‘छत्तीसगढ़ी म भागवत कथा’ एक महाकाव्य के रूप म लिखे जात हे ऐला धीरे-धीरे कई भाग म प्रकाशित करे जाही । एला श्रीमद्भागवत अउ सुखसागर आधार ग्रंथ ले के छत्तीसगढ़ी म छंदबद्ध प्रस्तुत करे जाही । भाव अउ कला पक्ष म अपन ध्यान देत सुधार बर अपन सुझाव जरुर देहूं । आज प्रस्तुत हे ऐखर चौाथा भाग । ए भाग म पहिली स्कंध के चौथा अध्याय म वेदव्यासजी के असंतोष के कथा दे जात हे-
।। श्री गणेशाय नमः ।।
।।श्री परमात्मने नमः।।
पहिली स्कंध
अध्याय-4.
व्यासजी ला असंतोष होना
(भव छंद)
द्वापर के बात हे । सूतजी बतात हे
सत्यवती वसु सुता । करत रहय जब बुता
आय पराशर तभे । ओला देखय जभे
करय पराषर दया । सत्यवती ले मया
दूनों के संयोग ले । ऋशि माया योग ले
पराशर उजास के । जन्म होय व्यास के
व्यास कला रूप हे । अपने मा अद्भुत हे
वो तीनों काल ला। जानय हर हाल ला
अपन दृष्टि खोल के । देखय कुछु बोल के
लोग समय फेर मा । करय धरम ढेर मा
वेद ज्ञान भुलाये । अपन ज्ञान लमाये
मनखे धरय रद्दा । छोड़य काम भद्दा
अइसे वो सोच के । बात सबो खांच के
वेद मन ल बाँट के । अलग करिस छाँट के
चार वेद भार ला । धरम करम सार ला
महाभारत म लिखे । जेखर ले सब सिखे
अपन सबो शक्ति ले । व्यास अपन भक्ति ले
कारज कल्याण के । करिस धरम मान के
तभो वो उदास हे । बाचे कुछु प्यास हे
अपने अपन गुनथे । अपने बात सुनथे
अतका सब काम ले । सोचय प्रभु नाम ले
कमी काय बात हे । समझ नई आत हे
मन बहुत उदास हे । अउ का हर खास हे
सोचत वो व्यास हे । अउ बहुत उदास हे
तब नारद आय हे । व्यास खुशी पाय हे
आसन दै मान ले । आदर सम्मान ले
-रमेश चौहान
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