देवारी तिहार ऊँपर कविता
-रमेश चौहान
1. आगे देवारी (त्रिभंगी छंद)-
आगे देवारी, हमर दुवारी, कर तइयारी, जोश भरे ।
जब सॉफ-सफाई, पाथे दाई, सॅउहे आथे, खुशी धरे ।।
ये यचरा-कचरा, घुरवा डबरा, फेकव संगी, तुमन बने ।
घर-कुरिया पोतव, सुग्घर सोचव, दाई आी, बने ठने।।
2. रिगबिग दीया बार मया प्रीत घोर के (घनाक्षारी)-
लिपे-पोते घर-द्वार, झांड़े-पोछे अंगना
चुक-चुक ले दिखय, रंगोली खोर के ।
नवा-नवा जिंस-पेंट, नवा लइका पहिरे,
उज्जर दिखे जइसे, सूरुज ए भोर के ।।
रिगबिग-रिगबिग, खोर-गली घर-द्वार
रिगबिग दीया-बाती, सुरुज अंजोर के ।
मन भीतर अपन, तैं ह संगी अब तो,
रिगबिग दीया बार, मया प्रीत घाेेर के ।।
3.देवारी म देवारी लागे लइका (मुक्तक)-
चिरई चिरगुन कस चहकय लइका ।
पाके आमा कस गमकय लइका ।
आगे आगे देवारी आगे,
कहि के बिजली कस दमकय लइका ।
खोर अंगना मा रंगोली पुरय लइका ।
ले सखी सहेली देखे बर जुरय लइका ।
रंग रंग के हे रंगोली सुघर अतका,
देख फूल कस भवरा बन घुरय लइका ।।
दीया म बाती ला बोरय लइका ।
बाती म आगी ला जोरय लइका ।।
देवारी के अंजोरे बगरावय,
देखव फटाका ला फोरय लइका ।
खोरे मा जब सिगबिग सिगबिग आगे लइका ।
चंदैनी कस रिगबिग रिगबिग छागे लइका ।
ऐती ओती चारो कोती कूदत नाचत,
मुचमुच हासत सौंहे देवारी लागे लइका ।
4. मैं माटी के दीया (नवगीत)-
वाह रे देवारी तिहार
मनखे कस दगा देवत हस
जीयत भर संग देहूँ कहिके
सात वचन खाये रहेय ।
जब-जब आहूँ, तोर संग आहूँ
कहिके मोला रद्दा देखाय रहेय
कइसे कहँव तही सोच
मोर अवरदा तेही लेवत हस
मैं माटी के दीया अबला प्राणी
का तोर बिगाड़ लेहूँ
सउत दोखही रिगबिग लाइट
ओखरो संताप अंतस गाड़ लेहूँ
मजा करत तैं दुनिया मा
अपने ढोंगा खेवत हस
5. देवारी दोहा-
चिट-पट दूनों संग मा, सिक्का के दू छोर ।
देवारी के आड़ मा, दिखे जुआ के जोर ।।
डर हे छुछवा होय के, मनखे तन ला पाय ।
लक्ष्मी ला परघाय के, पइसा हार गवाय ।।
कोन नई हे बेवड़ा, जेती देख बिजार।
सुख दुख ह बहाना हवय, रोज लगे बाजार ।।
कहत सुनत तो हे सबो, माने कोने बात ।
सबो बात खुद जानथे, करय तभो खुद घात ।।
6. अइसे दीया बार (दोहागीत)-
अपने मन के कोनहा, अइसे दीया बार ।
रिगबिग रिगबिग तो दिखय, तोरे अवगुण झार ।।
अपन कमी ला जान के, काही करव उपाय ।
बाचय मत एको अकन, मन मा तोरे समाय ।।
देवारी दीया हाथ धर, अवगुण ला तैं मार ।
अपने मन के कोनहा…
हमरे सुधरे मा जगत, सुधरय पक्का जान ।
छोड़ गरब गुमान अपन, छोड़ अपन अभिमान ।।
अपन मया के बंधना, बांधव जी संसार ।।
अपने मन के कोनहा…
तोरे कस तो आन हे, सुघ्घर के इंसान ।
ना कोनो छोटे बड़े, ना कोनो हैवान ।।
हवय भुले भटके भले, ओला तैं सम्हार ।
अपने मन के कोनहा…
जाति पाति अउ पंथ के, कर देबो अब अंत ।
मनखे हा मनखे रहय, मन से होबो संत ।।
राम राज के कल्पना, करबो हम साकार ।
अपने मन के कोनहा…
7. मजा आगे आसो के देवारी म (तुकांत)-
मजा आगे
मजा आगे आसो के देवारी मा
देवारी मा जुरे जुन्ना संगवारी मा
लइका मन के दाँय-दाँय फटाका मा
घर दुवारी पूरे रंगोली के चटाका मा
मजा आगे
मजा आगे देख पहटिया के मातर
गउठान के साकुर चउक- चाकर
गउरा-गउरी के परघौनी मा
दरुहा-मंदहा के बचकौनी मा
मजा आगे
मजा आगे आसो जुँवा के हारे मा
आन गाँव के टूरामन ला मारे मा
चिहुरपारत जवनहा मन के झगरा मा
दरुहामन के बधिया कस ढलगे डबरा मा
मजा आगे
सिरतुन मा मजा आगे
आसो के पीये दारु मा
गली-गली मंद बाजारु मा
देवारी के तिहार मा
दारु के बाजार मा
-रमेश चौहन