धर्मेन्द्र निर्मल के देवीगीत

देवीगीत (छत्‍तीसगढ़ी)

-धर्मेन्द्र निर्मल

धर्मेन्द्र निर्मल के देवीगीत
धर्मेन्द्र निर्मल के देवीगीत

धर्मेन्द्र निर्मल के देवीगीत

धर्मेन्द्र निर्मल के देवीगीत

1. दाई तोर दरस बर आए हौं

दाई तोर दरस बर आए हौं  
 लाल टिकुली लाल चुरी लाल चुनरी लाए हौ
 तोर दरस बर तोर दरस बर तोर दरस बर 

 तोर दरस बर देवता मन आवै 
 तोर दरस बर तोर सेवा गावै 
 तोर दरस बर रूचि भोग लगावै
 तोर दरस बर तोहि ल मनावै
 तोर दरस बर तोर दरस बर तोर दरस बर 
 दाई तोर दरस बर आए हौं 

 तोर दरस बर नौ दिन नौ राती
 तोर दरस बर मंझन अउ पहाती
 तोर दरस बर बरै दियना बाती
 तोर दरस बर सेउक भाँति भाँति
 तोर दरस बर तोर दरस बर तोर दरस बर 
 दाई तोर दरस बर आए हौं

2.दाई आबे अंगना हमार

दूनो हाथ जोड़ विनय करत हॅव
 बरसा दे मया दुलार
 सुनके पुकार होके बघवा सवार
 दाई आबे अंगना हमार ।। सुनके पुकार होके..
 
देवन म सब देव महादेव
 देवी म तैं महादेवी
 तहीं सरस्वती लक्षमी दुरगा
 साकम्भरी वैष्णनवी
 नाचय अंगना तोर लंगुरवा
 भैरव बाबा दुवार।। सुनके पुकार होके..
 
लकलक चुरी लाल हाथ म
 लाल चुनर लहराय
 काली के रूप म बिरबिट करिया
 लप लप जिभिया लमाय
 सीतला रूप तोर सांति के हे
 मोहे जग संसार।। सुनके पुकार होके..
 
दुनिया ह काए तोरे मया सब
 तहीं ह जग सिरजाय
 तही ह जग के पालन करता
 जगजननी कहाय
 तोरेच लइका आवन हमन
 ए जिनगी तोर भार।। सुनके पुकार होके..
 
नाम के तोरे जोत जलाएन
 आके एमा बिराज
 भूल चूक होही माफी देबे
 रखबे हमरो लाज
 हमर का हे सब तोरे देय हे
 भेंट हमर स्वीकार।। सुनके पुकार होके..

3. तैं अंधरा के आंखी दाई लंगड़ा के गोड़ वो

तैं अंधरा के आंखी दाई लंगड़ा के गोड़ वो
 जावव कहां मैं मैया तोर दुवारी छोड़ वो
 चरण म परे हावव ले ले सरण म 
 बिनय करत हाववं दूनो हाथ जोड़ वो
 
जोन ह जौने रूप म पूजै तौने रूप म पाथे
 तोरे दरसन करे मात्र ले पापी जीव तर जाथे 
 जेकर जग म कोनो नइहे ओकर हावस सहारा तैं
 भवसागर म भटकत जीव ल देथस दाई किनारा तैं
 लेथस प्राण त छाती चीर के, देथस छप्पर फोर वो
 
नवदुर्गा तैं आठ भूजा तोर हावय सेर सवारी
 रिसि मुनि जन ज्ञानी गावै महिमा हे बड़ भारी
 दुनिया सारी जानत हावै तभे तोला मानत हे
 रोवत आथे हांसत जाथे आथे जोन दुवारी
 अइसे कोनो बंधना नइहे जेला नइ सकबे तोड़ वो
 
बड़े बड़े पापी चोला के करे हस उध्दार तैं
 मैं मूरख हौं बड़ा अधरमी मोला आज उबार तैं
 पटक पटक मुड़ मैं मर जाहवं नइ छोड़व दुवारी
 अस्ट सिध्दि नव निधि के दाता अब तो मोला तार तैं
 तोर खातिर आए हौं मैया जग ले नाता छोड़ वो

4. काली खप्परवाली आगे काली खप्परवाली

काली खप्परवाली आगे काली खप्परवाली
 लप लप लप जीभ लमावत रूप धरे विकराली 
 
सब दानव  ल मरत देख के शुम्भ निषुम्भ गुस्सागे
 चंड मुंड कहाँ हौ कहिके  जल्दी तीर म बलाए
 जावव पकड़ के तुम दुर्गा ल  लावव मोर आगू म
 साम दाम अउ दंड भेद से  ले आहू काबू म
 सीधा सीधा नइ आही त  बाल पकड़ के खीचैं
 नइच मानही तुरते ओकर  लहू बोहाहू लाली
 
शेर उपर बइठे हे माता  अउ मुच मुच मुसकावय
 ओतके बेरा चंड मुंड हॅ  सेना लेके आवय
 चंड मुंड आए देख के  माता हँ गुस्सागे
 आँखी होगे लाल लाल अउ  देह सबो करियागे
 घपटे बादर सहीं  केस ल  खोल जमो छितरादिस
 मुड़ी मुड़ी के माला पहिरे  परगट भइगे काली
 
काट काट के दानव ल  काली खप्पर म जलावै
 काट के मुड़ी खून पियै  कतको ल कच्चा खावै
 हाहाकार मचे दानव म सब चिल्लावत भागे
 दानव मन के हाल देखके  चंड मुंड खिसियागे
 गुस्सा के मारे थर थर काँपत  काली कोती दउड़िस
 चंड मुंड ल दउड़त आवत  देखत हावय काली
 
चंड मुंड अउ काली के बीच  जम के होथे लड़ाई
 काँपे लागिस धरती अंबर  खून के नदी बोहाई
 महा मयावी चंड मुंड  छिन म धरती अकासा
 खडग चलिस जब माँ काली के  उंकर पलट गे पासा
 दउँड़ा दउँड़ा के जब मारिस  काल घलो थर्रागे
 चंड मुंड के सिर काट के नाचे लागिस काली

5. नवरात्रि में नवदुर्गा के मन ले जो ध्यान लगाही

नवरात्रि में नवदुर्गा के 
 मन ले जो ध्यान लगाही ।
 कन्या भोज कराके सुग्घर 
 मनवांछित फल पाही ।।
 
पहिली पूजौं करौं वंदना
 पहिला दिन नवरात्रि ।
 पर्वत के शिखर म बिराजै 
 रानी माँ शैलपुत्री ।।
 
जल कमण्डल  एक हाथ म 
 दूसर हाथ गुलाब धरे ।
 दूसरइया दिन ब्रम्हचारिणी 
 रूप अनन्त धरे विचरै  ।।

 दिन तीसर मंदिर देवाला 
 गूंजै टनटन घंटा के ।
 आधा चंदा माथा सोहै 
 दसभुजी चंद्रघंटा ।।

 शेर सवारी माँ  कूष्मांडा
 प्राणशक्ति देवइया ।
 जइसे गोला ब्रम्हांड के 
 चौथा दिन म अवइया ।।
 
ज्ञान कर्म के सूचक मैया 
 चार भुजी कमलासन ।
 पाॅचवा दिन स्कंदमाता के 
 रंग सफेद मनभावन ।।
 
सत्य धर्म के सिरजन खातिर 
 ज्ञान स्वरूपा क्रोध देखावै ।
 जगतहित बर छठवा दिन 
 माॅ कात्यायनी रूप मन आवै ।।
 
रूप भयंकर कालरात्रि के 
 लाश  (गदहा) म चढे धरे मशाल ।
 दिन सातवा बनके आए 
 मैया असुर मन के काल ।।
 
बइला सवार त्रिशूल धरे 
 बिजली जस उज्ज्वल गोरी ।
 आठवा दिन नवरात्रि में 
 आवै मैया महागौरी ।।
 
अष्टसिद्धि नवनिधि के दाता 
 चार भुजा हे तोर ।
 अर्धनारीश्वर सिध्दिदात्री 
 नौवा दिन हे तोर ।।

-धमेंन्‍द्र निर्मल

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