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यात्रा संस्‍मरण :- गंगासागर यात्रा भाग-2 बाबा बैजनाथ दर्शन- तुलसी देवी तिवारी

यात्रा संस्‍मरण :- गंगासागर यात्रा भाग-2 बाबा बैजनाथ दर्शन- तुलसी देवी तिवारी

यात्रा संस्‍मरण :- गंगासागर यात्रा भाग-2

बाबा बैजनाथ दर्शन

– तुलसी देवी तिवारी

देवों का घर देवघर बाबा बैजनाथ दर्शन
बाबा बैजनाथ दर्शन

बाबा बैजनाथ दर्शन

गतांक से आगे

देवों का घर देवघर बाबा बैजनाथ का दर्शन-

रात बहुत थोड़ी शेष थी, मेरा सिर देर तक रोने के कारण दर्द से फटा जा रहा था, हमे आगे जस्सीडीह स्टेशन पर उतर कर बाबा बैजनाथ का दर्शन करना था।  उसके बाद गंगासागर जाना था, अतः मैंने लेट कर अपनी आँखें मूंद ली।

 बाबा बैजनाथ दर्शन देवघर
बाबा बैजनाथ दर्शन देवघर

नींद तो क्या लगती बस यात्रा पूरी करनी थी। बंद आँखों से मैं डिब्बे में होने वाली हलचल का अनुभव करती रही। उजाला हुआ जानकर उठी, ब्रश इत्यादि करके खिड़की के पास बैठ कर उस पूण्य भूमि के दर्शन करने लगी जिसमें से माँ के सानिध्य की सुगंध आ रही थी। पहले पूरा झारखंड बिहार का हिस्सा था मेरी माँ बिहार के आरा जिले की बेटी थी। वहाँ की संस्कृति माँ के प्यार की तरह अब भी मेरे व्यक्तित्व का हिस्सा है। प्रातः साढ़े दस बजे के करीब हमारी गाड़ी जस्सीडीह रेलवे जंक्शन पर रुक गई। हम सब अपने सामान सहित उतरे। स्टेशन पर बहुत भीड़ थी। हमारे जैसे बहुत सारे लोग गाड़ी से उतरे थे। स्टेशन के बाहर ऑटो वालों वालों की  भरमार थी। भाई लोगों ने तीन ऑटो बुक किया मंदिर तक जाने के लिए। मंदिर यहाँ से लगभग साढ़े आठ किलो मीटर दूर है। अपने आस-पास के वातावरण का निरीक्षण करते हुए हम लोग लगभग आधे घंटे में देवो के घर देवघर मंदिर को पार करते हुए अशोकराज पंडा की धर्मशाला के पास जाकर रुके, पंडा जी का पता संभवतः ऑटो वालों ने बताया था। हमें कुछ घंटों के लिए ही कमरे की आवश्यकता थी, इसलिए अधिक छानबीन किये बिना ही हम लोग वहाँ के कर्मचारी के संकेत पर ऊपर चले गये, एक बड़े से हॉल में भाई लोगों ने अपना अड्डा जमाया, एक में हम लोगों ने । नहाने धोने कैमरा मोबाइल चार्ज करने का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। पंडा जी के यहाँ प्रसाधन सामुहिक था, मन पक्का करके हमें नहाना पड़ा। बारह बजे के लगभग हम लोग दर्शन के लिए निकले, धूप तेज हो चुकी थी।

बाबा बैजनाथ शिवगंगा पौराणिक दृष्टिकोण से-

धर्मशाले के बाईं ओर मंदिर का केसरिया ध्वज आकाश में लहरा कर बाबा बैजनाथ की जयजयकार कर रहा था। रास्ते में ’शिव गंगा सरोवर दिखाई दिया जिसकी चारों ओर पक्के घाट बने हुए है। जल आपूरित पाट मन को सुकून से भर रहा था, कुछ लोग सरोवर में स्नान कर रहे थे। कुछ आ जा रहे थे । इस परम पवित्र सरोवर के जन्म की कथा हमे त्रेता युग से जोडती है , राक्षस राज्य की अजेयता और शक्ति संपन्नता की वृद्धि की आकांक्षा से राक्षसपति रावण ने कैलाश पर्वत पर घोर तप किया,यहाँ तक कि उसने देव को प्रसन्न करने के लिए अपने नौ सिर एक’ एक करके काट कर चढ़ा दिया। दसवाँ भी काटने जा रहा था कि देवाधिदेव ने प्रगट होकर उसे रोक दिया, और अपने भक्त के नौ सिर जोड़ कर उसे वर मांगने की आज्ञा दी। रावण ने लंका ले जाने के लिए स्वयं द्वारा पूजित वही शिव लिंग मांग लिया जिसकी पूजा माता पार्वती किया करतीं थीं, बाबा ने कब किसे इंकार किया है जो रावण को मना करते किंतु उन्होंने एक शर्त रख दी –’’ देखना रावण, रास्ते में इसे कहीं रखना मत, रख दिया तो उठा नहीं पाओगे!’’

शिवगंगा, देवघर बाबा बैजनाथ
शिवगंगा, देवघर बाबा बैजनाथ

’’पहले अन्दर – बाहर पवित्र होने के लिए आचमन तो कर लो वत्स !’’ माता पार्वती ने रावण को मंत्रपूत जल दिया। आचमन करके जब लंकापति अपने विमान से लंका की ओर चला तो हरितकी वन  क्षेत्र में आते- आते उसे लघुशंका ने व्याकुल कर दिया, विमान रोककर वह उससे उतरा शिवलिंग उसके हाथ में था । शिवलिंग के लंका में स्थापना से रावण की बढ़ी हुई शक्ति और उसके दुरुपयोग से होने वाले कष्ट से व्याकुल देवगणो की प्रार्थना पर श्री विष्णु एक अहीर के वेश में गायें चराते  लंकापति को दिखाई दे गये । ’’ ’’भाई थोड़ी देर यह शिवलिंग थाम लो! मैं लघुशंका निवारण करके तत्काल आता हूँ , हाँ! भाई किसी भी दशा में इसे नीचे मत रखना।’’ वह जरा सा ओट लेकर अपनी शंका का समाधान करने लगा। भगवान् विष्णु की माया से उसे बहुत समय लग गया, निवृत होने के बाद आचमन हेतु जल के लिए रावण ने इधर-धर देखा , जब कहीं जल न दिखा तब उसने धरती पर मुष्टि प्रहार किया जिससे वहाँ जल निकल आया। पवित्र होकर रावण अहीर के पास आया तब तक वह शिवलिंग को जमीन पर रखकर जा चुका था। दशानन ने  अपनी संपूर्ण शक्ति लगा दी लेकिन बाबा टस से मस न हुए, हार कर वह खाली हाथ लंका चला गया। तभी से यह सरोवर यहाँ के रहवासियों, कांवरियों, श्रद्धालुओ, जीव -जंतुओं की प्यास बुझा रहा है। कितनी  ही प्राकृतिक आपदाएं आईं कई पर्वत समुद्र में समा गये , कई समुद्र पर्वतों में बदल गये कितने ही भूकम्प आये अनावृष्टि काल आया किंतु इस सरोवर का जल कभी नहीं सूखा ।

बाबा बैजनाथ कावरिया यात्रा-

बाबा बैजनाथ कावरिया यात्रा
बाबा बैजनाथ कावरिया यात्रा

          ऊँची-नीची पहाड़ियों पर बसा देवघर बचपन से ही मेरे आकर्षण का केन्द्र था। सावन के महीने में जब जत्थे के जत्थे लोग केसरिया बाना धारण किये  बोल बम का उद्घोष करते देवघर की यात्रा पर जाते तब मेरा मन बाबा के दर्शन के लिए तरस कर रह जाता, ’जब बाबा की कृपा होगी तब स्वयं सारी व्यवस्था हो जायेगी।’’ मन के इसी आश्वासन पर विश्वास करके जी रही थी अब तक। करुणा सिंधु शिव ने जब कृपा की तब इस पुण्य भूमि के दर्शन हो ही गये । महान् सती परम तपस्विनी ,शिव प्रिया जिसका हृदय पति के अपमान से दग्ध हो चुका था, जिसने अपनी देह योगाग्नि में जला कर भस्म कर लिया था, विष्णु भगवान् के चक्र से खंडित होकर जिसका हृदय  इस स्थान पर गिर कर इसके महत्त्व का प्रतिपादन कर चुका है, उस हार्द्रशक्ति पीठ की महिमा इस संसार में कौन नहीं जानता? हम अपने साथियों के साथ बाबा बैजनाथ बैद्यनाथ मंदिर के उत्तरी प्रवेश द्वार पर पहुँचे, वैसे तो पूर्व और पश्चिम में भी प्रवेश द्वार हैं किंतु प्रमुख यही है, सिंह द्वार के दोनो ओर सिंहों की जीवंत मूर्तियाँ बनी हुई हैं। हमने मंदिर की चैखट पर माथा टेककर अंदर प्रवेश किया। द्वार के बाईं ओर एक बहुत गहरा कुआँ है ,पद्म पुराण के अनुसार इसे रावण ने बनवाया था, उसने इसमें सारे पवित्र तीर्थों का जल मंगाकर डाला था। (रावण उस हरितिकी वन को भूल नहीं पाया होगा जहाँ कठिन तपस्या के बाद प्राप्त ज्योर्तिलिंग रह गया था, उसका सर्व शक्तिमान् होने का गर्व तो़ड़ते हुए। वह वहाँ पूजा-पाठ के लिए आता- जाता रहा होगा।) दर्शनार्थी , कांवरिये या तो अपने साथ लाये गंगाजल से बाबा की पूजा करते हैं या  इसी कुएँ का जल से । इस समय तो यहाँ लगने वाला सावन मेला बीते दो माह हो चुका था जिसमें प्रतिदिन हजारों लोग देश विदेश से बाबा के लिए जल लेकर आते हैं और अपनी मुरादों की झोली भर कर ले जाते हैं, फिर भी विस्तृत प्रांगण में भक्तों की भीड़ थी, पंडा जी ने अपने आदमी को फोन करके बता दिया था कि वह हमें सुविधा से दर्शन करा दे । हम लोग 27 की संख्या में थे, जहाँ खड़े होते वहाँ वैसे ही भीड़ नजर आने लगती। त्रिपाठी जी ने पंडा जी के आदमी से बात करके हमारे लिए पूजन सामग्री और जल इत्यादि की व्यवस्था करवाई। लाइन में लगकर हमने सबसे पहले बाबा बैजनाथ के दर्शन करके अपना जीवन कृतार्थ  करने के उद्देश्य से आगे बढ़ना प्रारंभ किया।

बाबा बैजनाथ मंदिर परिसर का पवित्र वातावरण-

बाबा बैजनाथ, देवघर
बाबा बैजनाथ, देवघर

     म्ंदिर में बड़ा ही पवित्र वातावरण था, शंख घंटे की मंगल ध्वनि के साथ बोल बम! ओम नमः शिवाय, का उच्चारण करते भक्त आगे बढ़ रहे थे। हम जिनके दर्शन करने जा रहे थे वे वही रावणेश्वर महादेव जी हैं जिन्हे रावण अपने साथ लंका नहीं ले जा पाया था, उसके चले जाने के बाद श्रीहरि ब्रह्मा आदि सभी देवताओं के साथ आये और विधि पूर्वक इस लिंग की पूजा अर्चना कर विधि पूर्वक इसकी प्राण प्रतिष्ठा की। श्री हरि ने देवताओ के शिल्पी विश्वकर्मा को एक भव्य शिव मंदिर बनाने का आदेश दिया।  लिंग पर रोज जल चढ़ाने के लिए बैजू नाम के ग्वाले को तैयार किया ।’’ इस लिंग पर रोज जल चढा़ओगे तो तुम्हारी गायें दुगना दूध देने लगेंगी।’’ उसे सपना भी आया कि रावण द्वारा स्थापित रावणेश्वर महादेव की नित्य पूजा अर्चना करो, तुम्हारी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जायेंगी। ’’ वह विधिवत लिंग की पूजा करने लगा इसीलिए इन्हें बैजूनाथ या बैजनाथ कहा जाने लगा। मेरा मन प्रसन्नता से गद्गद् हो रहा था। आज बस कुछ ही पल में मैं जगत पर करुणा बरसाने वाले कामना ज्योर्तिलिंग के दर्शन करने वाली थी। देवकी दीदी मेरे आगे थीं, भाई लोग पुरूषों की पंक्ति में थे , सब साथ-साथ ही चल रहे थे। वह पल भी आया जब मै गर्भ गृह के सामने थी। बेलपत्र, आक, धतुरे गेंदे आदि के फूलों के श्रृंगार के साथ बाबा धरती से बस थोड़े से ऊँचे अपने श्याम वर्ण की अनोखी द्युति बिखेर रहे थे। कथा हैं कि रावण जब स्वामी को उठाते-उठाते हलाकान हो गया तब खीझ कर अपने पैर के अंगूठे से लिंग को दबा दिया। भक्त का मान रखते हुए बाबा थोड़ा जमीन में दब गये और आज तक वैसे ही हैं, रावण की बचकानी हरकत से दुनिया को परिचित कराते हुए। हमने अपनी पूजन सामग्री और जल का लोटा वहाँ के पुजारी को दे दिया और आत्मंलिंग महादेव के दर्शन करने लगे। मेरे हाथ जुड़े हुए थे, आँखे प्रेमाश्रुओं से भरी हुईं थीं, मन विचार शून्य हो रहा था। ’’ बाबा! मुझ पर इतनी कृपा करने के लिए तुम्हारी जय हो, जय हो। मुझे दर्शन देकर मेरा जीवन सफल कर दिया बाबा ! मेरी सारी मनोकामनाएं पूरी कर दी बाबा!’’ मेरी दशा पागलों जैसी हो रही थी। सुबह का श्रृंगार अभी तक ज्यों का त्यों था सुना गया हैं कि बाबा की इत्र से मालिश की जाती है, फिर दूध घी दही चीनी, मधु के बाद गंगा जल से स्नान कराकर जब पोछा जाता है तब बाबा के विग्रह से पसीना आने लगता है। इसे आते हुए उपस्थित भक्त भी देख सकते हैं। पसीने के ऊपर ही चंदन का लेप चढ़ाया जाता है जिसे धाम चंदन कहते हैं, भक्तों को इसका प्रसाद भी मिलता है।  फूलों की माला, फूलों के ही मुकुट से बाबा का श्रृगार होता है । देव की छवि मन में बसाये मैं प्रांगण में आ गई । पंडा का कर्मचारी जिसका नाम संजय था बाहर हमें मिल गया।

’’ आइये बाबू जी और मंदिर दिखाते हैं –  वह आगे बढ़ा और उसके पीछे हम सभी चले।

बाबाबैजनाथ, हरितकी वन मातासती की चिताभूमि कहलाती है-

माता पार्वती, देवघर
माता पार्वती, देवघर

’’ माता जी! हरितकी वन चिता भूमि कहलाता है कारण तो आप जानते ही हैं यहाँ माता सती का हृदय गिरा था जिसे लेकर शिव जी ने उनका अग्नि संस्कार किया था, सती के हृदय में शिव का हमेशा वास रहता है इसीलिए तो भगवान् विष्णु ने रावण से यहीं भेंट की थी और इसीलिए यहाँ बाबा के ज्योर्तिलिंग की स्थापना की थी।’’ वह थोड़ा आगे बढ़ गया था हम लोगों से, शायद कोई नया ग्राहक दिख गया था।

शिव मंदिर के ठीक सामने पूर्व की ओर पश्चिमाभिमुख अन्य चबूतरों से ऊँचे चबूतरे पर बना पार्वती जी का मंदिर है। हम लोग वहाँ दर्शन करने के लिए प्रविष्ट हुए-इस मंदिर में एक ऊँचे आसन पर दो मूर्तियाँ एक दूसरी से सटी हुई विराज रहीं हैं, एक प्रतिमा पार्वती जी और दूसरी असुर विनाशिनी माँ दुर्गा की है, दोनों ही प्रतिमाएं भारतीय मूर्तिकला का अनुपम उदाहरण हैं, ये काले पत्थर की बनी हैं, इस मंदिर की दीवारों को विविध प्रकार से सजाया गया है, इसका दरवाजा पीतल का है इसे पंजवारा रियासत के जमींदार शालीग्राम ने लगवाया था। हमने श्रद्धापूर्वक जगत्जननी को प्रणाम किया और बाहर आ गये । सामने से इस मंदिर का शिखर बहुत ऊँचा और कलात्मक है पार्वती मंदिर के शिखर से एक लाल धागे का गुच्छा बांधा जाता है जिसका एक छोर शिव मंदिर के शिखर से बांधा जाता है, यह इनके वैवाहिक संबंधों को प्रकट करता है।

 हम लोगों ने पार्वती जी के मंदिर के दक्षिण में स्थित जगत् जननी मंदिर आ गये जो एक लंबे बरामदे में है, यहाँ और भी देवी देवताओं की मूर्तियाँ हैं जिनमें से कुछ तो भग्नावस्था में हैं।

यहाँ एक ओर ध्यानावस्थित जगत जननी और दूसरी ओर वीणा बजाते हुए चर्तुभुजी शिव जी की मनोहर मूर्ति है। सामने ही वीणा की धुन में खोए हुए नंदी जी  की मूर्ति विराज रही है। श्यामा और कार्तिकेय जी की मूर्तियाँ भी दर्शनीय है, पुरातत्वविदों के अनुसार ये नौवीं शताब्दी की बनी हुई हैं ।

 इसके अतिरिक्त बाबा बैजनाथ के परिसर में गणेश,ब्रह्मा, संध्या, कालभैरव,  हनुमान् जी मनसा माता,सरस्वती माता, बगला माता, राम लक्ष्मण जानकी ,गंगा जाह्न्वी, आनंद भैरव,गौरी शंकर,नर्मदेश्वर महादेव,तारामाता,काली माता,अन्नपूर्णा माता लक्ष्मीनारायण,नीलकंठ,नंदी बैल बसहा मंदिर भी स्थित हैं सभी मंदिरों में दर्शन पूजन करते दो बज गये। हम लोगों ने बाबा को अंतिम बार प्रणाम किया और मंदिर से बाहर निकल आये । 

बाबा वासुकी नाथ दर्शन-

    रास्ते में एक होटल में थोड़ी देर रुक कर हमने लस्सी पी।  अब तक पेट एकदम खाली था हम तेज धूप से आ रहे थे लस्सी पीने की स्वाभाविक इच्छा से प्रेरित होकर किया गया कार्य मेरे लिए हानिकारक साबित हुआ। आने वाले कुछ घंटे मेरे लिए बड़े कष्टदायक होने वाले थे। 

बाबा वासुकीनाथ धाम
बाबा वासुकीनाथ धाम

  हमने अपना सामान अपना सामान पंडा जी के यहाँ ही छोड़ दिया और  चार बजे के करीब बासुकीनाथ जी के लिए निकले । यह पावन शिवधाम यहाँ से 46 किलोमीटर दूर दुमका जिले में है , वहाँ बाबा बैजनाथ के उपलिंग विराज रहे हैं बाबाधाम में आने वाले श्रद्धालु बाबा बासुकीनाथ के दर्शन करने अवश्य पधारते हैं, दुखियों का दुःख हरण करने में बाबा फौजदारी अदालत जैसे शीघ्रता करते हैं ,उनके प्राकट्य की कथा अनसुनी नहीं हैं दीन- दु:खियों के स्वामी भगवान् शंकर जिसे प्रतिष्ठा देना चाहते हैं उसे दे ही देते हैं , प्राचीन काल में वहाँ एक बार भीषण अकाल पड़ गया था पेड़-पौधे,नदी तालाब सब सूख गये थे,  जीव- जंतु एक-एक दाने  अन्न और एक- एक बूंद जल के लिए तरसने लगे थे बासू नाम का एक शिवभक्त अपने परिवार सहित वहाँ आकर रहने लगा था। एक दिन वह कंद मूल की आशा से जंगली भूमि खोद रहा था कि उसकी खंती के आघात से वहाँ रक्त का फव्वारा निकल पड़ा, बासू एकदम घबरा गया। आकाशवाणी से सूचना पाकर उसने वहाँ की मिट्टी हटाई तो वहाँ विराज रहे शिवलिंग के दर्शन प्राप्त किये । शिव लिंग से बहते रक्त को देख कर वह और भयभीत हो गया।

’’ तुम मेरे भक्त हो बासू, बैद्यनाथ ज्योर्तिलिंग के उपलिंग के रूप में मुझे सदा पूजकर तुम सभी प्रकार से सुखी हो जाओगे, धन’ दौलत और अंत में शिवलोक के अधिकारी बन जाओगे! ’’ गगनवाणी सुनकर बासू ने अपने आप को धन्य माना और जीवन भर शिव की भक्ति की , बाबा के आर्शीवाद से ही उसका नाम बाबा के साथ जुड़ कर अमर हो गया।

बाबाबैजनाथ दीवानी आदलत के और बाबा वासुकीनाथ फौजदारी अदालत के न्‍यायधीश-

 वहाँ तक जाने के लिए हमने एक कार और एक मैजिक किराये पर ले लिया। ,एहतिहात के तौर पर मुझे मैजिक में ड्राइवर के पास वाली सीट पर बैठाया गया, मेरे साथ हेमलता भी थी, बाबा धाम छोड़कर हम साफ सुथरी पक्की सड़क पर आ गये थे, हमारे दोनो ओर खड़े घने जंगल पीछे छूटते जा रहे थे। मैंने सुन रखा था कि झारखण्‍ड का यह इलाका धुर नक्कसली है यहाँ घटने वाली दुर्घटनाएं रोंगटे खड़े कर देने वाली होती हैं, नक्कसलिओं ने तो कुछ नहीं किया,अलबत्ता पेट में आग के गोले उठने लगे और इसके साथ ही उल्टियाँ! ,बार-बार गाड़ी रोक-रोक कर मैं नीचे उतरी, लगता था जैसे अंतड़िया बाहर आ जायेंगी, हेमलता पानी की बोतल देती , कुछ मिनट गुजरता फिर वही क्रम । मुझे अपना होश नहीं रह गया। कार हमारे पीछे चल रही थी। ड्राइवर मन  ही मन खीझ रहा होगा यह तो पक्का था,  हमारे साथी भी परेशान हो रहे होंगे,  मैं सोचती रहीं , जब भी जरा सा अवसर मिला। हम लोगों को बासुकीनाथ पहुँचते- पहुँचते अंधेरा हो गया, मुँह हाथ धोकर मैंने अपने को प्रकृतिस्थ किया, भोले बाबा का नाम लेकर मंदिर के दर्शन करने लगी। मंदिर के विशाल सिंहद्वार से हमने अंदर प्र्रवेश  किया। परिसर में दो  बडे मंदिरों के साथ ही अन्य  कई  छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं जिनमे गणेश जी, माँ अन्नपूर्णा आदि की  प्रतिमाएं विराजित हैं। अनेक दुकानों में पूजन सामग्री, भोग, प्रसाद, उपहार सामग्री की दुकाने टेबलों पर लगीं हुई थीं। त्रिपाठी जी ने सबके लिए आवश्यक सामग्री क्रय की । हम पहले से लगी पंक्ति में लग गये। पर्व का दिन नहीं था फिर भी परिसर में दो सौ के लगभग लोग तो रहे ही होंगे। सुना गया कि लोग अपने मामले की सुनवाई के लिए यहाँ धरना देते हैं जब तक उनकी मनोकामना पूरी नहीं हो जाती यहीं रह कर दिन-रात बाबा को पुकारते हैं। कभी- कभी साल छः मास भी लग जाता है , ऐसे फरियादियों के रहने के लिए एक ओर बहुमंजिला धर्मशाला बना हुआ है, जहाँ जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति होने योग्य व्यवस्था है। बाबा दीन- दुखियों की पुकार तुरंत सुनते हैं जैसे फौजदारी मामलों की सुनवाई अदालत में जल्दी होती है वैसे ही, इसीलिये इनके दरबार को फौजदारी अदालत का नाम दिया गया है, वहीं बाबा बैद्यनाथ दीवानी अदालत के न्यायाधीश है वे आराम से काम करते हैं। बड़े दरबार की तरह यहाँ भी शिव-शक्ति का मंदिर पास-पास ही है। दोनो मंदिरों के शिखर लाल कपड़े से जोड़े गये है। अपनी बारी आने पर मैंने भगवान् बासुकीनाथ के दर्शन किये, पूजन सामग्री, पंडा़ जी को दी ।  नेत्र भरकर जगदाधार पिता की छवि को आँखों में बसा लिया। यहाँ पिता का कलेवर धरती से लगभग डेढ़ फूट ऊँचा है। बाबा का विग्रह रजत पत्र से आवेष्ठित है। भाँति- भाँति के पुष्पों और अगरबत्तियों की सुगंध बाबा अपने भक्तों को प्रसाद में बांट रहे हैं मुझे ऐसा लगा। चंद लमहे भोले बाबा के साथ बिता कर मैं निकास मार्ग से परिसर में आ गई । देवकी दीदी मेरे आगे थी, वे पहले ही दर्शन करके आ चुकीं थी।  अन्य सभी साथियों के आ जाने के बाद हम ने माता पार्वती के मंदिर में दर्शन पूजन किया। रात हो जाने के कारण हम लोग इस क्षेत्र का विशेष अवलोकन नहीं कर सके। सुना है कि सम्राट अकबर के सेनापति राजा मान सिंह ने मानसरोवर नाम से एक सरोवर बनवाया था जिसके जल से यहाँ आनेवाले यात्रियो का स्नान ध्यान होता है, बारहों मास यह जल से लबालब भरा रहता है। हम लोग मानसरोवर में स्नान से वंचित रह गये।

बाबा वासुकीनाथ
बाबा वासकुनाथ

 हमारे आस- पास खड़े भक्त ओम नमः शिवाय, बम बोल का उद्घोष करते जा रहे थे। परिसर में जगह- जगह  पीतल के बड़े- बड़े घंटे लगे हुए हैं जिन्हे भक्त बजा रहे थे। लकड़ी के खंभों में छोटी- बड़ी घंटियाँ संभवतः भक्तों ने अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर बांध दी थीं । सभी साथियों के आ जाने के बाद भगवान् बासुकीनाथ की जय बोलते हम अपने वाहन में आकर बैठ गये। इसबार भी हमारी बैठक व्यवस्था पहले की तरह ही थी। जैसे ही गाड़ी चली फिर से उल्टियों का अनवरत दौर प्रारंभ हो गया। मेरी अंतड़ियाँ बाहर निकलने को आतुर लग रहीं थीं गाड़ी बार- बार रोकनी पड़ रही थी मुझे ड्राइवर और हेम लता दोनो के र्धर्य की प्रसंशा करनी पड़ी।। हेम लता हर बार मुझे पानी की बोतल देती और ड्राइवर गाड़ी रोक देता जगह- जगह।

हम सभी ने दिन में कुछ नहीं खाया था अतः बाबा बैद्यानाथ धाम से थोड़ा पहले ही पड़ने वाले शिव शंकर ढाबे में  जो चंदनाठाढ़ी मोड़ घोरमारा में है मुझे छोड़कर सभी साथियों ने ड्राइवर सहित भोजन किया। इस बीच मैं शुद्ध हवा का सेवन करती एक जगह बैठी रही ।  

 पंडा जी के यहाँ आकर गाड़ियाँ रुकीं, त्रिपाठी जी ने  सभी की ओर से पंडा जी को दान- दक्षिणा के साथ बिदाई दी। हमारे बाकी साथी ऊपर से सामान उतारने लगे इस बार त्रिपाठी जी के बड़े पुत्र चिरंजीव ब्रिजेश त्रिपाठी भी यात्रा में हमारे साथ थे , मेरा सामान वे ही उतारते चढाते रहे ज्यादातर।

जस्सीडीह जंक्शन पर पहुँच कर हमने अपने बैठने की जगह बनाई मेरी हालत इतनी खराब थी कि बैठना मुकिल लग रहा था मैं जमीन पर लेटने की फिराक में थी कि खमरराई वाली पटेल जी की रिश्ते की बहू गीता पटेल ने मेरा ईरादा भाप कर वहाँ बिकने वाली पोलिथीन की चादर दस रूपये में खरीद कर मेरे लिए बिछा दी, मैंने बिना देर किये अपने को उस पर डाल दिया।

हम लोग साढ़े ग्यारह बजे रात पटना कोलकाता एक्सप्रेस में बैठ कर कोलकाता के लिए चल पड़े। तब तक मेरी तबियत काफी संभल चुकी थी।

-तुलसी देवी तिवारी

शेष अगले भाग में- मॉं काली दर्शन, कोलकाता

5 responses to “यात्रा संस्‍मरण :- गंगासागर यात्रा भाग-2 बाबा बैजनाथ दर्शन- तुलसी देवी तिवारी”

  1. विवेक तिवारी Avatar
    विवेक तिवारी
    1. डॉ.अशोक आकाश बालोद Avatar
      डॉ.अशोक आकाश बालोद

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