धरती में माता-पिता ईश्वर की जीवंत प्रतिमूर्ति-रमेश चौहान

धरती में माता-पिता ईश्वर की जीवंत प्रतिमूर्ति

-रमेश चौहान

धरती में माता-पिता ईश्वर की जीवंत प्रतिमूर्ति-बूढ़े माँ-बाप का देखभाल ऐसे करें
धरती में माता-पिता ईश्वर की जीवंत प्रतिमूर्ति-बूढ़े माँ-बाप का देखभाल ऐसे करें

धरती में माता-पिता ईश्वर की जीवंत प्रतिमूति-

धरती में माता-पिता को ईश्वर का जीवंत प्रतिमूर्ति माना गया है । यह केवल एक मान्यता नहीं अनुभवगम्य है । जिसने हमें जीवन दिया, हमारा लालन-पालन किया, हमें दुनिया में जीने योग्य बनाया, वह निश्चित रूप से जीवंत ईश्वर ही हैं । भारतीय परिवार की अभिधारणा में संयुक्त परिवार का विशेष महत्व है । जिसमें दादा-दादी, चाचा-चाची, ताई-ताऊ सब साथ रहते है । इस संयुक्त परिवार में निश्चित रूप से बुजुर्ग भी रहते हैं जो परिवार का अहम अंग होता है । ये अनुभवी शारीरिक रूप से कमजोर हो सकते हैं, अधिक आयु पर स्मरण शक्ति क्षीणता हो सकती हैं । इस स्थिति में इनका देखभाल आवश्यक होता है ।

बुढ़ापा बचपन की पुनरावृत्ती –

मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘बुढ़ी काकी’ का कथ्य है-’’बुढ़ापा बचपन की पुनरावृत्ती होती है ।’’ व्यवहारिक जीवन में देखे जाने पर यह सौ प्रतिशत सत्य दिखता है । वास्तव में बुढ़ापा बचपन की पुनरावृत्ती होती है । वृद्धावस्था में व्यक्ति धीरे-धीरे एक नन्हें बालक की भांति हो जाता है, जिनके खाने-पीने से लेकर स्वास्थ्य तक का ध्यान एक माता-पिता के भांति रखना होता है ।

बुजुर्ग भी प्रेम के भूखे होते हैैं-

जिस प्रकार एक छोटा बच्चा किसी चीज के लिये मचलता है, जिद्द करता है न मिलने पर अपना गुस्सा भी दिखाता है ठीक उसी प्रकार हमारे वृद्ध भी होते है । इन वृद्धों से उसी प्रकार प्रेम करना चाहिये जैसे हम अपने छोटे बच्चों से करते हैं । उनका देख-रेख ठीक उसी प्रकार करना चाहिये जैसे हम अपने बच्चों का करते हैं । आखीर हमारे माता-पिता भी हमलोगों का देखभाल कुछ इसी प्रकार किये रहते हैं । एक छोटा बच्चा भी प्रेम की भाषा समझता है, दुलार को जानता है । ठीक इसी प्रकार हमारे बुजुर्ग भी प्रेम के भूखे होते हैं । उनके लिये पहली प्राथमिकता प्रेम ही होता है ।

बुढ़ापे का लाठी बनना होगा-

हमारे वृद्धों को हमसे मुख्य रूप से दो प्रकार की चाहत होती है । पहला मानसीक संबल, भवनात्मक स्नेह और दूसरा शारीरिक संबल । जीवन भर हर व्यक्ति यही कहते हुये बुढ़ा होता है कि मेरे संतान मेरे बु़ढ़ापा का लाठी होगा । आज वह सचमुच बुढ़ा हो चला है तो हमें लाठी बनना ही पड़ेगा ।

बुजुर्गों की मानसिक और भावनात्मक देखभाल –

पालतू जानवर भी दूर-छूर को समझता है, स्नेह को जानता है । ईश्वर भी प्रेम के भूखे होते हैं, तो हमारे माता-पिता बुजुर्ग को भी निश्चित रूप से हमसे प्रेम की ही आकांक्षा होती है । इसलिये हमें उनका सबसे पहले भवनात्मक ध्यान रखना होगा । ऐसा करने के लिये इन बातों का ध्यान रखना होगा –

  1. बुजुर्गों का सदैव सम्मान करें। हमेशा उनसे प्रसन्नता के साथ बातचीत करें ।
  2. उनके गुस्से और विरोध को सहने की क्षमता रखें। कभी भी असहमति में बोले गए आपके स्वर इतने तल्ख न हों कि उनके दिल को ठेस पहुंच जाए।
  3. उनकी सामाजिक सक्रियता को बढाने में मदद करें । उनके पुराने परिचितों से मुलाकात कराते रहें हैं, यदि नये परिचित बनाना चाहे तो उसमें अवरोध न बनें ।
  4. उन्हें स्वेच्छा से काम करने के लिए प्रेरित करें। शोध से पता चला है कि जो बुजुर्ग अपने मन और स्वेच्छा से काम करते हैं वो ज्यादा खुश और सेहतमंद रहते हैं।
  5. हर संभव प्रयास करें बुर्जुग आपके साथ ही रहें। अगर किसी विवशता के कारण आपके माता-पिता वृद्धाश्रम में रहते हैं तो समय-समय पर उनसे मिलने जाएं और उनसे खुल कर बात करें।
  6. उनके अनुभव और कहानी को ध्यान से सुनें। हो सकता है उनके सुनाए गए कहानी से आपको अपने जीवन की किसी परेशानी को हल करने का सही जबाव मिल जाए। कहते हैं न बुजुर्गों का अनुभव ज्ञान का खजाना होता है।

शारीरिक और मानसिक सेहत का देखभाल-

घर के बड़े-बुजुर्ग सेहत से जितना तंदरुस्त और फिट रहेंगे यह उनके लिए और परिवार के लिए भी अच्छा रहेगा। व्यायाम और योग उनके दिनचर्या में शामिल हो इसके लिए उन्हें प्रेरित करते रहें। इससे न सिर्फ शारीरिक बीमारियां दूर रहेंगी बल्कि अकेलापन और अवसाद भी कम होगा। डॉक्टरों की मानें तो 60 से ज्यादा उम्र के लोगों को रोजाना 30 मिनट व्यायाम करने की सलाह दी जाती है। इसमें टहलना, जॉगिंग करना, स्वीमिंग करना, साइकिल चलाना से लेकर योग और कसरत तक शामिल है। शारीरिक देखभाल के लिये निम्न बातों का ध्यान रखें-

  1. सुबह सो कर उठने से लेकर सोने तक उनके हर छोटी-बड़ी जरूरतों का ध्यान रखें । जिस काम में आपकी सहयोग की आवश्‍यकता है उसमें सहयोग करें ।
  2. अगर उनको दर्द हो रहा है या किसी तरह की मेडिकल मदद की जरुरत है तो पहले प्राथमिक चिकित्सा करें और इससे भी स्थिति में सुधार नहीं हो तो बिना कोई देर किए डॉक्टर के पास ले जाएं।
  3. कमजोरी ज्यादा महसूस करना, भूलने की शिकायत ज्यादा होना, रास्ता भूल जाना और चलने-बैठने में संतुलन खो देना जैसे कुछ जरुरी शारीरिक और मानसिक बदलाव पर हमेशा नजर बनाए रखें।
  4. बुजुर्गों के मानसिक सेहत को हम प्रायः नजरअंदाज कर देते हैं जबकि मानसिक बीमारी में ही देखभाल की ज्यादा जरुरत होती है। खासकर अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी बीमारी होने पर उन्हें पल-पल एक गाइड और केयरटेकर की जरुरत होती है।

स्वास्थ्यगत देखभाल-

वृद्धावस्था में रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होनी लगती है, जिसके कारण बुजुर्गो पर मौसम और प्रदूशण का कुप्रभाव युवाओं की तुलना में जल्दी होता है । यही कारण है आये दिन उनको षारीरिक कमजोरी का अनुभव होते रहता है । ऐसे में हमें इन बातों का ध्यान रखें-

  1. डाक्टरों से रूटिंग चेकअप कराते रहना चाहिये ।
  2. उनके खान-पान का विषेश ध्यान रखना चाहिये, मौसम के अनुकूल भोजन देना चाहिये । भोजन ऐसे दें, जो सुपाच्य हो गरीश्ठ एवं ठंडा भोजन कदापि न दें ।
  3. अधिक सर्दी और अधिक गर्मी से उन्हें बचाना चाहिये ।
  4. यदि उन्हें कोई रोग जैसे बी.पी, षुगर आदि हो तो उनका नियममित जांच कराते रहें और उनके लिये निर्धारित औशधि नियमित नियत समय पर देते रहें ।
  5. छोटी-छोटी तकलीफ केवल आपके प्यार से ही कम हो सकता है । अतः उन्हें प्यार देते रहें ।

जहाँ चाह है वहाँ राह है-

‘‘जहाँ चाह है, वहाँ राह है ।’’ यदि मन में बुजुर्गो की सेवा करने का संकल्प हो तो आपको अनेक राह मिलेंगे अन्यथ बुजुर्ग आपको बोझ लगता रहेगा । बुजुर्गो की देखभाल करने के लिये पहले हमें मानसिक रूप से तैयार होना पड़ेगा । हमें हृदय से यह स्वीकार करना होगा कि बुजुर्गो का देखभाल करना हमारा प्रथम कर्तव्य है ।

-रमेश कुमार चौहान

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