कोराेना का प्रकोप: जिम्मेदार कौन?
-दिनेंद्र दास
जिम्मेदार कौन?
कोरोना… कोरोना… कोरोना…! कोरोना यानी ‘मौत का तांडव’। पूरी दुनिया में कोहराम मचा हुआ है अपने घर में रहना, कहीं नहीं जाना है । लोगों से संपर्क नहीं करना है, गेट में ताला लगाओ। स्कूल, कॉलेज, धर्मशाला, सिनेमाघर ,होटल, माल, कार्यालय ,फैक्ट्री, दुकान, बाजार और अन्य सभी स्थान बंद। यहां तक बस, ट्रेन, हवाई जहाज के पहिए थम गए। सरकार द्वारा जनता कर्फ्यू लगाया गया । सबसे बचकर रहो नहीं तो कोरोना वायरस धर दबोचेगा। हमें विचार करना है। इनका जिम्मेदार कौन है ? किसने इसे जंगली कुत्ते की तरह हमें दौड़ा-दौड़ा कर मारने के लिए छोड़ा है?
वैज्ञानिकों ने जीने की सुख-सुविधाएं दी है । जिसकी वजह से दुनिया की जानकारी हमारे मुट्ठी में हैं। दूरियां कम हो गई है। घर बैठे आमने-सामने बातें कर रहे हैं । वैज्ञानिकों ने इतने परमाणु बम, मिसाइलें बना चुके हैं कि पृथ्वी का सैकड़ों बार संघार किया जा सकता है। नागासाकी और हिरोशिमा में गिराए गए बम इसका लघु उदाहरण है। जिसका परिणाम आज भी भोग रहे हैं। अभी भी बच्चे अपंग पैदा हो रहे हैं। जहरीले पदार्थों द्वारा पूरा ब्रह्मांड को दूषित किया है। हाइड्रोजन, बम, परमाणु बम, न्यूक्लियर बम और मिसाइलें की शक्ति दिखाकर भले ही अपने देश की रक्षा कर सकते हैं। देश शक्तिशाली बन सकता है। हमारे देश के सामने अनेक देश घुटने टेक दें । परंतु भविष्य में भयंकर विनाशकारी लीला होगी इसका भी हमें अंदाजा लगाना चाहिए था।
उद्योगपतियों ने उद्योग धंधे, फैक्ट्री लगाकर विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन किया है। हमें सुख-सुविधाएं दी है परंतु वातावरण को दूषित करने में कसर नहीं छोड़ा है ।
राजनेताओं को तो कुर्सी प्रिय है। कुर्सी के लोभ में पड़कर असंभव वायदे किए हैं। राजनेता ही तो बम, मिसाइलें, हथियार बनाने का आर्डर देते हैं और विदेशों से लड़ाकू विमान खरीदे जा रहे हैं । बम, मिसाइलों के प्रथम प्रयोग (टेस्ट) जंगल में किये जा रहे हैं जिससे जंगल नष्ट होते जा रहे है । पूरा ब्रह्मांड दूषित हो रहे हैं। कितने जंगल काटे जा रहे हैं । जिसकी वजह से प्रकृति में हलचल शुरु हो गई है। प्राकृतिक नियमों में असंतुलन होने लगा है। कहीं अत्यधिक वर्षा तो कहीं भयंकर अकाल। बेमौसम बारिश और सर्दी-गर्मी में भी असंतुलन हो रहा है। भूगर्भ से अत्यधिक मात्रा में जल निकालकर पीने के पानी का दुरुपयोग किया है । भूगर्भ से तेल, गैस एवं खनिज पदार्थों का दोहन हम सबने किया है। वातावरण में परिवर्तन से हमारे स्वास्थ्य में प्रभाव पड़ा है। अब बताइए इन सबके जिम्मेदार कौन है?
किसान बंधु अन्नदाता हैं। दुनिया के पालक हैं । फसल उत्पादन करना गलत नहीं है । फसल हर कोई पैदा नहीं कर सकता। यदि किसान फसल उत्पादन नहीं किया तो हम सब भूखे मर जाएंगे। परंतु अधिक उत्पादन के लोभ में रसायनिक खाद, कीटनाशक दवाइयां और टॉनिक डालकर पृथ्वी तत्व का सर्वनाश किया है । जिसकी वजह से अन्न, फल, फूल और सब्जियों में जहर घुल गया है । किसान भाइयों का परंपरागत खेती पर से विश्वास उठ गया है। आधुनिक तरीकों से खेती कर अधिक से अधिक लाभ कमाना चाहते हैं। गाय, बैल और भैंस से जो गोबर बनता था, जिससे जैविक खाद बनाया जाता था उसकी अनदेखी की जा रही है। आजकल किसान और जनता दूध ,दही, मक्खन और घी से बनी मिठाइयां एवं पकवान खाना चाहते हैं। गौ माता की पंचगव्य औषधि का सेवन करना चाहते हैं। परंतु गौ माता की सेवा करने से कतराते हैं। इतना ही नहीं बुढ़ापा में इन्हें कत्लखाना भेज देते हैं। इस महापाप का परिणाम आप नहीं भोगेंगे तो और कौन भोगेंगा। आप (किसान) दूषित अन्य फल सब्जी खाकर बीमार रहते हैं। और दूसरों को भी अस्वस्थ करते हैं ।
जनता न सरकार का शासन मानती है न खुद अनुशासित हैं। पान, गुटखा, तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट, शराब, हीरोइन, चरस ,गांजा आदि खाते-पीते हैं। यहां तक सार्वजनिक स्थल धर्मशाला ,सिनेमाघर, क्लब, स्कूल ,कॉलेज, कार्यालय और अस्पताल की दीवारें पान की पीक एवं खैनी के रंग से रंगी रहती है। बाथरूम एवं शौचालय में न जाकर जहां-तहां टट्टी-पेशाब करते रहते हैं जिससे चारों तरफ गंदगी फैलती हैं । गंदगी में ही तो मच्छर ,कीड़े-मकोड़े होते हैं और वायरस उत्पन्न होते हैं।
खान-पान में सुधार नहीं। अंकुरित अन्न, फल और सब्जियां आदि न खाकर मांस- मछली, भेड़ -बकरी, ऊंट, गाय ,भैंस, चूहा बिल्ली ,घोड़ा, गदहा , बंदर, सांप, मेंढक ,केकड़ा, सीपी, पक्षी, चमगादड़, कीड़े- मकोड़े एवं अगणित प्राणियों को मारकर खाने वाले इंसान अब घबरा रहा है। जो काम किया है उसका फल भोग रहे हैं । ‘बोये पेड़ बबूल का, आम कहां से खाए।’ पूरी दुनिया में कोरोना देवी मौत की देवी बनकर आई है। और पूरी दुनिया को निगलने की यात्राएं कर रही है। तब दुनिया के लोग घबरा क्यों रहे हैं? कहां पर चूक हुई इनका जिम्मेदारी किसी एक का नहीं । वैज्ञानिक, उद्योगपति , राजनेता, किसान, जनता ही नहीं हम सब हैं । सुख से जीने के लिए बस, एक ही उपाय है भविष्य में ऐसी गलती न करें जिससे हमारा तन, मन एवं वातावरण दूषित हो।
-दिनेंद्र दास कबीर आश्रम करहीभदर, जिला
बालोद (छत्तीसगढ़)
कोरोना महामारी पर ध्यानाकर्षण हेतु सादर आभार
अतिसुंदर लेख के लिये बधाई शुभकामनाएं