छत्‍तीसगढ़ी म भागवत कथा भाग-2 ब्रम्‍हाजी के उत्‍पत्ति के कथा

‘छत्‍तीसगढ़ी म भागवत कथा’ एक महाकाव्‍य के रूप म लिखे जात हे ऐला धीरे-धीरे कई भाग म प्रकाशित करे जाही । एला श्रीमद्भागवत अउ सुखसागर आधार ग्रंथ ले के छत्‍तीसगढ़ी छंदबद्ध प्रस्‍तुत करे जाही । भाव अउ कला पक्ष अपन ध्‍यान देत सुधार बर अपन सुझाव जरुर देहूं । आज प्रस्‍तुत हे ऐखर दूसर भाग । ए भाग म पहिली स्‍कंध के दूसर अध्‍याय के कथा ब्रम्‍हाजी के उत्‍पत्‍ती के कथा प्रस्‍तुत हे-

chhattisgarhi ma bhagwat katha

।। श्री गणेशाय नमः ।।
।।श्री परमात्मने नमः।।

पहिली स्‍कंध

अध्‍याय-2.

ब्रम्‍हाजी के उत्‍पत्‍ती

(अहीर छंद)

जड़ चेतन सब रूप । एक श्याम हर भूप
सुनय सबो मन लाय । बात सूत हर बताय

आदि सृष्टि शुरुआत । कइसे बनय बतात
इच्छा करिस भगवान । लोक तीन सिरजान

धर के प्रभु महतत्व । बनिस पुरुष अस सत्व
दस इन्द्रिय मन एक । पाँच भूत बड़ नेक

क्षीरसागर म शेष। जेमा सुते रमेश
अपने योग लमाय । जम्मा सृष्टि बनाय

माया अपन जगाय । नाभि म ध्यान लगाय
नाभि नाल बगराय । कमल फूल सिरिजाय

जेमा धर मुड चार । ब्रम्हा होय सचार
रूप सत्वमय श्रेश्ठ । श्री हरि धरय यथेष्ट

खोलव ज्ञान कपाट । देखव रूप विराट
जेखर ओर न छोर । एको मिलय न कोर

जेखर आघु पहाड़ । लागत रहय कबाड़
धुर्रा-कण कस जान । जतका दिखय समान

जेखर हाथ हजार । लागय नार-बियार
कतका पाँव गिनाँव । कतका बुद्धि लमाँव

आँखी मुँह अउ कान । गिनय कोन गुणवान
कतका हवय नाक । देखत रहय ताक

मुड़ हजारो हजार । कोने पावय पार
अतका भरे उजास । मरय सुरूज हर प्यास

कुण्डल चमकत कान । लाखों सुरूज समान
येही दिव्य सरूप । हे नारायण रूप

जेखर सब अवतार । जेने आवय सार
जेखर अंष सनाय । जीव सबो तन पाय

-रमेश चौहान

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