कोराना ऊँपर छंद कविता-रमेश चौहान

कोराना ऊँपर 2-4 ठन छंद कविता

-रमेश चौहान

रमेश चौहान के कोराना ऊँपर 2-4ठन छंद कविता
रमेश चौहान के कोराना ऊँपर छंद कविता

कोराना ऊँपर छंद कविता

(छंद और रमेश- रमेश चौहान का छंद)

कोरोना के डंस, लॉकडाउन के चाबे (छप्‍पय छंद)-

ये कोरोना रोग, लॉकडाउन ला लाये ।
रोजी-रोटी काम, हाथ ले हमर नगाये ।।
रोग बड़े के दोख, सबो कोती ले मरना ।
जीना हे जब पोठ, रोग ले अब का डरना ।।
कोरोना के ये कहर, काम-बुता ला तो छिने ।
बिना रोग के रोग मा, मरत ला कोन हा गिने ।।

गिनत हवय सरकार, दिखय जेने हा आँखी ।
गिनय कोन गा आज, झरे कतका के पाँखी ।।
कोरोना के डंस, लॉकडाउन के चाबे ।
खाली होगे हाथ, गीत काखर तैं गाबे ।।
बिन पइसा के जिंनगी, मछरी तरिया पार के ।
जीना-मरना एक हे, पइसा बिन परिवार के ।

देवय कोने काम, काम चाही जी हम ला ।
काम नहींं ना दाम, कोन देखावय दम ला ।
अटके आधा सॉस, लॉकडान के मारे गा ।
डोंगा हे मझधार, कोन हम ला अब तारे गा ।।
कोरोना के फेर मा, हमर लुटा गे नौकरी ।
काम चलाये बर हमर, बेचागे सब बोकरी ।।

कोराना ऊँपर छंद कविता-कोरोना के कहर-काठी-माटी हा बिगड़त हे (सार छंद)-

कोरोना के कहर देख के, डर हमला लागे ।
गाँव-गाँव अउ शहर-शहर मा, कोराना हा छागे ।।
सब ला एके दिन मरना हे, नहीं मरब ले डर गा ।
फेर मरे के पाछू मरना, मन काँपे थर-थर गा

काठी-माटी हा बिगड़त हे, कोनो तीर न जावय ।
पिण्डा-पानी के का कहिबे, कपाल क्रिया न पावय ।।
धरम-करम हे जियत-मरत के, काला कोन बतावय ।
अब अंतिम संस्कार करे के,  कइसे धरम निभावय ।।

कभू-कभू तो गुस्सा आथे, शंका मन उपजाथे ।
बीमारी के करे बहाना, बैरी हा डरूवाथे ।।
बीमरहा हे जे पहिली ले, ओही हर तो जाथे ।
बने पोठलगहा मनखे मन, येला मार भगाथे ।
हमरे संस्कार रहय जींदा, मरे म घला सुहाथे ।।

कोराना ऊँपर छंद कविता-जब ले आए कोरोना (कुकुभ छंद)-

चाल बदल गे ढाल बदल गे, जब ले आए कोरोना ।
काम बंद हे दाम बंद हे, परगे हे  हमला रोना ।।

काम-बुता के लाले परगे, कइसे अब होय गुजारा ।
कतका  हम डर्रावत रहिबो, परय न पेट म जब चारा ।

रोग बड़े हे के पेट बड़े, संसो  हे गा बड़ भारी । 
कोरोनो-कोरोना चिहरत, कभू मिटय न अंधियारी ।।

घर मा घुसरे-घुसरे संगी,  दू पइसा घला न आवय ।
काम-बुता बिन पइसा नइ हे, पइसा बिन कुछु ना भावय ।।

दूनों कोती ले मरना हे, कइसे के जीबो संगी ।
घुसर-घुसरे घर मा मरबो, बाहिर कोरोना जंगी ।।

ऊँपर वाले कुछु तो सोचव , कइसन हे तोर तमासा ।
जीयन देबे ता जीयन दे,  टूटत हे तोरे आसा ।।

कोराना ऊँपर छंद कविता-कोरोना आये, चेत हराये (त्रिभंगी छंद)-

कोरोना आये, चेत हराये, घर धंधाये,  जाइ कहां ।
बैरी ड्रेगन के, लइकापन के, ढाह तपन के, पाप इहां ।
हम ला डरुहाये, अउ बिलखाये, खूब शताये, धांध ठिहा । 
थोकिन साव-चेत रह,  ये पीरा सह, हटही ये तह,  धीर जिहां ।।

-रमेश चौहान

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