दक्षिण की मीरा आण्डाल-
आण्डाल अम्मा दक्षिण भारत के अलवर परम्परा की महिला संत थी बारह अलवर में वह एकमात्र महिला संत थी । पॉंचवी से आठवीं शताब्दी के मध्य दक्षिण भारत के तमिलनाडु के श्रीविल्लिपुत्तूर में कृष्ण भक्ति की प्रदीप्त ज्योति थी । दक्षिण भारत में आण्डाल को एक ऐसे कृष्ण भक्त के रूप में जाना जाता है जो कृष्ण की प्रियसी थी और जिनका विवाह कृष्ण के साथ ही हुआ था। आण्डाल के संबंध दो प्रकार की मान्यताएं देखी जाती है एक मान्यता के अनुसार अण्डाल स्वयं भूमि ही हैंं जो कृष्ण से मेल करने शरीर धारण करके प्रकट हुई दूसरी मान्यता के अनुसार आण्डाल पूर्व जन्म में कृष्ण की गोपी थी, जिनकी कृष्ण से एकाकार होनी की लालसा शेष रही गई थी इस लालसा की पूर्ति दूसरे जन्म में आण्डाल के रूप में हुआ । जिस प्रकार उत्तर भारत में कृष्ण की दीवानी मीराबाई प्रसिद्ध हुई उसी प्रकार दक्षिण भारत में आण्डाल प्रसिद्ध हैं । इसी कारण अण्डाल को दक्षिण की मीरा कहा जाता है ।
आण्डाल संत कवि के रूप में –
आण्डाल दक्षिण भारत के अलवर परम्परा की एक संत थी वहीं तमिल साहित्य में एक सुप्रसिद्ध भक्त कवि । अण्डाल ने कृष्ण के प्रति अपनी समर्पण को जिन शब्दों में, जिन भक्ति गीतो में व्यक्त किया वह तिरूप्पावै ग्रंथ के रूप प्रसिद्ध हुआ जिसका गायन आज भी श्रद्धा के साथ किया जाता है । नचियार थिरुमोली में अण्डाल ने स्वयं को भगवान की दुल्हन के रूप में प्रस्तुत किया है । ये दोनों ग्रंथ आज भी दक्षिण भारत में कृष्ण भक्ति और श्रद्धा के प्रतिक बनी हुई हैं ।
आण्डाल के जन्म के संबंध में प्रचलित मान्यता-
आण्डाल का जन्म-
श्रीविल्लीपुतुर में वटपत्रशायी रंगनाथ मंदिर में विष्णुचित्त नामक एक पुजारी था। विष्णुचित्त जिन्हें पेरियार के नाम से भी जाना जाता है, एक बहुत ही विद्वान और सुलझे हुए आध्यात्मिक व्यक्ति थे। विष्णुचित्त मंदिर के पूजा के लिए स्वयं माला गूँथते और भगवान को पहनाते । माला गूँथने के लिए वह स्वयं फूल उगाते थे इसके लिए लिए वह एक माली के रूप में फूलवारी की देखरेख स्वयं करते उनके बाग में चमेली, गुलाब, परिजात आदि फूलों के साथ तुलसी के पौघे भी थे । विष्णुचित्त शुद्ध और पवित्र मन से भगवान की सेवा इसी प्रकार किया करते थे । उनका जीवन इसी प्रकार खुशमय था । उनके जीवन में केवल एक ही कमी थी विवाह के कई वर्षो बाद भी उनको संतान नहीं हुआ था । वह प्रतिदिन भगवान से संतान की कामने करते।
एक दिन विष्णुचित्त अपने बागवानी की देखरेख कर रहे थे कि अचानक उन्हें एक बच्चे की रोने की आवाज सुनाई दी उन्होंने देखा एक तुलसी पौधे के नीचे एक बच्ची है । उस बच्ची को देखकर विष्णुचित्त के आनंद का ठीकाना न रहा उन्होंने उस बच्ची को अपने घर ले आया उस बच्ची को देखकर उनकी पत्नी वजई भी बहुत आनंदित हुई फिर दोनों ने उस बच्ची को गोद लेने का निर्णय किया । उस बच्ची का नाम भूमि से प्राप्त होने कारण तमिल अर्थ कोडाई एवं संस्कृत अर्थ में गोधा रखा । गोधा अब पिता विष्णुचित्त और माता वजई के सानिध्य में पलने लगी ।
आण्डाल के जीवन में पिता का प्रभाव-
पिता विष्णुचित्त के अध्यात्मिक और भक्ति का प्रभाव धीरे-धीरे उस नन्ही बालिका पर पड़ता गया । वह अपने पिता के साथ श्रीविल्लिपुत्तूर रंगनाथ की सेवा में हाथ बटाने लगी श्रीविल्लिपुत्तूर रंगनाथ को भगवान कृष्ण का ही स्वरूप माना जाता है । जैसे-जैसे वह बालिका बढ़ती गई, कृष्ण के प्रति उनके पिता की भक्ति का गोधा के व्यक्तित्व पर बहुत प्रभाव बढ़ता गया। इस प्रभाव के चलते गोधा पर कृष्ण भक्ति का प्रभाव गहरा होता चला गया और वह मन ही मन कृष्ण को अपना सर्वस्व मानने लगी ।
आण्डाल द्वारा स्वयं को कृष्ण प्रिया के रूप में देखना-
पिता विष्णुचित्त भगवान रंगनाथ के लिए प्रतिदिन माला गूँथ कर ले जाया करते थे । किशोरी गोधा जो माला भगवान रंगनाथ काे पहनाया जाता उस माले को चोरी-चुपके पहले स्वयं पहनाती और अपने आप को भगवान कृष्ण प्रिया के रूप में देखती स्वयं को रंगनाथ की दुल्हन के रूप में निहारती । गोधा द्वारा पहनी हुई माला भगवान रंगनाथ को चढ़ने लगा इस बात का ज्ञान गोधा के अतिरिक्त किसी को नहीं हुआ । एक दिन पिता विष्णुचित्त जब माला लेकर रंगनाथ में चढ़ाने लगे तो उसे अचानक उस माला में केश दिखा वह तत्काल दूसरी माला गूँथ कर भगवान रंगनाथ को चढ़ाया किन्तु वह क्या देखता है इस बार जो माला चढ़ाया गया वह भगवान रंगनाथ को सुशोभित नहीं हो रहा है ।
विष्णुचित्त के स्वप्न में रंगनाथ-
पिता विष्णुचित्त घर आकर उस केश के बारे पूछ-परख करने लगे तब सात्विक गोधा ने उस माला को स्वयं पहनने की बात स्वीकार कर ली । इस पर विष्णुचित्त अपनी बेटी पर बहुत कुपित हुए । उसी रात विष्णुचित्त के स्वप्न में भगवान रंगनाथ प्रकट हुए और विष्णुचित्त से बोले मुझे गोधा के द्वारा पहनी माला ही चाहिए, वह माला उनके पुनित प्रेम से सुवासित होती है, वही मुझे प्रिय है तुम गोधा पर नाहक कुपित मत हो । यह सुनकर विष्णुचित के ऑंखों से प्रेमअश्रु छलकनके लगे की उनकी बेटी छोटी सी ही आयु में भगवान को प्रसन्न जो कर ली थी । अब गोधा द्वारा पहनी हुई माला ही भगवान रंगनाथ को चढ़ने लगे ।
विवाह की तैयारी-
अब गोधा पन्द्रह वर्ष की हो गई पिता विष्णुचित्त को उनके विवाह की चिंता हुई उसने उसके लिए योग्य वर ढूंढ़ना शुरू कर दिया, उन्होंने कई संबंध भी लेकर आये किन्तु गोधा भगवान रंगनाथ के अतिरिक्त किसी अन्य से विवाह करने से लगातार मना करती रही है, वह इस बात पर अडिग थी कि उसे केवल और केवल रंगनाथ से ही विवाह करना अन्या आजीवन अविवाहित ही रहेंगी । एक पिता अब करे तो क्या करें भगवान से उनका विवाह हो तो कैसे हो ?
भगवान रंगनाथ द्वारा गोधा को स्वीकार करना-
पिता विष्णुचित्त भगवान रंगनाथ से प्रतिदिन पुत्री को सद्बुद्धि देने की प्रार्थना करते, पुत्री की विवाह की कामना करते । एक दिन भगवान रंगनाथ विष्णुचित्त के स्वप्न में पुन: प्रकट हुए और बोले विष्णुचित्त कल अपनी बेटी को दुल्हन के रूप में मेरे मंदिर में लेकर आना मैं उनसे विवाह करूंगा । यह सुनकर विष्णुचित्त भाव-विभाेर हो गया ।
गोधा का आण्डाल होना-
अगले दिन सुबह भगवान के आदेशानुसार गोधा को एक दुल्हन के रूप में सजा-सॅवारकर पालकी में बिठाकर रंगनाथ मंदिर ले जाया गया । गोधा बहुत आनंदित थी की आज उनका मिलन उनके प्रियतम से होगा उसी उत्कंठा में वह मंदिर के द्वार पर पहुँचते ही पालकी से उतर के पैदल ही भगवान की मूर्ति की ओर दौड़ने लगी ठीक इसी समय भगवान रंगनाथ की मूर्ति से बॉंके बिहारी मनमोहन छवि लिए प्रकट हुए और मंदिर के पुजारियों के आँखों के सामने ही गोधा को अंगीकार कर लिये और देखते ही देखते भगवान बांके बिहारी अदृश्य हो गए और गोधा की ज्योति भी भगवान रंगनाथ की मूर्ति में विलिन हो गई । गोधा के रंगनाथ अर्थात विष्णु में विलिन होने के के कारण उनका नाम आण्डाल पड़ा । अंडवन मतलब भगवान विष्णु और अण्डाल मतलब भगवान विष्णु की । भगवान बिष्णु की प्रियतमा के रूप में गोधा आण्डाल के रूप में प्रसिद्ध हुई । इसी पुनित प्रेम को अक्षुण बनाये रखने के लिए आण्डाल की प्रतिमा रंगनाथ मंदिर में स्थापित कराई गई जो आज भी है और पूरे भारत में दक्षिण की मीरा आण्डाल के रूप में प्रसिद्ध है ।
इसे भी देखें – हिन्दी में गोपी गीत Gopi-geet-in-Hindi