आजादी के अमृत महोत्सव को समर्पित
“स्वामी दयानंद सरस्वती” पर आधारित चार कविताएं
-अनुकृति राज
आजादी के अमृत महोत्सव को समर्पित “स्वामी दयानंद सरस्वती” पर आधारित चार कविताएं
स्वाधीनता
धन्य हुई गुजरात की धरती
जन्में जहां एक महान चिंतक,
शिक्षा और समाज के लिए
बन बैठे सन्यासी से योद्धा,
‘स्वराज’ का नारा देकर
प्रोत्साहित किए जो देश प्रेम को,
मर मिटने की प्रेरणा देकर
हिंदी भाषा का प्रचार किया,
‘सत्यार्थ प्रकाश’ का शंखनाद कर
देश को वैचारिक क्रांति का उर्जा दिया,
जाति, आस्था और वर्ग हेतु
भेदभाव को समाप्त किया,
आत्मसम्मान का पुनर्जागरण कर
वेदों, शास्त्रों एवं संस्कृति का उत्थान किया,
योग-विद्या और शास्त्र ज्ञान प्राप्त कर जिसने
आम जन-गण को जागरूक किया,
अतः ‘स्वदेशी’ का मंत्र फूंक कर
बजा दी स्वाधीनता की रणभेरी।
वेदों के ज्ञानी
जन्म के आधार पर जिसने
जाति व्यवस्था का विरोध किया,
कर्म के आधार पर उसने
जाति व्यवस्था पर जोर दिया,
दलितों के उत्थान हेतु
और सती-प्रथा के विरोध क्रांति जिसने छेड़ दिया,
सत्य-वचन और ज्ञान प्राप्ति को
तीर्थ का उपदेश दिया,
जन्म से कोई ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य नहीं
छुआछूत को समाज का सबसे बड़ा दोष दिया,
ब्राह्मण वह स्त्री-पुरुष है
जो धर्म, शास्त्र, वेदों का ज्ञानी है,
ईश्वर की निराकर्ता को देख
मूर्तिपूजा को निरर्थक माना,
वेदों की श्रेष्ठता और महत्वता को समझाकर
हवन, यज्ञ और मंत्र उच्चारण पर बल दिया,
बतलाया समाज को जिसने
भारतीय उत्थान और आधुनिकीकरण हेतु
विकल्प नहीं कोई, प्राचीन-वैदिक और संस्कृतिकरण का।
आर्य समाज
रूढी, कुरीति, आडंबर, पाखंड से मुक्त कर
बताया जिसने वेदों की महत्ता,
‘शुद्धि आंदोलन’ को पंख देकर
1875 में स्थापित किया एक ‘आर्य समाज’,
एंग्लो वैदिक कॉलेज की स्थापना के पश्चात
चेतन हुआ एक नया समाज, ‘एकेश्वरवाद’ से प्रेरित होकर
जातिवाद और बाल-विवाह का विरोध किया,
विधवा-विवाह और नारी-शिक्षा को उसने ही प्रोत्साहित कर
भारतीय पिछड़ेपन को दूर किया,
नए और पुराने में सामंजस्य बनाए रखने में
प्रयोग किया संस्कृत भाषा का,
अंग्रेजों के विरुद्ध अभियान छेड़ कर
“भारत भारतीयों का है” का नारा दिया,
‘राष्ट्रीयता’ का उपदेश बांटकर
गौरवान्वित किया भारत देश को।
सत्यार्थ प्रकाश
वैचारिक क्रांति का शंखनाद कर
जो ‘सत्य का प्रकाश’ फैलाया,
ईश्वर, प्रकृति, जीव को
अनादि और अनंत बतलाया,
विज्ञान भी यह बोलता
सृष्टि-नियम अटल और अटूट है,
उद्धव काल से चिंतन जिसका
स्वप्रमाणित,शाश्वत और पुरातन हो,
‘वेदों की ओर लौटे’ का नारा देकर
प्रहार किया मूर्तिपूजा,अवतारवाद और बहुदेववाद पर,
ईश्वर वही सच्चिदानंद रूप है
जो निराकार, सर्वशक्तिमान और अजर रूप है,
विज्ञान और तकनीकी की उन्नत से
बदलता नहीं धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की भूमि,
वो अनादिकाल से चल रहा
और अंत काल तक चलेगा,
‘पूर्वार्ध’ और ‘उत्तरार्ध’ का यह ‘समुल्लास’
सनातन नित्यधर्म का सारांश यह अमर ग्रंथ है।
-अनुकृति राज
शोधार्थी (अंग्रेजी), लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ
(हिन्दी एवं अंग्रेजी की लेखिका एवं कवि)
very informative and encouraging.
Thankyou