धरती महिमा (चौपाई छन्द) छत्‍तीसगढ़ी

धरती महिमा (चौपाई छन्द)

-कन्हैया साहू ‘अमित’

छत्‍तीसगढ़ी धरती महिमा

धरती महिमा
धरती महिमा

धरती महिमा

दोहा

नँदिया तरिया बावली, जिनगी जग रखवार।
माटी फुतका संग मा, धरती हमर अधार।

जल जमीन जंगल जतन, जुग-जुग जय जोहार।
मनमानी अब झन करव, सुन भुँइयाँ गोहार।

चौपाई

पायलगी हे धरती मँइयाँ, अँचरा तोरे पबरित भुँइयाँ।
संझा बिहना माथ नवावँव, जिनगी तोरे संग बितावँव।~1

छाहित ममता छलकै आगर, सिरतों तैं सम्मत सुख सागर।
जीव जगत जन सबो सुहाथे, धरती मँइयाँ मया लुटाथे।~2

फुलुवा फर सब दाना पानी, बेवहार बढ़िया बरदानी।
तभे कहाथे धरती दाई, करते रहिथे सदा भलाई।~3

देथे सबला सुख मा बाँटा, चिरई चिरगुन चाँटी चाँटा।
मनखे बर तो खूब खजाना, इहें बसेरा ठउर ठिकाना।~4

रुख पहाड़ नँदिया अउ जंगल, करथें मिलके जग मा मंगल।
खेत खार पैडगरी परिया, धरती दाई सुख के हरिया।~5

जींयत भर दुनिया ला देथे, बदला मा धरती का लेथे।
धरती दाई हे परहितवा, लगथे बहिनी भाई मितवा।~6

टीला टापू परबत घाटी, धुर्रा रेती गोंटी माटी।
महिमा बड़ धरती महतारी, दूधभात फुलकँसहा थारी।~7

आवव अमित जतन ला करबो, धरती के हम पीरा हरबो।
देख दशा अपने ये रोवय, धरती दाई धीरज खोवय।~8

बरफ करा गरमी मा गिरथे, मानसून अब जुच्छा फिरथे।
छँइहाँ भुँइयाँ ठाड़ सुखावय, बरबादी बन बाढ़ अमावय।~9

मतलबिया मनखे मनगरजी, हाथ जोड़ के हावय अरजी।
धरती ले चल माफी माँगन, खुदे पाँव झन टँगिया मारन।~10

बंद करव गलती के पसरा, छदर-बदर झन फेंकव कचरा।
दुखदाई डबरा ला पाटव, रुखराई मत एको काटव।~11

करियावय झन उज्जर अँचरा, कूड़ादानी डारव कचरा।
कचरा के करबो निपटारा, चुकचुक चमकै ये संसारा।~12

लालच लहुरा लउहा नाशा, धरती सँउहें खीर बताशा।
महतारी कस एखर कोरा, काबर सुख के भूँजन होरा।~13

मीठ पेड़ बड़ पथरा परथे, हुमन करे मा हँथवा जरथे।
नदियाँ खुद कब पीथे पानी, परहित मा काटँय जिनगानी।~14

धरती सबला करथे धारन, कभू करय नइ कखरो बारन।
संग मया के बाँधय सुमता, महतारी बन बाँटय ममता।~15

जीव जन्तु जग के हे हितवा, धरती माता सबके मितवा।
बिन महतारी का जिनगानी, भुँइयाँ ले सब करव मितानी।~16

सँइता सुख के सुग्घर सिढ़िया, बाँटव बाढ़व राहव बढ़िया।
साहू अमित करय हथजोरी, धर रपोट झन बनव अघोरी।~17

आवव राजा आवव परजा, उतारबो धरती के करजा।
उड़ती बुड़ती उँचहा उज्जर, दिखही दुनिया बहुते सुग्घर।~18

देथे धरती जिनगी भर जी, झन सकेल, तैं सँइता कर जी।
बाँटे मा मिलथे सुख गहना, एकमई सब हिलमिल रहना।~19

आवव छूटन धरती करजा, राजा मंत्री अउ सब परजा।
नदिया तरिया रुखुवा जंगल, हिलमिल रहना मा हे मंगल।~20

दोहा

रोकव राक्छस परदुसन,धरती करय पुकार।
पुरवाही फुरहुर बहय, हवा दवा दमदार

-कन्हैया साहू “अमित”
शिक्षक~भाटापारा (छ.ग)
संपर्क~9200252055

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3 thoughts on “धरती महिमा (चौपाई छन्द) छत्‍तीसगढ़ी

  1. “सुरता” मा स्थान दे खातिर अंतस ले आभार भैयाजी।

    1. बहुत बढ़िया चौपाई अमित भाई।बधाई..

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