
प्रेम कहें, आकर्षण कहें या मोहित हो जाना कहें — आखिर यह होता क्यों है?
महान कवि कालिदास की नाट्य रचना ‘मालविकाग्निमित्र’ की कथा पढ़ते हुए मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि कैसे बिना किसी व्यक्ति को प्रत्यक्ष देखे, केवल चित्र देखकर ही कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से प्रेम करने लगता है। यह केवल कवि की कल्पना नहीं, बल्कि मानवीय मनोविज्ञान का यथार्थ चित्रण है।
राजकुमार अग्निमित्र दासी मालविका का चित्र देखकर ही मोहित हो गए थे। उस समय तो फोटो कैमरे नहीं थे, किंतु चित्रकारों का अस्तित्व मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही रहा है। मालविका का चित्र जब अग्निमित्र के हाथ लगा, तो वे उसके सौंदर्य से इतने प्रभावित हुए कि हृदय से आकर्षित हो गए। और जब मालविका ने नृत्य-प्रस्तुति दी, तब वे उसके रूप-सौंदर्य में पूर्णतः डूब गए।
यह स्वाभाविक है — संसार में कौन है जो रूप-सौंदर्य से मोहित न हुआ हो?
ऋषि नारद स्वयं मोहिनी रूपधारिणी कन्या के सौंदर्य से इतने मोहित हो गए थे कि उन्होंने भगवान विष्णु से उसी रूप को पाने का वर मांगा था।
ऋषि विश्वामित्र अप्सरा मेनका के सौंदर्य पर मुग्ध होकर अपने तप को त्याग बैठे और उन्हीं के संयोग से शकुन्तला का जन्म हुआ।
महाभारत काल में राजा शांतनु सत्यवती के सौंदर्य से इतने मोहित हो गए कि विरह के कारण वे व्याकुल रहने लगे। पुत्र देवव्रत (भीष्म) ने पिता के प्रेम की पूर्ति के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया।
विवाह या शुभ अवसरों पर स्त्री-पुरुष एक-दूसरे को आकर्षित करने के लिए यथा संभव श्रृंगार करते हैं। बाह्य रूप को प्रभावशाली बनाने हेतु वे उत्तम वस्त्रों का चयन करते हैं — कभी-कभी उधार भी ले लेते हैं, जैसे ऋषि नारद ने भगवान हरि से मुखौटे का रूप माँगा था! परंतु वह घटना भी भगवान द्वारा भक्त को मोहपाश से मुक्त कराने के लिए ही घटी थी।
प्राचीन समय से आज तक, विवाह-पूर्व चित्र या फोटो की परंपरा चली आ रही है। दोनों पक्ष पहले चित्र देखते हैं, फिर मिलते हैं — यदि अनुकूलता लगे तो ही परिणय सूत्र में बंधते हैं। Body language बाद की बात है, पहले तो body का चित्र देखना आवश्यक समझा जाता है! पहली नजर में ही फोटो से eye contact हो जाता है, शेष मुलाकात उसके बाद होती है।
कभी-कभी बिना व्यक्ति को देखे ही उसके कर्म और शौर्य से भी प्रेम हो जाता है। उदाहरणस्वरूप — कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता, दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान की वीरता की गाथा सुनकर उनसे मुग्ध हो गई थीं। उन्होंने अपने पिता जयचंद की आज्ञा का उल्लंघन करते हुए स्वयंवर में ही पृथ्वीराज के साथ भागकर दिल्ली की साम्राज्ञी बनने का निर्णय लिया था।
शेक्सपियर ने क्लियोपेट्रा के रूप का जो वर्णन किया है, वह वासना की तृप्ति पर आधारित है; परंतु कालिदास द्वारा अग्निमित्र और मालविका के प्रेम का जो सौंदर्य चित्रण है, वह अतृप्त सौंदर्य का प्रतीक है — ऐसा सौंदर्य जो Aesthetics की उच्चतम भावना को स्पर्श करता है।
वास्तव में, जीवन में यदि Aesthetics नहीं है, तो जीवन स्वयं ही निरर्थक हो जाता है।
रूप को देखकर मोहित होना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है; परंतु चित्र के माध्यम से चरित्र को सम्मोहित कर देना रचनाकार की विशेषता होती है — और यह गुण कालिदास में पूर्ण रूप से विद्यमान है। कालांतर में अनेक साहित्यकारों और चित्रकारों ने भी अपनी कृतियों में इसे दर्शाया है। उदाहरणस्वरूप, लियोनार्डो दा विंची की मोना लिसा — जो आज भी विश्व की सर्वश्रेष्ठ पेंटिंग मानी जाती है — उस सौंदर्य-रहस्य का प्रतीक है, जो आँखों से परे, आत्मा को स्पर्श करता है।
मेरा नमन उस महानतम कवि कालिदास को,
जिन्होंने ‘चित्र’ और ‘प्रेम’ दोनों की सार्थकता को अमर कर दिया।
डॉ. अर्जुन दुबे
अंग्रेजी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर,
मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय,
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) 273010
भारत
फ़ोन: 9450886113






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