दीपावली का अध्‍यात्मिक एवं सांस्‍कृतिक महत्‍व -रमेश चौहान

दीपावली का अध्‍यात्मिक एवं सांस्‍कृतिक महत्‍व

-रमेश चौहान

दीपावली का  अध्‍यात्मिक एवं सांस्‍कृतिक महत्‍व
दीपावली का अध्‍यात्मिक एवं सांस्‍कृतिक महत्‍व

दीपावली का अध्‍यात्मिक एवं सांस्‍कृतिक महत्‍व

दीपावली का वास्‍तविक अर्थ-

राम का रामत्‍व स्‍थापित होने का पर्व है दीपावली । असत्‍य पर सत्‍य की स्‍थापना का पर्व है दीपावली ।दुर्गुणों पर सद्गुणों की स्‍थापना का पर्व है दीपावली । आदर्श रामराज्‍य की स्‍थापना का पर्व है दीपावली । वह रामराज्‍य जिसमें न केवल मानव-मानव एक थे अपितु प्राणी-प्राणी एक थे जिसके लिये कहा गया है रामराज्‍य में शेर और बकरी एक ही घाट में पानी पीते थे । ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय:’ अर्थात अंधकार से प्रकाश में ले जाने वाला पर्व है- ‘दीपावली’।

दीपावली मनाने का मुख्‍य कारण और उसका संदेश-

भारत का बच्‍चा-बच्‍चा जानता है कि राम के चौदह वर्ष कर पुन: अयोध्‍या आने वाला राम का राज्‍याभिषेक होने की खुशी अयोध्‍यावासियों द्वारा किये दीपोत्‍सव की स्‍मृति को अक्षुण बनाये रखने के लिये यह दीप पर्व दीपावली मनाया जाता है ।

दीपावली मनाने के कारण में वास्‍तविकता को परखना होगा-

मेरा मानना है कि रामराज्‍याभिषेक के संस्‍मरण के रूप दीपावली मनाना केवल प्रतिकात्‍मक है वास्तविकता तो इस प्रसंग के अंदर छुपा है और वह है राम का रामत्‍व । राम का चौदह वर्ष का वनवास और इस अवधि में उनके द्वारा किये गये धर्म स्‍थापना के कार्य, केवट से मित्रता,  पक्षीराज जटायु को पितासम स्‍वीकारना, शवरी के जूठे बेर को स्‍वीकारना भालू-बंदरो से मैत्री ये सारे सद्कर्म राम के रामत्‍व को उसी प्रकार स्‍थापित किये जैसे सोना तपने से कुंदन हो जाता है । एक राजकुमार राम को मर्यादापुरूषोत्‍म राम के रूप में स्‍थापित तो केवल राम का वनवास प्रकरण ही है ।

रामत्‍व ही देवतुल्‍य है-

राम का रामत्‍व की स्‍थापना लोगों को सद्कर्म करने की शिक्षा देती है । साथ ही यह संबल देती है कि नाना कष्‍टों को  सहते हुये सहर्ष सत्कर्म करने से मनुष्‍य देवतुल्‍य हो जाता है ।

दीपावली मनाने के अन्‍येन कारण-

दीपावली मनाने के मुख्‍य कारण के साथ-साथ कई अन्‍य सहायक कारण है जिनमें प्रमुख इस प्रकार है-

लक्ष्मी जी का समुन्द्र-मन्थन से आविर्भाव-

एक नहीं कई-कई पुराणों में समुद्रमंथन का प्रसंग आता है । इस पौराणिक प्रसंग के अनुसार एकबार ऋषि दुर्वासा ने देवराज इन्द्र को श्रीहिन हाेने, ऐश्‍वर्यहिन होने का श्राप दे दिया । इस श्राप को फलीभूत करने के लिये माता श्रीलक्ष्मी जी अपना वास समुद्र को बना लिया ।  लक्ष्मी जी के बिना देवगण बलहीन व श्रीहीन हो गए। इस परिस्थिति का लाभ उठाकर दैत्‍यों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया ।  यही आक्रमण देवासुर संग्राम के नाम से प्रसिद्ध हुआ । इस संग्रम के पश्‍चात देवगणों की याचना पर भगवान विष्णु ने योजनाबद्ध ढ़ंग से सुरों व असुरों के हाथों समुद्र-मन्थन करवाया। समुन्द्र-मन्थन से अमृत सहित चौदह रत्नों में श्री लक्ष्मी जी भी निकलीं, जिसे श्री विष्णु ने ग्रहण किया। श्री लक्ष्मी जी के पुनार्विभाव से देवगणों में बल व श्री का संचार हुआ और उन्होंने पुन: असुरों पर विजय प्राप्त की। लक्ष्मी जी के इसी पुनार्विभाव की खुशी में समस्त लोकों में दीप प्रज्जवलित करके खुशियां मनाईं गई। इसी मान्यतानुसार प्रतिवर्ष दीपावली को श्री लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना की जाती है।

नचिकेता का अमर ज्ञान प्राप्‍त करना-

कठोपनिषद के अनुसार राजा नचिकेता अगर बार यमलोक पहुँच कर यमराज से जन्‍म-मरण के क्रम को समझाने का हार्दिक निवेदन किया इससे अभिभूत होकर यमराज ने नचिकेता मृत्‍या का रहस्‍य समझााय और मृत्‍यु पर विजय प्राप्‍त करने का उपदेश किया । इस अमर ज्ञान को प्राप्‍त कर जब नचिकेता धरतीलोक पर आये तो धरतीवासी उनका स्‍वागत दीपोत्‍सव मनाकर किय । इस स्‍मृति को जीवंत बनाये रखने यह दीपपर्व मनाया जाता है ।

भगवान महावीर का निर्वाण-

कार्तिक कृष्‍ण अमावस्‍या को जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने निर्वाण पद को प्राप्‍त किया था । इस कारण यह त्‍याग और संयम का पर्व है । निर्वाण की प्राप्ति आसक्ति से नहीं विरक्ति से होती है, इसे भोग से नहीं त्‍याग से पाया जा सकता है इसलिये वासना से नहीं साधना से अहिंसा, संयम और तप का व्रत किया जा सकता है ।

गुरू हरगोविन्‍द जी का पराक्रम –

इसी दिन सिक्‍ख धर्म के छठवें गुरू हरगोविन्‍दजी,  मुगल सम्राट जहांगीर के कैद न केवल अपने आप को मुक्‍त कराया बल्कि अपने साथ भारत के राजा-महराजाओं को भी मुक्‍त करवाया जो जहांगीर के कैद में पड़े थे ।  इस मुक्ति पर्व को दीपोत्सव के रूप में मनाकर सम्पूर्ण हिन्दू और सिख समुदाय के लोगों ने अपनी प्रसन्नता को व्यक्त की थी ।

स्‍वर्ण मंदिर का शिलान्‍यास-

सिक्‍ख धर्म की पावन नगरी अमृतसर में स्‍वर्ण मंदिर  का शिलान्‍यास कार्तिक कृष्‍ण अमावस्‍या को हुआ था, इसी दिन सिक्‍ख धर्मानुरागी दीप प्रज्‍वल्लित कर अपनी खुशियां प्रकट किये थे इस संस्‍मरण को जीवंत बनाये रखने का सद्प्रयास है यह दीपावली का पर्व । 

भगवान बुद्ध का स्‍वागत-

बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान बुद्ध के समर्थकों व अनुयायियों ने २५०० वर्ष पूर्व  इसी दिन हजारों-लाखों दीप जलाकर उनका स्वागत किया था।

आदिशंकाराचार्य का पुनर्जीवित होना-

आदिशंकाराचार्य का देह एक बार निर्जीव होगया था किन्‍तु चमत्‍कारिक रूप कार्तिक कृष्‍ण अमावस्‍या के दिन उनके शरीर में पुन: प्राण का संचार हो गया । आदिशंकराचार्य के पुनर्जीवित होने से अभिभूत  उनके अनुनायियों ने दीप जला कर अपनी प्रसन्‍नता प्रकट की ।

सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक और विक्रमसंवतसर का प्रारंभ-

भारतीय इतिहास के स्‍वर्णिम पृष्‍ठ में अंकित  गुप्‍तवंशी सम्राट विक्रमादित्‍य का राज्‍याभिषेक इसी तिथि कार्तिक कृष्‍ण अमावस्‍या को हुआ था । विक्रमादित्‍य के सहृदयता एवं विरोचित गुणें से अभिभूत उनकी प्रजा अपने भावों की अभिव्यक्ति दीपोत्‍सव मना कर की थी।  इसी दिन राजा विक्रमादित्य के नाम से संवतसर प्रारंभ हुआ जो आज भी निष्‍कंटक राज कर रहा है । विक्रमसंवतसर के अनुसार आज सभी हिन्‍दू पर्व मनाये जाते हैं ।

दीपावली के साथ ऐताहासिक संलग्‍नता-

दीपावली के साथ अनेक ऐताहासिक घटना और महापुरूषों का भी संबंध रहा है ।  महर्षि दयानंद सरस्‍वती, राष्‍ट्रसंत विनोबा भावे ने इसी दिन देहत्‍याग कर परम पद को प्राप्‍त किये थे । परम संत स्‍वामी रामतीर्थ का जन्‍म और निर्वाण दिवस का विचित्र संयोग कार्तिक कृष्‍ण अमावस्‍या ही है ।

दीपावली का आध्यात्मिक महत्व –

जिस प्रकार दीपक वाह्य अंधेरा को मेटती है, उसी प्रकार सद्ज्ञान हृदय को पवित्र करती है ।  शिक्षित होने और सद्ज्ञानी होने में जमीन-आसमान का अंतर है । पढन-पाठन के माध्‍यम अक्षर और भाषा के द्वारा कोई जानकारी एकत्र करने वालों को शिक्षित कहते हैं जबकि अपने चारोओर चराचर जीव के अध्‍ययन से अच्‍छाई और बुराई में भेद करते हुये  प्रकृृतिहित का ज्ञान ग्रहण करने वाले सद्ज्ञानी होते हैं ।  एक शिक्षित व्‍यक्ति समाज के असंतुलन को शिक्षा के दम्‍भ  और प्रतिशोधात्‍मक शैली के बल पर मिटाना चाहता है जबकि सद्ज्ञानी इसे अपने समभाव दृष्टिकोण से ।

शिक्षित नहीं संस्‍कारित होने का संदेश-

आज का समाज जिसमें अधिकांश लोग अपने आप को बुद्धिजीवी और सुशिक्षित समझते है, में शिक्षा का दम्‍भ अधिक दृष्टिगोचर हो रहा है । ऐसे लोग सुशिक्षित तो किन्‍तु सुसंस्‍कारित नहीं । यहाँ तक ऐसे लोग अपनी शिक्षा के दम्‍भ पर अपने संस्‍कार और अपनी संस्‍कृति की अवहेलना ही नहीं करते अपितु बुराई करने से भी नहीं चुकते । दीपावली संस्‍कारित होने का संदेश देती है ।

कर्तव्‍य और मर्यादा पालन का संदेश-

उपरोक्‍त कारणों से आज समाज में कटुता, शत्रुता, ईर्ष्‍या  में पहले की तुलना में अधिक वृद्धि देखने को मिल रहे हैं ।  इस स्थिति से उबरने का एक मात्र आधार राम का रामत्‍व है ।  रामत्‍व राम को अराध्‍य मानकर केवल उनका पूजन करना मात्र नहीं है अपितु समभाव दृष्टिकोण से मर्यादा का पालन करना रामत्‍व है । दीपावली का यह पर्व कर्तव्‍य एवं मर्यादा पालन का रामत्‍व का संदेश देती है ।

परहित जीवन जीने का संदेश-

जिस प्रकार दीप स्‍वयं जल कर दूसरों को प्रकाशित करती है उसी प्रकार यह दीप पर्व मनुष्‍यों को परहित जीवन की संदेश देती है । यही सच्‍ची मानवता है  और मानवता ही धर्म का मूल भी है । इसिलिये कहा गया है-‘प‍रहित सरिस धर्म नहिं भाई। परपीड़ा सम नहिं अघमाई ‘मनुष्य को अपने सभी स्वार्थों का त्याग कर केवल इस धर्म का पालन करना चाहिए व किसी का भी अहित नहीं करना चाहिए। 

ज्ञान की ओर बढ़ने का संदेश-

दीप जलाने का तात्पर्य है- अपने अंतस को ज्ञान के प्रकाश से भर लेना है ।  जिससे हृदय और मन  ज्ञान की लौ से जगमगा उठे।  अमानवीय और स्‍वार्थपरक  शिक्षा के घूप अंधियारे से मानवीय संवदेना युक्‍त शिक्षा और संस्‍कार की ओर  सतत् बढ़ते रहना ही इस महापर्व की प्रेरणा है। 

दीपावली का सांस्‍कृतिक महत्‍व-

पंच दिवसीय यह दीप पर्व एक हथेली के भांति है, जिसमें पॉंच भिन्‍न-भिन्‍न आकृति आकार और स्‍वाभाव की अंगुलियॉं  परस्‍पर मिलकर हथेली बनाती हैं । भारत के विभिन्‍नता में एकता के सूत्र को यह पर्व बल प्रदान करता है । ऐसे भी सनातन पद्धति का पर्व विश्‍वकल्‍याण की कामना रखती है । यह कामना अनेकता में एकता के मूल सिद्धांत से ही संभव है ।

समआदर का संदेश-

हथेली की अंगुलियॉं क्‍या कभी एक-दूसरे को नीचा दिखाने का कार्य करती है ? शरीर के विभिन्‍न अंग में पैर बिना सिर का सिर बिना पैर का अस्तित्‍व है ? यदि नहीं मानव अपने आप को दूसरे से श्रेष्‍ठ क्‍यों समझता है ? वह यह क्‍यों भूल जाता है यदि आप देह का सिर हो आपका अस्तित्‍व मलद्वार, मूत्रद्वार के बिना नहीं है, यदि मल-मूत्र त्‍याग की प्रक्रिया अवरूद्ध हो जाये शरीर का अस्तित्‍व खतरे में पड़ जायेगा फिर आपके सिर होने का क्‍या लाभ ?

भिन्‍नता में एकता का संदेश-

दीपावली का पर्व न केवल हिन्‍दू मान्‍यता के अनुसार मनाया जाता है अपितु सिक्‍ख, जैन और बौद्ध संप्रदाय की आस्‍था भी इससे जुड़ी हुई है । यह पर्व न केवल भारत में ही मनाया जाता है अपितु विश्‍व के अनेक भू-भाग में यह पर्व मनाया जाता है ।  विभिन्‍न संप्रदाय की मान्‍यता विभिन्‍न भू-भाग की परम्‍पराएं इसमें सांस्‍कृतिक विवधता उत्‍पन्‍न करती है । इन विभिन्‍नताओं के मध्‍य हर्ष-उल्‍लास का यह पर्व सापोपांग मूर्त काया के रूप में स्‍थापित होता है ।

-रमेश चौहान

चिंतन आलेख: ‘मैं’ व्‍यवहार से अध्‍यात्‍म तक

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