतका बड़े महत्व हे ए तिहार के । अइसे छत्तीसगढ़ म तीजा उपास सुहागिन महिला मन जादा रहिथें फेर येला कुवारी लइ़की मन घला रही सकते अउ कतको नोनी मन रहिथे घला ।
कब मनाए जाथे-
तीजा तिहार छत्तीसगढ़ हर साल भादों महिना के अंजोरी पाख के तीज के दिन मनाए जाथे । ऐही कारण ए तिहार के नाम घला तीजा होगे । लइका मन ल सुरता करे बर, याद करे बर जेन दिन गणेश माढ़थे ओखर पहिली दिन तीजा होथे ।
काबर मनाए जाथे-
तीजा उपास पति के कामना या पति के स्वास्थ अउ आयु के कामना ले करे जाथे । अइसे माने जाथे के भादो अंजोरी तीज के दिन माता पार्वती ह भगवान भोले नाथ ल अपन पति रूप म पाय बर तपस्या करत रहिस तेन पूरा होइस । ऐही पाएके कुवारी कन्या मन अपन मन वांछित पति के कामना बर ए उपास ल करथें । ओही मेरा हमर छत्तीसगढ़ के सुहागिन मन माता पार्वती अउ भोलेनाथ के संघरा पूजा करत कामना करथें के तुहरे जोड़ी कस हमरो जांवर-जीयर बने रहय, पति स्वस्थ अउ दीर्घायु होवय ।
कइसे मनाए जाथें-
तीजा तिहार उत्साह के तिहार तो आए फेर ए उपास प्रधान तिहार आए । ए तिहार म महिला मन निर्जला उपास रहिथें । ए तिहार अइसे तीन दिन के होथे । पहिली दिन, करू भात, दूसर दिन उपास अउ रतजगा अउ तीसर दिन फरहार ।
करू भात-
जेन दिन तीजा रहे जाथे ओखर पहिली रात यने के भादो अंजोरी दूज के रात ल करू भात के रात कहे जाथे । ए रात के आघू दिन तीजा उपास रहईया तिजहारिन मन करूं भात खाथें । करूं भात के मतलब होथे भात संग करू स्वाद के साग खाना जइसे करेला । येही पाए के ए दिन करेला भात खाए के चलन हे । ए रात के तिजहारिन मन अपन सबो हितु-प्रितु घर नेवता म करू भात खाय ल जाथें । ए दिन चेच भाजी खाए के घला चलन हे । रात के सुते के पहिली महुवा के दतवन करे जाथे । सोए के बेरा मुँह, दांत म सिथा के एको कण नई होना चाहिए ।
तिजा उपास के दिन-
तिजा उपास ल निर्जला रहे के नियम हे । मतलब खाना तो खाना पीना तक मना रहिथे ए उपास के दिन मुँह म एको घूँट पानी तक लेगना मना रहिथे, ए अलग बात के ऐमा समय के अनुसार कुछ शिथिलता आगे हे, पढ़े-लिखे आधुनिक विचार धारा के मन या शरीर ले असख मन कुछ पेय पदार्थ पी ले थें फेर पक्का नियम मनइया मन आज भी निर्जला रहिथे ।
मौनी स्नान-
तीजा के दिन सुत उठ के नहात-धोत ले मौनी रहे के नियम रहिथे । नहाय के बेरा महुंवा डारा के दतवन करे जाथे अउ नहाय बर तिली के पत्ता या तिली खरी या तिली तेल के उबटन हरदी संग लगा के नहाए जाथे ।
शिव पूजा-
नहा-धो के भगवान शीव के पार्थिव लिंग के पूजा करे के नियम हे मतलब कच्चा माटी ले तत्काल भगवान के मूर्ति बना के पूजा करे के नियम हे । पार्थिव लिंग के अभाव म घर के तुलसी चौरा के भोले नाथ या कोनो भी भोले बाबा के मूर्ति के पूजा करे जाथे ।
रत जगा-
तीजा के दिन सोना मना रहिथे । तीजा के रात भजन-कीर्तन गा के बिताए जाथे । एखर बर कोनो-कोनो गांव म अखण्ड़ रामधुनी के आयोजन करे जाथे त कोनो-कोनो गांव के मंदिर म भजन-कीर्तन के आयोजन करे जाथे । जेन घर के मन घर ले बाहिर नई जाना चाहे तेन मन अपने घर म कथा-कहानी या भजन-र्कीतन के कार्यक्रम आयोजित करथे । कोनो भी बहाना रात जागे ल होथे । जेन तिजहारिन मन कोनो कारण ले रात नई जाग सकय त ओमन भुईया म सो सकत हे, खटिया-दसना, सेज-सूपेती म नई सोना हे ।
फरहार –
तीजा के बिहानभाय सूत उठ के नहा-धो के भोले बाबा अउ माता पार्वती के पूजा-पाठ करे जाथे अउ कुवारी मन अपन मनवांछित पति के कामना करथें त सुहागिन मन अपन पति के स्वास्थ्य अउ आयु के कामाना करथें । ए पूजा करे बर मइके के ही लुगरा पहिरे जाथे । पूजा-पाठ करे के बाद घर म बने फरहार मने पकवान जइसे सूजी, सिंघाड़ा, साबूदाना, सोहारी, ठेठरी-खुरमी, फल-फूल जेखर जतका पूर जथे खाए जाथे । ऐही फरहार के संग तीजा उपास के परायण होथे ।
तीजा-पोरा के गीत कविता-
गीत- तीजा पोरा आत हे
तीजा पोरा आत हे, आही नोनी मोर ।
घर अंगना हा नाचही, नाचही गली खोर ।।
लइकापन मा खेल के, सगली भतली खेल ।
पुतरा पुतरी जोर के, करे रहिस ओ मेल ।।
ओखर दीया चूकिया, राखे हंव मैं जोर । तीजा पोरा आत हे….
जुन्ना जुन्ना फ्राक अउ, ओखर पेन किताब ।
धरे संदूक हेर के, बइठे करंव हिसाब ।।
आगू पाछू ओ करय, धर धोती के छोर । तीजा पोरा आत हे….
नार करेला बाढ़ के, होथे जस छतनार ।
कोरा के बेटी घलो, चल देथे ससुरार ।।
होय करेजा हा सगा, कहे करेजा मोर । तीजा पोरा आत हे….
दुनिया के ये रीत मा, बंधे हे संसार ।
नाचत गावत तो रहंय, लइका सबो हमार ।।
परब परब मा आय के, तृष्णा ला दैं टोर । तीजा पोरा आत हे….
मत्तगयंतद सवैया – चहके हे
मत्तगयंद सवैया
हे चहके बहिनी चिरई कस
हॉसत गावत मानत तीजा ।
सोंध लगे मइके भुइया बड़
झोर भरे दरमी कस बीजा ।।
ये करु भात ह मीठ जनावय
डार मया परुसे जब दाई ।
लाय मयारु ददा लुगरा जब
छांटत देखत हाँसय भाई ।।
चौपई छंद -तीजा
करू करेला तैं हर रांध । रहिबो तीजा पेट ल बांध
तीजा मा निरजला उपास । नारीमन के हे विश्वास
छत्तीसगढ़ी ये संस्कार । बांधय हमला मया दुलार
धरके श्रद्धा अउ विश्वास । दाई माई रहय उपास
सीता के हे जइसे राम । लक्ष्मी के हे जइसे श्याम
गौरी जइसे भोला तोर । रहय जियर-जाँवर हा मोर
अमर रहय हमरे अहिवात । राखव गौरी हमरे बात
मांघमोति हा चमकय माथ । खनकय चूरी मोरे हाथ
नारी बर हे पति भगवान । मांगत हँव ओखर बर दान
काम बुता ला ओखर साज । रख दे गौरी हमरे लाज
दोहा गीत-मानय पति प्राण कस
सती व्रती के देश मा, नारी हमर महान ।
मानय पति ला प्राण कस, अपने सरबस जान ।
भादो मा तीजा रहय, कातिक करवा चौथ ।
होय निरोगी पति हमर, जीत सकय ओ मौत ।।
मया करेजा कस करय, बनय मया के खान । मानय पति ला प्राण कस….
ध्यान रखय हर बात के, अपने प्राण लगाय ।
छोटे बड़े काम मा, अपने हाथ बटाय ।
घर ला मंदिर ओ करय, गढ़े मया पकवान । मानय पति ला प्राण कस……
पढ़े लिखे के का अरथ, छोड़ दैइ संस्कार ।
रूढि़वादी सब मान के, टोर दैइ परिवार ।।
श्रद्धा अउ विश्वास ले, मिले सबो अरमान । मानय पति ला प्राण कस….
दोहा गीत-नोनी के दाई अभी-
नोनी के दाई अभी, गे हे मइके गाॅंव ।
मोरे बारा हाल हे, कोने हाल बताॅंव ।।
तीजा पोरा नेंग हा, अलहन लागे झार ।
चूल्हा चउका के बुता, देथे मोला मार ।।
भड़वा बरतन मांज के, अपन आंसू बोहाॅव । नोनी के दाई अभी…
कभू भात गिल्ला बनय, कभू जरय गा माढ़ ।
साग बनय ना तो कभू, झोरे लगय असाढ़ ।।
अपने मन ला मार के, अदर-कचर मैं खाॅंव । नोनी के दाई अभी…
बड़ सुन्ना घर-बार हे, चाबे भिथिया आज ।
अपने घर आने लागे, कहत आत हे लाज ।।
सांय-सांय अंतस करय, मन ला कहां लगांव । नोनी के दाई अभी…
कहूं होतीस मोर गा, कोनो बहिनी एक ।
तीजा हा मोला तभे, लागतीस गा नेक ।।
बिन बहिनी के ये दरद, काला आज बताॅंव । नोनी के दाई अभी…
तीजा-पोरा जन स्वीकृत राजकीय तिहार-
तीजा-पोरा तिहार के छत्तीसगढ़ म बड़ महत्व हे । तीजा-पोरा तिहार छत्तीसगढ़ म मानए जाने वाला एक अइसे तिहार हे जेमा, सबले जादा जनभागीदारी होथे । तीजा-पोरा तिहार अउ ए तिहार म बनाए जाने वाला कलेवा ठेठरी-खूरमी छत्तीसगढ़ के पहिचान माने जाथे । हालाकि छत्तीसगढ़ म शासन स्तर म काेनो तिहार ल राजकीय तिहार घोषित नई करे गे, हालाकी बस्तर के दशहरा म छत्तीसगढ़ शासन के सहभागिता अउ संरक्षण प्राप्त हे फेर तीजा-पोरा के तिहार छत्तीसगढ़ के सबले जादा भू-भाग अउ सबले जादा जनता मन दुवारा मनाये जाने वाले तिहार आय एक प्रकार ले ए तिहार ह जन स्वीकृत राजकीय तिहाय आय ।
तीजा-पाेरा बर सार्वजनिक छुट्टी के मांग-
तीजा-पोर तिहार छत्तीसगढ़ के सबले जादा जनभागीदार के तिहार आय । ए तिहार म गरीब-अमीर, छोटे-बड़ सबो झन अपन बेटी-माइ के साथ खुशी-खुशी ले मनाथें । समय-समय म ए तिहार बर स्कूल शिक्षा विभाग ले आम जनता द्वारा सार्वजनिक एक सप्ताह के छुट्टी के मांग करे जात आवत हे । स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा शीतकालिन छुट्टी के नाम ले 25 दिसम्बर ले एक हफ्ता के छुट्टी रहिथे जेखर मौज-मस्ती के अलावा कोनो मतलब नई हे, उल्टा अंग्रेजी दासता के चिन्हा के रूप म चले आवत हे । ऐखर ले बने होतीस के शीतकालिन छुट्टी ल हटा के तीजा-पोरा बर एक हफ्ता के छुट्टी करे जाए एखर पाछू लोगन मन न्याय संगत तर्क देथें-
- छत्तीसगढ़ किसानी प्रमुख राज्य आय, भादो के महिना किसानी के महिना आय, किसान के लइका थोर न थार अपन दाई-ददा ल किसानी बुता म संग देथें ।
- तीजा-पोरा म प्रायमरी स्कूल के जादातर लइका मन अपन दाई संग ममा गांव चल देथें, ए पाएके गॉंव के जादादत स्कूल म लइकामन के उपस्थिति कम रहिथे । व्यहहारिक रूप म ए समय स्कूल म पढ़ई-लिखई नहीं के बराबर होथे ।
- तीजा-पोरा दाई-माई मन के तिहार आय ऐमा हर घर बेटी-माई मन ल लाए जाथे, बहू मन अपन मइके जाथें, स्कूल के मस्टरीन मन म घला मयके जाए के साध रहिथे । लइका मन ल स्कूल भेजे बर तइयार करइया नई होय ले दिक्कत होथे, बहुतझन माइलोगिन मन लइका ल स्कूल भेजे ल परथे कहिके मइके नई जा सकंय ।
- तीजा-पोरा म विवाहित बेटी मन मइके म अपन लइकामन के सहेली-सखी संग मिलथें, दाई-ददा संग लइकापन ल सुरता करके निसचिंत रहिना चाहिथे, तीजा-पोरा म छुट्टी हो जय त लइका-बच्चा के चिंता ले मुक्त बने तिहार मना सकत हें ।
- तीजा-पोरा तिहार पोरा ले शुरू होके गणेश चतुर्थी तक हफ्ता भर ले मनाए जाथे, ए पाए के ए तिहार बर एक हफ्ता के छुट्टी घोषित होना चाही ।
-रमेश चौहान
आघू भाग- छत्तीसगढ़ के तिज तिहार भाग-6: श्राद्ध पर्व पितर पाख
छत्तीसगढ़ के तीज तिहार के बड़ सुग्घर ढंग से चित्रण करे हव भाई बधाई हे
सादर धन्यवाद भइया
वाहहह वाहह लाजवाब आलेख संग मनोहारी गीत कविता हे सर जी।हार्दिक बधाई।
सादर धन्यवाद भइया