सभ्य, सज्‍जन और सभ्यता

सभ्य, सज्‍जन और सभ्यता

-रमेश चौहान

सभ्य, सज्‍जन और सभ्यता
सभ्य, सज्‍जन और सभ्यता

आजकल प्रायः पढ़े-लिखे और धनाठ्य लोगों को सभ्य समझा जाता है अपेक्षाकृत कम पढ़े लिखे और निर्धन लोगों को असभ्य की संज्ञा दे दी जाती है । टाइ-कोर्ट पहने सूटेड-बूटेड अंग्रेजी बोलने वाले लोगों को जेंटलमैन कह दिया जाता है । क्या यह परंपरा, इस प्रकार का व्यवहार उचित है? क्या कम पढ़े लिखे, निर्धन, पारंपरिक वेशभूषा वाले लोग जेंटलमैन या सभ्य नहीं हो सकते । क्या हर धनी व्यक्ति या पढ़ा लिखा व्यक्ति हमेशा जेंटलमैन या सभ्य होते ही हैं ।

आइए धनवान और उच्च शिक्षित लोगों द्वारा गढ़ी गई इस रूढ़िवादी कुरीति परंपरा का मूल्यांकन करते हुए सभ्‍य, सज्‍जन और सभ्‍यता के वास्‍तविक अर्थ को जानने का प्रयास करते हैं ।

“सभ्य” शब्द की उत्पत्ति एवं अर्थ

“सभ्य” शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है। ‘सभा यत यस्‍य स: सभ्‍य’ अर्थात सभा में उपस्थित व्‍याक्ति । “ऐसे गुणों से सम्पन्न व्‍यक्ति जो, एक समाज या संस्कृति के निर्माण, उत्‍थान एवं सतत विकास में सहयोगी होता है ।” “सभ्य” शब्द का उपयोग एक व्यक्ति की व्यवहार और आचरण की स्तर को बताने के लिए किया जाता है। यह उस व्यक्ति को इंगित करत है जो समझदार, उदार, शिष्ट, अनुशासित और सभी के साथ अच्छा व्यवहार करता है।

“सभ्य” शब्द का विस्तार सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विकास के साथ जुड़ा हुआ है। एक सभ्य समाज में वैश्विक शांति और प्रगतिशील वातावरण, समानता, न्याय, समाज सेवा, संयम और शिष्टाचार के गुण विद्यमान होते हैं।

“सज्‍जन” शब्द की उत्पत्ति एवं अर्थ

‘सज्‍जन’ शब्‍द संस्‍कृत के ‘सत्’ और ‘जन’ शब्‍दों के योग से बना है जहां सत् का अर्थ सत्‍य और जन का अर्थ लोग है । इसका अर्थ हुआ जो सत्‍य अंगीकार किया हुआ ऐसे लोग ही सज्‍जन हैं । ‘सत्‍य’ शब्‍द आने आप में एक व्‍यापक अर्थ रखता है । सृष्टि की रचना और सृष्टि के अव्‍यवी अंग ही सत्‍य है, जो व्‍यक्ति इसके सम्‍मान करते हैं, भेदभाव रहित व्‍यवहार करते हैं, वहीं सज्‍जन है । इस प्रकार एक सज्‍जन व्यक्ति विचारशील, दयालु, मृदुभाषी और सद्व्यवहारी होता है ।

वर्तमान संदर्भ में सज्‍जन और सभ्‍य

वर्तमान संदर्भ में सभ्य को अंग्रेजी भाषा में ‘Gentleman’ कह दिया जाता है जबकि अंग्रेजी भाषा के शब्दकोश में सभ्य के लिए ‘civilized’ शब्द दिया गया है । इसलिए पहले इन शब्दों का अर्थ देखते हैं-

Gentleman

“Gentle” शब्द की उत्पत्ति फ्रांसीसी शब्द “gentile” से हुई है, जिसका अर्थ है “कुलीन।” बाद में इसका उपयोग किसी ऐसे व्यक्ति का वर्णन करने के लिए किया गया जो दयालु और सौम्य व्यवहार वाला हो।” “Gentle” शब्द का शाब्दिक अर्थ कोमल या मुलायम होता है । जब हम किसी आंदोलन के लिए “Gentle” शब्द का प्रयोग करते है, तो “Gentle Moment” का अर्थ ऐसे आंदोलन से होगा जिससे किसी को भी, किसी भी प्रकार की कोई क्षति न हो। इसी प्रकार, “a gentle breeze” का अर्थ एक हल्की हवा होती है जो कोई नुकसान या गड़बड़ी नहीं करती है। कुल मिलाकर, “Gentle” शब्द शांति, दया और करुणा की भावना को व्यक्त करता है। जब इस शब्द का प्रयोग किसी भी वस्तु या व्यक्ति का वर्णन करने के लिए किया जाता है तो उसका अर्थ नाजुक होता है, जिसे सावधानी से संभाला जाना चाहिए।

जब हम किसी व्यक्ति को “Gentleman” कहते हैं तो इसका अर्थ यह होता है कि वह व्यक्ति विचारशील, दयालु, मृदुभाषी और सद्व्यवहारी है, और वह दूसरों के साथ शारीरिक और भावनात्मक रूप से शालीनता से प्रस्तुत होता है । भारतीय संस्कृति में इस प्रकार गुण रखने वाले व्यक्ति को सज्जन कहा जाता है इस प्रकार “Gentle” शब्द “सज्जन शब्द का पर्यायवाची हुआ।

Civilized Person

शब्द “civilized’ लैटिन शब्द “civilis” से आया है, जिसका अर्थ है “शहरीय” अर्थात जो शहर या नगर में रहता हो । बाद में इसका अर्थ किसी ऐसे व्यक्ति से हो गया जो सुसंस्कृत, शिक्षित और परिष्कृत हो। विचार यह था कि एक शहर में रहने से सीखने और समझने के अवसर मिलते हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं थे। ” इसका तात्पर्य उच्च स्तर के सामाजिक, बौद्धिक और नैतिक विकास के साथ-साथ जटिल प्रणालियों और संस्थानों को प्रबंधित करने की क्षमता से है। एक सभ्य समाज वह है जिसने कानून, नियम और मानदंड स्थापित किए हैं जो व्यवहार को नियंत्रित करते हैं और निष्पक्षता और न्याय को बढ़ावा देते हैं। यह शिक्षा, कला और साहित्य को महत्व देता है और ज्ञान और बौद्धिक विकास की खोज को प्रोत्साहित करता है। यह सामाजिक सद्भाव और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को भी प्राथमिकता देता है, और संघर्षों को हिंसा के बजाय बातचीत और बातचीत के माध्यम से हल करना चाहता है। “civilization” की अवधारणा समय के साथ विकसित हुई है और इसका उपयोग उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और सांस्कृतिक श्रेष्ठता को सही ठहराने के लिए किया गया है। हालाँकि, इसे आम तौर पर आज एक ऐसे शब्द के रूप में समझा जाता है जो एक जटिल और परिष्कृत सामाजिक व्यवस्था का वर्णन करता है जो मानव गरिमा, व्यक्तिगत अधिकारों और सामान्य भलाई की खोज को महत्व देता है।

Gentleman (सज्जन) और Civilized person (सभ्य) में अंतर

“सज्जन” और “सभ्य व्यक्ति” शब्द कुछ समनर्थी लगते हैं, लेकिन उनके अलग-अलग अर्थ हैं। ‘एक सज्जन व्यक्ति आमतौर पर एक ऐसे व्यक्ति को संदर्भित करता है जो स्वयं को अनुग्रह, शिष्टाचार साथ प्रस्तुत करता है।’ यह शब्द अक्सर शिष्टता और सम्मान के विचार से जुड़ा हुआ है, और एक सज्जन से अपेक्षा की जाती है कि वह दूसरों के प्रति सम्मान दिखाए, विशेषकर दूसरों के प्रति, और विनम्र और विचारशील तरीके से व्यवहार करे। दूसरी ओर, ‘एक सभ्य व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति को संदर्भित करता है जो एक उन्नत समाज का हिस्सा है, जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी, कला, साहित्य, दर्शन और नैतिकता जैसे विभिन्न क्षेत्रों में उच्च स्तर को प्राप्त कर चुका है।’ एक सभ्य व्यक्ति से उम्मीद की जाती है कि वह दुनिया का व्यापक ज्ञान और समझ रखता है और खुद को इस तरह से प्रस्तुत करता है जो उनके समाज के मूल्यों और मानदंडों को दर्शाता है। जबकि एक सज्जन एक सभ्य व्यक्ति की कुछ विशेषताओं को ग्रहण कर सकते हैं ।

”एक सज्जन व्यक्ति होना मुख्य रूप से व्यक्तिगत आचरण का विषय है, जबकि सभ्य होने का अर्थ एक बड़ी सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्था का हिस्सा होना है।”

संक्षेप में, एक सज्जन एक विनम्र और विनम्र व्यक्ति होता है, जबकि एक सभ्य व्यक्ति परिष्कृत सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संरचनाओं के साथ एक उन्नत समाज का हिस्सा होता है।

सभ्‍य और Civilized में अंतर

‘सभ्‍य’ शब्‍द मूलत: संस्‍कृत शब्‍द जिसका शब्दिक अर्थ सभासद एवं लाक्ष्‍णिक अर्थ “ऐसे गुणों से सम्पन्न व्‍यक्ति से है जो, एक समाज या संस्कृति के निर्माण, उत्‍थान एवं सतत विकास में सहयोगी होता है ।” वहीं Civilized का शाब्दिक अर्थ नगर या शहर में रहने वाला व्‍यक्ति और लाक्ष्‍णिक अर्थ ‘उच्च स्तर के सामाजिक, बौद्धिक और नैतिक विकास के साथ-साथ जटिल प्रणालियों और संस्थानों को प्रबंधित करने की क्षमता रखने वाला व्‍यक्ति से है ।”

सभ्य और सभ्यता

“सभ्य” और “सभ्यता” दोनों शब्द एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, लेकिन इनमें कुछ अंतर हैं। “सभ्य” शब्द वह व्यक्ति या समुदाय को बताता है जो अनुशासन, सभ्यता, शिष्टाचार, सदभाव, आदर्शवाद, और सामाजिक मूल्यों के प्रति समर्पित होता है। सभ्य व्यक्ति अपने सामाजिक और आध्यात्मिक कर्तव्यों का पालन करता है और इस प्रकार समाज के विकास में योगदान देता है। दूसरी ओर, “सभ्यता” शब्द एक समुदाय को बताता है जो उन सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक अवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करता है, जो उस समय विकास की अवस्था में होते हैं। सभ्यता एक विस्तृत और व्यापक शब्द है जो संस्कृति, विज्ञान, तकनीक, कला, सामाजिक व्यवस्था, धर्म और अन्य विषयों को समाविष्ट करता है।

भारतीय सभ्‍यता

मैकाले शिक्षा पद्यति से शिक्षित लोग भारत के संदर्भ में, “सभ्यता” शब्द का प्रयोग अक्सर सिंधु घाटी सभ्यता को संदर्भित करने के लिए करते है । जिसके अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में 2600-1900 ईसा पूर्व के आसपास फला-फूला। सिंधु घाटी सभ्यता दुनिया की सबसे शुरुआती और सबसे उन्नत सभ्यताओं में से एक थी, जिसमें सुनियोजित शहर, स्वच्छता और जल प्रबंधन की उन्नत व्यवस्था और लेखन की एक परिष्कृत प्रणाली थी। “सभ्य” शब्द का प्रयोग अक्सर आधुनिक भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक प्रथाओं का वर्णन करने के लिए किया जाता है। भारत अपनी विविध और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के कला रूप, व्यंजन, धर्म और परंपराएं शामिल हैं। भारत कई प्राचीन विश्वविद्यालयों का भी घर है, जैसे नालंदा और तक्षशिला, जो प्राचीन काल में शिक्षा और ज्ञान के केंद्र थे।

वहीं वैदिक रिति से शिक्षित लोग मानते हैं कि भारतीय सभ्‍यात सृष्टि के साथ ही प्रारंभ हुआ, सिंधु घाटी सभ्‍यता से हजारों-लाखों वर्ष पूर्व से हमारा समाज सुसंसकृत एवं सभ्‍य था । वैदिक काल गणाना के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता कलयुग का है जबकि इससे पहले द्वापर, त्रेता और सतयुग था, जो कलयुग से कहीं अधिक विकसित और सभ्‍य था । इस मान्‍यता के अनुसार प्रत्‍येक भारतीय इस उन्‍नत सभ्‍यता का स्‍वभाविक अंग होने के कारण सभ्‍य हैं ।

भारत की वर्तमान स्थिति:

भारत में वर्तमान में दो विचार समान्‍तर चले रहे हैं । एक ओर अंग्रेजी माध्‍यम से या विदेशों शिक्षित लोगों का समूह है जो अपने आप को आधुनिक मानते हुए पाश्‍चात्‍य सभ्‍यता और संस्‍कृति को अंगीकार करते हुए अपने आप को सज्‍जन और सभ्‍य निरुपित करते हैं । वहीं दूसरी ओर सनातनी विचार धारा के लोग हैं, जिनका मानना है हर वह व्‍यक्ति जो सनातनी मान्‍यताओं को मानता है और जीता है वह जन्‍म से ही सज्‍जन और सभ्‍य है ।

इस वैचारिक मतभेद के बाद भी अनुभव के आधार कहा जा सकता है कि व्‍यक्तिगत गुण कुछ जन्‍मजात होते हैं तो कुछ जीवनक्रम सीखने से आता है । यह भी सत्‍य है कि ”शिक्षा ज्ञान का एक माध्‍यम तो हो सकता है किन्‍तु स्‍वयं ज्ञान नहीं हो सकता ।” व्‍यक्तिगत गुणों से लोग सज्‍जन हो सकते हैं और सभ्‍य समाज के अंग होने और उसे विकसित बनाये रखने में सहयोगी होकर सभ्‍य ।

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