कोरोना पर कविता
कोरोना पर कविता
-डॉ. अर्चना दुबे ‘रीत’
कोरोना का कहर
हर तरफ कोरोना का
रोना ही नजर आ रहा है।
कोई दम तोड़ते हुए तो
कोई हॉस्पिटल में नजर आ रहा है ।
बचाओ हे भगवन इस भयंकर महामारी से ।
अब तो एकमात्र आपका ही सहारा नज़र आ रहा है ।
दुःखी है सभी जन समस्या है आयी
एक एक करके सबको निगल जा रहा है ।
कोई रो रहा है कोई गम में चिल्लाये
नजरों से दूर लाल कैसे हो जा रहा है ।
हे भगवन करो अब मानवों पर कृपा
मौत का साया दिन पर दिन बढ़ा जा रहा है ।
व्यथा की कहानी कहा भी न जाये
सुन करके रोना छाती फटा जा रहा है ।
निराशा में आशा जगाओ हे भगवन
काल के गाल में मानव समा जा रहा है ।
कोरोना ने खेला गजब खेल भगवन
चिताओं से उड़कर धुँआ आ रहा है ।
नहीं दीप है जल रही हैं चिताये
कब किसकी बारी का समय आ रहा है ।
बहुत ही व्यथित हो गयी है माताएं
नहीं मुँख दिखा कैसे बाँधा जा रहा है ।
अब ना विलंब करिये ऐ मालिक
संकट का बादल काला मंडरा रहा है ।
दूर करो महामारी मुक्ति दिलाओ
कालो के काल हे महाकाल शंभू
भक्तों का संकट बढ़ा जा रहा है ।
मास्क की कहानी
सबकी जुबानी मास्क की कहानी
हालात ऐसे समझ में न आये ।
खामोशियाँ हर तरफ है छायी
शिकवे शिकायत ने धूम मचायी।
कोरोना ने अपना प्रभुत्व जमाया
चारों तरफ आज दहशत है छाया।
मृत्यु का डंका हर जगह बजाया
गम का बादल हर तरफ छाया ।
सुरक्षित रहो खुद बचो व बचाओ
चेहरे पर अपने मास्क लगाओ।
बात ये समझो सबको समझाओ
बचने बचाने का मार्ग अपनाओ ।
मुँह, नाक को मास्क से ढक लो ऐसे
ना हो दंड देना संक्रमित होओगे कैसे ।
ना भीड़ में जाओ ना हाथ मिलाओ
ना बाहर का खाओ सुरक्षा अपनाओ ।
करोना दूर भगाओ (कुण्डलियां)
महाकाल के गले में, रहता सदा भुजंग ।
कर बाजत डमरू सदा, पीकर नाचे भंग ।
पीकर नाचे भंग, भभूती अंग लगाये ।
शिव शंकर भगवान, जटा से गंग बहाये ।
रीत’ चरण सिर नाय, बता रही जग का हाल ।
नष्ट करो जीवाणु, उमापति हे महाकाल ।।
मानव मत काटो मुझे, होता है बहु पीर ।
धरा की शोभा तरु से, कमी न होवे नीर ।
कमी न होवे नीर, नहि कुल्हाड़ी चलाओ ।
ऑक्सीजन की खान, सभी मिल मुझे बचाओ ।
‘रीत’ करे गूहार, करोना आया दानव ।
ऑक्सीजन की कमी, पेड़ लगाओ मानव ।।
इतना दुःख क्यों दे रहे, दुनिया को भगवान ।
सभी ग़मो में डुब गये, बनों न अब पाषाण।
बनो न अब पाषाण, करोना दूर भगाओ ।
करते करुण विलाप, प्रभु चमत्कार दिखाओ ।
‘रीत’ कहे कर जोरि, है परेशानी कितना ।
सुनलो सुता पुकार, डराओ अब नहि इतना ।।
आपस के सहयोग से, बन जाती है बात ।
इक दूजे के मेल से, दुःख की कटती रात ।
दुःख की कटती रात, करो मानव की सेवा ।
रखों सही व्यवहार, मिलेगा इक दिन मेवा ।
‘रीत’ कहे कर जोरि, कर्म हो अच्छे वापस ।
मानवता की जीत, दोस्ती भाव हो आपस ।।
दोहा
सच्चे सेवा भाव से, मिलता सबका साथ ।
मानवता सहयोग से, हो हाथों में हाथ ।।
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-डॉ. अर्चना दुबे ‘रीत’
मुम्बई