‘छत्तीसगढ़ी म भागवत कथा’ एक महाकाव्य के रूप म लिखे जात हे ऐला धीरे-धीरे कई भाग म प्रकाशित करे जाही । एला श्रीमद्भागवत अउ सुखसागर आधार ग्रंथ ले के छत्तीसगढ़ी छंदबद्ध प्रस्तुत करे जाही । भाव अउ कला पक्ष अपन ध्यान देत सुधार बर अपन सुझाव जरुर देहूं । आज प्रस्तुत हे ऐखर पहली भाग । ए भाग म मंगलाचरण, कथा के महत्व अउ कथा के प्रस्तावना दे जात हे –
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।। श्री गणेशाय नमः ।।
।।श्री परमात्मने नमः।।
मंगलाचरण
(गायत्री छंद)
हे प्रथम पूज्य देव,
प्रथम वंदन लेव ।
तेरे शरण मैं आया ।।1।।
मन में श्रद्धा विश्वास,
हाथ दीपक उजास ।
अर्पण करने लाया ।।2।।
वर्ण शब्द रस छंद,
दे प्रभु मैं मतिमंद ।
शरण तुम्हारे आया ।।3।।
हे देव कृपा कीजिये,
अज्ञान हर लीजिये ।
जो मुझको भटकाया ।।4।।
हे गौरी सुत गणेश,
मनावे तुझे ‘रमेश‘
कर मुझ पर दाया ।।5।।
भागवत कथा के महत्व
जय गणपति । जग अधिपति
जय गजमुख । गौरी सुख
पाँव परवँ । माथ धरवँ
श्रद्धा धर । मन मा भर
शिव नंदन । प्रभु वंदन
विनती सुन । थोकिन गुन
दे सुमति । हर कुमति
गुण भर दे । शुभ कर दे
(सुगती छंद)
श्याम राधे । श्याम राधे
मोर भारे । तहीं धारे
दया कर के । हाथ धर के
संग कर लौ । दास कर लौ
चरित तोरे । करय भोरे
जगत तारे । पाप हारे
नाम तोरे । रूप तोरे
तोर दाया । मिटय माया
(छबि छंद)
हे वेद व्यास । करवँ अरदास
मन भर उजास । मोर बड आस
लेत प्रभु नाम । करवँ शुरू काम
जगत पति श्याम । करय मन धाम
देव सुक पाँव । माथे नवाँव
महिमा सुनाव । श्रीहरि लखाव
शारद मनाँव । मूरत बसाँव
मेटव अज्ञान । हृदय भर ज्ञान
पहिली स्कंध
अध्याय-1
शौनक आदि द्वारा सूत जी के प्रार्थना
(गंग छंद)
मन श्याम राखे । सुक व्यास भाखे
सुन एक बेरा । ऋषि करिन डेरा
हरि क्षेत्र आके । सब जुरीया के
भगवान पाये । यज्ञे रचाये
कर सूत पूजा । विधि कई दूजा
सब हाथ जोरे । मन गांठ छोरे
शुभ प्रश्न पूछे । मन जेन रूचे
हे सूत देवा । धर हमर सेवा
हस वेद ज्ञाता । अउ पुण्य दाता
कलिकाल घोरे । बड़ पाप जोरे
विधि कोन अच्छा । जे करय रक्षा
ओ कथा दे दौ । ओ रीति दे दौ
(निधि छंद)
सुन ऊखर बात । सूतजी अघात
सुन लौं मन लाय । गुरू जेन बताय
लइकापन आय । सुक जंगल जाय
ले बर सन्यास । मन भरे उजास
देखय जब बाप । सह सकय न ताप
सुक-सुक चिल्लाय । बेटा ल बलाय
सुक सुनय न बात । अपन धुन म जात
शुक ल रमे जान । पेड़ मन तमाम
बोलय सुन व्यास । छोड़व अब आस
बोलत हे सूत । शुकजी अद्भूत
ओ सुक के पाँव । मैं माथ नवाँव
हे नेक सवाल । प्रभु कथा कमाल
(दीप छंद)
सुन लौ सब सुजान । देके अपन कान
हे भगवत पुराण । जेखर अपन मान
घीव असन लुकाय । कृष्ण रहय समाय
जे लेवय बिलोय । अपन मन ल धोय
पाहि जीवन सार । होहि बंधन पार
भागवत रसपान । हवय अमृत समान
मिलय ज्ञान विराग । मिटय सब अनुराग
सत रज तम सरूप । ब्रम्हा हरि हर भूप
जनम प्रगति विराम । सब मा हवय श्याम
देवव आखर भाव । ‘रमेश’ के मन ठाव
क्रमश: