छत्‍तीसगढ़ी म भागवत कथा भाग-5. व्‍यास जी के असंतोष दूर होना

‘छत्‍तीसगढ़ी म भागवत कथा’ एक महाकाव्‍य के रूप म लिखे जात हे ऐला धीरे-धीरे कई भाग म प्रकाशित करे जाही । एला श्रीमद्भागवत अउ सुखसागर आधार ग्रंथ ले के छत्‍तीसगढ़ी म छंदबद्ध प्रस्‍तुत करे जाही । भाव अउ कला पक्ष म अपन ध्‍यान देत सुधार बर अपन सुझाव जरुर देहूं । आज प्रस्‍तुत हे ऐखर पांचवा भाग । ए भाग म पहिली स्‍कंध के पांचवा अध्‍याय म व्यास जी के असंतोष दूर होवब के कथा दे जात हे-

chhattisgarhi ma bhagwat katha

।। श्री गणेशाय नमः ।।
।।श्री परमात्मने नमः।।

पहिली स्‍कंध

अध्‍याय-4.

व्यासजी के असंतोष दूर होना

(तोमर छंद)
आसन सुग्हर बिछाय । नारदजी ल बइठाय
वेद व्यास धरत ध्यान । पूजय सब विधि विधान

आदर सत्कार बाद । शुरू करय अब संवाद
ब्रम्हा मानस सुत आप । तुहर ज्ञान हे अगाध

कहय व्यास हाथ जोड़ । आप शास्त्र म बेजोड़
अपन कुछ बात बताव । मोर संताप मिटाव

नारद कहय सुन व्यास । तोरे मन मा उजास
ज्ञान के ज्ञाता आप । छोड़व अपन संताप

मोर जनम के बात । आज सुरता हे आत
रहय महतारी मोर । जेखरे अचरा छोर

बहुते मजा मै्र पाँव । लुगरा मा जब लुकाँव
दासी सुत मैं रहेंव । दुख दारिद्र ला सहेंव

नानपन के हे बात । मैं ऋषि दुवारी जात
सुनँव मैं उपदेश । मानँव ऋषन आदेश

अउ जुठा-काठा खात । ऊँहे मैं हर अघात
करत ऊंखर सतसंग । मोर मन रहय उमंग

खेलय काल हर खेल । दाई ला छुइस बेल
दाई रहय बिलखाय । काल के गाल म जाय

दाई के मरे के बाद । छोड़ के मैं अवसाद
रहँव ऋषि मन के साथ । सुनँव उन्खरे मैं गाथ

घीव टघलय जस घाम । सतसंग आवय काम
मोर मन भरगे ज्ञान । सतसंग प्रभाव जान

तब तपस्या बर जाँव । एक जंगल के ठाँव
एक पीपर के छाँव । अपन ध्यान मैं लगाँव

ध्यान धरत मजा पाँव । ईश्‍वर बर सुर लमाँव
लेत ईश्वर के नाम । मिट गय अवगुण तमाम

हृदय मा ईश्वर वास । देखेंव आत्म प्रकाश
ईष्वर के दिव्य रूप । सकल सृष्टि सरूप

जेखर रंग ना रूप । चराचर के जे भूप
बिना आँखी के देख । बिना कान के सरेख

अब्बड़ मजा मैं पाँव । मन मा मूरत बसाँव
जेने खाय पतिआय । बाकी मनन बतिआय

मोर मन गोतो खाय । ईश्वर सरूप बसाय
जानेंव न मैं नदान । अछप होगे भगवान

खोजँव आँखी निटोर । आँखी अपनेच फोर
देख व्याकुलता मोर । प्रभु बोलय अमृत घोर

अब ये जनम मा तोर । दरस नई होय मोर
अगले जनम तैं पाय । रहिबे तब तैं अघाय

कल्प कल्प जनम बाद । रहिही ये बात याद
अभी करव एक काम । लेत रहव मोर नाम

मैं याद रखँव दिन रात । ओखर कहे हर बात
जपत जपत कृष्ण कंत । होय जीवन के अंत

अपने मृत्यु के बाद । रहय सबो बात याद
आगे के सुनव बात । जउने याद हे आत

ओही कल्प के अंत । जल राषि रहय अनंत
जिहां प्रभु करय अराम । मुरली मनोहर श्याम

प्रभु इच्छा ब्रम्हा जान । जतनय अपने विधान
जम्मो सृष्टि ल सकेल । कृष्ण संग करय मेल

ओही समय के बात । ओखरे सॉस समात
महूँ ब्रम्हा संग जाय । हरि अंदर रहँव समाय

फेर सृष्टि ला सिरजान । इच्छा करय भगवान
तब ब्रम्हा ला उपजाय । जे फेर सृश्टि बनाय

अपन अंगप्रत्यंग । अउ ऋशिमुनिन के संग
महूँ ला ब्रम्हा बनाय । तब ले ये देह पाय

ईश्वर दया ला पाय । प्रभु नाम मोला भाय
नारायण भजन गाँव । तीनों लोक मा जाँव

तमुरा धरे मैं हाथ । गावँव ओखरे गाथ
नारद कहय सुन व्यास । प्रभु कीर्तन हवय खास

जेने करय मन शांत । कतको होवय अशांत
प्रभु आज्ञा हवय एक । कीर्तन करव सब नेक

तैं अपन जम्मों काम । करत रह प्रभु के नाम
हे सत्यगामी व्यास । मानव मोर विश्वास

धर्म साधक हव आप । छोड़व अपन संताप
अपने भक्ति ला साध । प्रभु नाम सुयश अगाध

सुनत नारद के बात । व्यासजी बड़ हर्षात
सुनव शौनक कहय सूत । ईश्वर नाम अद्भुत

मिटय व्यास के संताप । सुनत प्रभु कीर्तन जाप
धर नारद के गोठ । व्यास मन होगे पोठ

महाभारत के पाठ । पूरा करिस तब ठाठ
करत भक्ति योग ध्यान । श्री वेदव्यास सुजान

रचय भागवत पुराण । सुमरि-सुमरि कृष्ण नाम
व्यास नारद संवाद । प्रकट करय भक्तिवाद

-रमेश चौहान

पिछला भाग-

पिछला भाग- व्यासजी ला असंतोष होना

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