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Surta – 2018 से हिंदी और छत्तीसगढ़ी काव्य की अटूट धारा।

छत्तीसगढ़ी कहानी: सावन के सुरता-कन्हैया साहू ‘अमित’

छत्तीसगढ़ी कहानी: सावन के सुरता-कन्हैया साहू ‘अमित’

सावन के सुरता

बरसात का मौसम, उमड़ते-घुमड़ते बादल और चारों ओर हरियाली – यही है “सावन” का असली सौंदर्य। गाँव-शहर, गली-खेत हर जगह मिट्टी की सोंधी खुशबू और बच्चों की खिलखिलाहट से वातावरण भर जाता है।

ऐसे ही बरसात के एक दिन, चार बच्चे – सोनू, गोलू, पिंकी और बबली – पानी की धार में कागज़ की नाव दौड़ाने निकलते हैं। प्रतियोगिता का मज़ा ले ही रहे होते हैं कि गोलू का बड़ा छाता हवा में उड़कर गाँव के गौंटिया के घर जा गिरता है। छाता पकड़ने की हड़बड़ी में गोलू कीचड़ में लथपथ हो जाता है और बच्चे हँसी से लोटपोट हो जाते हैं।

गौंटिया के घर पहुँचने पर सबको गर्मागर्म गुलगुला भजिया और गुड़-छाछ का स्वाद भी मिलता है। अंत में, छाता वापस पाकर और दोस्ती की मस्ती के साथ सब बच्चे गीत गाते हुए घर लौटते हैं।

“सावन के सुरता” छत्तीसगढ़ी लोकजीवन की सजीव झलक पेश करती है। इसमें—

  • प्रकृति का सौंदर्य (बारिश, मिट्टी की खुशबू, हरियाली),
  • बचपन की मासूमियत और खेलभावना (कागज़ की नाव, छाता उड़ना, कीचड़ में गिरना),
  • और गाँव का अपनापन (गौंटिया-गौंटनीन का स्नेह, भजिया-छाछ की मेहमाननवाजी)

— सबका सहज और हास्यपूर्ण चित्रण मिलता है।

यह कहानी न सिर्फ़ बच्चों के खेल का चित्रण करती है, बल्कि यह संदेश भी देती है कि बरसात केवल खेतों और जलस्रोतों को नहीं भरती, बल्कि मनुष्य के हृदय में भी हँसी और अपनत्व की मिठास भर देती है।

कन्हैया साहू ‘अमित’

असाड़-सावन मा बादर के उमड़-घुमड़ बरसइच बुता ताय। जम्मों बुता-काम के हरिया बिगाड़ देथे। फेर बरसात के पहिली फुहार जइसे धरती मा परथे जन-जन के मन मंजूर नाचे ला धर लेथे।का सहर अउ का गवँई गाँव? भाँठा, परिया, बन-जंगल, खेत-खार अउ गली-खोर जम्मों जघा हरियर-हरियर हो जाथे। कहूँ ले माटी ले सुघ्घर ममहई उड़त रहिथे, ता कोनो कोती ले पीपल के पाना ले चाँदीकस उज्जर बूँद टप-टप, टपकत रहिथे। झन-झन बजत टीन के छपरी अउ पनही पहिरे छप-छप पानी मा नाचत-कूदत लइका मन के हाँसी-ठिठोली । येला देखके सूरुज देवता घलो लजाके बादर के पाछू मा सपट के कलेचुप मजा ले मा बिलम जाथे।
अइसन मनमोहना बरसात मा लइकामन के उदबिरिस हा पूरा पानी अस बाढ़ जाथे।
एक बेर सावन महीना मा झड़ी होवत राहय। पिटिर-पिटिर पानी हा गिरत राहय। उही बेरा मा सोनू, गोलू, पिंकी अउ बबली झिमर-झिमिर बरसत पानी मा अपन-अपन घर ले निकलिन। गोलू बारा काड़ी के छाता ताने राहय अउ पिंकी हा मोरी ला ओढ़े राहय। सोनू अउ बबली पानी मा फिंजत खेले बर सकलाइन। चारो संगवारी खोर के बोहावत पानी मा गोड़ ला पटक-पटक के मजा करे ला धरलिन। बादर हा लइकामन के मजा लेवई देखके थोरिक ठोठक गे, थिराय ला धरलिस।
सोनू हा कहिथे- “अड़बड़ होगे पानी संग खेलवारी, आवव अब कागज के डोंगा चलाबो संगवारी।”

“हव! जेखर डोंगा अव्वल आही तेला डोकरी दाई हा ताते-तात गुलगुला भजिया खवाही।” बबली हा तुरते कहिस।

चारों झन लकर-धकर अपन-अपन घर ले डोंगा बनाये के जिनिस ले आइन।

पिंकी लउहा-लउहा अपन घर ले रफ कापी लानिस। फर-फर चीर के एक पन्ना के बढ़िया डोंगा बना डारिस।

गोलू कहिस —
“मँय अपन डोंगा ला चिक्कन चमकाहूँ, जइसे दाई मोर चुंदी मा नारियल तेल चुपर के चमकाथे!”

सोनू अपन डोंगा के टीप मा झंडा लगा दिस।
“हमर झंडा लहराही, अउ डोंगा हा अगुवाही!”

बबली हा अपन घर ले बिहाव नेवता के कारड ला ले आइस। वोहा बड़ महिनत ले ओखरे डोंगा बना डारिस।
अब चारों पनिहा वीरमन के डोंगा साज गे, अउ डोंगा दउँड़ के दफड़ा बाज गे।

चारों अपन डोंगा ला गली के धारी मा ढिलिन। पारा भर के लइकामन खइमो-खइमो करे लगिन। खोर हा छोटकुन स्टेडियम कस लागे लगिस।

“बबली के डोंगा सबले आगू हे!”
“अरे! पिंकी के डोंगा कचरा-काड़ी मा अरहज गे!”
“सोनू के डोंगा के इंजन बंद होगे का! सबले पछुवागे”
“गोलू! तैं का करत हस? अपन डोंगा ला कोरा मा धरे बइठे हरिबे का?”
जतका मुँहु ओतका गोठबात होय लगिस।

तभे ओतके बेर एक जोरदरहा गरेर आइस — अउ गोलू के बड़का छाता उड़ियागे। गोलू हा छाता ला अपन दाई ले नँगत के गारी खाके, अप्पत बनके लाने राहय।
छाता हा अइसे उड़ियाइस, जइसे टोपी लगाके कोनो चिरई होय!
“अरे मोर छाता! दाई आज मार-मार के मोर चटनी बना देही!” — गोलू चिल्लाइस।

सब झन हा डोंगा दउँड़ ला छोड़ “छाता रेस्क्यू मिशन” मा जुट गिन। सबोझन मुड़ी ला ऊपर कोती टाँगे छाता के पिछलग्गा होगिन। एक जघा रद्दा मा माड़ी भर चिखला वाला गड्ढा राहय। जेहा टिपटिप पानी भरे के सेती बरोबर दिखत राहय।
सोनू चिल्लाइस-
“चेतलगहा रहव, आँखी मूँद के रटाटोर पल्ला झन भागव”

गोलू मनमाने हँफरत राहय। ओखर साँस तरी-ऊपर होत रहिस। वोहा अपन छाता के धुन मा गड्ढ़ा ला नइ अनताजिस। — मुड़भरसा गड्ढा मा जझरंग ले गिरगे, माँड़ी-कोहनी छोलागे अउ चिखला हा मुँह भर सनागे।

गोलू के हालत देख के सबोझन ठोठक गे अउ हाँसे ला धरलिन —
“ये का हे? चिखला वाले बाबा आवत हावय का!”
“नहा-धो के राजकुमार बनना रहिस, अउ बनगे चिखला के राजा!”
बबली हा हाँसत-हाँसत कहिस।

गोलू पहिली थोरिक रिसाके बइठगे — फेर खुदे हाँस परिस अउ कहिस:
“अब तुमन मोला अपन चिखलाहा डोंगा समझव – मैं तुमन ला पार लगाहूँ!”

येती छाता उड़ियात-उड़ियात गाँव के गोपी गौटिया के अँगना मा जा गिरिस। गौटिया परसार मा लगे झूलना मा
बइठे-बइठे गुलगुल भजिया खावत रहिन।
लइकामन धीरलगा के कपसत अँगना मा खुसरिन।

गौटिया हा हाँसत-हाँसत कहिन —
“बादर के छाता मोर अँगना मा आ गिरिस — आज तो गजब होगे।”

गोलू लजावत कहिस —
“बबा… येहा मोर छाता हरय… हवा-गरेर मा उड़ियागे!”

गौंटिया हा मुँह बिचकाइस —
“छाता बर आये हव, अब तुमन ला गुलगुल भजिया खाये ला परही!”

सबोझन तुरते हव कहिन। थोरिक बेरा मा गौंटनीन दाई हा ताते-तात गुलगुलहा भजिया अउ गुड़ डारे गोरस लानिन। संग मा तात तात फूटे खैरी चना घलोक राहय।। सबो झन पलथियागिन अउ हबर-हबर खाये ला भिड़गिन।
गोलू के हाथ ले एक भजिया छटक के बबली के कोरा मा गिरगे।

बबली बड़बड़ाइस –
“गोलू के भजिया घलोक छंडत हावय — छाता जइसे!”

अतका ला सुनके गौटिया के घर हाँसी ले भरगे।
गोलू छाता ला पाइस तभे ओखर जीव मा जीव आइस। गौंटिया अउ गौंटनीन के पायलगी करत सबोझन लहुट आइन।
रद्दा मा सबोझन सुग्घर गीत गाइन-

पट-पट करके पानी गिरथे,
मन हरियर हो जाथे,
डोंगा ढिलाथे, छाता उडाथे,
मन हाँसी मा फींज नहाथे!

डोंगा के दउँड़, छाता के उडियइ, गोलू के चिखला सनइ अउ गुलगुला के संग गौंटिया-गौंटनीन मन के मया-दुलार हा सावन के फुरहुर फुहार ला सुरता के दाहरा बनादिस।

कन्हैया साहू ‘अमित’ शिक्षक
परशुराम वार्ड भाटापारा छत्तीसगढ़
गोठबात- 9200252055

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