दशहरा पर्व पर विशेष-‘अंत हो मन के रावण का’-मोहन निषाद

दशहरा पर्व पर विशेष-'अंत हो मन के रावण का'
दशहरा पर्व पर विशेष-‘अंत हो मन के रावण का’

दशहरा अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतिक-

आप सभी को पता है दशहरा का पर्व हर साल आता है , और हम सभी रावण का पुतला दहन करके उसे प्रतिवर्ष मनाते आ रहे है । अक्सर लोग यही कहते है की विजय दशमी दशहरा के दिन ही भगवान मर्यादा पुर्षोत्तम श्री रामचन्द्र जी ने अधर्मी रावण का अंत किया था , और असत्य व अधर्म पर  सत्य रूपी धर्म की जीत हुई थी । उसी धर्म रूपी जीत का प्रतीक बना हुआ इस दशहरे का पर्व को हम लोग आज भी बड़े जोर शोर से मनाते आ रहे है , मना रहे है और शायद ऐसे ही मनाते रहेंगे ।

क्या आप जानते है  कौन था रावण ?

दशहरे का पर्व को हम लोग आज भी बड़े जोर शोर से मनाते आ रहे है , मना रहे है और शायद ऐसे ही मनाते रहेंगे । लेकिन कब तक ? आखिर हम सब एक ही रावण का पुतला कितने साल तक जलाते रहेंगे , और कितना मारेंगे हम उस त्रेता युग के मरे हुये रावण को ? ऐसा कौन सा महापाप किया था  उस रावण ने ? जिसका परिणाम उसे आज पर्यन्त तक भोगना पड़ रहा है । क्या आप जानते है  कौन था रावण ? अगर हम ये बात किसी पूछे तो अक्सर लोग यही कहते है : – रावण दस सर , दस हाथ और बीस आँखों वाला महापराक्रमी और त्रिलोक विजेता एक असुर समुदाय का राजा था कहते है ।

रावण ज्ञानी और विद्वान होकर अधर्म के रास्ते को कैसे अपना लिया ?

रावण के संबंध में यही बात हम कहि किसी पुराणो के जानकार व्याख्याकार पंडित से पूछते है तो वे बतलाते हैं कि रावण चारों वेदो और अट्ठारह पुराणों का ज्ञाता प्रकांड विद्वान था । अब यहाँ पर सोचने वाली बात ये है , की अगर रावण इतना ज्ञानी और विद्वान था तो उसने इस महाविनाश और अधर्म के रास्ते को कैसे अपना लिया ?  सवाल है तो उसका जवाब भी है , हम सभी ने रामायण देखी है पढ़ी है और सुनी है । आप सभी जानते है की लंका के राजा रावण ने काम क्रोध मद लोभ मोह और ईर्ष्यावश बदले की भावना में माता सीता का अपहरण किया था , और उन्हें अपने सोने की लंका में कैद कर सकुशल और सम्मान पूर्वक रखा था ।

 रावण को केवल उसके मैं नामक अहंकार ने ही मारा था –

आज कल के इन कलयुगी दानवो की भाँती रावण ने कभी भी अपने बाहुबल का प्रयोग करते हुये , माता सीता के ऊपर कोई अत्याचार किया और ना ही अपने शक्ति का प्रदर्शन किया । रावण को केवल  उसके मैं नामक अहंकार ने ही मारा था , और उसका यही अहंकार ही उसकी पतन का मुख्य कारण था । रावण भले ही कितना बड़ा अधर्मी और दुराचारी क्यों ना रहा हो , लेकिन उसने बिना सहमति के माता सीता को हाथ ना लगाने का निश्चय ठान लिया था और ना ही उसने कभी लंका में माता सीता को हाथ लगाया था । 

समाज के भीतर रहने वाले असल रावण को मारने की जरूरत है –

आज हमारे समाज में चोरी डकैती हत्या लूटपाट और बालात्कार जैसे ही कइ प्रकार की अपराधिक घटनाये दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे है । आज समाज में रावण रूपी असुरो की कोई कमी नही है , एक भी दिन ऐसा नही जाता है जिस दिन हमे ऐसी कोई घटनाये ना मिले । आखिर कब तक हम उस त्रेता युग के रावण को हर साल ऐसे ही मारते रहेंगे । अभी तो हमे हमारे अपने भीतर के और समाज के भीतर रहने वाले असल रावणो को मारने की जरूरत है ।

अपने भीतर के छुपे हुये उस रावण को मारने की आवश्यकता है –

क्या हमने कभी अपने अंदर के छिपे हुये रावण को मारने की कोशिश की है ? हम हर साल रावण को मारते है ,  लेकिन क्या हमने कभी अपने भीतर श्रीराम जी के आदर्शो को उतारा है ? या कभी उतारने की कोशिश की है ? अगर नही तो हमे कोई हक नही है ऐसा दशहरा मनाने का , आज के इन कलयुगी दानवो से अच्छा तो वह रावण था । जिसने कम से कम अपनी प्रतिज्ञा को ध्यान में रखते हुये अपने हठ और त्याग का परिचय दिया था । आज उस रावण की जगह हमे अपने भीतर के छुपे हुये उस रावण को मारने की आवश्यकता है ।

राम के आदर्शो पर चलकर ही सच्‍चे अर्थो धर्म रूपी दशहरा मना पाएँगे-

जो ना जाने आज कितनी की आसुरी प्रवृतियों के साथ ही काम क्रोध मद लोभ अहंकार ईर्ष्या अधर्म जैसे अनेको कुकर्म में लिप्त पड़ा हुआ है । जब हम अपने मन के भीतर के उस राक्षस रूपी रावण का अंत करेंगे , और मन वचन कर्म से भगवान श्री राम की आराधना करते हुये सच्चे मन से उनके आदर्शो को अपने जीवन में उतारेंगे , तभी हम उस असत्य और अधर्म रूपी रावण को मारकर सच्चे अर्थो में सत्य और धर्म रूपी दशहरा का पर्व मना पाएँगे ।  

मोहन निषाद
-मयारू मोहन कुमार निषाद                   
गाँव - लमती , भाटापारा ,             
  जिला - बलौदाबाजार (छ.ग)                
 मो.नं. - 7999844633

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7 thoughts on “दशहरा पर्व पर विशेष-‘अंत हो मन के रावण का’-मोहन निषाद

      1. हार्दिक आभार प्रणम्य भइया जी आप को भी बधाइयाँ

  1. बहुत ही सुंदर और सटीक विचाार

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