लघु व्यंग्य:दांपत्य जीवन का संक्रमण
-प्रोफेसर अर्जुन दूबे
सा भार्याया गृहे दक्षा,सा भार्याया प्रियंवदा ।
सा भार्याया पति प्राणा, सा भार्याया पतिब्रता ।।
सभी स्वतंत्र, नहीं, नहीं स्वच्छंद, जिसमें बंधन नहीं हो में रहना पसंद करते हैं :स्वतंत्रता में तो बंधन रहेगा ही क्योंकि स्वयं की स्वतंत्रता का रस पान करने के लिए दूसरे की स्वतंत्रता का महत्व तो देना ही पड़ेगा! त्याग तो दोनों को करना पड़ेगा, एक दूसरे की भावना को समझना पड़ेगा ही! नहीं समझने का परिणाम सर्वविदित है।
देवी सीता से उत्तम भार्या का उदाहरण कहां मिलेगा!
राजमहल में रहते हुए भी गृह कार्य में दक्ष थी, उनकी बनाई हुई रसोई का पान करने के लिए देवता भी उत्सुक रहते थे, स्वयं देवाधिदेव महादेव भी राजमहल आकर भोजन ग्रहण किये थे, उनके स्वसुर महराज दसरथ को देवी सीता द्वारा पकाया हुआ खीर बहुत पसंद था । प्रियवादिनी तो वह इतनी थी कि सभी उनके स्नेह के लिये उत्सुक रहते थे । पति के लिए प्राणप्रिया थी, बिना कहे मंतव्य समझ जाती थी, गंगाजी को पार करने के लिए उन्होनें अपनी अंगूठी केवट को दी थी, हनुमान जी को लंका में चूड़ा मणि, कुछ आभूषण ऋषि मुख पर्वत पर फेंक दी थी ताकि श्रीराम को उनकी खोज में सहायता मिले ।
स्त्रियों को आभूषण इसी लिए दिया जाता है ताकि समय पर काम और जरूरत पड़ जाय तो उससे पति के प्राण भी बचाया जा सके! सनातन की परंपरा में इसी लिए विवाह के अवसर पर कुछ न कुछ आभूषण कन्या के लिए क्षमतानुसार देने का रिवाज है जिससे उसका सदुपयोग हो सके, दुरूपयोग नहीं! पियक्कड़ पति और गैरजिम्मेदार प्राणप्रिय का अधिकारी नहीं है और न विलासी जीवन की आकांक्षी प्राणप्रिया होने की!
वर्तमान में संपूर्ण जगत में दांपत्य संक्रमण चल रहा है.सनातन मे भी । इस संक्रमण की धांध लग गई है ।
धन,ऐश्वर्य, कांचन और भौतिक उपलब्धि का दांपत्य संक्रमण काल में कोई अर्थ रह गया है क्या?
सब कुछ ठोक ठठाकर वैवाहिक जीवन का गठबंधन हो रहा है, यहां तक इस प्रक्रिया में Dating करके भी जो आम बात हो रही है!कुछ नहीं तो Live in Relationship में क्या हर्ज है!
कैसा वामांगी, कैसा जायें भाग का होना ! इस पाखंड के पचड़े में कौन पड़े! वर्तमान की यही सोच बन रही है । विवाह में स्त्री-पुरुष की क्या जरूरत है! समलैंगिक से उत्तम क्या है! एक कदम और आगे चलते हैं, कैसा ! स्वयं का स्वयं से विवाह करते हैं,पर क्यों? विवाह की रस्म पूरी करनी है? विवाह तब जरूरी है क्या?
कितना लिखा जाय,विषय ही इतना गंभीर है कि जितना भी लिखा जाया, कम ही पड़ेगा!
-प्रोफेसर अर्जुन दूबे