धनतेरस :राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस
-रमेश चौहान
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस-
आयुष मंत्रालय, भारत सरकार ने प्राकृतिक चिकित्सा एवं आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए 2016 से राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाने का निर्णय लिया है । इस निर्णय के अनुसार प्रतिवर्ष धनतेरस के दिन राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस कब मनाया जाता है-
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस संभवत: ऐसा पहला पर्व है जो ग्रेगोरियन कलेण्डर के अनुसार न मनाकर भारतीय पंचाग के अनुसार हिन्दी महिना में मनाया जाता है । प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के कृष्णपक्ष के त्रयोदशी तिथि को यह दिवस मना जाता है । यह वह दिन है जिस दिन पूरा भारत देश दीपावली पर्व के प्रथम दिवस के रूप धनतेरस पर्व मनाता है ।
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाने का उद्देश्य-
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाने का उद्देश्य पारंपरिक और गैर-एलोपैथिक स्वास्थ्य परिचर्चा और उपचार पद्धतिय आयुर्वेद, जो प्राचीन भारत का का प्रमुख चिकित्सा पद्धति रहा है, को बढ़ावा देना, लोगों को प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद के प्रति जागरूक करना है ।
आयुर्वेद एक परिचय-
आयुर्वेद दो शब्दों के मेल से बना है । एक आयु दूसरा वेद । ‘आयु समाप्त हो गया’ ऐसे कहने का अर्थ शरीर का निष्प्राण होना होता है इसका अभिप्राय यह हुआ आयु प्राणशक्ति है । आयु प्राणशक्ति के शरीर में क्रियाशिल रहने की अवधी है । प्रत्यक्षत: आयु प्राणशक्ति का ही प्रतिक है । वेद का अर्थ ज्ञान का भण्डार होता है । इसप्रकार आयु को, प्राणशक्ति को यथावत रखने का ज्ञान कराने वाले ग्रंथ या वेद को ही आयुर्वेद कहते हैं । आयुर्वेद के अनुसार शरीर के अंत:करण के रोग को आधि और वाह्य अंगों के रोगों को व्याधि कहते हैं । आयुर्वेद केवल शरीर के रोगों का निदान पर विचार नहीं करती अपितु यह अंत:करण के आधि का भी उपचार करती है । आयुर्वेद शास्त्र कहता है – ”धर्मार्थकाममोक्षाणामारोग्यं मूल मुक्तमम” धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति का मूल आरोग्य ही है ।
आयुर्वेद के अनुसार मानव देह का निर्माण प्रकृति के मूलभूत तत्व धरती, जल, अग्नि, आकश और वायु से हुआ है । इसी के अनुसार रोगों को कफ, वात, पीत में बांट कर इनका प्राकृतिक रूप से उपचार किया जाता है । इस उपचार पद्यति में रोग का नहीं रोग के कारण का उपचार किया जाता है इस कारण इससे किसी भी रोग को जड़ से समाप्त किया जा सकता है । प्राकृतिक तत्वों का प्रभाव धीरे-धीरे दिखाई देता है इसलिये इस उपचार पद्यति धैर्य एवं पथ्य-अपथ्य की आवश्यकता होती है । इसके परिणाम में कभी भी किसी ने काई प्रश्न खड़ा नहीं किया है ।
आयुर्वेद का प्रादुर्भाव-
भारतीय दर्शन में चार वेदों की मान्यता है । उन्हीं वेदों में चौथे वेद अथर्ववेद का आयुर्वेद को उपवेद माना जाता है । ऋगवेद ग्रंथ में आयुर्वेद के ‘यत्र-तत्र-विकर्ण’ नामक सिद्धांत का उल्लेख है । प्राचीनतम ग्रंथ ऋगवेद है जिसकी रचना आज से लाखों वर्ष पूर्व हुआ था । पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार आयुर्वेद 50 हजार वर्ष ईशा पूर्व प्राचीन है ।
आयुर्वेद का जनक भगवान धनवंतरी
भगवान धनवंतरी को आयुर्वेद का जनक माना जाता है यद्यपि आयुर्वेद का अस्तित्व उनके अवतरण से पहले भी था । इस संबंध में सुश्रुत का यह कथन उल्लेखनिय है- सुश्रुत के अनुसार जब ऋषियों ने आयुर्वेद के अध्ययन के लिये भगवान धनवंतरी के पास गये तो स्वयं धनवंतरी ने ऋषियों को बतलाया था कि सर्वप्रथम स्वयं ब्रह्मा ने सृष्टि रचना के पूर्व ही अथर्ववेद के उपवेद के रूप में आयुर्वेद को एक सहत्र अध्याय और शत सहत्र श्लोकों के साथ प्रकाशित किया । भगवान धनवंतरी के अनुसार ब्रह्मा से दक्ष प्रजापति, दक्ष प्रजापति से अश्वनी कुमार फिर अश्वनी कुमार से इन्द्र ने आयुर्वेद की शिक्षा ली ।
आयुर्वेद के जनक भगवान धनवंतरी का प्राकट्य-
हमारे पौराणिक ग्रन्थों में समुद्र मंथन का वर्णन आता है । समुद्र मंथन से अनेक बहुमूल्य रत्नों के साथ विष और अमृत भी प्राप्त हुआ था । इसी समुद्र मंथन में धन-धान्य की देवी लक्ष्मी से पहले भगवान धनवंतरी, प्रकट हुए ।
भगवान धनवंतरी का अवतरण दिवस-
समुद्र मंदन में कार्तिक कृष्ण तेरस को भगवान धनवंतरी चतुर्भुज रूप में हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुये । भगवान धनवंतरी को स्वास्थ्य का देवता कहते हैं । भगवान धनवंतरी को सर्वशक्तिमान भगवान बिष्णु का अंशावतार माना जाता है । मान्यता के अनुसार भगवान बिष्णु ही स्वयं मानव के स्वास्थ्य के रक्षा के लिये धनवंतरी के रूप में प्रकट हुये । इस प्रकार कार्तिक कृष्ण तेरस को धनतेरस के नाम से भगवान धनवंतरी का अवतरण दिवस मनाया जाता है ।
भगवान धनवंतरी का अवतरण दिवस-धनतेरस
धनतेरस पर्व को भगवान धनवंतरी के महोत्सव अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
धनतेरस: राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस
धनतेरस का पर्व आयुर्वेद के जनक भगवान धनवंतरी का प्राकट्य दिवस है । धतेरस पर्व के रूप भारतीय समाज भगवान धनवंतरी की पूजा करते आ रहे है । अपने तन और मन को स्वस्थ रखने आयुर्वेद का सहारा लेते आ रहा है किन्तु वैज्ञानिक के चकाचौंध एवं एलोपैथिक के बढ़ते प्रभाव से आयुर्वेद पर प्रचलन से बाहर होने का खतरा मण्डरा रहा है को पुनर्स्थापित करने के लिए धनतेरस पर्व को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
धनतेरस धन का नहीं स्वास्थ्य का पर्व है-
वास्तव में धनतेरस का पर्व धन का पर्व नहीं है अपितु यह स्वास्थ्य का पर्व है और इस दिन स्वास्थ्य के देवता भगवान धनवंतरी की पूजा होनी चाहिए । इसे धनतेरस कहने के पीछे यह कारण है कि धन का अर्थ धन दौलत न होकर स्वास्थ्य धन होता है ।
-रमेश चौहान